जनवरी 14, 2015

बाहुबली का नया अवतार-------------

मुकेश कुमार सिंह की कलम से स्पेशल रिपोर्ट------- सी. बी. एस. ई की एक नयी पुस्तक जो आठवी क्लास की है और विषय है हिंदी.उसके एक अध्याय के लेखक है पूर्व सांसद आनंद मोहन.....पुस्तक का नाम है मधुरिका हिंदी पाठमाला....कभी दबंग,तो कभी बाहुबली और कभी रॉबिन हुड की संज्ञा.लेकिन अब एक नया अवतार.आनंद मोहन को अब एक लेखक के रूप में पुरे देश के बच्चे जानेंगे.उनकी लेखनी इस पुस्तक में है जिसका नाम है पर्वत पुरुषः दशरथ . ...फिलवक्त ये लेखक गोपालगंज के पूर्व जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के आरोप में सहरसा के मंडल कारा में उम्र कैद की सजा काट रहे है.  

सबसे पहले मै आपको इनका जरा परिचय करवा दू ..इनका जन्म 26 जनवरी 1956 में एक स्वतंत्रता सैनानी परिवार (सहरसा जिला के पंचगछिया स्थित) में हुआ  .. शुरूआती दिनों में आनंद मोहन पहले के सहरसा जिला और अब सुपौल जिला के त्रिवेणीगंज प्रखंड स्थित अपने ननिहाल मानगंज गाँव में रहते थे.वहीँ पर वे जे.पी के सम्पूर्ण क्रांति में कूद पड़े और त्रिवेणीगंज में पुलिस फायरिंग का जमकर विरोध किया.इसमें कुछ उनके छात्र साथी भी पुलिस की गोली लगने से मारे गए.उन शहीद साथियों का इन्होनें शहीद स्मारक बनवाया.. इन सबके बीच  इन्होनें अपने सम्पादन में " क्रान्ति दूत" नाम का एक साप्ताहिक अख़बार भी छापना शुरू किया.जब 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी और तत्कालीन प्रधानमंत्री मुरारजी देसाई का सहरसा आगमन हुआ तो सैद्धांतिक मतभेदों के कारण इन्होने,उन्हें काला झंडा दिखाया.बाद में चलकर त्रिवेणीगंज विधानसभा से चुनाव भी लड़े लेकिन पराजित हुए.
इस क्रम में इनपर कई अपराधिक मुक़दमे दर्ज हुए और इन्हें देखते ही गोली मारने का वारंट भी जारी हुआ.उसवक्त आनंद मोहन को लोग रोबिन हुड की छवि के रूप में जानने लगे थे.पुलिस इन्हें कुत्ते की तरह ढूंढ रही थी और ये छुपते फिर रहे थे.वर्ष 1983 में पूर्व मुख्यमंत्री सत्येन्द्र नारायण सिंह का आगमन सहरसा में हुआ और पूर्व से तय कार्यक्रम के मुताबिक़ दस लाख से अधिक भीड़ की मौजूदगी में आनंद मोहन ने उनके समक्ष आत्मसमर्पण किया..बाद में चलकर न्यायालय से ये बड़ी हुए.तब बी.पी सिंह की लहर का दौर था.1990 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन कॉंग्रेस के कद्दावर नेता लहटन चौधरी को सहरसा जिले के महिषी से रिकॉर्ड 63,000 मतों से पराजित कर आनंद मोहन ने अपनी पहली राजनीतिक उपस्थिति दमदार तरीके से दर्ज करायी.फिर इन्होने अपनी एक पार्टी बिहार पीपुल्स पार्टी के नाम से बनाई ..बाद में चलकर लालू यादव से नजदीकियां बढ़ी और राजद से गठबंधन हुआ और वे शिवहर से सांसद चुने गए.लगातार तीन वार शिवहर से वे सांसद रहे.1994 में इनके एक साथी मुजफ्फरपुर के नेता छोटन शुक्ला की हत्या हुई.उनकी अर्थी जुलूस में लालबत्ती गाड़ी को देख भीड़ बेकाबू हो गयी और उस पर टूट पड़ी.उसमे बैठे गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या हो गयी.हत्या के आरोप में आनंद मोहन हाजीपुर से गिरफ्तार कर लिए गए निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक मामला चला और पूर्व सांसद को उम्र कैद की सजा हो गयी.बीते कई वर्षों से आनंद मोहन सहरसा जेल में बंद हैं. अब जाकर सहरसा जेल के अंदर एक नए कवि और लेखक आनंद मोहन का जन्म हुआ. कैद में आजाद कलम, स्वाधीन कलम और काल कोठरी आदि इनकी चर्चित कृति में से है.

इनके इतिहास की कड़ी को थोड़ा और आगे बढ़ाएं तो इनकी शादी सहरसा जिले की जेम्हरा गाँव की रहने वाली लवली आनंद से 13 मार्च 1991 को हुयी. आनंद मोहन ने अपने राजनीतिक प्रभाव से अपनी पत्नी को दो बार विधायक और एक बार सांसद बनाया. आनंद मोहन को दो बेटे और एक बेटी है. आनंद मोहन ने देहरादून में अपना एक घर खरीदा, जहां उनके बच्चों की परवरिश हुयी. दून के मंहगे स्कूल से बच्चों ने तालीम ली. अभी बड़ा बेटा सिम्बॉसिस पुणे में इंडस्ट्रियल डिजाइनिंग का छात्र और बेटी लॉ की छत्रा है. आनंद मोहन के दादा राम बहादुर सिंह देश के चर्चित स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे. आजादी से पूर्व आनंद मोहन के घर महात्मा गांधी, राजेन्द्र प्रसाद, विनोबा भावे से लेकर जे.बी.कृपलानी तक का आना--जाना रहा. हालिया वर्षों की बात करें तो पूर्व प्रधानमन्त्री चंद्रशेखर और पूर्व उप राष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत तक आनंद मोहन के घर आ चुके हैं. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने भी आनंद मोहन के घर जाकर अपनी हाजिरी लगाई है.
सहरसा के बुद्धिजीवी लोगों में इस बात की खुशी है की पाठ्यक्रम में इतने बड़े कवि और लेखकों के बीच आनंद मोहन को भी शामिल किया गया.आनंद मोहन के चाहने वालों में काफी ख़ुशी है.वे कहते हैं की आनंद मोहन जी ने अपनी लेखनी से साहित्कारों के बीच से एक दमदार उपस्थिति दर्ज की है.जिस ब्यक्ति के बिषय में विरोधियों ने बहुत तरह की बाते फैलाई और उनको हमेशा बाहुबली ही घोषित किया लेकिन गद्य एवं पद्य के माध्यम से जो उपस्थिति उन्होंने दर्ज की है और उनके लिखे हुए गद्य का सी.बी एस. ई  में प्रविष्ट होना,उनके विरोधियों को करारा जवाब है. कहानी और कविता के माध्यम से आनंद मोहन जी ने जेल के भीतर अपने एक-एक पल को जिया है. 
बुद्धिजीवी कहते हैं की जिस पाठ्यक्रम में इतने बड़े-बड़े साहित्कारों की रचनाओं का संग्रह किया गया है उसमे आनंद मोहन की गद्य रचना का आना बड़ी बात है.आनंद मोहन की गद्य रचना किस स्तर की होती है, ये इसका ही एक प्रमाण है ये बड़ी उत्कृष्ट खासियत है की आनद मोहन जी ने जेल की काल कोठरी में रहकर भी ऐसी रचना लिखी है. देश के जाने माने वयोवृद्ध पत्रकार यू.एन.मिश्रा भाव--विह्ववल हैं और आनंद मोहन की इस गद्द और पद्द यात्रा को श्रेष्टतम यात्रा करार रहे हैं. बड़े बेबाक लहजे में इनका कहना है की आनंद मोहन अब साहित्यिक इतिहास की धरोहर बन चुके हैं.ओमप्रकाश नारायण यादव,प्रियदर्शी पाठक,दिनेश प्रसाद सिंह,सुरेश सिंह और रमेश प्रसाद सिंह जैसे आनंद मोहन के समर्थक कोसी इलाके में घूम--घूमकर आनंद मोहन की इस बेहद खास छवि से लोगों का परिचय करा रहे हैं.इनलोगों का समवेत कहना है की आनंद मोहन के भीतर की संवेदना सदैव जागृत रही और साहित्य में इनका यह स्थापन,उसी का फलाफल है.
सहरसा जेल अधीक्षक अनिल पाण्डेय भी गदगद हैं की उनके काल में आनंद मोहन की रचना ऐसी जगह पर पहुंची है.इनके मुताबिक़ जेल के लिए यह काफी हर्ष का विषय है.
सहरसा टाईम्स ने एक मामले में सहरसा न्यायालय पहुंचे पूर्व सांसद आनंद मोहन से खास बातचीत की. आनंद मोहन ने खास बातचीत में कहा की जेल के भीतर उन्होनें निर्गुण में शगुन तलाशने की कोशिश की है. उन्होनें तल्ख तेवर में कहा की राजनीतिक साजिश के तहत मैं जेल में बंद हूँ.और जिनलोगों ने यह सोचा की आनंद मोहन को सजा कराकर अभिशाप के तौर उन्हें अभिशप्त कर दिया उस अभिशाप को मैंने वरदान में बदलने की कोशिश की है. उन्होनें कहा की उनके लिए काफी हर्ष का क्षण है और घर के लोगों से लेकर तमाम उनके समर्थक तक काफी खुश हैं. इनकी नजर में राजनीति पर जबतक साहित्य की छाँव रही राजनीति निर्मल रही. लेकिन आज राजनीति बेईमानी और गंदगी का ना केवल पर्याय बन चुकी है बल्कि राजनीति निष्ठुर हो गयी है.साहित्य के दायरे में आगे राजनीति जब आएगी तब से राजनीति पौरुष की होगी.

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।