सितंबर 13, 2012

बेशर्म पुलिस की बेहया तफ्तीश

मुकेश कुमार सिंह की कलम से------ आज हम सहरसा पुलिस की बेहया,बेशर्म और जालिम तफ्तीश का खुलासा करने जा रहे हैं.आज हम दिखाने जा रहे हैं की बिहार पुलिस के बड़े से लेकर छोटे अधिकारी किस तरह से अपना काम एसी कमरे में बन्द होकर या अपनी मनचाही जगह प़र बैठकर करते हैं.आज हम सहरसा पुलिस की बेशर्मी को बेपर्दा करने जा रहे हैं.आज हम शासन--प्रशासन को कटघरे में खड़े करके उनसे जबाब--तलब करने जा रहे हैं की आखिर पुलिस की गैर जिम्मेवाराना तफ्तीश की वजह से दो निर्दोषों प़र गिरी गाज और बेवजह जो उसने यंत्रणा झेली उसकी भरपाई कौन और कैसे करेगा.सहरसा जिले के सौर बाजार थाने में पुलिस अधिकारियों ने हैरतअंगेज कारनामा और करतब दिखाया है.वर्ष 2009 के 17 फ़रवरी को एक व्यक्ति ने आवेदन देकर दो चचेरे भाईयों प़र उसके घर में घुसकर महिलाओं और अन्य सदस्यों के साथ मारपीट करने,छेड़छाड़ करने और जाति सूचक प्रयोग करने का गंभीर आरोप लगाया.आवेदन प़र FIR दर्ज हुआ और पुलिस ने आगे की तफ्तीश शुरू की.आगे इस काण्ड में पुलिस के आलाधिकारियों ने अनुसंधान भी किये और FIR में नामित आरोपियों के खिलाफ आरोप भी गठित कर लिए गए.आप यह जानकार हैरान हो जायेंगे की कोर्ट ने पुलिस द्वारा समर्पित तमाम सबूतों के आधार प़र इन दोनों आरोपियों के खिलाफ गिरफ्तारी का आदेश भी निर्गत कर दिया.अब मामले के असल झोल को जानिये.जो इस काण्ड का सूचक यानि वादी है वह चीख--चीख कर कह रहा है की उसके और उसके परिवार के साथ कोई घटना नहीं घटी है.उसने थाने में कोई केश दर्ज नहीं कराया है.वादी दिल्ली में रहकर मजदूरी करता है और हस्ताक्षर करना जानता है लेकिन इस मामले में उसके नाम का इस्तेमाल कर किसी ने अंगूठे का निशान लगाकर मामला दर्ज करवा दिया है जिसका उसे कुछ भी पता नहीं है.तथाकथित वादी ने एस.पी, थानेदार से लेकर कोर्ट में शपथ पत्र दाखिल कर यह जानकारी दी है की उसने कोई मुकदमा दर्ज नहीं कराया है.FIR में दर्ज आवेदक के नाम प़र लगे अंगूठे का निशान भी उसका नहीं है.ज़रा सोचिये यह कितना गंभीर मसला है.इस पूरे मामले में पुलिस की कार्यशैली प़र ना केवल ऊँगली उठ रही है बल्कि कई पुलिस अधिकारी एक साथ कठघरे में खड़े दिख रहे हैं.जाहिर सी बात है की इस मामले में पुलिस के वरीय अधिकारी और खुद काण्ड के अनुसंधानकर्ता ने वादी को ढूंढ़कर घटनास्थल प़र जाकर मामले का अनुसंधान नहीं किया.वादी को और घटना को बन्द कमरे में बैठकर ना केवल सत्यापित किया गया बल्कि मामले की तफ्तीश भी पूरी कर ली गयी.
इनसे मिलिए.ये दोनों आपस में चचेरे भाई हैं और सौर बाजार थाने के धबौली गाँव के रहने वाले राजीव कुमार सिंह और पंकज कुमार सिंह हैं.वर्ष 2009 में धबौली गाँव के बगल के गाँव मुरली का रहने वाला दुलारचंद राम ने सौर बाजार थाने में इनदोनों भाईयों के खिलाफ उसके घर में घुसकर महिलाओं और अन्य सदस्यों के साथ मारपीट करने,छेड़छाड़ करने और जाति सूचक प्रयोग करने का गंभीर आरोप लगाते हुए एक आवेदन सौर बाजार थाने में दिया.आवेदन प़र FIR दर्ज हुआ और पुलिस ने आगे की तफ्तीश शुरू की.आवेदन में दुलारचंद के अंगूठे का निशान लगा हुआ था.पुलिस ने इस पूरे काण्ड का अनुसंधान पूरा करते हुए दोनों आरोपियों को दोषी करारते हुए उनपर आरोप गठित कर दिया.आज आलम यह है की इनदोनों भाईयों की गिरफ्तारी का आदेश निर्गत है और ये दोनों भाई भागे--भागे फिर रहे हैं.आप को अब असली सच की ओर ले चलते हैं.आप यह जानकार हैरान हो जायेंगे की इस काण्ड की जानकारी ना तो आरोपियों को थी और ना ही सूचक यानि वादी को.वादी दुलारचंद राम दिल्ली में रहकर मजदूरी करके अपना परिवार पालता है.इधर जब आरोपियों को इस काण्ड की जानकारी मिली तो वे निर्दोष भाई सकते में आ गए.वे हैरान थे की उन्हौनें कोई गुनाह ही नहीं किया तो फिर उन्हें दोषी कैसे करार दिया गया.हद बात यह है की वे दोनों वादी को जानते--पहचानते भी नहीं थे.इनदोनों भाईयों ने बड़ी मशक्कत से दुलारचंद को ढूंढ़ निकाला. अब अगला सच जानिये दुलारचंद को जब यह पता चला की उसके नाम के आवेदन प़र ना केवल काण्ड अंकित हुआ है बल्कि दो युवक बस जेल भेजे जाने वाले ही हैं तो उसके पाँव के नीचे की ज़मीन ही खिसक गयी.दुलारचंद राम ने कोई आवेदन थाने में नहीं दिया था और ना ही उसने अपना अंगूठा का निशान ही लगाया था.वह इस केश के बारे में कुछ जानता ही नहीं है.
अब दुलारचंद राम जो इस पूरे ड्रामे के मुख्य किरदार हैं,हम उनकी चर्चा करने जा रहे हैं.इनके अंगूठे के निशान प़र थाने में काण्ड दर्ज हुआ है लेकिन इन्हें कुछ पता तक नहीं है.ये कहते हैं की इन्होनें आजतक किसी प़र कोई मुकदमा दर्ज नहीं कराया है.वे हस्ताक्षर करना जानते हैं लेकिन किसी ने उनके नाम का गलत उपयोग कर अंगूठा लगाकर फर्जी मुकदमा दायर कर दिया है.दुलारचंद राम दिल्ली से तीन-चार बार सहरसा आ चुके हैं और एस.पी,थानेदार से लेकर कोर्ट को शपथ--पत्र दे चुके हैं की उन्हौनें कोई मुकदमा दर्ज नहीं कराया है.FIR वाले आवेदन में उनके अंगूठे का निशान भी नहीं है.वह कहता है की वह काफी परेशान है की आखिर किसने ऐसा खेल खेला है की जिसमें ना केवल दो निर्दोष युवकों को फंसाया गया है बल्कि उसे भी हलकान---परेशान करके रख दिया गया है.
इस काण्ड के दो आरोपियों में से एक राजीव कुमार सिंह के वकील से इस पुरे मामले को समझना चाहा तो सभी बातें परत दर परत खुलती चली गयीं.वकील साहब ने इस काण्ड को चनौती के तौर पर लिया है.खुद दुलारचंद राम के अंगूठे के उन्होनें सादे कागज़ पर तीन--तीन बार निशान लेकर उसका मिलान किया.वकील साहब दिल्ली से फोरेंसिक जांच की तकनीकी शिक्षा भी ले रखे हैं.इनकी मानें तो असल दुलारचंद के अंगूठे के निशान से FIR वाले दुलाचंद के निशान में भारी अंतर है.यानि दोनों निशान अलग---अलग हैं.दुलारचंद और पीड़ितों को लेकर उन्होनें पुलिस की कार्यशैली पर जहां गंभीर सवाल खड़े किये वहीँ कोर्ट की विवशता को भी बारीकी से समझाया.वे बताते हैं पुलिस के द्वारा कोर्ट को जो साक्ष्य उपलब्ध कराये जाते हैं,कोर्ट उन्हीं साक्ष्यों को आधार मानकर सुनवाई करती है और फैसला सुनाती है.उनकी नजर में इस मामले में पुलिस पूरी तरह से दोषी और कटघरे में खड़ी है.
सहरसा एस.पी अजीत सत्यार्थी
इस मामले में हमने सहरसा के एस.पी अजीत सत्यार्थी से जब जबाब-- तलब किया तो पहले तो वे पुलिस की कमियों को छुपाते नजर आये फिर आगे कहा की जब वादी उनके पास आकर और कोर्ट में अपने द्वारा मुकदमा दर्ज नहीं करने का शपथ पत्र दे चुका है तो इसी को आधार बनाते हुए इस काण्ड के आरोपियों को दोषमुक्त करार दिया जाएगा.एस.पी साहब अंगूठे के निशान की जांच कराने के पचड़े में पड़ना नहीं चाहते हैं.अभी पुलिस के बड़े अधिकारी के आदेश के बाद इस काण्ड के दोनों आरोपी बरी और दोषमुक्त तो हो जायेंगे लेकिन आगे की बड़ी जांच को रोकने की वजह से असल में इस काण्ड का रहस्य क्या है इसपर पर्दा पड़ा ही रह जाएगा.पुलिस के बड़े अधिकारियों को इस काण्ड के असल रहस्य पर से भी पर्दा उठाना चाहिए था की आखिर इस खेल को खेलने वाला वोह कौन शातिर है जिसने फर्जी मुकदमा दर्ज कराने का करतब दिखाया है.
                                      पुलिस बेशर्म होती है.पुलिस बेहया और जालिम होती है.यहाँ की पुलिस ने यह पूरी तरह से साबित कर दिखाया है.FIR दर्ज हुआ और तमाम अनुसंधान भी हो गए.आरोपियों के खिलाफ गिरफ्तारी के वारंट भी जारी हो गए.लेकिन इस दौरान पुलिस के द्वारा वादी को तलाश कर घटना की सघन पड़ताल नहीं की गयी.दो निर्दोष आरोपी बने और पुलिस ने उनका गुनाह साबित भी कर दिया.हद की इंतहा देखिये जिसके नाम से मुकदमा दर्ज हुआ वह चीख--चीख कर कह रहा है की उसने कोई मुकदमा दर्ज नहीं कराया.सामने यक्ष प्रश्न खड़ा है की जिसने कोई गुनाह नहीं किया और जिसने करीब तीन साल तक मानसिक यंत्रणा झेली उसके साथ आगे कैसा न्याय होगा और कटघरे में खड़ी पुलिस पर कैसी कारवाई होगी.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें


THANKS FOR YOURS COMMENTS.

*अपनी बात*

अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।