अक्टूबर 25, 2015

सरकार और तंत्र से हक़ और हकूक को लेकर सैंकड़ों सवाल पूछती बेबस जिंदगियां.......

** जिन्दगी बचाने और उसे सहेजने में निकल जाती है बेजा जिन्दगी............
**सरकार और तंत्र से हक़ और हकूक को लेकर सैंकड़ों सवाल पूछती बेबस हजारों जिंदगियां....... 

सहरसा टाइम्स की रिपोर्ट :- लोकतंत्र बचाना है हर एक वोट से, आपके वोट से ही बनती है सरकार. जिले में 5 तारीख को है मतदान नेताओं के चुनाव प्रचार हो चुकी है तेज, नये नये वादों के साथ मैदान में उतर चुके है नेता जी, खेत से लेकर खलियान तक मतदाताओं को लुभाने के लिए नेता जी कर रहे है ताबर तौर दौरा.  
गौरतलब है कि सहरसा जिले के चरों विधान सभाओं में समस्यों से लोग लबरेज है, लेकिन कभी किसी जनप्रतिनिधि ने इनकी सुधि नहीं ली. ऐसी हालत में अगर जनता अपने हक़ हकूक और क्षेत्र के विकास को लेकर सवाल करती है तो क्या हर्ज है. यूँ तो सहरसा जिले के सभी विधान सभा क्षेत्रों की हालत वही है, लेकिन जिले के पूर्वी और पश्चिमी कोसी तटबंध के भीतर रहने वाले मतदाताओं की समस्याए कुछ और बया करती है. यहाँ कोसी नदी हर साल तबाही लाती है. हर साल हजारों लोग बेघर होकर यायावर हो जाते हैं. इतने दर्द के बाद महगाई की डायन भी जीने नहीं दे रहे है. 
सही मायने में यह वह इलाका है जहां के लोग हर साल पहले उजड़ते फिर बसने की कोशिश करते रहते हैं. यानी उजड़ने और बसने का यह अंतहीन सिलसिला ताउम्र चलता रहता है. हजारों की तायदाद में बहुतों ऐसे बाढ़ विस्थापित हैं जो पिछले कई दशकों से तटबंध के किनारे या उसके आसपास बसे आजतक बस सरकारी मदद की बाट जोहे रहते है लेकिन कोई तारणहार नजर नहीं आते है, मगर चुनाव आते ही हमारी याद इन्हें आने लगती है. एक माँ उबालती रही पत्थर तमाम रात, बच्चे फरेब खाकर चटाई पर सो गए, सो जाते हैं फुटपाथ पर अखबार बिछाकर, मजदूर कभी नींद की गोली नहीं खाते।इन बाढ़ विस्थापितों का जीवन ही बेस्वादी है। 

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*अपनी बात*

अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।