मार्च 10, 2013

कोसी महोत्सव के दुसरे दिन सूरों के जलवे

 कोसी महोत्सव में सूरों के जलवे
भोजपुरी गायिका नीतू कुमारी
सहरसा के स्टेडियम परिसर में राज्य पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय कोसी महोत्सव (08 से 09)के दुसरे दिन सांस्कृतिक संध्या के मौके पर जहां बिहार की प्रसिद्ध लोक और भोजपुरी गायिका नीतू कुमारी ने लोगों को झुमा और थिरका कर रख दिया वहीँ क्षेत्रीय उभरती पार्श्व गायिका कृतिका गौतम जो देश के विभिन्य हिस्सों में नामी--गिरामी फनकारों के साथ मंच साझा कर चुकी है ने लोगों को अपनी नायाब गायकी से मंत्रमुग्ध कर दिया। इस सांस्कृतिक कार्यक्रम में नीतू कुमारी ने एक से बढ़कर एक गीत,खासकर के होली के झुमाने--नचाने वाले गीत गाये।लोग नीतू के गीतों को सुनकर ना केवल मदहोश होते रहे बल्कि तालियाँ भी जमकर बजाई।
गायिका कृतिका गौतम
इस कार्यक्रम में सहरसा की उभरती गायिका कृतिका गौतम ने अपनी जादुई आवाज से लोगों को भरपूर सुकून और मुश्ते थिरकन दी।लोगों ने कृतिका को खूब सराहा।बताते चलें की कृतिका ने देश के विभिन्य हिस्सों में कुमार शानू,उदित नारायण,एश्वर्या निगम,सोनू निगम सहित कई अन्य स्थापित और चोटी के कलाकारों के साथ मंच साझा किया है। 

इस सांस्कृतिक कार्यक्रम को असम के लोक नृत्य विहू ने तो और चार चाँद लगा दिया।असम के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत विहू नृत्य लोगों को इतना भाया की लोग इसे लम्बे समय तक अपने जेहन में जज्ब रखेंगे।शाम सात बजे से शुरू हुआ यह सांस्कृतिक कार्यक्रम लोगों के विशेष आग्रह पर रात्रि के डेढ़ बजे तक चलता रहा जिसमें सूरों की बेमिसाल दरिया बहती रही जिसमें उपस्थित हजारों दर्शक बस गोते लगाते रहे।

मार्च 09, 2013

कोसी महोत्सव में बही सूरों की दरिया

राज्य पर्यटन विभाग के सौजन्य से सहरसा में आयोजित हो रहे दो दिवसीय कोसी महोत्सव के आज पहले दिन पहले सत्र में जहां उद्दघाटन और महोत्सव को लेकर चर्चा और कुछ स्वागत गान और नृत्य हुए वहीँ महोत्सव के दुसरे सत्र में सुरों के नायाब और बेहतरीन बाजीगरी देखने को मिली। सांस्क्रतिक संध्या में  कोसी महोत्सव के इस मंच को मुम्बई के तृप्ति शाक्या म्यूजिकल ग्रुप सुशोभित कर रहा था।
सहरसा टाइम्स: कार्यक्रम की शुरुआत रात करीब नौ बजे हुयी जिसमें तृप्ति शाक्या की बेहतरीन गायकी ने लोगों का ना केवल मन मोह लिया बल्कि लोग गीतों को सुन--सुनकर बस झूमते और थिरकते चले गए। डेढ़ बजे रात तक चले इस भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम में तृप्ति शाक्या ने अपने बहुचर्चित भजन कभी राम बनके,कभी श्याम बनके और सासू बीड़ी स्वसुर गांजा,देवर पिए छै भांग जो अंगिका के बेहतरीन गीतों में से एक है को बड़े ही तन्मयता से और झुमाने वाले अंदाज में गाया।इसके बाद तृप्ति ने यारा सिली--सिली,पीया रे पिया रे,बाली उमर को सलाम,सत्यम शिवम् सुन्दरम,चार दिनों का प्यार मुहब्बत,लम्बी जुदाई सहित एक से बढ़कर एक गीत गाये।तृप्ति ने मैथिली गीत गाकर लोगों को और भी विभोर कर दिया।तृप्ति के इस म्यूजिकल ग्रुप ने इतने पर ही बस नहीं किया।
कई बेहतरीन नृत्यों की भी प्रस्तुति की गयी जिसने लोगों को मदहोश कर डाला।कुल मिलाकर यह सांस्कृतिक कार्यक्रम ना केवल मनोरंजक था बल्कि यह लम्बे समय तक यादगार बनकर लोगों के दिलो-दिमाग में जज्ब भी रहेगा।भारी सुरक्षा इंतजाम के बीच महोत्सव की पहली रात काफी शांतिपूर्ण और एतिहासिक तरीके से बीती।तृप्ति शाक्या म्यूजिकल ग्रुप ने कोसीवासियों पर ऐसी छाप छोड़ी है जिसे लोग एक मुद्दत बाद भी सहेज कर रखेंगे।कार्यक्रम के दौरान जिलाधिकारी सतीश चन्द्र झा,एस.डी.ओ राजेश कुमार और उप विकास आयुक्त योगेंद्र राम के अलावे कई वरीय प्रशासनिक अधिकारी और पुलिस अधिकारी के  साथ--साथ थोक में पुलिस के जवान भी मुस्तैदी से डटे रहे 
। दिन में स्थानीय पटेल मैदान में जहां कबड्डी,फुटबॉल,बेडमिन्टन,मैराथन,घुडदौड़, खो--खो आदि खेलों का आयोजन होगा वहीँ महोत्सव स्थल सहरसा स्टेडियम परिसर में दिन भर स्थापित क्षेत्रीय कलाकारों के द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे।संध्या में जहां असम का बिहू नृत्य और दरभंगा रेडियो स्टेशन का कार्यक्रम होगा वहीँ रात्रि में प्रसिद्ध भोजपुरी सह लोक गायिका नूतन कुमारी नीतू अपनी गायकी का जलवा बिखेड़ेंगी।

मार्च 08, 2013

दो दिवसीय कोसी महोत्सव की हुआ आगाज


 सहरसा टाईम्स:  वर्ष 2002 से आयोजित हो रहे दो दिवसीय कोसी महोत्सव (08 और 09) मार्च का आज दोपहर साढ़े बारह बजे सहरसा स्टेडियम परिसर में विधिवत  आगाज हो गया।राज्य के अनुसूचित जाति--जनजाति सह सहरसा के प्रभारी मंत्री जीतन राम मांझी ने महोत्सव का दीप प्रज्ज्वलित कर के उदघाटन किया।इस मौके पर सहरसा के भाजपा विधायक डॉक्टर अलोक रंजन,सिमरी बख्तियारपुर के जदयू विधायक डॉक्टर अरुण कुमार,जदयू और भाजपा के जिला अध्यक्ष,कोसी प्रमंडल के आयुक्त विमलानंद झा सहित जिले के सभी वरीय अधिकारी मौजूद थे।कार्यक्रम की अध्यक्षता सहरसा के जिलाधिकारी सतीश चन्द्र झा कर रहे थे।कार्यक्रम के दौरान मंत्री जी ने कोसी दर्पण पत्रिका का विमोचन भी किया।
उदघाटन समारोह को भव्य बनाने के लिए स्वारांजलि नाट्य--नृत्य संस्था सहरसा द्वारा स्वागत गान और बेहतरीन होली नृत्य पेश किये गए।बताना लाजिमी है की महोत्सव के आगाज के बाद अगली कड़ी में आज शाम से देर रात तक भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम के तहत मुम्बई की स्थापित पार्श्व गायिका तृप्ति शाक्या म्यूजिकल ग्रुप द्वारा कार्यक्रम की प्रस्तुति होगी।लगे हाथ यह भी बताते चलें की कार्यक्रम के दुसरे दिन यानि कल दरभंगा आकाशवाणी के कलाकार,क्षेत्रीय कलाकार और प्रसिद्ध भोजपुरी पार्श्व गायिका नूतन कुमारी नीतू सूरों की शमां बांधेंगी।यही नहीं कार्यक्रम के दुसरे दिन ही असम का बिहू नृत्य भी होगा।साथ ही कार्यक्रम के दुसरे दिन क्षेत्रीय कलाकार भी अपने सुरों का जादू बिखेड़ेंगे।इस मौके पर विभिन्य तरह के खेलों का भी  हो रहा है।कोसी महोत्सव के उदघाटन के मौके पर अपने भाषण के दौरान मंत्री जीतन राम मांझी ने कहा की वे शौभाग्यशाली हैं की उन्हें कोसी महोत्सव में शामिल होने का गौरव हासिल हुआ।मंचासीन सभी सम्मानित नेताओं और प्रमंडलीय आयुक्त के साथ---साथ जिलाधिकारी ने भी कोसी महोत्सव और इस इलाके सांस्कृतिक,पौराणिक और एतिहासिक विशिष्टताओं को लेकर खूब कसीदे कढ़े।
कोसीवासियों के लिए यह दो दिन झुमने,नांचने--गाने और थिरक--थिरक कर मदहोश हो जाने वाला है।लोग इस महोत्सव का शांतिपूर्ण तरीके से पल--पल आनंद लें,सहरसा टाईम्स इसके लिए सौ--सौ दुआएं करता है।

मार्च 04, 2013

पतझड़ में फना होता बचपन

बेहद ख़ास रिपोर्ट---मुकेश कुमार सिंह
गरीबी,मुफलिसी में यहाँ तार--तार और जार--जार है बचपन /सच में,जब मज़बूरी हो चस्पां तो सपने नहीं पलते
भविष्य संवारना किसे अच्छा नहीं लगता,सपने देखना किसे अच्छा नहीं लगता.लेकिन जहां गरीबी और मुफलिसी में जिदगी जार-जार हो और जहां एक जून रोटी का जुगाड़ मील का पत्थर साबित हो रहा हो वहाँ सपने नहीं पलते,वहाँ जिन्दगी बस घिसटती,रिसती--सिलती यूँ ही कब शुरू और कब खत्म हो जाती है,कुछ पता ही नहीं चलता.सहरसा का आलम कुछ ऐसा है की यमराज को भी रोना आ जाए.सुदूर ग्रामीण इलाके की बात तो छोड़िये जिला मुख्यालय में मासूम नौनिहाल थोक में अपना भविष्य संवारने की जगह सड़कों के किनारे, ऑफिस--ऑफिस या फिर जिधर पेड़ों से भरे इलाके हैं उधर पत्ते  और जलावन चुनने में सुबह से शाम कर देते हैं.ये वे तंगहाली की कोख से जन्मे बच्चे हैं जो पत्ते और जलावन चुनकर ले जाते हैं तो घर का चूल्हा जलता है फिर सडा--गला कुछ पकता है और फिर कुलबुलाते पेट की ज्वाला शांत होती है.
सरकारी इंतजामात से महरूम घरों में अभिशाप की तरह पैदा हुए इन बच्चों को क्या पता की इनके घर के बड़ो और खुद उनपर सियासतदान सियासत की बड़ी--बड़ी सीढियां चढ़ते हैं.एक तरफ गरीबों और बच्चों के नाम प़र योजनाओं की आई सुनामी थमने का नाम नहीं ले रही है तो दूसरी तरफ सरकारी खजाने के मुंह इनके लिए यूँ खुले हैं की कभी बन्द होने का नाम ही नहीं लेते,फिर भी ये गरीब घर के बच्चे दोजख की बेजा जिन्दगी जीने को विवश हैं.सरकार के सारे नारे--दावे "सब पढ़े--सब बढे" और "मुनिया बेटी पढ़ती जाए" सहरसा में पूरी तरह से दफ़न हो रहे हैं.आज हम आपको सच की वह तस्वीरें दिखाने जा रहे हैं जो सुशासन की सरकार के दावों की ना केवल पोल खोल रही हैं बल्कि सरकार को कटघरे में भी खड़ी कर रही है.
आज हम आपको पतझड़ में बचपन का नजारा कराने लाये हैं.देखिये इन मासूमों को.किसी के जिगर के टुकड़े हैं ये.कोलतार की बड़ी--बड़ी सड़कें,लक्जरी गाड़ियां,ऊँची इमारतें,हवाई जहाज,उद्योग--धंधे,स्कूल--कॉलेज,सिनेमा--टीवी और सियासत के छल--प्रपंच सहित भविष्य के तमाम बहुरंगी सपनों से बेखबर हैं ये.ये सभी मुसीबत और अभाव की कोख से जन्मे ऐसे बच्चे हैं जो दोजख में पल--बढ़कर बेजा जिन्दगी जीने को विवश हैं.घर के बड़े--बुजुर्ग के हाथ में कोई बड़ा रोजगार नहीं है.मेहनत--मजूरी करके मुट्ठी भर पैसे लाते हैं तो किसी तरह जिन्दगी में सांस भरी जाती है.
ये मासूम बच्चे तडके सुबह ही घर से निकलते हैं पत्ते और जलावन चुनने के लिए.दिन--भर पत्ते और सुखी लकडियाँ इकट्ठी करते हैं फिर उसे बोड़े में भरकर घर लाते हैं.इसी से खामोश चुल्हा अंगराई लेता है फिर कुछ अनाज पकते हैं तो फिर सब मिल--बैठकर खाते हैं.इधर से उधर भर दिन मंडरा--मंडराकर ये नन्हीं जानें अंगीठी जलाने की जुगात करते हैं.अधिकारियों के आवास हों या उनके कार्यालय या फिर पेड़ों के झुरमुट,ये फटे--फटे बच्चे आपको मिल जायेंगे.इन्हें देखकर आप आसानी से ये नहीं समझ पायेंगे की जिन्दगी इनका मजाक उड़ा रही है की ये बच्चे जिन्दगी का मजाक उड़ा रहे हैं.हमने जब इन बच्चों को टटोलना चाहा तो इनका कहना था की वे और बच्चों की तरह पढना चाहते हैं,स्कूल जाना चाहते हैं लेकिन क्या करें स्कूल जाने और पढने की जगह पत्ते और जलावन चुनने चले आते हैं.आखिर वे करें भी तो क्या.भर दिन इनकी मिहनत से जब ये साजो--सामान घर पहुँचता है तब घर के चूल्हे जलते हैं.आईये दिलीप कुमार,शबाना और अफसाना आदि बच्चे अपने दर्द को इसकदर बयां कर रहे हों गोया इनके जीवन में बस पतझड़ ही पतझड़ है.
सहरसा जिले में विद्यालय की कोई कमी नहीं है.इस जिले में प्राथमिक विद्यालय 741,मध्य विद्यालय 509 और 52 उच्च विद्यालय हैं.लेकिन क्या करें इन गरीब के बच्चों के करम ही फूटे हैं की ये बच्चे विद्यालय जाने और पढने से वंचित हैं.सरकार छात्रवृति,पोशाक,साईकिल सहित मिड डे मील योजना चलाकर बच्चों को स्कूल लाने की भरपूर कोशिश कर रही है लेकिन जमीनी स्तर प़र ये योजनायें खाऊ--पकाऊ बनकर रह गयी हैं.सहरसा का शायद ही कोई विद्यालय ऐसा हो जहां समस्याएं ना हों.ओम प्रकाश नारायण जैसे समाजसेवी और स्कूल--कॉलेज में पढने वाले बच्चे भी सरकार को लताड़ने में जुटे हैं.इनकी मानें तो सरकारी योजनाओं के धरातल प़र सही ढंग से नहीं पहुँचने की वजह से आज मासूम हाथ पत्ते और जलावन चुनने को विवश हैं.समाजसेवी दहाड़ते हुए कहते हैं सरकार की खिचड़ी योजना फ्लॉप है और सारी योजनाओं को घुन्न लगे हुए हैं.कॉलेज में पढने वाले बच्चे कह रहे हैं की सिर्फ स्कूल खोलने से नहीं होगा.सरकार को गरीबी दूर करने के लिए बड़े और कठोर कदम उठाने होंगे.
अब बारी है सरकारी हाकिमों की.हमने पतझड़ में तब्दील इन गरीब घर में जन्मे मासूम नौनिहालों को लेकर जिला शिक्षा अधिकारी रामनंदन प्रसाद से तल्ख़  सवाल किये.इनकी माने तो पहले से हालात काफी सुधरे हैं.गरीबी की वजह से इन बच्चों के माता--पिता शिक्षा के महत्व को नहीं समझ पाए हैं.ये अधिकारी एक तरह से बता रहे हैं की ज्यादातर कमियाँ इन बच्चों के परिजनों का है तो कुछ कमियाँ उनमें भी है,इसी कारण से ये मंजर है.आने वाले दिनों में व्यापक सुधार दिखेंगे.
"सब पढ़े--सब बढे" और "मुनिया बेटी पढ़ती जाए" 
सुशासन बाबू हम आपको कोसी तटबंध के भीतर या फिर सुदूर ग्रामीण इलाके की तस्वीर नहीं दिखा रहे हैं.ये सारी तस्वीरें जिला मुख्यालय की हैं.आँखों प़र चढ़ा सरकारी चस्मा उतारिये और इन तस्वीरों को देखिये.हमें पता है की आप संवेदनशील मुख्यमंत्री हैं.आपका कलेजा इन तस्वीरों को देखकर जरुर फट पड़ेगा.अगर ये तस्वीरें आपको दहला--रुला नहीं सकीं तो यकीन मानिए आगे हम कोसी तटबंध के भीतर और सुदूर ग्रामीण इलाके की तस्वीरें लेकर आयेंगे जो सुशासन के सारे ढोल--ताशे के चिथड़े तो उड़ाएंगी ही,साथ ही सुशासन या कुशासन या फिर ठगासन सभी की सारी पोल--पट्टी भी खोलकर रख देंगी.जागिये नीतीश बाबू जागिये.इतना आसान नहीं है विकसित बिहार के सपने को सच कर दिखाना.

मार्च 02, 2013

कैदी की मौत मामले में तेज हुयी सियासत

 कल 1 मार्च को मंडल कारा के एक विचाराधीन बंदी की बिमारी से हुयी मौत मामले में गरमाया जेल,तेज हुयी सियासत// रिपोर्ट -- मुकेश कुमार सिंह //
बीते कल एक मार्च को सहरसा मंडल कारा के एक विचाराधीन कैदी महंथी यादव की मौत मामले में आज पुरजोर तरीके से सियासत शुरू हो गयी है।इधर इस कैदी की मौत से मंडल कारा का माहौल भी कल से ही काफी गर्म है।जेल के करीब 500 बंदी इलाज में लापरवाही से महंथी यादव की मौत को वजह बताते हुए और जेल में व्याप्त अन्य अनियमितता की वजह से कल से ही भूख हड़ताल पर बैठे हैं।समाचार भेजे जाने तक कैदियों की भूख हड़ताल आज दुसरे दिन भी जारी है।इस मौत मामले को लेकर विभिन्य राजनीतिक दलों का एक प्रतिनिधिमंडल आज दिन में सहरसा के नए डी.एम सतीश चन्द्र झा से मिला और उनसे कहा की बंदी की मौत जेल के अन्दर हुयी लेकिन उसकी लाश को सदर अस्पताल लाकर उसके शव में ऑक्सीजन भरने का अमानवीय कृत्य किया गया।ईलाज के दौरान सदर अस्पताल में कैदी की मौत की बात जेल प्रशासन अपनी गर्दन बचाने की गरज से कर रहा है।नेताओं ने इस कैदी की मौत की न्यायिक जांच और मृतक के परिजनों को दस लाख मुआवजा और एक आश्रित को नौकरी दिए जाने की मांग की है।हांलांकि सहरसा टाईम्स की पहल के बाद डी.एम सतीश चन्द्र झा न केवल मृतक के शव के पास पहुंचे बल्कि मृतक के परिजनों को सांत्वना भी दी।यही नहीं सहरसा टाईम्स की पहल से ही वे हमारी मौजूदगी में मंडल कारा पहुंचे जहां जेल अधिकारियों और कैदियों से वार्ता कर सच को खंगालने की कोशिश की।
यूँ भी मौत पर सियासत की पुरानी रिवायत है।देखिये डी.एम साहब के चेंबर में राजद,लोजपा और सीपीआई सहित कई अन्य दलों के नेता यहाँ जमे हुए हैं।सभी का समवेत कहना है की महंथी की मौत इलाज के अभाव में जेल के भीतर ही हुयी लेकिन उसकी लाश को सदर अस्पताल लाकर लाश के इलाज का नाटक किया गया।यह मानवाधिकार का मामला बनता है।नेताओं ने इस पुरे मामले की न्यायिक जांच और दोषियों पर कड़ी कारवाई के साथ--साथ मृतक के परिजन को दस लाख मुआवजा और एक आश्रित को सरकारी नौकरी दिए जाने की मांग की।महिषी राजद विधायक मोहम्मद अब्दुल गफूर नेताओं के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे थे।
जेल के कैदी
अब सीधे चलिए मंडल कारा सहरसा। यहाँ पर हम आपको कुछ खास दिखाने लाये हैं।देखिये ये सभी जेल के कैदी हैं जो सहरसा कोर्ट पेशी के लिए जा रहे हैं।ये बंदी खुलकर बता रहे हैं की महंथी यादव की मौत जेल के भीतर ही हो गयी थी।उसकी लाश को अस्पताल ले जाया गया।राजाराम यादव,दया यादव और परमेश्वरी यादव सहित कई बंदी जेल के भीतर विभिन्य तरह की कमियों को लेकर भी खुलकर बता रहे हैं।कैदियों ने यह भी बताया की इलाज के अभाव में महंथी की मौत हुयी है इसलिए वे सभी कल से ही भूख हड़ताल पर हैं।
अब बारी जिले के हाकिम की है।जेल गेट पर ही सहरसा टाईम्स ने इस पूरी घटना को लेकर डी.एम साहब से खास बातचीत की।उन्होनें कैदी की मौत की वजह बताते हुए साफ़ किया की कैदी की मौत इलाज के दौरान सदर अस्पताल में हुयी।नेताओं की सियासत पर उन्होनें पहले तो जमकर चुटकी ली फिर कैदियों की भूख हड़ताल को स्वीकारा।इनकी मानें तो कैदियों ने उनसे कुछ शिकायतें की है जिसको लेकर वे कल 3 मार्च की शाम में पुनः जेल आयेंगे और  कैदियों की शिकायत को सुनेंगे. कुलमिलाकर इस मौत के मामले में इन्होनें जेल प्रशासन को क्लीन चिट दे दिया।हांलांकि उन्होनें मृतक बंदी के परिजनों को दस लाख रूपये के मुआवजे और एक आश्रित को नौकरी देने के मामले में कहा की इसके लिए वे राज्य सरकार से अनुशंसा करेंगे।
लाश को किसी तरह से अस्पताल से उठवाने में जिला प्रशासन आज कामयाब हो गया लेकिन यह मामला आगे आसानी से शांत रहने वाला नहीं है।मंडल कारा के कैदी अभी भी भूख हड़ताल पर डटे हुए हैं और उनकी कई और मांगें हैं।अगर उसपर त्वरित विचार और ठोस समाधान नहीं हुआ तो बात आगे बिगड़ सकती है।

ईलाज के अभाव में कैदी की मौत

जेल प्रशासन कह रहा इलाज के दौरान सदर अस्पताल में हुयी उसकी मौत..
रिपोर्ट सहरसा टाईम्स: पिछले दो महीने से सहरसा मंडल कारा में लूट के मामले में बंद एक विचाराधीन कैदी महंथी यादव की आज शाम करीब साढ़े चार बजे मौत हो गयी।मृतक की लाश सदर अस्पताल के आपातकालीन कक्ष में रखी हुयी है।जेल प्रशासन इस मौत को लेकर कह रहा है की महंथी की जेल में अचानक तबियत बिगड़ गयी जिसे आनन--फानन में इलाज के लिए सदर अस्पताल लाया गया जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गयी।लेकिन मृतक के परिजन जेल प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कह रहे हैं की महंथी यादव की मौत इलाज के अभाव में जेल के भीतर ही हो गयी थी लेकिन अपनी गर्दन बचाने के लिए जेल प्रशासन ने मृतक की लाश को सदर अस्पताल में लाकर रख दिया और मौत इलाज के दौरान सदर अस्पताल में हुयी का प्रलाप करने लगे।इस मामले में एक तरफ जहां विरोधी दल के नेता भी जेल प्रशासन को दोषी ठहराते हुए उसपर मुकदमा दर्ज किये जाने की मांग कर रहे हैं वहीँ ईलाज  में हुयी लापरवाही से महंथी यादव की मौत पर आक्रोशित मंडल कारा के कुल 489 बंदी भूख हड़ताल पर चले गए हैं।जेल में बंद बंदी मृत बंदी की मौत की जांच और मृतक के परिजनों को मुआवजा देने की मांग कर रहे हैं। 
मृत महंथी यादव
इस बंदी की मौत पर जेल के कोई बड़े अधिकारी हमारे कैमरे पर आने की बात तो छोड़िये हमारे फोन कॉल को रिसीव करना भी मुनासिब नहीं समझा।जेलर सुरेश चौधरी को हमने दर्जनों बार रिंग किया लेकिन उन्होनें अपना मोबाइल नहीं उठाया।मौके पर मंडल कारा,सहरसा का एक कक्षपाल संतोष कुमार रॉय मिला तो हमने उसी से जबाब---तलब किया।सुनिए यह कह रहा है की बंदी की मौत ईलाज के दौरान सदर अस्पताल में हुयी है।इस मौत को लेकर मंडल कारा में खलबली मच गयी है।सूत्रों की मानें तो मृतक की मौत की जांच और उसके परिजन को मुआवजा मिले इसके लिए मंडल कारा के सभी 489  आज भूख हड़ताल पर चले गए हैं। इधर सहरसा जेल में बंद पूर्व सांसद आनंद मोहन की पत्नी, पूर्व सांसद सह कौंग्रेस नेत्री लवली आनंद ने दिल्ली से दूरभाष पर सहरसा टाईम्स से बातचीत की और कहा की उन्होनें इस मौत की वजह की सघन जांच और मृत बंदी के परिजन को मुआवजे के लिए सहरसा के डी.एम सतीश चन्द्र झा से बातचीत की है। डी.एम ने उन्हें मामले की जांच और मुआवजे को लेकर विधि सम्मत कारवाई का भरोसा दिलाया है।
मामला गंभीर रूप ले रहा है।यूँ बताते चलें की सहरसा जेल के भीतर अनियमितता,लापरवाही और जेल प्रशासन की मनमानी को लेकर आये दिन बबाल होता रहता है।अब इस मामले का आगे कैसा तेवर और उसका क्या फलाफल आयेगा,देखना दिलचस्प होगा .

मार्च 01, 2013

50 से ज्यादा महादलितों के घर जलकर हुए खाक

 पूर्वी कोसी तटबंध के किनारे राजनपुर गाँव स्थित राम टोले में आई तबाही
सहरसा टाम्स:  बीते दोपहर बाद करीब साढ़े तीन बजे सहरसा के महिषी थाना अंतर्गत राजनपुर गाँव के राम टोले में अग्नि देवता ना केवल कहर बनकर बरपे बल्कि भीषण तबाही की बड़ी सुनामी लेकर भी आये।भीषण आगजनी से देखते ही देखते दबे--कुचले महादलितों के जीवन भर की कुल जमापूंजी राख में तब्दील हो गयी।इस भीषण आगजनी में कुल 64 घर जलकर खाक हुए।इस आगजनी में जहां आधा दर्जन से ज्यादा मवेशी जाकर मरे वहीँ तीन लोग भी आग से झुलसकर जख्मी हुए।आग पर ग्रामीण और अगल---बगल के गाँव के लोगों ने मिलकर काबू पाया।इस भीषण आगजनी में लाखों की संपत्ति के नुकशान का अनुमान है। 
 देखिये आग से हुयी तबाही के दर्द से सने नज़ारे को।कल चमन था आज एक सहरा हुआ।जाहिर तौर पर यहाँ पर तबाही की सुनामी आई है। महादलितों के परिवार यूँ ही पहले से सताए हुए किसी तरह अपनी जिन्दगी की गाडी खींच रहे थे की अचानक आई इस आफत ने उन्हें यायावर और मुफलिस बनाकर रख दिया है।पूर्वी कोसी तटबंध के ठीक किनारे बसे इस टोले के बहुतो युवक दुसरे प्रान्तों में रोजी--रोजगार करते हैं।बाहर से उन युवकों ने अपने घर नकद पैसे भेजे थे।इस भीषण सुनामी में किसी के बीस तो किसी के तीस और किसी के चालीस हजार नकद और घर के तमाम कीमती जेवर के साथ--साथ जमीनी दस्तावेज,कपड़े,अनाज सहित अन्य सामान जलकर पूरी तरह से बर्बाद हो गए हैं।कोई अपनी बेटी की शादी के लिए तो कोई गौना के लिए नकदी,जेवर और सामान जमा करके रखे थे।सबकुछ पल में धुंआ--धुंआ हो गया।
सदर एस.डी.ओ,सहरसा
चारो तरफ चीख पुकार मची है। बच्चे--बूढ़े और जवान सभी छाती पीट रहे हैं।देखते ही देखते सबकुछ ख़ाक हो गया और ये सभी बेछप्पर हो गए हैं।अब इनकी रब ही खैर करे।मौके पर पहुंचे अधिकारियों ने पहले तो पूरी छानबीन करके क्षति का ब्योरा और पीड़ित परिवार की सूचि तैयार की फिर पीड़ित परिवारों के बीच सरकारी मदद के तौर पर प्रत्येक परिवार 2250 रूपये और एक क्विंटल अनाज वितरित कराये।लेकिन इस मदद से इन महादलितों की तबाह हो गयी जिन्दगी पटरी पर आनी नामुमकिन है।सदर एस.डी.ओ,सहरसा राजेश कुमार ने घटना के बाबत जानकारी दी।
पहले से ही क्या गम,दर्द और सीलन कम था। इन महादलितों की बेस्वादी जिन्दगी के उतरे रंग को देखकर भगवान् को भी आखिर क्यों तरस नहीं आया जो कुदरत का ऐसा भीषण कहर इनपर बरपा। इंसानी कहर को दशकों से झेल रहे इन मजलूमों पर आई कुदरत की इस आफत ने उनकी जिन्दगी के सामने एक बड़ी जंग को लाकर खड़ा कर दिया है। अब रब ही इन्हें ताकत बख्सी करे और संभाले।

फ़रवरी 27, 2013

एक बालिका विद्यालय का दर्द देखो सरकार


विशेष रिपोर्ट :: मुकेश कुमार सिंह: सुदूर ग्रामीण इलाके और कोसी तटबंध के भीतरी इलाके की बात तो छोड़िये साहेब,सहरसा जिला मुख्यालय के शहरी क्षेत्र में चल रहे विभिन्य सरकारी विद्यालय अनियमितता,लापरवाही और विभिन्य तरह की कमियों की साबूत ईबारत लिख रहे हैं.आज इसी कड़ी में हम बालिकाओं के एक ऐसे उच्च विद्यालय से आपको रूबरू कराने जा रहे हैं जहां मासूम बच्चियों के स्वर्णिम सपनों की एक तरह से बलि चढ़ाई जा रही है.
सहरसा जिला मुख्यालय के पूरब बाजार स्थित वर्ष 1994 से संचालित हो रहा राजकीय कन्या उच्च विद्यालय (सरकारी मॉडल विद्यालय )सरकार के शिक्षा सम्बन्धी तमाम दावों को ना केवल झूठा साबित कर रहा है बल्कि विभिन्य तरह की कमियों को लेकर एक साथ कई यक्ष प्रश्न भी खड़े कर रहा है.वर्ष 1994 से संचालित हो रहे इस विद्यालय को आजतक अपना बेहतर भवन तक नसीब नहीं हो सका है.सड़क किनारे बिल्कुल खुले में संचालित हो रहे इस विद्यालय में 600 से ज्यादा बच्चियां पढ़ती हैं.
लेकिन हद की इन्तहा तो यह है की व्यस्क हो रही इन बच्चियों के इस स्कूल में ना तो एक भी शौचालय है और ना ही पीने के पानी का कोई इंतजाम.विद्यालय में कॉमन रूम और पुस्तकालय तो बस सपना सरीखा है.एक तरफ जहां विद्यालय के बगल में गंदगी का अम्बार है वहीँ दूसरी तरफ महज टिन--कनस्तर के दो मामूली संज्ञा भर के भवन में 600 से ज्यादा बच्चियों को शिक्षा दी जा रही है.अब आप खुद से सोचिये की यह भविष्य संवारने वाला स्कूल है या फिर कुछ और.आपको अंत में दर्द में सनी एक दुखद सच्चाई सुनाते हैं.इसी साल जनवरी माह में नौवीं कक्षा की छात्रा शिल्पी कुमारी यहाँ की गंदगी से पहले इन्फेक्शन का शिकार हुयी और फिर बाद में उसे हेपेटायटिस बी हो गया जिससे उसकी मौत हो गयी. यहाँ भविष्य को दाँव प़र लगाई डरी--सहमी समृधि कुमारी,स्नेहा कुमारी,रेशम कुमारी,हेमा कुमारी और पूजा जैसी कई बच्चियां अब हमसे ही उनकी समस्या दूर करने की फ़रियाद लगा रही है. 
स्कूल के सभी  शिक्षक भी काफी दुखी हैं.बच्चियों को हो रही दिक्कतों को लेकर ये खुल कर बता रहे हैं.इनका शोभा रानी,प्रीति कुमारी,वंदना कुमारी और मोहम्मद मोइत्तुर रहमान आदि गुरुजनों का कहना है इस विद्यालय की कमियों को लेकर उन्होनें ना केवल जिला के सभी वरीय अधिकारियों को कई बार पत्र लिख चुकी हैं बल्कि उनसे मिलकर कई बार गुहार भी लगा चुकी हैं.कई अधिकारी और स्थानीय विधायक इस स्कूल का कई बार दौरा भी कर चुके हैं लेकिन उसका नतीजा आजतक सिफर ही निकला है.यानि उनकी फ़रियाद आजतक नहीं सुनी जा सकी है.यह विद्यालय सिर्फ और सिर्फ समस्याओं से भरा हुआ है.ये शिक्षक भी इस साल हुयी एक बच्ची की मौत को दुखी होकर बताते हैं.
जिला शिक्षा पदाधिकारी रामनंदन प्रसाद
अब बारी बड़बोले अधिकारी की है.हमने इस विद्यालय को लेकर जिला शिक्षा पदाधिकारी रामनंदन प्रसाद से कई सवाल किये.इन्होनें इस विद्यालय की तमाम कमियों को स्वीकारा और कहा की यह विद्यालय जल्दबाजी में जिला परिषद के परिसर में खोल दिया गया था लेकिन इस विद्यालय को जमीन का स्वामित्व प्राप्त नहीं हो सका.इसी वजह से आजतक यहाँ पर किसी तरह का निर्माण कार्य शुरू नहीं किया जा सका है.जैसे ही जमीन की अधिप्राप्ति होगी,वैसे ही प्राथमिकता के साथ इस विद्यालय के लिए निर्माण कार्य शुरू कराये जायेंगे. 
ऐसा नहीं है की शिक्षा के क्षेत्र में सुधार नहीं हुए हैं.सुधार जरुर हुए हैं लेकिन जिसतरह से दावों के ढोल पीटे जा रहे हैं वैसे सुधार बिल्कुल नहीं हुए हैं.शिक्षा जैसे सबसे अहम् जरुरत में लफ्फाजी अच्छी बात नहीं है.यूँ सियासतदारों का अपना चलन है.हमने बच्चियों के जिला के सबसे मुख्य विद्यालय का नजारा दिखाया है.बांकी जगह की व्यवस्था कैसी होगी,इसका अंदाजा आप यहाँ के हालत देखकर,बाखूबी लगा सकते हैं.नीतीश बाबू जुबानी दावे और ज़मीन सच्चाई में बड़ा फासला होता है.इसे समझने और पाटने की जरुरत है.साथ ही बड़ी--बड़ी यात्राओं की जगह ईमानदार तौर--तरीके अपनाने की और लफ्फाजी छोड़ सच्चाई को सिद्दत से समझने की भी महती जरुरत है.

फ़रवरी 26, 2013

दो शातिर लुटेरे दबोचे गए

बीते 18 फ़रवरी को सुधा दूध एजेंसी के कर्मचारी से 6 लाख की लूट मामले में दोनों लुटेरों की हुयी गिरफ्तारी///
रिपोर्ट चन्दन सिंह: सहरसा पुलिस को एक बड़ी कामयाबी मिली जब उसने 18 फ़रवरी को सुधा दूध एजेंसी के कर्मचारी से 6 लाख की लूट मामले में दो शातिर लुटेरे को दबोच लिया।गिरफ्तार दोनों लुटेरे सदर थाना के हटियागाछी के रहने वाले हैं।बताते चलें की लुटी गयी 6 लाख की रकम में से 40 हजार रूपये और 4 मोबाइल सेट भी पुलिस ने इन लुटेरों के पास से बरामद किये हैं।गौरतलब है की लूट की इस बड़ी घटना में शामिल पुर्णिया जिले के तीन और सहरसा जिले के एक और लुटेरे की गिरफ्तारी होनी अभी शेष है।
गिरफ्त में आये रिंकू चौधरी और संतोष भगत नाम के ये दोनों शातिर लुटेरे सदर थाना के हटियागाछी के रहने वाले हैं।हांलांकि इस लूटकांड को अंजाम देने वाले यानि पिस्तौल की नोंक पर रूपये लूटकर भागने वाले तीन शातिर लुटेरे पुर्णिया जिले के रहने वाले हैं।एक और लुटेरा सहरसा जिले के हटियागाछी का ही रहने वाला दीपू चौधरी है।बताना लाजिमी है की गिरफ्त में आये ये दोनों शातिर लुटेरे और पुलिस की गिरफ्त से बाहर दीपू चौधरी सहरसा में अपराध की योजना बनाते थे और दुसरे जिले के अपने सहयोगी अपराधियों को बुलाकर घटना को अंजाम दिलवाते थे।खास बात यह है की ठीक इसी तर्ज पर दुसरे जिले के अपराधी मालदार लोगों का चयन करते थे और वहाँ रिंकू चौधरी,संतोष भगत और दीपू चौधरी जाकर लूट की घटना को अंजाम देते थे। इन दोनों लुटेरे के पास से 40 हजार रूपये और 4 मोबाइल सेट भी पुलिस ने बरामद किये हैं।
पुलिस अधीक्षक अजीत सत्यार्थी
पुलिस अधीक्षक अजीत सत्यार्थी इस कामयाबी को लेकर काफी उत्साहित दिखे और इस कामयाबी को लेकर सहरसा टाईम्स को तफसील से जानकारी दी। हांलांकि इन्होनें पुर्णिया जिले के तीन लुटेरों के नाम का तत्काल खुलासा इसलिए नहीं किया की इससे उनकी जांच और कारवाई प्रभावित होगी।
लम्बे समय से महज अपराध दर अपराध से काफी मोटी हो चुकी फाईलों को बिना  मामले के पटाक्षेप के ही संभाले और सिर्फ हांफती  सहरसा पुलिस के लिए निसंदेह यह एक बड़ी कामयाबी है।सहरसा टाईम्स भी इस कामयाबी के  सहरसा पुलिस की पीठ थपथपाने की वकालत करते हुए यह आशा करता है की पुलिस को अभी ऐसे कई और कारनामे करने होंगे तब जाकर लोगों का उनपर थोड़ा भरोसा होगा।

फ़रवरी 24, 2013

कानून के साए में उड़ रही है कानून की धज्जियां

सहरसा कोर्ट परिसर में और कोर्ट की गेट पर स्थित दुकानों में चढ़ रही है मासूम नौनिहालों के बचपन की बलि/// मुकेश कुमार सिंह ///
इनदिनों सहरसा में कानून के साए में उड़ रही है कानून की धज्जियां। चौकिये मत ! आज हम आपको ऐसी साबुत तस्वीरों से आपको रूबरू कराने जा रहे हैं जो इस काली सच्चाई को बेपर्दा करेगी।सहरसा कोर्ट परिसर में और कोर्ट की गेट पर स्थित दुकानों में मासूम नौनिहालों के बचपन की खुल्लम--खुल्ला बलि चढ़ रही है।जाहिर सी बात है की गरीबी और तंगहाली के दंश झेलने वाले परिवारों के ये मासूम बच्चे काम करने को विवश हैं।जिन नन्हें हाथों में कलम और किताबें होनी चाहिए पेट की भूख  मिटाने के लिए उन हाथों में हैं जूठे बर्तन हैं।भविष्य के बड़े सपनो को बेहतर साँचा देने की जगह काम में जुटे ये बच्चे व्यवस्था से कई बड़े सवाल कर रहे हैं।
सबसे पहले हम आपको कुछ आंकड़ों की सच्चाई से रूबरू कराने जा रहे हैं।बचपन बचाओ आन्दोलन एक सामाजिक संस्था द्वारा पिछले 15 वर्षों के दौरान बिहार से बाहर बंधुआ मजदूरी कर रहे सात हजार से ज्यादा बच्चों को मुक्त कराया गया।यही नहीं कुछ और संस्थाओं के प्रयास से दो हजार से ज्यादा बाल मजदूर भी सहरसा के आसपास के इलाके सहित सूबे के विभिन्य जगहों से मुक्त कराये गए।आप यह जानकार हैरान हो जायेंगे की सहरसा में ऐसे बच्चों के लिए वर्ष 2003 में 40 बाल श्रमिक विद्यालय खोले गए थे लेकिन वर्ष 2006 के अंत होते--होते ये सारे विद्यालय बंद हो गए।यानि बाल मजदूरों के लिए सरकार कहीं से भी गंभीर नहीं रही।
अब हम आपको लेकर सहरसा व्यवहार न्यायालय के गेट पर लेकर आये हैं। देखिये यहाँ पर कानून की किस तरह से धज्जियां उड़ रही है। देखिये गेट पर वकील और मुव्किलों के लिए दुकानें सजी हुयी है।इन दुकानों में आ रहे ग्राहकों की सेवा में नन्ही जान जुटी हुयी है।घर परिवार की गाड़ी यही नौनिहालों के हाथों खिंच रही है।ये कमाएंगे तो खुद इनके पेट भरेंगे और घर का चुल्हा भी जलेगा। हमने सीने को चाक करने वाले जीवन की इस बदरंग तस्वीर के बाबत यहाँ के वकीलों से जानना चाहा तो कुछ वकील जिसमें से एक सतीश कुमार सिंह हमें दर्शन की घुंटी पिलाते हुए एक तरफ जहां समाज को कोसा वहीँ सरकार को इसके लिए पूरी तरह से जिम्मेवार ठहराया।एक वकील साहब वीरेंदर प्रसाद तो दुकानदारों की तरफदारी में इस कदर उतरे की हम भौचक रह गए।इनका कहना था की ये बच्चे बाल मजदूर नहीं हैं।ये सभी दुकानदारों के बच्चे हैं जो अपने परिजनों के काम में हाथ बंटा रहे हैं।हमने इस पुरे मसले पर बच्चों की राय भी लेनी चाही लेकिन यहाँ का माहौल देखते ही देखते इतना गर्म हुआ की हमें बच्चे तक पहुँचने ही नहीं दिया गया.
हमारी यह कोशिश है की सुशासन बाबू को किसी भी तरह से यह तस्वीर दिख जाए और उन्हें यह पता चल सके की सहरसा में बचपन ना केवल मुश्ते टीस लिए सिसक रहा है बल्कि बचपन की यहाँ बलि चढ़ रही है।काश ! इन बच्चों के दिन बहुर जाते।

*अपनी बात*

अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।