सितंबर 21, 2012

केन्द्रीय विद्यालय का दर्द

रिपोर्ट चन्दन सिंह:  कोसी प्रमंडल के सुपौल,मधेपुरा और सहरसा जिले का इकलौता केन्द्रीय विद्यालय सहरसा अपने स्थापना काल से ही अपनी बदहाली प़र मोटे--मोटे आंसू बहा रहा है.1 अप्रैल 1996 में खुला केन्द्रीय विद्यालय आजतक बदस्तूर विभिन्य सुविधाओं के अभाव का दंश झेल रहा है.बताते चलें की 2 मार्च 1997 को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने इसका उदघाटन किया था.
केन्द्रीय विद्यालय के बाहर खुली नाली है जिससे होकर ना केवल गंदे पानी बह रहे हैं बल्कि उसमें गंदे कचरे का भी अम्बार है.नाक फाडू बदबू से बच्चे हलकान--परेशान हैं.टूटे--फूटे खपरैल और चदरे के जर्जर भवन में यह विद्यालय पिछले डेढ़ दशक से संचालित हो रहा है. बारिश में नाम की छत से पानी टपकता है और विद्यालय के अंदर जल--जमाव भी हो जाता है.छोटे--छोटे कमरे हैं जहां कक्षा का ठीक से संचालन भी मील का पत्थर है.सुविधाओं की लम्बी फिहरिस्त की जगह यहाँ पढने वाले बच्चों के हिस्से सिर्फ केन्द्रीय विद्यालय में पढने का मुहर भर है.यूँ स्कूल प्रबंधन के भारी दबाब की वजह से बच्चों को टटोलकर उसको मुकम्मिल जुबाँ दे पाना मुमकिन नहीं है. इस विद्यालय का आलम यह है की यह नाक फाड़ू गंदगी के बीच और खस्ताहाल भवन में पिछले डेढ़ दशक से चल रहा है.हद की इंतहा देखिये स्कूल में ना तो पुस्तकालय की कोई व्यवस्था और ना ही है कॉमन रूम की.हैरत की बात तो यह भी है की यहाँ इंडोर या आउटडोर किसी भी खेल का कोई इंतजाम नहीं है.छोटे और कम कमरे में बच्चों की कक्षाएं लगती हैं.यूँ इस विद्यालय के लिए भूमि अधिग्रहण और भवन निर्माण के लिए वर्ष 2000 से ही तीव्र प्रयास शुरू हुए लेकिन तमाम मशक्कत बाद करीब छः करोड़ की लागत से वर्ष 2009 के दिसंबर माह में इस विद्यालय भवन का निर्माण कार्य सहरसा के संजय गांधी पार्क के पीछे सरकारी भूमि प़र शुरू किया जा सका.लेकिन इस विद्यालय प़र किसी की काली साया है की निर्माण कार्य के लिए राशि का अभाव है और निर्माण कार्य बीच में ही बन्द हो गया है.राशि के अभाव में काम पुर्णतः बन्द है.ठेकेदार एक माह पूर्व "काम पुर्णतः बन्द का बोर्ड लगाकर" फरार हो चुका है.अब इसके लिए कब राशि आएगी और कब इसका निर्माण कार्य पुनः शुरू और फिर कब खत्म होता है,इसपर अभी किसी तरह का कयास लगाना पूरी तरह से बेमानी है.एक अजोबोगरीब कहानी. इस विद्यालय की तड़प पिछले डेढ़ दशक से जारी है.आगे यह सिलसिला कबतक चलेगा हम फिलवक्त इसपर कुछ भी कहने से तो रहे.आगे--आगे देखिये होता है क्या.सरकारी योजनाओं में कौन सबसे पहले की परिपाटी कब की खत्म हो गयी है.जिस योजना की कोई जरुरत नहीं है या फिर जो ज़मीन प़र उतरते--उतरते दम तोड़ देती है,उसके पीछे सरकार से लेकर पूरा तंत्र पिल के पड़ा हुआ है.इधर बेचारी जनता-- हाय!हाय!बस रो,माथा पीट,सिसकियाँ ले और दम तोड़.

सितंबर 16, 2012

पॉलीटेक्निक छात्र ने की खुदकुशी

चन्दन सिंह की रिपोर्ट: परीक्षा में लगातार दूसरी बार फेल होने की वजह से बीती रात पॉलीटेक्निक के एक छात्र ने पंखे से लगे पाईप में माँ की साड़ी का फंदा बनाकर और उसी से फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली.घटना सदर थाना क्षेत्र के गौतम नगर की है.मृतक के पिता सहरसा के लघु सिंचाई विभाग में क्लर्क के पद प़र कार्यरत हैं. मृतक 20 वर्षीय अभिषेक कुमार जवाहरलाल पॉलीटेक्निक कॉलेज मुहम्मदाबाद,सीतापुर,लखनऊ का द्वितीय पार्ट का छात्र था.मृतक छात्र ने मरने से पहले एक सुसाईड नोट लिख छोड़ा है जिसमें जीवन से उबकर आत्महत्या करने की उसने बात लिखी है.माँ गाँव गयी थी.अभिषेक मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बलिया गाँव का रहने वाला है.विडंबना देखिये बीती देर रात करीब साढ़े ग्यारह बजे माँ भी वापिस अपने गाँव से सहरसा आ गयी लेकिन तबतक देर हो चुकी थी और माँ के कलेजे का टुकड़ा उनके घर पहुँचने से पहले ही इस दुनिया से कूच कर चुका था.मृतक के पिता बताते हैं की करीब आठ बजे रात में वे ऑफिस और बाजार से होते हुए अपने घर पहुँचे तो अपने बेटे को घर के अंदर पंखे के बगल के पाईप से लटकता--झूलता पाया.वे तो पागल हो उठे.उन्हें लगा की बेटे को करेंट लग गया है.उन्होनें आसपास के लोगों को बुलाया तो पता चला की उनका बेटा उनको छोड़कर इस दुनिया से जा चुका है.करीब दस बजे रात में लोगों ने इस बात की सूचना पुलिस को दी.पुलिस आई लेकिन रात होने की वजह से सबकुछ आज सुबह पर छोड़कर वापिस लौट गयी.मृतक के पिता ने बताया की उसका बेटा लगातार दूसरी बार परीक्षा में असफल हुआ,इसी वजह से उसने आत्महत्या कर ली.कल ही उसने मोबाइल पर इंटरनेट के माध्यम से रिजल्ट देखा और यह कठोर कदम उठा लिया.अभिषेक एक माह पूर्व ही परीक्षा देकर अपने घर वापिस आया था और रिजल्ट का इन्तजार कर रहा था.अभिषेक की माँ और बहनों का तो रो--रोकर बुरा हाल है.माँ कहती है की वह क्यों नहीं मर गयी.उसका लाल उसको छोड़कर आखिर क्यों चला गया.अभिषेक तीन भाई और चार बहनों में छट्ठे नंबर का बेटा था.
एक महीने में छात्र के द्वारा आत्महत्या की लगातार दूसरी घटना ने जिले में सनसनी फैलाकर रख दी है.बच्चों के परिजनों के लिए यह दुखद सन्देश है की आखिर वे अपने बच्चों की परवरिश में कैसी--कैसी सतर्कता बरतें.छात्रों को जहां अपने भीतर पलने वाले असंतोष और घुटन का खुलासा अपने स्वजनों से करना चाहिए वहीँ अभिभावकों को भी अपने बच्चों से समय--समय प़र उनकी दिक्कतों--मुश्किलों को लेकर पूछताछ और उसका निपटारा करना चाहिए.

सितंबर 13, 2012

बेशर्म पुलिस की बेहया तफ्तीश

मुकेश कुमार सिंह की कलम से------ आज हम सहरसा पुलिस की बेहया,बेशर्म और जालिम तफ्तीश का खुलासा करने जा रहे हैं.आज हम दिखाने जा रहे हैं की बिहार पुलिस के बड़े से लेकर छोटे अधिकारी किस तरह से अपना काम एसी कमरे में बन्द होकर या अपनी मनचाही जगह प़र बैठकर करते हैं.आज हम सहरसा पुलिस की बेशर्मी को बेपर्दा करने जा रहे हैं.आज हम शासन--प्रशासन को कटघरे में खड़े करके उनसे जबाब--तलब करने जा रहे हैं की आखिर पुलिस की गैर जिम्मेवाराना तफ्तीश की वजह से दो निर्दोषों प़र गिरी गाज और बेवजह जो उसने यंत्रणा झेली उसकी भरपाई कौन और कैसे करेगा.सहरसा जिले के सौर बाजार थाने में पुलिस अधिकारियों ने हैरतअंगेज कारनामा और करतब दिखाया है.वर्ष 2009 के 17 फ़रवरी को एक व्यक्ति ने आवेदन देकर दो चचेरे भाईयों प़र उसके घर में घुसकर महिलाओं और अन्य सदस्यों के साथ मारपीट करने,छेड़छाड़ करने और जाति सूचक प्रयोग करने का गंभीर आरोप लगाया.आवेदन प़र FIR दर्ज हुआ और पुलिस ने आगे की तफ्तीश शुरू की.आगे इस काण्ड में पुलिस के आलाधिकारियों ने अनुसंधान भी किये और FIR में नामित आरोपियों के खिलाफ आरोप भी गठित कर लिए गए.आप यह जानकार हैरान हो जायेंगे की कोर्ट ने पुलिस द्वारा समर्पित तमाम सबूतों के आधार प़र इन दोनों आरोपियों के खिलाफ गिरफ्तारी का आदेश भी निर्गत कर दिया.अब मामले के असल झोल को जानिये.जो इस काण्ड का सूचक यानि वादी है वह चीख--चीख कर कह रहा है की उसके और उसके परिवार के साथ कोई घटना नहीं घटी है.उसने थाने में कोई केश दर्ज नहीं कराया है.वादी दिल्ली में रहकर मजदूरी करता है और हस्ताक्षर करना जानता है लेकिन इस मामले में उसके नाम का इस्तेमाल कर किसी ने अंगूठे का निशान लगाकर मामला दर्ज करवा दिया है जिसका उसे कुछ भी पता नहीं है.तथाकथित वादी ने एस.पी, थानेदार से लेकर कोर्ट में शपथ पत्र दाखिल कर यह जानकारी दी है की उसने कोई मुकदमा दर्ज नहीं कराया है.FIR में दर्ज आवेदक के नाम प़र लगे अंगूठे का निशान भी उसका नहीं है.ज़रा सोचिये यह कितना गंभीर मसला है.इस पूरे मामले में पुलिस की कार्यशैली प़र ना केवल ऊँगली उठ रही है बल्कि कई पुलिस अधिकारी एक साथ कठघरे में खड़े दिख रहे हैं.जाहिर सी बात है की इस मामले में पुलिस के वरीय अधिकारी और खुद काण्ड के अनुसंधानकर्ता ने वादी को ढूंढ़कर घटनास्थल प़र जाकर मामले का अनुसंधान नहीं किया.वादी को और घटना को बन्द कमरे में बैठकर ना केवल सत्यापित किया गया बल्कि मामले की तफ्तीश भी पूरी कर ली गयी.
इनसे मिलिए.ये दोनों आपस में चचेरे भाई हैं और सौर बाजार थाने के धबौली गाँव के रहने वाले राजीव कुमार सिंह और पंकज कुमार सिंह हैं.वर्ष 2009 में धबौली गाँव के बगल के गाँव मुरली का रहने वाला दुलारचंद राम ने सौर बाजार थाने में इनदोनों भाईयों के खिलाफ उसके घर में घुसकर महिलाओं और अन्य सदस्यों के साथ मारपीट करने,छेड़छाड़ करने और जाति सूचक प्रयोग करने का गंभीर आरोप लगाते हुए एक आवेदन सौर बाजार थाने में दिया.आवेदन प़र FIR दर्ज हुआ और पुलिस ने आगे की तफ्तीश शुरू की.आवेदन में दुलारचंद के अंगूठे का निशान लगा हुआ था.पुलिस ने इस पूरे काण्ड का अनुसंधान पूरा करते हुए दोनों आरोपियों को दोषी करारते हुए उनपर आरोप गठित कर दिया.आज आलम यह है की इनदोनों भाईयों की गिरफ्तारी का आदेश निर्गत है और ये दोनों भाई भागे--भागे फिर रहे हैं.आप को अब असली सच की ओर ले चलते हैं.आप यह जानकार हैरान हो जायेंगे की इस काण्ड की जानकारी ना तो आरोपियों को थी और ना ही सूचक यानि वादी को.वादी दुलारचंद राम दिल्ली में रहकर मजदूरी करके अपना परिवार पालता है.इधर जब आरोपियों को इस काण्ड की जानकारी मिली तो वे निर्दोष भाई सकते में आ गए.वे हैरान थे की उन्हौनें कोई गुनाह ही नहीं किया तो फिर उन्हें दोषी कैसे करार दिया गया.हद बात यह है की वे दोनों वादी को जानते--पहचानते भी नहीं थे.इनदोनों भाईयों ने बड़ी मशक्कत से दुलारचंद को ढूंढ़ निकाला. अब अगला सच जानिये दुलारचंद को जब यह पता चला की उसके नाम के आवेदन प़र ना केवल काण्ड अंकित हुआ है बल्कि दो युवक बस जेल भेजे जाने वाले ही हैं तो उसके पाँव के नीचे की ज़मीन ही खिसक गयी.दुलारचंद राम ने कोई आवेदन थाने में नहीं दिया था और ना ही उसने अपना अंगूठा का निशान ही लगाया था.वह इस केश के बारे में कुछ जानता ही नहीं है.
अब दुलारचंद राम जो इस पूरे ड्रामे के मुख्य किरदार हैं,हम उनकी चर्चा करने जा रहे हैं.इनके अंगूठे के निशान प़र थाने में काण्ड दर्ज हुआ है लेकिन इन्हें कुछ पता तक नहीं है.ये कहते हैं की इन्होनें आजतक किसी प़र कोई मुकदमा दर्ज नहीं कराया है.वे हस्ताक्षर करना जानते हैं लेकिन किसी ने उनके नाम का गलत उपयोग कर अंगूठा लगाकर फर्जी मुकदमा दायर कर दिया है.दुलारचंद राम दिल्ली से तीन-चार बार सहरसा आ चुके हैं और एस.पी,थानेदार से लेकर कोर्ट को शपथ--पत्र दे चुके हैं की उन्हौनें कोई मुकदमा दर्ज नहीं कराया है.FIR वाले आवेदन में उनके अंगूठे का निशान भी नहीं है.वह कहता है की वह काफी परेशान है की आखिर किसने ऐसा खेल खेला है की जिसमें ना केवल दो निर्दोष युवकों को फंसाया गया है बल्कि उसे भी हलकान---परेशान करके रख दिया गया है.
इस काण्ड के दो आरोपियों में से एक राजीव कुमार सिंह के वकील से इस पुरे मामले को समझना चाहा तो सभी बातें परत दर परत खुलती चली गयीं.वकील साहब ने इस काण्ड को चनौती के तौर पर लिया है.खुद दुलारचंद राम के अंगूठे के उन्होनें सादे कागज़ पर तीन--तीन बार निशान लेकर उसका मिलान किया.वकील साहब दिल्ली से फोरेंसिक जांच की तकनीकी शिक्षा भी ले रखे हैं.इनकी मानें तो असल दुलारचंद के अंगूठे के निशान से FIR वाले दुलाचंद के निशान में भारी अंतर है.यानि दोनों निशान अलग---अलग हैं.दुलारचंद और पीड़ितों को लेकर उन्होनें पुलिस की कार्यशैली पर जहां गंभीर सवाल खड़े किये वहीँ कोर्ट की विवशता को भी बारीकी से समझाया.वे बताते हैं पुलिस के द्वारा कोर्ट को जो साक्ष्य उपलब्ध कराये जाते हैं,कोर्ट उन्हीं साक्ष्यों को आधार मानकर सुनवाई करती है और फैसला सुनाती है.उनकी नजर में इस मामले में पुलिस पूरी तरह से दोषी और कटघरे में खड़ी है.
सहरसा एस.पी अजीत सत्यार्थी
इस मामले में हमने सहरसा के एस.पी अजीत सत्यार्थी से जब जबाब-- तलब किया तो पहले तो वे पुलिस की कमियों को छुपाते नजर आये फिर आगे कहा की जब वादी उनके पास आकर और कोर्ट में अपने द्वारा मुकदमा दर्ज नहीं करने का शपथ पत्र दे चुका है तो इसी को आधार बनाते हुए इस काण्ड के आरोपियों को दोषमुक्त करार दिया जाएगा.एस.पी साहब अंगूठे के निशान की जांच कराने के पचड़े में पड़ना नहीं चाहते हैं.अभी पुलिस के बड़े अधिकारी के आदेश के बाद इस काण्ड के दोनों आरोपी बरी और दोषमुक्त तो हो जायेंगे लेकिन आगे की बड़ी जांच को रोकने की वजह से असल में इस काण्ड का रहस्य क्या है इसपर पर्दा पड़ा ही रह जाएगा.पुलिस के बड़े अधिकारियों को इस काण्ड के असल रहस्य पर से भी पर्दा उठाना चाहिए था की आखिर इस खेल को खेलने वाला वोह कौन शातिर है जिसने फर्जी मुकदमा दर्ज कराने का करतब दिखाया है.
                                      पुलिस बेशर्म होती है.पुलिस बेहया और जालिम होती है.यहाँ की पुलिस ने यह पूरी तरह से साबित कर दिखाया है.FIR दर्ज हुआ और तमाम अनुसंधान भी हो गए.आरोपियों के खिलाफ गिरफ्तारी के वारंट भी जारी हो गए.लेकिन इस दौरान पुलिस के द्वारा वादी को तलाश कर घटना की सघन पड़ताल नहीं की गयी.दो निर्दोष आरोपी बने और पुलिस ने उनका गुनाह साबित भी कर दिया.हद की इंतहा देखिये जिसके नाम से मुकदमा दर्ज हुआ वह चीख--चीख कर कह रहा है की उसने कोई मुकदमा दर्ज नहीं कराया.सामने यक्ष प्रश्न खड़ा है की जिसने कोई गुनाह नहीं किया और जिसने करीब तीन साल तक मानसिक यंत्रणा झेली उसके साथ आगे कैसा न्याय होगा और कटघरे में खड़ी पुलिस पर कैसी कारवाई होगी.

सितंबर 10, 2012

अलग मिथिला राज्य की मांग

अलग मिथिला राज्य की मांग को लेकर अखिल भारतीय मिथिला राज्य संघर्ष समिति के बैनर तले सैंकड़ों की तायदाद में लोगों ने कोसी प्रमंडलीय आयुक्त कार्यालय के सामने ना केवल एक दिवसीय धरना दिया बल्कि मिथिला राज्य लेकर रहेंगे की हुंकार भी भरी 
सहरसा टाईम्स के लिए मुकेश कुमार सिंह की रिपोर्ट : आज अलग मिथिला राज्य की मांग को लेकर अखिल भारतीय मिथिला राज्य संघर्ष समिति के बैनर तले 
सैंकड़ों की तायदाद में लोगों ने कोसी प्रमंडलीय आयुक्त कार्यालय के सामने ना केवल एक दिवसीय धरना दिया बल्कि धरने के दौरान मिथिला राज्य लेकर रहेंगे की हुंकार भी भरी.इस मौके प़र वक्ताओं ने बड़े साफ़ लहजे में कहा की बिना मिथिला राज्य अलग हुए इस मिथिलांचल क्षेत्र का समुचित और वाजिब विकास होना नामुमकिन है.आजादी के छः दशक से ज्यादा गुजर जाने के बाद भी इस क्षेत्र के विकास के लिए केंद्र और राज्य की तमाम पूर्ववर्ती और वर्तमान सरकारों के द्वारा ना तो कोई गंभीरता दिखाई गयी और ना ही इस दिशा में कोई मजबूत कदम बढ़ाया गया.अब बिना अलग मिथिला राज्य लिए हम चुप बैठने वाले नहीं हैं.धरने का नजारा और वक्ताओं के उद्दघोष से यह साफ़ जाहिर हो रहा था की अलग राज्य के निर्माण के लिए जंग का बिगुल बज चुका है.
               कोसी प्रमंडलीय आयुक्त कार्यालय के सामने अलग राज्य की मांग को लेकर सैंकड़ों की तायदाद में धरने प़र बैठे लोग दिनभर अलग मिथिला राज्य लेकर रहेंगे की हुंकार भरते रहे.इस मौके प़र कई वक्ताओं ने धरनार्थियों और आमलोगों को मिथिला राज्य की जरुरत को लेकर अपने--अपने विचार से अवगत कराया.मुख्य रूप से दो वक्ताओं अखिल भारतीय मिथिला राज्य संघर्ष समिति के महासचिव बैजनाथ चौधरी बैजू और सहरसा के पूर्व भाजपा विधायक संजीव कुमार झा ने लोगों को ख़ासा प्रभावित किया.इनकी नजर में बिना मिथिला राज्य का निर्माण हुए मिथिला क्षेत्र का विकास संभव नहीं है.इन वक्ताओं ने बड़े साफ़ लहजे में कहा की सहरसा के महिषी स्थित मंडनधाम को अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बनाने की बात दशकों पूर्व से की जाती रही है लेकिन उसे आजतक मूर्त रूप नहीं दिया जा सका.इस क्षेत्र वासियों के साथ आजतक सिर्फ छल और छल ही होता रहा है.मोतिहारी और गया में केद्रीय विश्वविद्यालय का निर्माण हो रहा है, इस बात की उन्हें ख़ुशी है.नालंदा में अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय है,इससे उनका सीना चौड़ा है लेकिन मिथिलांचल में ऐसी कोई सरगोशी और सुगबुगाहट नहीं है.इस क्षेत्र में सारी संपदा विरासत में मिली हुई है लेकिन उन्हें विकास की किरण नहीं मिल रही है.अलग मिथिला राज्य के निर्माण के लिए बनी संघर्ष समिति मिथिलांचल के सभी जिलों में आगे वृहत आन्दोलन चलाएगी और मिथिलांचल राज्य लेकर रहेगी.
                                             अलग मिथिला राज्य के लिए लोग समर में उतर चुके हैं.क्षेत्रीय लोगों के जेहन में आग धधक चुकी है.जाहिर तौर प़र आन्दोलन का परिदृश्य व्यापक होने वाला है.इस आन्दोलन को आसानी से लेना केंद्र और राज्य सरकारों की सेहत के लिए कहीं से भी अच्छा नहीं होगा.अलग राज्य की मांग कितनी जायज और कितनी नाजायज है,हमें इस पचड़े में नहीं पड़ना.राज्य की मांग से उपजे इस आन्दोलन से इतना तो पता चल ही रहा है की इस आन्दोलन में क्षेत्रीय लोगों की भावनाएं कुलाचें भर रही हैं.अपने साथ बार--बार हो रहे धोखे और छल की वजह से आज लोगों को अलग राज्य की ना केवल चाह हुई है बल्कि लोग इसकी अब महती जरुरत समझ रहे हैं.

महादलित युवती के साथ गैंगरेप

पीड़िता अपने पति के साथ
रिपोर्ट चन्दन सिंह: बीते कल 9 सितम्बर की देर शाम जिले के बनमा ईटहरी थाना क्षेत्र के हथमंडल गाँव में एक 25 वर्षीय महादलित युवती के साथ दो युवकों ने सामूहिक दुष्कर्म किया.घटना के सम्बन्ध में प्राप्त जानकारी के मुताबिक़ कल देर शाम पिंटू सदा अपनी ससुराल सरबेला से अपनी पत्नी को लेकर अपने गाँव हराहरी आ रहा था.हथमंडल चौक प़र पहले से घात लगाए मोटरसाईकिल सवार दो युवकों ने उन्हें रोका.पीड़िता राजरानी की गोद में उसका एक वर्षीय बेटा था जिसे उन दोनों युवकों ने युवती से छीनकर उसे पीड़िता के पति को मारपीट करते हुए उसके हाथ में दे दिया और युवती को मोटरसाईकिल प़र उठाकर वहाँ से उड़न छू हो गए.फिर मोटरसाईकिल सवार दोनों युवकों ने हथमंडल गाँव के एक खेत में ले जाकर बारी--बारी से युवती के साथ मुंह काला किया.पीड़िता का पति अपनी पत्नी को ढूंढता--ढूंढता जब हथ मंडल गाँव पहुंचा तो खेत से उसकी पत्नी के रोने की आवाज आ रही थी.जब वह अपनी पत्नी के पास पहुंचा तो पीड़िता ने अपने साथ हुए हादसे की उसे जानकारी दी.पीड़िता का पति दोनों बलात्कारियों को पहचानता है जो हथ मंडल गाँव के ही रहने वाले रंजीत मेहता और अरुण मंडल हैं.पिंटू ने इस घटना की जानकारी गाँव वालों को दी और गाँव वालों के साथ बनमा ईटहरीथाने जाकर बलात्कार का मामला दर्ज करवाया.पुलिस के अधिकारी पीड़िता की मेडिकल जांच करवा चुके हैं और अब न्यायालय में उसका 164 का बयान करवा रहे हैं.पुलिस अधिकारी दावा कर रहे हैं की किसी भी सूरत में दोषियों को बख्सा नहीं जाएगा.आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए सघन छापामारी जारी है और आरोपी जल्द से जल्द सलाखों के पीछे होंगे.पीड़िता के साथ पूरा का पूरा न्याय होगा.
दलित--महादलितों प़र जुल्मों--सितम का दौर बदस्तूर जारी है.ये गरीब किस्मत के मारे रोटी के लिए भी तरसते हैं और अस्मत--आबरू की सुरक्षा हो इसके लिए भी तरसते हैं.रब जाने इस मामले में पीडिता के साथ कैसा न्याय होगा.चूँकि मामला एक मामूली और निरीह गरीब युवती से जुड़ा हुआ है,इसलिए इस मामले में कोई ख़ास गर्माहट की गुंजाईश नहीं है.यूँ अगर कहीं सियासत की रोटी सेंकने की गुंजाईश दिखी तो मामला गरमा सकता है.

नंदलाली गावं में तीन बच्ची एक साथ डूबकर मरी

रिपोर्ट चन्दन सिंह सदर थाना क्षेत्र के नंदलाली गाँव में बीते शाम चार बजे खेलते--खेलते  पोखर में नहाने गयी तीन बहनें डूबकर परलोक सिधार गयीं.मरने वाली बच्चियों में दो सगी और एक ममेरी बहन है.गाँव वालों को जैसे ही बच्चियों की डूबने की सूचना मिले में तुरंत भागकर पोखर के पास पहुँचे लेकिन तबतक काफी देर हो चुकी थी.तीनों बच्ची की मौत हो चुकी थी.लाश को गाँव वालों ने निकाला.घर में रोदन--क्रंदन और विलाप से पूरा माहौल गमगीन है. एक माँ का विलाप.अपनी दो बच्चियों को एक साथ गंवाने वाली यह अभागी माँ सावित्री देवी है.इन्हें बस दो बेटियाँ ही थीं  जिसे आज भगवान् ने उससे छीन लिया.बच्चियों की लाश को यह अभागी माँ बस चूमती और विलाप करती चली जा रही है.मरने वाली बच्ची पुष्पा कुमारी 12 वर्ष,मौसम कुमारी 10 वर्ष दोनों सगी बहनें हैं.इसके पिता का नाम बैजनाथ यादव है. तीसरी बच्ची सत्यम कुमारी 12 वर्ष मृतिका दोनों बच्चियों की ममेरी बहन है.इसके पिता का नाम विजेंद्र यादव है और ये बगल के ही मेनहा गाँव की रहने वाली थी और अपनी फुआ के यहाँ घुमने आई थी.अचानक हुई बच्ची की मौत से जहां परिजनों का रो--रोकर बुरा हाल है वहीँ पूरे गाँव में मातमी सन्नाटा पसरा है.इतनी बड़ी घटना घट गयी लेकिन सूचना के बाद भी देर शाम तक मौके पर पुलिस और प्रशासन के अधिकारी नहीं पहुंचे.
अचानक दो परिवार प़र कुदरत ने कहर बरपाया है.भगवान इन्हें ताकत दें की इस दुःख को ये झेल सकें और इससे उबर सकें.इस मामले में एक बार फिर पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों का रवैया लापरवाही भरा और पत्थर दिल रहा है.

सितंबर 07, 2012

नवजात की लाश बरामद

रिपोर्ट चन्दन सिंह: आज अहले सुबह सदर थाना क्षेत्र के स्टेडियम के समीप मुख्य सड़क के किनारे एक नवजात की लाश मिलने से पूरे इलाके में सनसनी फैल गयी.लोगों ने आनन्--फानन में इस बात की सूचना सदर थाने को दी लेकिन अपनी आदत से मजबूर सहरसा पुलिस दोपहर बाद मौका ए वारदात प़र पहुंची.पुलिस ने लाश को कब्जे में लेकर जहां तहकीकात शुरू कर दी है वहीँ पुलिस अधिकारी का कहना है की किसी माँ ने अपना पाप छुपाने के लिए बच्चे को सड़क के किनारे फेंक दिया जिससे बच्चे की मौत हो गयी.बच्चे के सर प़र चोट और जख्म के निशान हैं.पुलिस अधिकारी के मुताबिक़ सदर थाना में काण्ड दर्ज कर आगे जांच होगी और जो कुछ सामने निकलकर आएगा उसी के मुताबिक़ कारवाई होगी.हमेशा पानी प़र डंडा मारने और लकीर का फकीर बनी यहाँ की पुलिस इस मामले में लाख दावे कर ले लेकिन सच्चाई का पता कर पाना उसके लिए नामुमकिन है
आखिर कैसे एक नवजात की जान ले ली.इस बदलती दुनिया में अब इन्सान की जान की कोई कीमत नहीं.कहते हैं की पुत्र कुपुत्र हो सकता है लेकिन माता कभी कुमाता नहीं हो सकती.लेकिन यहाँ का नजारा तो कुछ और ही बयां कर रहा है.  

सितंबर 06, 2012

तांत्रिक ने काटा मासूम का हाथ

मुकेश सिंह सहरसा टाइम्स: कोसी कछार और बालू के भीत के इस इलाके में जहां भूख,बीमारी,बेकारी,अशिक्षा और तरह--तरह की बेबसी कुलाचें भर रही हैं वहाँ अंधविश्वास का काला खेल भी बदस्तूर जारी है.अनपढ़--गंवार और मजबूर लोगों के बीच अंधविश्वास और काला जादू विषधर सांप की तरह ना केवल फन काढ़े बैठा है बल्कि अक्सर उन्हें डंसता भी रहता है लेकिन फिर भी वे अंधविश्वास को छोड़ना नहीं चाहते.ताजा वाकया खगड़िया जिले के बेलदौर थाना के फरेबा बासा गाँव का है जहां कल शाम एक तांत्रिक ने गाँव के महज छः वर्षीय मासूम नीतीश को बहला--फुसलाकर पहले तो उसे अगवा किया फिर अपनी तंत्र--विद्या और मन्त्र सिद्धि के लिए उस मासूम का एक हाथ काट लिया और गाँव से फरार हो गया.घटना के बाद सहरसा जिले के सोनवर्षा राज थाना के मौरा गाँव का रहनेवाला तांत्रिक विद्यानंद शर्मा फरार हो गया.बच्चा चूँकि कल शाम से ही लापता था इसलिय बच्चे के परिजनों ने पहले तो उसे खूब ढूंढा लेकिन जब बच्चा नहीं मिला तो बच्चे के परिजन बेलदौर थाना गए और बच्चे की गुमशुदगी की रपट लिखानी चाही.लेकिन उस थाने की बेरहम पुलिस ने बच्चे के परिजनों को यह कहकर और मारपीट कर भगा दिया की तुम लोग झूठ बोलते हो और यूँ ही बात--बात प़र पुलिस को सिर्फ तंग करने के लिए चले आते हो.हताश और निराश होकर बच्चे के परिजन बीती रात थाने से वापिस अपने गाँव लौट आये.आज अहले सुबह बच्चा गाँव के ही एक बांसवन में बेहोश मिला,जहां उसका हाथ कटा हुआ और खून से लथ--पथ शरीर था.आनन्--फानन में बच्चे के परिजन उसे लेकर सदर अस्पताल सहरसा आये जहां उसका इलाज तो किया जा रहा है लेकिन उसकी स्थिति काफी नाजुक बनी हुई है.अंधविश्वास में एक बच्चे ने अपना एक हाथ तो गंवाया ही,अब उसकी जान प़र भी बनी है.
          अंधविश्वास में पशु बलि से मनुष्य बलि की परम्परा पुरानी है.आज लोग चाँद प़र चले गए लेकिन इस इलाके में अंधविश्वास का घुप्प अँधेरा अभी भी कायम है.आगे देखने वाली बात यह होगी की पुलिस के आलाधिकारी इस मामले को कितनी गंभीरता से लेते हैं और तांत्रिक को ना केवल कितनी जल्द गिरफ्तार करते हैं बल्कि उसपर कैसी और कितनी कठोर कारवाई के लिए वे मजबूत पहल करते हैं.

सितंबर 04, 2012

रमेश झा महिला कॉलेज में लफंगे मजनुओं का मजमा

रिपोर्ट चन्दन सिंह  कोसी प्रमंडल के इकलौते अंगीभूत रमेश झा महिला कॉलेज में इनदिनों छककर तमाशा हो रहा है.साढ़े चार हजार से पाँच हजार की संख्यां में नामांकित बच्चियों के इस कॉलेज में हरवक्त लड़कों का जमावाड़ा लगा रहता है जिससे लड़कियों को काफी दिक्कतें हो रही हैं. आलम यह है की मनचलों--मजनुओं के हुजूम की वजह से यह कॉलेज परिसर शिक्षण स्थल की जगह पूरी तरह से पिकनिक स्पॉट में तब्दील है. कॉलेज की प्राचार्या के लाख मना करने के बाबजूद लड़कों की भीड़ थोड़ी भी कम नहीं हो रही है.हद की इंतहा तो यह है की हलकान--परेशान कॉलेज कर्मी अपने हाथ खड़े किये लाचार, बेबस और फरियादी बने दिख रहे हैं.कहना लाजिमी है की लडकों की भीड़ से बच्चियां और कॉलेज प्रबंधन पूरी तरह से परेशान--परेशान हैं.कॉलेज के इस नज़ारे से लड़कियों के परिजनों प़र क्या बीत रही होगी इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है.
रमेश झा महिला कॉलेज में लफंगों का मजमा
1972 में स्थापित यह है कोसी प्रमंडल का इकलौता अंगीभूत रमेश झा महिला कॉलेज,सहरसा.प्रमंडल की साढ़े चार हजार से पाँच हजार बच्चियां इस कॉलेज में नामांकित हैं.लेकिन इस कॉलेज के भीतर घुसते ही आप भौचक रह जायेंगे.आपको भीतर का नजारा देखकर यह कहीं से नहीं लगेगा की यह महिला कॉलेज है. अन्दर से यह कॉलेज  को-एडुकेशन के जैसा दिखने में लगता है. इस कॉलेज में लड़कों का जमावड़ा लगा रहता है.पहली नजर में तो आपको यह लगेगा की कहीं ये सभी युवक इसी कॉलेज के तो नामांकित छात्र नहीं हैं.लेकिन ऐसा नहीं है.कुछ युवक यहाँ अपनी रिश्तेदार लड़की के बहाने इस कॉलेज में घुसे ते है तो कुछ आँखें सेंकने के लिए.यहाँ की ज्यादातर भीड़ मनचले और मजनुओं की रहती है. यह कॉलेज पूरी तरह से पिकनिक स्पॉट में तब्दील है.आलम यह है की राह चलते जिसे जी में आया वह भीतर घुसा और नजरें चार करने में जुट गया.जाहिर तौर पर इससे लड़कियों को काफी दिक्कतें होती होंगी. यहाँ की भीड़ से लडकियां और उसके परिजन भी खासे परेशान हैं.लडकियां कहती हैं की लड़कों की भीड़ की वजह से उन्हें काफी दिक्कतें होती हैं.उनकी राय में लड़कों को खुद सोचना चाहिए और उन्हें भीतर नहीं आना चाहिए.लड़कियों के परिजन भी लड़कों की इस भीड़ को नाजायज बताते हुए इसे रोकने की बात कर रहे हैं.
इस कॉलेज के बिगडैल नज़ारे को कब बदला जा सकेगा,फिलवक्त कयास लगाना मुमकिन नहीं है.अभी हम इतना जरुर कहेंगे की इस कॉलेज का मौसम ठीक नहीं है.आगे रब की निगेहबानी से ही जल्दी से इस के दिन बहुरने के आसार हैं.

सितंबर 02, 2012

आउट - नोट आउट और मौत का फ़रमान

चन्दन,प्रशांत,प्रणव और विशाल.
रिपोर्ट चन्दन : खेल--खेल के मामूली विवाद में महज आठवीं से लेकर दशवीं के छात्रों ने इंटर के एक छत्र को बीते  मंगलवार को पेट में चाक़ू मार दी थी जिससे उसकी मौत इलाज के दौरान  ही हो गयी थी.क्रिकेट में आउट होने से खफा आठवीं कक्षा के चन्दन ने अपने तीन अन्य दोस्तों के साथ मिलकर विकास नाम के एक किशोर जो इंटर का छात्र था को बीते मंगल के शाम में चाक़ू मारी थी.पुलिस ने ना केवल इन चारों मासूम हत्यारों को दबोच लिया है बल्कि हत्या में इस्तेमाल किया गया चाक़ू भी बरामद कर लिया है.इस ह्त्या की वारदात ने जहां पूरे इलाके में सनसनी फैला दी है वहीँ यह भी सोचने को मजबूर कर दिया है की क्या पुलिस और कानून का खौफ अब बिल्कुल खत्म हो गया है की बालमन भी जघन्य से जघन्य वारदात को अंजाम देने से बाज नहीं आ रहा. घटना के बारे में चाक़ू मारने वाला चन्दन बताता है की क्रिकेट के खेल में परसों सोमवार को उसे गलत तरीके से आउट कर दिया गया था.इसका जब उसने विरोध किया तो विकास ने अपने दोस्तों के साथ उसकी पिटाई कर दी थी.इसी बात को लेकर वह गुस्से में था और कल मंगलवार को जब वह खेल के मैदान प़र पहुंचा तो विकास ने फिर उसे बैट से मारने की कोशिश की.उसे इस बात से गुस्सा आ गया और उसने अपने मित्र प्रशांत के पास रखे चाक़ू को लेकर विकास के पेट में मार दिया और वहाँ से अपने दोस्तों के साथ भाग गया.चन्दन बताता है की उसने चाक़ू तो मारी थी लेकिन उसे इस बात का अहसास नहीं था की विकास की मौत हो जायेगी.चन्दन के साथ उसके तीन अन्य दोस्त थे प्रशांत,प्रणव और विशाल.
खेल--खेल में ह्त्या,एक बार तो यह बात गले के नीचे नहीं उतरती लेकिन ऐसा हुआ है.जिस हाथ में कलम और किताब होनी चाहिए उस नन्हें हाथ में आखिर हथियार किस तरह से आ जाते हैं.जो मासूम नौनिहाल कल के देश के भविष्य हैं वे मामूली से विवाद में गुनाहगार कैसे बन जाते हैं.क्या पुलिस और कानून का खौफ और भय धीरे--धीरे खत्म हो चुका है? क्या जेहन में पलने वाला आसमानी सपना दम तोड़ चुका है.बड़ा गंभीर वक्त है. सामाजिक चिंतकों को आगे बढ़कर बहस और विमर्श करना चाहिए.एक दूसरे की गलतियों को ढूंढने में कहीं देर ना हो जाए.

*अपनी बात*

अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।