
सबसे पहले मै आपको इनका जरा परिचय करवा दू ..इनका जन्म 26 जनवरी 1956 में एक स्वतंत्रता सैनानी परिवार (सहरसा जिला के पंचगछिया स्थित) में हुआ .. शुरूआती दिनों में आनंद मोहन पहले के सहरसा जिला और अब सुपौल जिला के त्रिवेणीगंज प्रखंड स्थित अपने ननिहाल मानगंज गाँव में रहते थे.वहीँ पर वे जे.पी के सम्पूर्ण क्रांति में कूद पड़े और त्रिवेणीगंज में पुलिस फायरिंग का जमकर विरोध किया.इसमें कुछ उनके छात्र साथी भी पुलिस की गोली लगने से मारे गए.उन शहीद साथियों का इन्होनें शहीद स्मारक बनवाया.. इन सबके बीच इन्होनें अपने सम्पादन में " क्रान्ति दूत" नाम का एक साप्ताहिक अख़बार भी छापना शुरू किया.जब 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी और तत्कालीन प्रधानमंत्री मुरारजी देसाई का सहरसा आगमन हुआ तो सैद्धांतिक मतभेदों के कारण इन्होने,उन्हें काला झंडा दिखाया.बाद में चलकर त्रिवेणीगंज विधानसभा से चुनाव भी लड़े लेकिन पराजित हुए.

इनके इतिहास की कड़ी को थोड़ा और आगे बढ़ाएं तो इनकी शादी सहरसा जिले की जेम्हरा गाँव की रहने वाली लवली आनंद से 13 मार्च 1991 को हुयी. आनंद मोहन ने अपने राजनीतिक प्रभाव से अपनी पत्नी को दो बार विधायक और एक बार सांसद बनाया. आनंद मोहन को दो बेटे और एक बेटी है. आनंद मोहन ने देहरादून में अपना एक घर खरीदा, जहां उनके बच्चों की परवरिश हुयी. दून के मंहगे स्कूल से बच्चों ने तालीम ली. अभी बड़ा बेटा सिम्बॉसिस पुणे में इंडस्ट्रियल डिजाइनिंग का छात्र और बेटी लॉ की छत्रा है. आनंद मोहन के दादा राम बहादुर सिंह देश के चर्चित स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे. आजादी से पूर्व आनंद मोहन के घर महात्मा गांधी, राजेन्द्र प्रसाद, विनोबा भावे से लेकर जे.बी.कृपलानी तक का आना--जाना रहा. हालिया वर्षों की बात करें तो पूर्व प्रधानमन्त्री चंद्रशेखर और पूर्व उप राष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत तक आनंद मोहन के घर आ चुके हैं. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने भी आनंद मोहन के घर जाकर अपनी हाजिरी लगाई है.
सहरसा के बुद्धिजीवी लोगों में इस बात की खुशी है की पाठ्यक्रम में इतने बड़े कवि और लेखकों के बीच आनंद मोहन को भी शामिल किया गया.आनंद मोहन के चाहने वालों में काफी ख़ुशी है.वे कहते हैं की आनंद मोहन जी ने अपनी लेखनी से साहित्कारों के बीच से एक दमदार उपस्थिति दर्ज की है.जिस ब्यक्ति के बिषय में विरोधियों ने बहुत तरह की बाते फैलाई और उनको हमेशा बाहुबली ही घोषित किया लेकिन गद्य एवं पद्य के माध्यम से जो उपस्थिति उन्होंने दर्ज की है और उनके लिखे हुए गद्य का सी.बी एस. ई में प्रविष्ट होना,उनके विरोधियों को करारा जवाब है. कहानी और कविता के माध्यम से आनंद मोहन जी ने जेल के भीतर अपने एक-एक पल को जिया है.
बुद्धिजीवी कहते हैं की जिस पाठ्यक्रम में इतने बड़े-बड़े साहित्कारों की रचनाओं का संग्रह किया गया है उसमे आनंद मोहन की गद्य रचना का आना बड़ी बात है.आनंद मोहन की गद्य रचना किस स्तर की होती है, ये इसका ही एक प्रमाण है ये बड़ी उत्कृष्ट खासियत है की आनद मोहन जी ने जेल की काल कोठरी में रहकर भी ऐसी रचना लिखी है. देश के जाने माने वयोवृद्ध पत्रकार यू.एन.मिश्रा भाव--विह्ववल हैं और आनंद मोहन की इस गद्द और पद्द यात्रा को श्रेष्टतम यात्रा करार रहे हैं. बड़े बेबाक लहजे में इनका कहना है की आनंद मोहन अब साहित्यिक इतिहास की धरोहर बन चुके हैं.ओमप्रकाश नारायण यादव,प्रियदर्शी पाठक,दिनेश प्रसाद सिंह,सुरेश सिंह और रमेश प्रसाद सिंह जैसे आनंद मोहन के समर्थक कोसी इलाके में घूम--घूमकर आनंद मोहन की इस बेहद खास छवि से लोगों का परिचय करा रहे हैं.इनलोगों का समवेत कहना है की आनंद मोहन के भीतर की संवेदना सदैव जागृत रही और साहित्य में इनका यह स्थापन,उसी का फलाफल है.
सहरसा जेल अधीक्षक अनिल पाण्डेय भी गदगद हैं की उनके काल में आनंद मोहन की रचना ऐसी जगह पर पहुंची है.इनके मुताबिक़ जेल के लिए यह काफी हर्ष का विषय है.
सहरसा टाईम्स ने एक मामले में सहरसा न्यायालय पहुंचे पूर्व सांसद आनंद मोहन से खास बातचीत की. आनंद मोहन ने खास बातचीत में कहा की जेल के भीतर उन्होनें निर्गुण में शगुन तलाशने की कोशिश की है. उन्होनें तल्ख तेवर में कहा की राजनीतिक साजिश के तहत मैं जेल में बंद हूँ.और जिनलोगों ने यह सोचा की आनंद मोहन को सजा कराकर अभिशाप के तौर उन्हें अभिशप्त कर दिया उस अभिशाप को मैंने वरदान में बदलने की कोशिश की है. उन्होनें कहा की उनके लिए काफी हर्ष का क्षण है और घर के लोगों से लेकर तमाम उनके समर्थक तक काफी खुश हैं. इनकी नजर में राजनीति पर जबतक साहित्य की छाँव रही राजनीति निर्मल रही. लेकिन आज राजनीति बेईमानी और गंदगी का ना केवल पर्याय बन चुकी है बल्कि राजनीति निष्ठुर हो गयी है.साहित्य के दायरे में आगे राजनीति जब आएगी तब से राजनीति पौरुष की होगी.
bahut aachi hai mukesh sir neta jee ki kahayani
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