विशेष रिपोर्ट

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बदहाल आंगनवाडी केंद्र |
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बिना सेविका बिना बच्चे का संचालित आंगनवाडी केंद्र |
शहरी क्षेत्र के लिए पहले 750 रूपये और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 200 रूपये प्रति केंद्र,भाड़े के रूप में दिए जाने का प्रावधान था.लेकिन अप्रैल 2011 से इसमें बढ़ोतरी की गयी है.अब शहरी क्षेत्र के लिए 800 रूपये और ग्रामीण क्षेत्र के लिए 400 रूपये प्रति केंद्र दिए जायेंगे.हद तो यह है की यह राशि बाल विकास परियोजना पदाधिकारी किसी सेविका को आजतक देती ही नहीं थी.अब इसमें थोड़ी सी कडाई हुई है तो कुछ अधिकारी संभले हैं और कुछ केन्द्रों के हालत भी सुधरे हैं.जहां तक सेविका के मानदेय का सवाल है तो उसे तीन हजार और सहायिका को 15 सौ रूपये माहवार दिए जाते हैं.हम तमाम बातों के अलावे सहरसा के एक प्रखंड सत्तर कटैया से भी आपको रूबरू करायेंगे जहां पिछले तीन महीने से पोषाहार की राशि नहीं दी गयी है जिस कारण से इस प्रखंड के सभी 128 केंद्र बन्द पड़े हैं.हद तो इस प्रखंड में यह भी है की यहाँ प़र 10 महीने से सहायिका--सेविकाओं को मानदेय भी नहीं मिले हैं.आप यह जानकार भी हैरान हो जायेंगे की इस जिले में प्रति माह एक हजार रूपये सेविका को अपने बड़े अधिकारियों को बतौर नजराना देना पड़ता है.गरीब बच्चों के लिए चलाई जा रही एक बेहद कल्याणकारी योजना इस जिले में एक तरफ जहां दम तोड़ रही है वहीँ दूसरी तरफ इस योजना के संचालन में जुटे छोटे कर्मी से लेकर बाबू--हाकिम मालामाल हो रहे हैं.माल महाजन का मिर्जा खेले होली.
सरकार की यह एक अति महत्वाकांशी योजना सरजमीन प़र लूट की दरिया बहा रही है.बड़ा सवाल है की लूट की टकसाल बने इन केन्द्रों का क्या होगा.कहते हैं की एक बार खून चाट लेने के बाद चरित्र को बदल पाना मुश्किल है.जिसने ना केवल खाने के सारे रास्ते देखे हों बल्कि खाने-खिलाने की आदत भी डाल ली हो वहाँ कितने और कैसे सुधार हो पायेंगे और यह योजना किस हद तक जरूरतमंद बच्चों के हितार्थ काम कर पाएगी,इसको लेकर कम से कम अभी हम तो कुछ भी कहने से रहे.मंत्री साहिबा के दावे और फतवे प़र तुरंत कुछ कयास लगाना जल्दबाजी होगी.हाँ!आखिर में हम इतना तो जरुर कह सकते हैं की आसान नहीं है डगर पनघट की.
सरकार की यह एक अति महत्वाकांशी योजना सरजमीन प़र लूट की दरिया बहा रही है.बड़ा सवाल है की लूट की टकसाल बने इन केन्द्रों का क्या होगा.कहते हैं की एक बार खून चाट लेने के बाद चरित्र को बदल पाना मुश्किल है.जिसने ना केवल खाने के सारे रास्ते देखे हों बल्कि खाने-खिलाने की आदत भी डाल ली हो वहाँ कितने और कैसे सुधार हो पायेंगे और यह योजना किस हद तक जरूरतमंद बच्चों के हितार्थ काम कर पाएगी,इसको लेकर कम से कम अभी हम तो कुछ भी कहने से रहे.मंत्री साहिबा के दावे और फतवे प़र तुरंत कुछ कयास लगाना जल्दबाजी होगी.हाँ!आखिर में हम इतना तो जरुर कह सकते हैं की आसान नहीं है डगर पनघट की.
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