प्रमंडलीय पुस्तकालय में शीध्र सुधार के लिए NSUI के बैनरतले एकदिवसीय
सांकेतिक भूख हरताल किया गया. कार्यक्रम कि शुरुआत शांति व अहिंषा के
अग्रदूत गांधी विचार के साधक रहे नेल्सन मंडेला के प्रति श्रदा सुमन अर्पित
कर कार्यक्रम कि शुरुआत कि गई। पुस्तकालय के जर्जर अवस्था में शीध्र
सुधार, पुस्तकालय के जेनरेटर वापसी कि माँग के साथ कई अन्य समस्याओं को
लेकर NSUI के कार्यकर्ताओं ने सहरसा सदर के अनुमडल पदाधिकारी को आवेदन देकर
जानकारी दी. कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए प्रदेश सचिव मनीष कुमार ने
कहा कि , जनजागरण व छात्र जागरण कर पुस्तकालय में सदस्यों कि संख्या को
बढ़ाया जायेगा। इसके साथ ही NSUI जिला अध्यक्ष सुदीप कुमार सुमन ने कहा कि
प्रशासनिक उदासीनता के कारण पुस्तकालय जर्जर अवस्था में है वही बुद्धिजीवि
व छात्र वर्ग के शिथिलता भी इसके लिए जिम्मेवार है. वर्ष २००५ में
पुस्तकालय को पाँच लाख कि राशि आवंटन हुआ था. जिस राशि से खरीदी गई जेनरेटर
आज प्रमंडलीय पुस्तकालय में उपलब्ध नहीं है जिसकी जाँच हो. पुस्तकालय में
विगत पाँच वर्षो से नियमीत दैनिक अख़बारों का आवंटन बंद है. इस पर NSUI
कमिटी पुस्तकालय कि स्थिति सुदृठ होने तक १३५ रुपया प्रतिमाह देने का
संकल्प लिया है.
दिसंबर 08, 2013
दिसंबर 04, 2013
रील पुलिस को तालियाँ और रीयल पुलिस को गालियाँ
मुकेश कुमार सिंह की कलम से-------- आज हम एक गंभीर विषय पर ना केवल चर्चा हैं बल्कि देश स्तर पर इस
विषय पर तटस्थ बहस और विमर्श हो इसकी अपील भी कर रहे हैं। देश के संविधान
क्रियान्वयन के समय से ही एक प्रश्न आजतक बेउत्तर मौजूं है.आखिर क्या है
हमारी पुलिस की विफलता का राज?आखिर क्या वजह है की तमाम भगीरथ प्रयासों और
मशक्कत के बाद भी हमारी पुलिस जनता के बीच आजतक अपनी वह छवि नहीं बना पायी
है जो विदेशों में वहाँ की पुलिस ने बना रखी है।हमारी समझ से इस प्रश्न का
उत्तर बहुत ही साधारण है और वजह भी कोई खास नहीं है।व्यापक परिदृश्य में
आंकड़ों पर गौर करें तो "हमारे देश के लोग कानून से नहीं बल्कि पुलिस से
डरते हैं"जबकि इसके ठीक उलट विदेशों में लोग अपने देश के कानून को सम्मान
देते हैं और पुलिस को सहयोग।वहाँ की जनता अपनी पुलिस से नहीं बल्कि देश के
कानून से डरती है।जाहिर तौर पर यही कारण है की विदेशों में पुलिस कामयाब और
सम्मानित है लेकिन अपने देश में पुलिस ठीक इसके विपरीत नजर आती है।भारतीय
परिवेश में आज "खाकी"का नाम जुवां पर आते ही एक अजीबो--गरीब छवि आँखों के
सामने आ जाती है। आम धारणा यह है की खाकी वर्दी में जो व्यक्ति है वह
कठोर,निर्दयी और भ्रष्ट हैवान है और जिसका भय भारतीय जनता के बीच वर्षों से
बना हुआ है।हांलांकि मुट्ठी भर ऐसे लोग जरुर हैं जो खाकी पहने व्यक्तियों
को समझते हैं। उन्हें पता है उनकी परेशानियां,मजबूरियां,आवश्यकताएं और
अपेक्षाएं।
यहाँ गौरतलब है की उन खाकी वर्दीधारियों की ऐसी छवि बनायी किसने
और लोग यह क्यों नहीं समझते हैं की उनका भी एक परिवार है।उनकी भी एक
व्यक्तिगत जिन्दगी है।उन्हें भी समाज से ना केवल अपेक्षा है बल्कि उनके
सीने में भी धड़कता हुआ एक दिल है।क्या लोगों ने कभी यह सोचने की जहमत उठायी
है की वह अपने परिवार को कितना समय दे पाते हैं।अगर उनकी तैनाती दूर--दराज
के इलाके में है तो वे कितने अरसे बाद अपने स्वजन--परिजनों की एक झलक देख
पाते हैं?दिन हो या रात अफसरों के तेवर और अपराधियों की चुनौतियों के बीच
वे अपना मानसिक और शारीरिक संतुलन आखिर कैसे बरकरार रख पाते हैं?ज़रा समझिये
की हेलमेट पहनने में आपकी सुरक्षा है लेकिन उसे पहनाने की जिम्मेदारी
पुलिस की?गलत तरीके से वाहन चलाने पर दुर्घटनाग्रस्त आप होते हैं लेकिन
आपको अस्पताल पहुंचाने की जिम्मेदारी पुलिस की?अपने समाज पर अत्याचार होता
देख आप अपने घर में दुबक जाते हैं लेकिन उस अत्याचारी से बचाने की
जिम्मेदारी पुलिस की?आँखों के सामने कत्ल हुआ किसी का लेकिन गवाह ढूंढने की
जिम्मेदारी पुलिस की?ऐसी ही ना जाने कितनी समस्याएं हैं जिसके जिम्मेवार
हम स्वयं हैं लेकिन सारी जिम्मेदारी पुलिस की।यहाँ एक विचित्र बात पर
प्रकाश डालना आवश्यक है की आम नागरिक अपने अधिकारों के प्रति तो जागरूक हैं
लेकिन जब अपने सामाजिक कर्तव्यों और दायित्वों की बात आती है वे उसकी
उपेक्षा कर अनभिज्ञता प्रकट कर देते हैं।अगर सामान्य नागरिक की किंचित
जागरूकता और सहयोग हमारी पुलिस को मिल जाए तो हम डंके की चोट पर कहते हैं
की हमारी पुलिस कितनी सक्रिय हो सकती है,हम इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते?

ज़रा आप तुलना करिए नागरिक सुरक्षा बल और सेना के बीच संसाधन और
सुविधाओं की तो स्वतः ही आपकी सहानुभूति नागरिक सुरक्षा बल के प्रति हो
जायेगी।सैनिक शहीद हो तो मान--सम्मान और आर्थिक अनुदान।लेकिन एक कांस्टेबल
अवकाश प्राप्त हो तो अपने ही पेंशन के लिए कार्यालयों के अनगिनत
चक्कर,अधिकारियों के समक्ष एड़ियों की रगड़ और खतो--किताबत,तब जाकर कहीं
मिलता है मामूली सा पेंशन।उस मामूली पेंशन से उसके परिवार की तो
छोड़िये,उसके खुद का गुजारा हो पाना भी मुश्किल है।सेना का जवान गर्व से
कहता है की मैं "फौजी?लेकिन एक कांस्टेबल के दिल से पूछिये तो वह बताएगा
की कितनी तकलीफों से सनी होती है पुलिस की नौकरी।उसका दिल रोता है लेकिन
उसे अपनी जुबान बंद रखनी पड़ती है।जानते हैं क्यों?वह इसलिए की उसे ही सुननी
है हमारी और आपकी फ़रियाद और उसे ही करनी है हमारी और आपकी सुरक्षा।
चूँकि पुलिस पर तरह--तरह के आरोप लगते रहते हैं इसलिए आज हम इस विषय
को गंभीरता से उठाने का प्रयास कर रहे हैं।भारत जैसे विशाल देश में आजादी
के बाद धर्मों को सम्मानपूर्वक देखने का सपना हमारे राष्ट्र नायकों ने देखा
था।उन्होनें कल्पना की थी की उनके बाद की पीढियां उसका अक्षरशः अमल
करेगी।लेकिन बड़े खेद की बात है की इस धर्म निरपेक्ष देश में आज सभी
राजनीतिक पार्टियां अपने स्वार्थ के लिए जनता को धर्म,जाति,वर्ण,लिंग
इत्यादि के प्रति उत्प्रेरित कर के देश को ना जाने कितने भागों में बाँट
रही है।लेकिन इस भयावह स्थिति के बीच एक ऐसा कौम है जो सभी भेद--भाव को
भूलकर न केवल एकजुट होकर बल्कि धर्मनिरपेक्ष होकर रात--दिन देश की आंतरिक
सुरक्षा कर रहा है।बाबजूद इसके विडंबना देखिये की उनकी इस ईमानदारी पर आजतक
किसी का ध्यान नहीं गया।क्या हमने कभी सोचा है की भारतीय पुलिस ने
स्वतंत्रता से लेकर आजतक कभी भी अपना कार्य धर्म इत्यादि के आधार पर
किया?पुलिस ने कभी यह कहा की आप हिन्दू हैं तो आपकी प्राथमिकी दर्ज की
जायेगी?क्या आप मुसलमान हैं,तभी आपकी सुरक्षा की जायेगी?सिख होकर दुर्घटना
के शिकार हुए व्यक्ति ही ईलाज के लिए अस्पताल पहुंचाए जायेंगे?इसाई की लाश
अगर लावारिश मिले तो उसे दफनाया जाएगा?निम्न और पिछड़ी जातियों को थाने में
आने की मनाही है?क्या उच्च जाति के लोगों के लिए थाने में कालीन बिछी
है?
बड़ी अहम् बात है की जहां हमारे देश में धर्म और जाति के नाम पर तरह--तरह के खेल हो रहे हैं वहीँ पुलिस पुरे देश देश में धर्म निरपेक्ष होकर अपराधियों से मुकाबला कर रही है।यही नहीं हमारी समझ से पुलिस जनता को बिना किसी भेदभाव के सुरक्षा देने का हर संभव प्रयास भी कर रही है।अब इस पुरे प्रकरण में पुलिस कितना कामयाब है,यह एक अलग बात है।जहां तक हमारी समझ जाती है उसके मुताबिक़ वर्दी का कोई मजहब नहीं होता और पुलिस किसी धर्म विशेष के लिए कतई काम नहीं करती है।पुलिस की गोली सिर्फ अपराधियों पर चलती है और चलने से पहले यह नहीं पूछती है की आप किस धर्म के हैं।कई ऐसे उदाहरण हैं जब अपराध में लिप्त कई धर्म गुरुओं को पुलिस ने दबोचा है।पद,रसूखवालों से लेकर बड़े ओहदेदारों और राजनेताओं को भी पुलिस ने बेड़ियाँ पहनाई है।हमारी पुलिस कौमी एकता की प्रतीक है। लेकिन इन तमाम सच के बीच अनगिनत वाकये इस बात के गवाह हैं की पुलिस पर से आमजन का भरोसा आज एक तरह से कहें तो तो उठ सा गया है।पुलिस को लेकर ना तो कोई अच्छा सोच रहे हैं,ना अच्छा बोल रहे हैं और ना अच्छा लिख रहे हैं।हमने तक़रीबन "विवादास्पद"बनी पुलिस पर समीचीन और तटस्थ पड़ताल की एक कोशिश की है। वर्तमान परिवेश में फिल्म आज भी जनता के मनोरंजन का मुख्य साधन है।खासकर ऐसी फ़िल्में जिसमें एक्शन,मारधाड़ और रोमांच हो तो उसका जादू सर चढ़कर बोलता है। यूँ हिंदी फिल्मों का फार्मूला कमोबेस एक ही होता है जिसमें हीरो--हिरोईन,नाच--गाना,विलेन और अंत में क्लाईमेक्स।इसी क्रम में पुलिस का प्रवेश होता है,फिर भाग--दौड़,गोला--बारूद और विलेन की मौत या फिर उसकी नाटकीय ढंग से गिरफ्तारी होती है।यहाँ पर पुलिस की कार्यशैली और उसके जांबाज अंदाज के लिए दर्शकों की भरपूर तालियाँ मिलती है।इतिहास गवाह है की आजतक लगभग सभी नायकों चाहे वह अमिताभ बच्चन,धर्मेन्द्र,संजीव कुमार,दिलीप कुमार,शशि कपूर,ओमपुरी,संजय दत्त, शाहरुख खान,सलमान खान,सन्नी देओल,अजय देवगन,सुनील सेट्ठी,अक्षय कुमार और ना जाने कितने कलाकारों ने पुलिस के रूप में पोजेटिव भूमिका निभायी है।दर्शकों ने इन फ़िल्मी पुलिसवालों के लिए ना केवल भरपूर तालियाँ बजाई है बल्कि जमकर उनकी तारीफ़ भी की है।लेकिन ये रील लाईफ की पुलिस है।रीयल लाईफ की पुलिस का अवलोकन करें तो हमारी पुलिस बिना बेहतर संसाधन के वास्तव में सामाजिक विलेनों से हरपल लड़ रही है।यहाँ यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी की वह काफी हद तक अपनी सीमाओं में बंधे होने के बाद भी कामयाब है।फिर भी हमें केवल उनकी नाकामियाँ ही नजर आती हैं और नतीजतन उन्हें गालियाँ दी जाती है। अगर हमारी पुलिस सच में काहिल और निकम्मी भर है तो आज भारत के सभी कारागारों में अपराधी खचाखच कैसे भरे हैं?क्या वे अपने गुनाह स्वयं कबूल करके जेल गए हैं/अगर हमारी पुलिस घर बैठे सिर्फ वेतन ले रही है तो फिर भारत के सभी छोटे--बड़े न्यायालयों में करोड़ों अपराधिक मुकदमें क्या यूँ ही चल रहे हैं?
नागरिक सुरक्षा बल और सैन्य बल के संसाधन और जिम्मेवारियों की अगर तुलना की जाए तो चौंकाने वाले सच सामने आते हैं।बड़ा सवाल यह है की क्या नागरिक सुरक्षा बल को सैनिकों जैसी सुविधाओं की आवश्यकता नहीं है? क्या पुलिस को भी सेना की भांति सम्मान की जरुरत नहीं है?क्या पुलिस को सैनिकों की तरह अवकाश की दरकार नहीं है?यह बिल्कुल आईने की तरह साफ़ है की अगर पुलिस को हम ऐसी सुविधाएं मुहैय्या करा दें तो हमारा हर कांस्टेबल ना केवल अजय देवगन और हर दारोगा अमिताभ बच्चन होगा बल्कि यथार्थ की पुलिस बिल्कुल फिल्मों जैसी होगी और फिल्म की तरह The End हमेशा सुखदायी होगा।
आखिर में आपसे एक बात पूछने की कोशिश कर रहा हूँ।आप ने एक डॉक्टर,एक शिक्षक,एक अधिकारी से लेकर रसूखदारों और नेताओं तक को जरुर कहा होगा लेकिन क्या आपने कभी एक पुलिसवाले से कभी "थैंक यू "कहा है? ईमानदारी से कभी उन्हें भी "थैंक यू"कहकर देखिये।मेरा दावा है की उनकी आँखे ना केवल भर आएँगी बल्कि उनका कलेजा मुंह को आ जाएगा।
बड़ी अहम् बात है की जहां हमारे देश में धर्म और जाति के नाम पर तरह--तरह के खेल हो रहे हैं वहीँ पुलिस पुरे देश देश में धर्म निरपेक्ष होकर अपराधियों से मुकाबला कर रही है।यही नहीं हमारी समझ से पुलिस जनता को बिना किसी भेदभाव के सुरक्षा देने का हर संभव प्रयास भी कर रही है।अब इस पुरे प्रकरण में पुलिस कितना कामयाब है,यह एक अलग बात है।जहां तक हमारी समझ जाती है उसके मुताबिक़ वर्दी का कोई मजहब नहीं होता और पुलिस किसी धर्म विशेष के लिए कतई काम नहीं करती है।पुलिस की गोली सिर्फ अपराधियों पर चलती है और चलने से पहले यह नहीं पूछती है की आप किस धर्म के हैं।कई ऐसे उदाहरण हैं जब अपराध में लिप्त कई धर्म गुरुओं को पुलिस ने दबोचा है।पद,रसूखवालों से लेकर बड़े ओहदेदारों और राजनेताओं को भी पुलिस ने बेड़ियाँ पहनाई है।हमारी पुलिस कौमी एकता की प्रतीक है। लेकिन इन तमाम सच के बीच अनगिनत वाकये इस बात के गवाह हैं की पुलिस पर से आमजन का भरोसा आज एक तरह से कहें तो तो उठ सा गया है।पुलिस को लेकर ना तो कोई अच्छा सोच रहे हैं,ना अच्छा बोल रहे हैं और ना अच्छा लिख रहे हैं।हमने तक़रीबन "विवादास्पद"बनी पुलिस पर समीचीन और तटस्थ पड़ताल की एक कोशिश की है। वर्तमान परिवेश में फिल्म आज भी जनता के मनोरंजन का मुख्य साधन है।खासकर ऐसी फ़िल्में जिसमें एक्शन,मारधाड़ और रोमांच हो तो उसका जादू सर चढ़कर बोलता है। यूँ हिंदी फिल्मों का फार्मूला कमोबेस एक ही होता है जिसमें हीरो--हिरोईन,नाच--गाना,विलेन और अंत में क्लाईमेक्स।इसी क्रम में पुलिस का प्रवेश होता है,फिर भाग--दौड़,गोला--बारूद और विलेन की मौत या फिर उसकी नाटकीय ढंग से गिरफ्तारी होती है।यहाँ पर पुलिस की कार्यशैली और उसके जांबाज अंदाज के लिए दर्शकों की भरपूर तालियाँ मिलती है।इतिहास गवाह है की आजतक लगभग सभी नायकों चाहे वह अमिताभ बच्चन,धर्मेन्द्र,संजीव कुमार,दिलीप कुमार,शशि कपूर,ओमपुरी,संजय दत्त, शाहरुख खान,सलमान खान,सन्नी देओल,अजय देवगन,सुनील सेट्ठी,अक्षय कुमार और ना जाने कितने कलाकारों ने पुलिस के रूप में पोजेटिव भूमिका निभायी है।दर्शकों ने इन फ़िल्मी पुलिसवालों के लिए ना केवल भरपूर तालियाँ बजाई है बल्कि जमकर उनकी तारीफ़ भी की है।लेकिन ये रील लाईफ की पुलिस है।रीयल लाईफ की पुलिस का अवलोकन करें तो हमारी पुलिस बिना बेहतर संसाधन के वास्तव में सामाजिक विलेनों से हरपल लड़ रही है।यहाँ यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी की वह काफी हद तक अपनी सीमाओं में बंधे होने के बाद भी कामयाब है।फिर भी हमें केवल उनकी नाकामियाँ ही नजर आती हैं और नतीजतन उन्हें गालियाँ दी जाती है। अगर हमारी पुलिस सच में काहिल और निकम्मी भर है तो आज भारत के सभी कारागारों में अपराधी खचाखच कैसे भरे हैं?क्या वे अपने गुनाह स्वयं कबूल करके जेल गए हैं/अगर हमारी पुलिस घर बैठे सिर्फ वेतन ले रही है तो फिर भारत के सभी छोटे--बड़े न्यायालयों में करोड़ों अपराधिक मुकदमें क्या यूँ ही चल रहे हैं?
नागरिक सुरक्षा बल और सैन्य बल के संसाधन और जिम्मेवारियों की अगर तुलना की जाए तो चौंकाने वाले सच सामने आते हैं।बड़ा सवाल यह है की क्या नागरिक सुरक्षा बल को सैनिकों जैसी सुविधाओं की आवश्यकता नहीं है? क्या पुलिस को भी सेना की भांति सम्मान की जरुरत नहीं है?क्या पुलिस को सैनिकों की तरह अवकाश की दरकार नहीं है?यह बिल्कुल आईने की तरह साफ़ है की अगर पुलिस को हम ऐसी सुविधाएं मुहैय्या करा दें तो हमारा हर कांस्टेबल ना केवल अजय देवगन और हर दारोगा अमिताभ बच्चन होगा बल्कि यथार्थ की पुलिस बिल्कुल फिल्मों जैसी होगी और फिल्म की तरह The End हमेशा सुखदायी होगा।
आखिर में आपसे एक बात पूछने की कोशिश कर रहा हूँ।आप ने एक डॉक्टर,एक शिक्षक,एक अधिकारी से लेकर रसूखदारों और नेताओं तक को जरुर कहा होगा लेकिन क्या आपने कभी एक पुलिसवाले से कभी "थैंक यू "कहा है? ईमानदारी से कभी उन्हें भी "थैंक यू"कहकर देखिये।मेरा दावा है की उनकी आँखे ना केवल भर आएँगी बल्कि उनका कलेजा मुंह को आ जाएगा।
अक्टूबर 26, 2013
टेम्पो हादसे में दो मरे
टेम्पो पलटकर जलकर में गिरी,तीन को
बचाया गया /एक महिला सहित दो मरे /पतरघट ओपी के पस्तपार के समीप घटी घटना


मौके पर मौजूद पतरघट ओपी अधिकारी राजेश कुमार रंजन ने घटना की जानकारी देते हुए कहा की
वे जाल डालकर डूबे दो लोगों को निकालने की कोशिश में जुटे हुए हैं. अभीतक
एक और शख्स के मरने की आशंका बनी हुयी है और ग्रामीण अभी भी जाल डालकर लाश
ढूंढने में लगे हुए हैं.किसी का कहना है की ड्राईवर है तो कोई कह रहा है
की एक और दूसरा शख्स है.
6 शातिर लुटेरे गिरफ्तार
पुलिस को मिली बड़ी कामयाबी /एक
पिस्टल,एक देशी कट्टा,पांच जिन्दा कारतूस,चार मोबाइल और तीन लूट की
मोटरसाईकिल बरामद
सहरसा टाइम्स: बीते
कल सहरसा पुलिस के लिए बड़ी कामयाबी का दिन था.सहरसा पुलिस ने बाईक लुटेरे
गिरोह के दो सरगना सहित छः लुटेरों को एक पिस्टल,एक देशी कट्टा,पांच जिन्दा
कारतूस,चार मोबाइल और तीन लूट की मोटरसाईकिल के साथ गिरफ्तार कर
लिया.दोनों सरगना शशि मेहता और मुन्ना दास की गिरफ्तारी सदर थाना के
मत्स्यगंधा मंदिर के समीप हुयी और फिर उनकी निशानदेही पर बांकी चारों
लुटेरे की गिरफ्तारी हुयी.
पुलिस अधीक्षक के कक्ष में ये छः लुटेरे बड़े शातिर हैं.इस गिरोह
का संचालन सुपौल जिले का रहने वाला शशि मेहता और मधेपुरा जिले का रहने वाला
मुन्ना दास करता था.ये दोनों मोटरसाईकिल लूटते थे और बांकी चार मुकेश
कुमार,पंकज सिंह, मिथिलेश यादव और भुट्टो यादव सभी सहरसा जिले के रहने वाले
मोटरसाईकिल का ग्राहक तलाशकर उसे खपाते थे.पुलिस अधीक्षक अजीत सत्यार्थी ने आज प्रेस
वार्ता कर पूरी जानकारी देते हुए कहा की इलेक्ट्रानिक सर्विलांस से इनकी
गिरफ्तारी सम्भव हो पायी.इनकी गिरफ्तारी से सहरसा,मधेपुरा,सुपौल और
पुर्णिया जिले में वाहन लूट और चोरी की घटना में काफी कमी आएगी.
जाहिर तौर पर पुलिस के लिए यह बड़ी कामयाबी है.पुलिस के साथ---साथ आमलोगों के लिए भी यह राहत की बात है.
अक्टूबर 24, 2013
करोड़ों के धान की बर्बादी देखो सरकार
इधर अनाज सड़े उधर गरीब मरे /एक तरफ गरीबों को निवाला
नहीं मिल रहा,दूसरी तरफ बेशर्म लापरवाही से अनाज की हो रही है बर्बादी
SFC के कार्यपालक सहायक कुमार गौरव साफ़--साफ़ कह रहे हैं की पैक्स के माध्यम से
विभाग ने उस इलाके में किसानों से 24 हजार 7 सौ 64 क्विंटल धान की खरीददारी
की थी.17 हजार 500 सौ क्विंटल धान का SIO कटा लेकिन वहाँ से 12 हजार 500
क्विंटल धान का ही उठाव किया जा सका.बांकी 12 हजार 500 क्विंटल से ज्यादा
धान वहीँ रह गए.इनके मुताबिक़ जिलाधिकारी ने खुद धान को खुले में देखा था और
उन्हीं के निर्देश पर धान वहाँ खुले में रखे हुए थे.जिलाधिकारी ने जगह
नहीं होने का हवाला दिया था. इन्होनें धान के सड़ने की आशंका को लेकर बड़े
अधिकारियों को पत्र भी लिखे थे.लेकिन इससे इतर जब हमने जिलाधिकारी शशि भूषण कुमार से
जबाब--तलब किया तो पहले तो उन्होने सरकारी धान सड़ने की बात से एक तरह से
इनकार किया.इन्होनें यह बताना चाहा की यह धान SFC का है ही नहीं.फिर ये
जांच और कारवाई की बात कर मौजूं सच से पल्ला झाड़ गए.
हमाम में सारे नंगे है यह कमो--बेस सारे लोग जानते हैं.लोग नंगे हैं तो उसके पीछे कोई ना कोई बड़ा मतलब है.लेकिन यह नंगापन किस काम का जिसमें अनाज को सड़ा दिया गया.आखिर इस नासमझी और लापरवाही से किसका भला होगा.सरकार को लफ्फाजी की जगह इस मामले में सीधे हस्तक्षेप करते हुए बड़ी कारवाई करनी चाहिए.
मुकेश कुमार सिंह की रिपोर्ट: एक तरफ सहरसा जिले में गरीब--मजबूर और मुफलिस--फटेहालों
को रोजाना मुंह का निवाला नहीं मिल रहा है तो दूसरी तरफ बेशर्म सरकारी
लापरवाही से हजारो क्विंटल अनाज की बर्बादी हो रही है.आज हम जिले के पतरघट
प्रखंड के जेम्हरा गाँव की ऐसी सच की तस्वीर लेकर हाजिर हो रहे हैं जो ना
केवल नौकरशाहों की बदमिजाजी को बेनकाब करता है बल्कि सरकार के तमाम दावों
की पोल---पट्टी को भी खोलकर रखता है.जेम्हरा में SFC का साढ़े बारह हजार
क्विंटल से ज्यादा धान सड़कर पूरी तरह से बर्बाब हो गए हैं लेकिन जिला
प्रशासन उसकी जांच और उचित कारवाई के तकिया कलाम से लीपा--पोती करने में
जुटा हुआ है.काश!यह अनाज बर्बाद होने की जगह गरीबों के हाथों चला जाता तो
कितने गरीबों की जिन्दगी को असमय खत्म होने से बचाया जा सकता था.लेकिन यहाँ
तो कुएं में ही भंग पडा है.करोड़ों के धान की बर्बादी देखो सरकार.
हम आपको जेम्हरा गाँव लेकर आये हैं.देखिये यहाँ पर हजारों
क्विंटल धान को खुले में एक गड्ढ़े में रखा गया है.ये सारे धान पेक्स के
माध्यम से SFC ने किसानों से खरीदा था लेकिन अब ये बर्बाद होकर सिर्फ बदबू
दे रहे हैं.अब ये धान आमलोगों के किसी काम के तो नहीं रहे लेकिन लोगों को
भय है की यहाँ पड़े--पड़े कहीं ये महामारी का सबब ना बन जाएँ.इलाके के लोग यह
भी कह रहे हैं की इसे बर्बाद कराने की जगह अगर गरीबों के बीच बाँट दिया
जाता तो कितने गरीबों का भला हो जाता.लोगों ने इस तरह से धान को यहाँ पर
नहीं रखने की पहले आलाधिकारियों से गुजारिश भी की थी.यही नहीं लोगों ने
धान को किसी तरह बचाया जाए इसके लिए जिला के बड़े अधिकारियों से
आग्रह--अनुग्रह भी किये थे लेकिन सब कुछ ढ़ाक के तीन पात साबित हुए.

हमाम में सारे नंगे है यह कमो--बेस सारे लोग जानते हैं.लोग नंगे हैं तो उसके पीछे कोई ना कोई बड़ा मतलब है.लेकिन यह नंगापन किस काम का जिसमें अनाज को सड़ा दिया गया.आखिर इस नासमझी और लापरवाही से किसका भला होगा.सरकार को लफ्फाजी की जगह इस मामले में सीधे हस्तक्षेप करते हुए बड़ी कारवाई करनी चाहिए.
अक्टूबर 22, 2013
सुशासन की शराब पीकर टल्ली हुयी महिलाएं
जहां
भूख,बेकारी,बीमारी और मज़बूरी कुलाचें भरती हैं वहाँ महिलायें शराब पीकर कर
रही हैं तमाशा >>> मुकेश कुमार सिंह की खास रिपोर्ट<<<<
कहते हैं की शराब पीनी ना केवल बुरी लत और बुरी बला है
बल्कि एक बड़ा गुनाह भी है.लेकिन सहरसा का आलम कुछ और ही कह रहा है.यहाँ ना
केवल पुरुष बल्कि महिलायें भी छंककर शराब पी रही हैं.हद की इन्तहा तो यह है
की ये शराबी महिलायें नशे में धुत्त होकर नाच---गाने के साथ---साथ भरपूर
तमाशे भी कर रही हैं.सदर अस्पताल सहरसा में घंटों तमाशा कर रही दो महिलाओं
की बेशर्म और एक्सक्लूसिव तस्वीर और खबर लेकर सहरसा टाईम्स आज हाजिर है.

महानगर में महिलायें हाई प्रोफाईल बड़ी पार्टी अटेंड करने
वाली होती हैं.सर्वे और जानकारी के मुताबिक़ बड़े शहरों में महिलाओं के शराब
पीने को सोसल स्टेटस से जोड़कर देखा जाता है.लेकिन ऐसा इलाका जहां
भूख,बेकारी,बीमारी और मज़बूरी कुलाचें भरती हैं वहाँ अगर महिलायें शराब पीकर
तमाशा कर रही हैं तो आश्चर्य होना लाजिमी है.आज हम आपको सदर थाना के
सराही मोहल्ले की रहने वाली दो महिलाओं की तस्वीर दिखा रहे हैं जो करीब चार
घंटे तक नशे में धुत्त होकर सदर अस्पताल में ना केवल झूमती, नाचती--गाती
रही बल्कि खूब तमाशे भी करती रही.जिस इलाके में एक रोटी के लिए जंग लड़ी जा
रही हो वहाँ महिलायें हाथ में देशी शराब की पाउच लेकर अपनी अदाएं दिखा रही
हैं.
हद तो यह है की महिला की इस दुर्दशा को लोग तमाशे की शक्ल में ना केवल
देख रहे हैं बल्कि जमकर मजे भी ले रहे हैं.सहरसा टाईम्स ने ना केवल इन शराबी
महिलाओं की बेशर्म और बेहया तस्वीरें उतारी बल्कि उन्हें शराब ना पीने के
लिए उन्हें झंकझोड़ने का भागीरथ प्रयास भी किया.अपने सामाजिक दायित्व और
कर्तव्य की वजह से सहरसा टाईम्स ने इन शराबी महिलाओं को भरपूर समझाने का जतन
किया लेकिन उसका नतीजा फकत सिफर आया.इस पुरे प्रकरण में शराबी महिला ने
सहरसा टाईम्स की ना केवल फजीहत की बल्कि सहरसा टाईम्स को शराब पीने के लिए
मजबूर भी किया.चार घंटे तक चले इस शराब तमाशे में महिला ने ए राजा जी और
मुझे पीने का शौक नहीं गीत गाये और खूब नाच किये.पूछने पर एक शराबी महिला
कतिपय जोर देकर कहती रही की उसे शराब पीने के लिए सूबे के मुख्यमंत्री
नीतीश कुमार ने छूट दे रखी है और उन्होनें ने ही उसे पीने को कहा है.
हमारा मकसद शराब में धुत्त नशेड़ी महिलाओं की तस्वीर भर दिखाने का नहीं है.बिहार के गली--मोहल्ले से लेकर गाँव के चौपाल तक खुली शराब की दूकान के नतीजे अब हमारे सामने हैं.सुशासन बाबू इन जलती हुयी सच की तस्वीर को देखिये.महिलाओं को पुरुष के बराबर करने के लिए क्या ऐसे बदरंग हालात की जरुरत है.साहेब,भारत विश्व का ऐसा एकलौता देश है जहां नारी को पुरुष के बराबर नहीं बल्कि पुरुष से ऊपर और बहुत बड़ा दर्जा मिला हुआ है और जहां नारी की पूजा की जाती है.रब जाने यह कौन सा विकास है.
हमारा मकसद शराब में धुत्त नशेड़ी महिलाओं की तस्वीर भर दिखाने का नहीं है.बिहार के गली--मोहल्ले से लेकर गाँव के चौपाल तक खुली शराब की दूकान के नतीजे अब हमारे सामने हैं.सुशासन बाबू इन जलती हुयी सच की तस्वीर को देखिये.महिलाओं को पुरुष के बराबर करने के लिए क्या ऐसे बदरंग हालात की जरुरत है.साहेब,भारत विश्व का ऐसा एकलौता देश है जहां नारी को पुरुष के बराबर नहीं बल्कि पुरुष से ऊपर और बहुत बड़ा दर्जा मिला हुआ है और जहां नारी की पूजा की जाती है.रब जाने यह कौन सा विकास है.
अक्टूबर 21, 2013
हुआ रावण दहन : पाईलीन की कहर की वजह से समय से नहीं हुआ था रावण दहन

यहाँ पर अशोक वाटिका के साथ--साथ लंका और रावण का महल भी बनाया गया .पहले इस दहन कार्यक्रम का उद्दघाटन सदर एस.डी.ओ. प्रशिक्षु आई.ए.एस.अधिकारी पंकज दीक्षित और ए.एस.पी.दिलीप कुमार मिश्रा ने विधिवत फीता काटकर किया.भारी भीड़ की मौजूदगी में फिर हुआ रावण दहन का कार्यक्रम.सबसे पहले सदर एस.डी.ओ.प्रशिक्षु आई.ए.एस.अधिकारी पंकज दीक्षित ने मेघनाद का,ए.एस.पी. दिलीप कुमार मिश्रा ने कुम्भकरण और दोनों ने मिलकर अंत में फिर रावण के पुतले का आग लगी तीर चलाकर दहन किया.इस दौरान वानरी सेना ने लंका दहन भी किया.अपार भीड़ के बीच यह कार्यक्रम शाम शुरू हुआ जो शाम करीब साढ़े आठ बजे संपन्न हुआ.बुराई पर अच्छाई की जीत के इस महान मौके पर अधिकारियों ने कहा की जिस तायदाद में लोग यहाँ ऊफोआष्टःईट होकर इस दहन के हैं उनका यह दायित्वही की वे समाज में व्याप्त बुराई के खात्मा का जिम्मा लें और हर तरह की बुराई का कात्मा करें जिससे हमारे सामने बेहतर भारत की बेमिशाल तस्वीर ताकयामत मौजूं रहे.
असमय रावण दहन का कार्यक्रम काफी हर्षौल्लास से आज संपन्न हो गया.इस पावन मौके पर सहरसा टाईम्स यह दुआ करता है की बुराई का इस जिले में इस रावण दहन के साथ इस तरह से खात्मा हो की अगले वर्ष रावण दहन की जरुरत ही ना पड़े.
अक्टूबर 20, 2013
कुदरत का करिश्मा : एक महिला ने एक साथ जनने चार बच्चे
सहरसा टाईम्स: बीती
रात सदर अस्पताल सहरसा में एक महिला ने एक बाद एक कुल चार बच्चों को जन्म
दिया.य़े चारो बच्चे सामान्य प्रसव से इस दुनिया में आये.खास बात यह है की
जहां चारो बच्चे पूरी तरह से स्वस्थ्य हैं वहीँ इसकी माँ भी बिल्कुल
ठीक--ठाक है. जिले के बनमा इटहरी प्रखंड के मकदमपुर गाँव की रहने वाली वीणा देवी के पति पंजाब में मजदूरी करते
हैं.एक साथ चार--चार बच्चो के जन्म की खबर जैसे--जैसे लोगों को हो रही है
वे बच्चों को देखने के लिए अस्पताल पहुँच रहे हैं.बच्चे के रिश्तेदार के
साथ---साथ दूसरे लोग भी इसे भगवान् का चमत्कार मान रहे हैं.सभी इस बात से
बेहद खुश हैं की चारो बच्चे और प्रसूता पूरी तरह से स्वस्थ्य हैं.
चार बच्चों को जनने वाली वीणा देवी इसे मालिक का चमत्कार मानकर खुश है.उसका कहना है की भगवान् ने यह किया है तो उसे ना केवल यह मंजूर है बल्कि उसे बेहद ख़ुशी है.आगे सभी कुछ भगवान् पर निर्भर है.चार बच्चों में दो बेटे और दो बेटियाँ हैं.
चारों बच्चे स्वस्थ्य हैं यह बेहद ख़ुशी की बात है लेकिन आप यह जानकार हैरान हो जायेंगे की वीणा देवी को पहले से ही पांच बच्चे हैं और अब ये चार.कुल नौ बच्चे हुए जिसकी परवरिश आखिर वीणा आगे किस तरह से और कितना बेहतर ढंग से कर पाएगी,यक्ष प्रश्न सामने खड़ा है.
चार बच्चों को जनने वाली वीणा देवी इसे मालिक का चमत्कार मानकर खुश है.उसका कहना है की भगवान् ने यह किया है तो उसे ना केवल यह मंजूर है बल्कि उसे बेहद ख़ुशी है.आगे सभी कुछ भगवान् पर निर्भर है.चार बच्चों में दो बेटे और दो बेटियाँ हैं.
चारों बच्चे स्वस्थ्य हैं यह बेहद ख़ुशी की बात है लेकिन आप यह जानकार हैरान हो जायेंगे की वीणा देवी को पहले से ही पांच बच्चे हैं और अब ये चार.कुल नौ बच्चे हुए जिसकी परवरिश आखिर वीणा आगे किस तरह से और कितना बेहतर ढंग से कर पाएगी,यक्ष प्रश्न सामने खड़ा है.
ह्त्या या फिर हादसे में हुयी मौत
सहरसा टाईम्स: बीती
रात बिहरा थाना पुलिस के द्वारा एक पैंतीस वर्षीय जख्मी युवक को ईलाज के
लिए सदर अस्पताल लाया गया लेकिन ईलाज शुरू होने से पहले ही उसकी मौत हो
गयी.मृतक वीरेंदर मुखिया जिले के महिषी थाना के नहरवार गाँव का रहने वाला
है और उसे बीती रात बिहरा थाना के सिहौल पेट्रोल पम्प के पास से जख्मी
अवस्था में सदर अस्पताल लाया गया था.इस मामले में जहां पुलिस कह रही है की
ट्रैक्टर की चपेट में आकर इस युवक की मौत हुयी है वहीँ मृतक के पिता का
कहना रूपये की लेन--देन में उसकी ह्त्या सिहौल गाँव के रहने वाले भगवान् जी
नाम के व्यक्ति ने की है.फिलवक्त पुलिस लाश का पोस्टमार्टम कराकर आगे की
तफ्तीश में जुटी हुयी है.ह्त्या या फिर हादसे में हुयी इस युवक मौत,इसपर
रहस्य बरकरार है.
सहरसा के ए.एस.पी. दिलीप कुमार मिश्रा का कहना है की इस युवक की मौत ट्रैक्टर की चपेट में आकर हुयी है.बिहरा पुलिस ने उस ट्रैक्टर को भी बरामद कर लिया है.हांलांकि ट्रैक्टर ड्राईवर फिलवक्त फरार है.वैसे मृतक के पिता के आरोप को लेकर इनका कहना है की वे इस बिंदु पर भी जांच करवाएंगे.
आगे इस मामले में पुलिस जिस तरह से भी तफ्तीश करे लेकिन अभी यह रहस्य पूरी तरह से गहराया हुआ है की यह ह्त्या है या फिर सड़क हादसा.हमारी समझ से पुलिस को इस मामले में गहराई से जांच करने की जरुरत है.
सहरसा के ए.एस.पी. दिलीप कुमार मिश्रा का कहना है की इस युवक की मौत ट्रैक्टर की चपेट में आकर हुयी है.बिहरा पुलिस ने उस ट्रैक्टर को भी बरामद कर लिया है.हांलांकि ट्रैक्टर ड्राईवर फिलवक्त फरार है.वैसे मृतक के पिता के आरोप को लेकर इनका कहना है की वे इस बिंदु पर भी जांच करवाएंगे.
आगे इस मामले में पुलिस जिस तरह से भी तफ्तीश करे लेकिन अभी यह रहस्य पूरी तरह से गहराया हुआ है की यह ह्त्या है या फिर सड़क हादसा.हमारी समझ से पुलिस को इस मामले में गहराई से जांच करने की जरुरत है.
दबंग विधायक का प्रचंड गुस्सा देखो सरकार
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छातापुर जदयू विधायक नीरज कुमार बबलू |


इस तमाम बयानबाजी के बाद विधायक के बरी होने की ख़ुशी में विधायक के
घर बेमौसम की होली और दिवाली एक साथ मनाई गयी.विधायक के समर्थक उन्हें ना केवल जमकर
गुलाल लगा रहे थे बल्कि पटाखे चलाकर अपनी ख़ुशी का इजहार भी कर रहे थे.
नीरज बबलू के इस तेवर का आगे क्या हस्र होगा उसपर हमारी
गिद्ध दृष्टि तो लगी रहेगी ही लेकिन अभी के उनके इन तल्ख़ बयानों ने
कोसी--सीमांचल इलाके के सियासी गलियारे में नयी गर्मी जरुर ला दी है.
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