नवंबर 09, 2012

गुम हो रहे कुम्हार के दिए

मुकेश कुमार सिंह,सहरसा: बिजली की चकाचौंध और चीनी भूक---भूक बत्तियों से पटे आज के बाजार से कुम्हारों के दिए बनाने के पुस्तैनी कारोबार पर ग्रहण लगने लगा है।दिवाली और छठ के मौके पर कुम्हारों के बनाए दिए,चुक्के और अन्य मिटटी के बर्तनों से जहां पूजा--पाठ और त्यौहार के मद्देनजर सजावटी काम बड़े उत्साह और समर्पण के साथ किये जाते थे वहीँ इस उद्यम से कुम्हारों का भी अच्छा कारोबार हो जाता था।लेकिन आज बिजली की चकाचौंध ने दिए और चुक्के के पुरे कुनबे को ही एक तरह से लील लिया है।अमूमन हर बाजार में चीनी चकमक से सजे बिजली के झालर और जुगनुओं से सजे अन्य सामान भरे रहते हैं।ख़ास बात यह है की आधुनिकता में और पर्यावरण में प्रदुषण के नाम पर लोग खासकर दीपों के महापर्व पर दिए और चुक्के के प्रयोग से न केवल अब कतराने लगे हैं बल्कि बिजली के जुगनुओं से पर्व को भी फ़टाफ़ट अंदाज पर मनाने का दृढ मन भी बना चुके हैं।जाहिर तौर पर लोगों के बदले मिजाज और बाजार पर चढ़े नए रंग से आज कुम्हारों के पुस्तैनी कारोबार पर न केवल ग्रहण लग रहा है बल्कि उनके पेट पर भी बड़ा ख़तरा मंडरा रहा है।जिस दिया--बाटी और चुक्के से कुम्हारों के एक मुश्ते साल भर की कमाई होती थी वह धंधा आज बंद होने के कगार पर है।सही मायने में आब चीनी चकमक से गुम हो रहे हैं कुम्हार के दिए.
                              
दीपों का अनूठा और महान महापर्व दिवाली सामने है।यह वह पर्व है जिसके आने का जहां आमलोग हर्ष और उल्लास के इजहार से पर्व मनाने के लिए इसका इन्तजार करते हैं वहीँ समाज का एक तबका कुम्हारों का ऐसा है जो अपने घर परिवार की गाड़ी बेहतर तरीके से खिंच सके इसके लिए इन्तजार करते हैं।दीया--बाती,चुक्के और अन्य मिटटी का सामान चाक पर गढ़के कुम्हार दिवाली के मौके पर साल भर की कमाई कर लेते थे।इस पर्व के मौके पर हुयी कमाई से इन कुम्हारों के परिवार के दिन कुल--मिलाकर अच्छे कटते थे।लेकिन विगत कुछ वर्षों से कुम्हारों के पुस्तैनी कारोबार चीन निर्मित झालर और बिजली के सामानों से खासे प्रभावित हैं।लोग पहले दिवाली में घी के दिए जलाते थे लेकिन समय बदला और लोग पहले सरसों तेल फिर किरासन तेल से काम चलाने लगे।अब वह समय भी लगभग जाने को है।लोग बदले परिवेश में पर्व--त्यौहार को भी बस मना देने के अंदाज में मनाने लगे हैं।बाजार में बिजली के जुगनुओं की भरमार है जिसे अपने घर में सजा कर लोग दीया और चुक्के से एक तरह से परहेज करने लगे हैं।जाहिर सी बात है इससे कुम्हारों के पेट पर लात पर रही है।चाक पर कुम्हार के घर की महिलायें और मासूम नौनिहाल भी दीया,चुक्का और मिटटी के अन्य बर्तन बनाते हैं। घर की महिलायें कह रही हैं की अब उनके द्वारा बनाए गए सामानों के खरीददार काफी कम हो गए हैं।सरकार भी उनकी कोई मदद नहीं करती है।घर का चुल्हा सालों भर ठीक से जल पाना भी अब मुश्किल है।
अपने पुस्तैनी कारोबार की विरासत को संभाले उमेश पंडित चाक घुमा--घुमाकर दीया और चुक्के तो बना रहे हैं लेकिन बेमन से।दिवाली के मौसम में बस कुछ दिए और अन्य मिटटी के सामान वे बनाते हैं लेकिन वह भी बिकना मुश्किल हो जाता है।इस कारोबार के अलावे वे मजदूरी करते हैं तो जाकर दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो पाता है।क्या करें पुश्तैनी कारोबार है,इसे छोड़ भी नहीं सकते।यानी उमेश पंडित यह कारोबार को बस ढ़ोने का धर्म निभाते दिख रहे हैं।
                                                            घर का चुल्हा कहीं खामोश न हो जाए,इससे लिए अंगीठी को जलाए रखने की कोशिश में मासूम नौनिहाल भी चाक चलाने के लिए मजबूर है। जिस मासूम उँगलियों में कलम और नन्हे हाथों में किताबें दबी होनी चाहिए वह चाक पर अपनी किस्मत को दौड़ा रहा है।मासूम जीतन विरासत में मिली गरीबी को चाक घुमाकर दूर करने की भागीरथ कोशिश करता दिख रहा है।पूछने पर कहता है की वह गरीब है।पहले पेट की भूख मिटानी है।इस चाक चलाते मासूम के अल्फाज आपके सीने को चाक कर जायेंगे।
दुकानदार भी यह मान रहे हैं की अब दीया--बाती से दिवाली मनाने के दिन अब लद गए।चीन निर्मित झालर और जुगनुओं से दिवाली मनाने में ही अब लोगों को न केवल मजा आ रहा है बल्कि उसमें ही उन्हें अपना सोसल स्टेटस भी बढ़ा हुआ दिख रहा है।
समाज में अभी भी कुछ ऐसे लोग हैं जो दिए--चुक्के सहित अन्य मिटटी के बर्तन के इस्तेमाल से दिवाली मनाते हैं।लेकिन हालात ऐसे बन रहे हैं जिससे ऐसा प्रतीत हो रहा है की आने वाले कुछ वर्षों के भीतर कुम्हारों का यह पुश्तैनी कारोबार पूरी तरह से बंद हो जाएगा।चाक पर अपनी कारीगरी का जौहर दिखाने वाले ये कुम्हार आगे कौन सा धंधा अपनाकर अपने परिवार को चलायेंगे,अभी इसपर शब्द रखना बेमानी है।सहरसा जिले में डेढ़ लाख से ज्यादा की आबादी वाले कुम्हार परिवार पर आफत के घने बादल मंडरा रहे हैं।इस मसले पर सरकार पहले से ही खामोश दिख रही है।

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