अक्तूबर 19, 2012

सहरसा के चन्द्रायण में भूत बंगला

मुकेश कुमार सिंह सहरसा टाइम्स:  
अगर आपको सरकार की बदइन्तजामी,लापरवाही और सरकारी धन के बेजा दुरूपयोग का नजारा देखना हो तो  आप सहरसा चले आईये.यहाँ एक नहीं थोक में कई ऐसे नज़ारे मिलेंगे जो आपको ना केवल हैरान और परेशान करेंगे बल्कि सरकार के कामकाज के तरीकों में अल्प ज्ञान के बड़े-बड़े कितने सुराख हैं वह भी नजर आयेंगे.पूर्वी और पश्चिमी तटबंध के भीतर बसे सहरसा और सुपौल जिले के करीब 15 लाख की आबादी के लिए आवागमन का एक मात्र साधन नाव है.लोगों के लिए इस पार से उसपार जाने में घंटों के वक्त लगते हैं.ऐसे में सबसे बड़ी मुसीबत उनलोगों को होती है जो बीमार हैं और जिन्हें तुरंत स्वास्थ्य सुविधा की जरुरत है.कोसी के इस इलाके के लोग अक्सर समय पर इलाज नहीं होने की वजह से काल--कलवित होते रहे हैं.
एक तो नाव पर मुश्किल भरी यात्रा फिर मरीजों को दूर--दराज इलाके में ले जाने के लिए सवारी की कमी.ऐसे में इस इलाके के मरीजों को बचाने की गरज से करीब 
14 करोड़ की लागत से नवहट्टा प्रखंड के चन्द्रायण स्थित पूर्वी तटबंध के किनारे पर रेफरल अस्पताल का निर्माण कराया गया.करीब सात एकड़ भूखंड पर पसरे इस अस्पताल के लिए आलिशान भवन ना केवल बनकर तैयार भी हुए बल्कि इस अस्पताल के लिए लाखों के चिकित्सीय अत्याधुनिक उपकरण भी मंगाए गए.बड़े ताम--झाम और गाजे--बाजे के साथ 18 सितम्बर 1995 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने स्वास्थ्य मंत्री महावीर प्रसाद और क्षेत्रीय विधायक अब्दुल गफूर की मौजूदगी में इस अस्पताल का विधिवत उदघाटन भी किया.इलाके के लोगों की बांछें खिल उठी थी की अब उनके घर के बुजुर्ग,महिलायें और घर का चिराग असमय दुनिया को अलविदा नहीं कहेगा. लेकिन नियति को यह शायद मंजूर ही नहीं था.19 सितम्बर 1995 को इस अस्पताल में यह कहकर ताले जड़े गए की यहाँ पर एक सप्ताह के बाद डॉक्टर और चिकित्साकर्मी आयेंगे लेकिन आजतक इस अस्पताल में वह समय नहीं आया जब इसके जंग खाए ताले खुलते.बन्द पड़े ताले आज भी उसी तरह इस अस्पताल में जड़े हुए हैं.
इस अस्पताल में कभी कोई ना तो डॉक्टर ही बैठे और ना ही कोई स्वास्थ्यकर्मी ही यहाँ आया.लम्बे समय तक डॉक्टर और चिकित्साकर्मी की बाट जोहते--जोहते अब यह संज्ञा भर का अस्पताल ना केवल भूत बंगले में तब्दील है बल्कि खंडहर होकर जमींदोज होने के कगार पर भी है.सरकारी पेंच में फंसकर यह अस्पताल करोड़ों की सरकारी राशि को बर्बाद कर दम तोड़ गया.इलाके के लोगों ने कभी यह अस्पताल अपने अस्तित्व में आएगा की अब उम्मीद भी छोड़ चुके हैं.सुशासन के ढोल--ताशे बज रहे हैं.विकास के कसीदे कढे जा रहे हैं.ऐसे में कोसी इलाके का यह रेफरल अस्पताल हुक्मरान और उसके तंत्रों के दावों की कलई खोल रहा है.यह नजारा बता रहा है की सरकार की कोशिशें पूरी तरह से ईमानदार नहीं हैं.सरकार को दावे कम और काम ज्यादा करना होगा.

6 टिप्‍पणियां:

  1. HAMARE YAHAN HAR CHEEJ ELECTION K LIYE HOTA HAI. lATE LAHATAN NE ES HOSPITAL KE ENOGRATION K NAM PAR KAI ELECTION JEETE, PHIR mR. ANAND MOHAN NE ESKO AAGE BADHAYA AUR VADA K MITABIK KAM BHI AAGE BADAHAYA PARANTU YE BHI MAHAJ DIKHAWA SABIT HUA.
    ANIL kUMAR ROY
    EKADH, SAHARSA

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  2. sharmnaak. mukhya mantri ke mahishi yatra ke dauran highlight hona chahee rahe. ekta rti application bhejal jebaak chahee.

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  3. kis liye jab prakashit hi nahi hoti to kyon apna time jaya kare, kya aap apna advertisment k liye ye lekh likh rahe hai...

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  4. Bhagwan bachayen. Unhi ka aasara hai. Lalu Nitish Jindabad

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  5. iske liye Nigraani vibhag kya kar rahi hai....Nitish jee ka dhyan aakrist karaya gaya ya nahi...Auditor General ka kya uttardaitwa nahi hai...

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  6. Lakaykt ki param aawsyakta hai...Auditor General & vigilance dept. kya kar rahi hai...Nitish Sarkaar kya kadam utha rahi hai.

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।