जून 15, 2012

आंगनबाड़ी का खेल

विशेष रिपोर्ट  
चन्दन सिंह : कुछ तुम खाओ और कुछ हम खाएं की तर्ज पर सहरसा जिले में संचालित होने वाले आंगनबाड़ी केंद्र अब पूरी तरह से आनंदबाड़ी केंद्र में तब्दील हो चुके हैं.2005 से इस जिले में 1464 आंगनबाड़ी केंद्र संचालित किये जा रहे हैं लेकिन अभी उन केन्द्रों में से कुछ केंद्र विभिन्य कारणों से बन्द करा दिए गए हैं.विभागीय आंकड़ों के मुताबिक़ फिलवक्त इस जिले में 1440 केंद्र संचालित किये जा रहे हैं.बताना लाजिमी है की अपवाद स्वरुप कुछ केन्द्रों को छोड़ दें तो ज्यादातर आंगनबाड़ी केंद्र खाओ-पकाओ केंद्र बनकर रह गए हैं.
बदहाल आंगनवाडी केंद्र 
इस जिले में बहुत सारे केंद्र कहाँ चल रहे हैं इसका पता किसी को नहीं है.जाहिर तौर पर ऐसे केंद्र महज कागजों पर ही संचालित किये जा रहे हैं.बहुत सारे केंद्र तो ऐसे हैं जो किसी ख़ास मौके पर ही खोले जाते हैं.पूर्वी कोसी तटबंध के भीतर संचालित होने वाले 440 आंगनबाड़ी केंद्र ऐसे केंद्र हैं जिसको देखने--सुनने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है.आसानी से समझा जा सकता है की वहाँ ये केंद्र महज सरकारी योजनाओं को पूरा करने के लिए खोले गए हैं,जो पूरी तरह से लूट के पर्याय हैं.बहुत सारे केंद्र तो ऐसे हैं जो भाड़े के भुगतान नहीं किये जाने की वजह से बन्द पड़े हैं,जिसका खुलासा विभाग नहीं करना चाहता है.
बिना सेविका बिना बच्चे का संचालित आंगनवाडी केंद्र 
शहरी क्षेत्र के लिए पहले 750 रूपये और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 200 रूपये प्रति केंद्र,भाड़े के रूप में दिए जाने का प्रावधान था.लेकिन अप्रैल 2011 से इसमें बढ़ोतरी की गयी है.अब शहरी क्षेत्र के लिए 800 रूपये और ग्रामीण क्षेत्र के लिए 400 रूपये प्रति केंद्र दिए जायेंगे.हद तो यह है की यह राशि बाल विकास परियोजना पदाधिकारी किसी सेविका को आजतक देती ही नहीं थी.अब इसमें थोड़ी सी कडाई हुई है तो कुछ अधिकारी संभले हैं और कुछ केन्द्रों के हालत भी सुधरे हैं.जहां तक सेविका के मानदेय का सवाल है तो उसे तीन हजार और सहायिका को 15 सौ रूपये माहवार दिए जाते हैं.हम तमाम बातों के अलावे सहरसा के एक प्रखंड सत्तर कटैया से भी आपको रूबरू करायेंगे जहां पिछले तीन महीने से पोषाहार की राशि नहीं दी गयी है जिस कारण से इस प्रखंड के सभी 128 केंद्र बन्द पड़े हैं.हद तो इस प्रखंड में यह भी है की यहाँ प़र 10 महीने से सहायिका--सेविकाओं को मानदेय भी नहीं मिले हैं.आप यह जानकार भी हैरान हो जायेंगे की इस जिले में प्रति माह एक हजार रूपये सेविका को अपने बड़े अधिकारियों को बतौर नजराना देना पड़ता है.गरीब बच्चों के लिए चलाई जा रही एक बेहद कल्याणकारी योजना इस जिले में एक तरफ जहां दम तोड़ रही है वहीँ दूसरी तरफ इस योजना के संचालन में जुटे छोटे कर्मी से लेकर बाबू--हाकिम मालामाल हो रहे हैं.माल महाजन का मिर्जा खेले होली.
सरकार की यह एक अति महत्वाकांशी योजना सरजमीन प़र लूट की दरिया बहा रही है.बड़ा सवाल है की लूट की टकसाल बने इन केन्द्रों का क्या होगा.कहते हैं की एक बार खून चाट लेने के बाद चरित्र को बदल पाना मुश्किल है.जिसने ना केवल खाने के सारे रास्ते देखे हों बल्कि खाने-खिलाने की आदत भी डाल ली हो वहाँ कितने और कैसे सुधार हो पायेंगे और यह योजना किस हद तक जरूरतमंद बच्चों के हितार्थ काम कर पाएगी,इसको लेकर कम से कम अभी हम तो कुछ भी कहने से रहे.मंत्री साहिबा के दावे और फतवे प़र तुरंत कुछ कयास लगाना जल्दबाजी होगी.हाँ!आखिर में हम इतना तो जरुर कह सकते हैं की आसान नहीं है डगर पनघट की.

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