मार्च 29, 2017

एक ऐतिहासिक पुरुष की गाथा


आपाधापी और जीवन के अंधदौड़ में किवदंती की तरह एक शास्वत जीवन की कहानी

ब्रिटिशकालीन अनमोल विविध पुस्तकें,अन्य विषयों की समकालीन और पौराणिक पुस्तकें बिटिशकालीन सिक्के और पुराने डाक टिकट के  संग्रह से बिखेर रहे हैं नूर
जहां लोग धन संचय में जुटे हैं,वहाँ यह बुजुर्ग ज्ञान संचय की लिख रहे हैं नयी ईबारत
जीवन की आपाधापी और अंधदौड़ में इंसान कोलतार की सड़कों पर रेंगता नजर आता है । जीवन में खुद अपने और अपने स्वजन--परिजन के हितार्थ,दूसरों के हितों का सर कलम करना आज के मौजूं दौर में एक शगल,या यूँ कहें की एक रिवायत बन गयी है ।ख्वाहिशों की खातिर दुनिया एक मंडी का शक्ल अख्तियार कर चुकी है ।यहां अब हर चीज की नहीं बल्कि इंसानियत तक की बोली लगती है ।पुरुष हैवान,तो,नारी वस्तु बनी दिख रही है ।झंझावत में जीवन मूल्य कहीं गुम से हो रहे हैं । 

पटना से मुकेश कुमार सिंह का खास विश्लेषण----
 नैसर्गिक ऊष्मा से लवरेज सांसारिक वृतियों का स्पंदन कहीं देखने को नहीं मिलता है । रिश्तों को ना केवल घुन्न लग रहे हैं बल्कि उसकी गर्माहट खत्म हो रही है ।रिश्तों की मजबूत दीवारें दरक रही हैं और प्यार जैसे कालजयी रिश्ते देह पर सरक कर दम तोड़ रहे हैं ।एक तरह से पुरातन व्यवस्था और पुरातन संस्कृति के मानक और उसकी कसौटी कहीं सिसक--सिसक कर दम तोड़ रही है । जीवन की सार्थकता अब इस बात से है की आपने कितना धन संचय किया और आप आर्थिक रूप से कितना समृद्ध हैं ।ज्ञान संचय की अभीप्सा अब लेश मात्र की रह गयी है ।पढ़ाई का अर्थ नौकरी पाना और सांसारिक संसाधनों को जुटाना भर रह गया है ।
सांस्कृतिक विरासत की सारी वर्जनाएं धराशायी हो चुकी हैं ।लौकिक संसार में लौकिक सम्पन्नता ही जीवन को अर्थवान बना रहा है ।आज का समाज प्रकृति के नियमों के खिलाफ और महज चन्द दुनियावी रिवायतों के दम से चल रहा है ।हम आपको याद दिलाना चाहते हैं की "एक समय अगर किसी गाँव में किसी सज्जन पुरुष की मौत होती थी,तो,पुरे गाँव का चूल्हा बंद रहता था" ।आज पड़ोसी की मौत पर बगलगीर के घर का चूल्हा बन्द नहीं होता ।हद तो इस बात की है की एक रिश्तेदार की मौत पर भी,अब किसी रिश्तेदार के घर का चूल्हा खामोश नहीं होता ।आखिर कहाँ से कहाँ पहुँच गए हैं हम ।
इसी सामाजिक परिवेश में हम आज आपको एक अजीमो खास शख्सियत से मिलवाने जा रहे हैं जिनकी जीवन शैली ना केवल एक नजीर है बल्कि पुरे देश को एक सन्देश भी दे रहा है ।
कमलापति सिंह नाम के पचहत्तर वर्षीय यह बुजुर्ग एक किवदन्ती की तरह बचपन से लेकर अभीतक ऐसे कार्य में जुटे हैं,जो उन्हें ना केवल आम से ख़ास बना रहा है बल्कि उनके जीवंत वृतियों को युवा पीढ़ी के लिए एक नजीर भी बना रहा है ।
कमलापति सिंह बचपन से ही साहित्य प्रेमी थे । बचपन से ही उनका शौक था की वे अपनी जेब खर्च से विभिन्न विषयों की किताबें खरीदते थे और लगन से उसे पढ़ते थे ।
बाद के दिनों में इनका यह शौक इनकी आदत बन गयी और ये विभिन्य तरह की साहित्यिक,आध्यात्मिक,नैतिक, नारी विषयक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक सहित सामाजिक सरोकार से जुड़े विभिन्य विषयों की किताबों को खरीदते और पढ़ते चले गए ।आज इनका घर किसी विराट पुस्तकालय की तरह गुलजार है ।कमलापति सिंह का शौक और शगल यहीं खत्म नहीं हो रहा है ।ये बचपन से आजतक मुगलकालीन,मौर्यकालीन,पाल वंश,सम्राट अशोक कालीन,महाराणप्रताप कालीन,खिलजी सहित अन्य शासकों के काल के सिक्के और ताम पत्र सहित ब्रिटिशकालीन सिक्के जमा कर रखे हैं और जमा कर रहे हैं ।
ब्रिटिशकालीन डाक टिकट, विभिन्य देशों के हिंदुत्व डाक टिकट और आजादी के बाद के डाक टिकट,सिक्के और रूपये का भी इनके पास अकूत संग्रह है ।इन्होंने अपने इन तमाम संग्रहों की बिहार के पटना में आठ बार प्रदर्शनी भी लगाई थी जिसमें इन्हें गोल्ड मैडल देकर नवाजा भी गया ।लेकिन दुःख की बात यह है की जिस नाम और ख्याति के ये हकदार और पात्र हैं,वह इन्हें नहीं मिला ।अपने 31 साल के पत्रकारिता जीवन में हमें इस महान और ओजस्वी हस्ती से मिलने का सौभाग्य मिला ।हम इस महान पुरुष से मिलकर और उनका आशीर्वाद पाकर धन्य हो गए ।यह सौभाग्य मुझे हमारी छोटी बहन पूजा परासर के माध्यम से मिला ।बताना लाजिमी है की पूजा परासर खुद एक बड़ी लेखिका हैं । उनके आलेख का हम वर्षों से कायल रहे हैं ।यह खास मुलाक़ात करवाने के लिए हम अपनी बहन को दिल से शुक्रिया और अशेष आशीर्वाद देते हैं ।कमलापति सिंह भोजपुर जिले के बिमवां गाँव के रहने वाले हैं ।इनकी प्रारम्भिक शिक्षा इनके नाना स्वर्गीय गंगाधर सिंह के गाँव मोहनपुर से हुयी,जो रोहतास जिले में है ।ए.एस. कॉलेज विक्रमगंज, रोहतास से इन्होनें हिंदी विषय से स्नातक की डिग्री ली और 4 दिसंबर 1966 को जीपीओ पटना में क्लर्क की नौकरी ज्वाईन की ।मामूली सी नौकरी के बाद भी मान्यवर का हौसला कभी कम नहीं हुआ ।इनका पुस्तक प्रेम,सिक्के और डाक टिकट संग्रह का जूनून और बढ़ता ही गया । 30 सितम्बर 2003 को ये एपीएम HSG से रिटायर हुए ।
रिटायरमेंट के करीब चौदह वर्ष गुजर जाने के बाद भी ये किसी जवान लड़के की तरह फुर्तीले नजर आते हैं ।75 वर्ष की आयु में भी शुरूआती आग और जूनून बरकरार है ।इन्हें तीन बेटे और एक बेटी है ।इनकी पत्नी मालती देवी का कहना है की उनके पति,अपने शौक में हमेशा तल्लीन रहे लेकिन पारिवारिक जिम्मेवारी निभाने में कभी कोई कटौती नहीं की ।उन्हें गर्व है की उन्हें कमलापति सिंह जैसे पति मिले ।उन्होने अपने पति को बेहद करीब से देखा है ।जवानी के दिनों की लगन,आजतक जस की तस उनमें मौजूद हैं ।वे अपना सारा काम किसी योद्धा की तरह निपटाते रहे हैं ।पुतोहू ब्यूटी सिंह कहती हैं की पापा का यह शौक उनलोगों सहित पुरे परिवार में एक नयी ऊर्जा का अनवरत संचार करता रहता है ।पापा के इस शौक की वजह से घर में हरवक्त पढ़ाई का माहौल बना रहता है ।साथ ही लगता है की पुरातन संस्कृति के आगोश में पूरा परिवार है ।पटना के दीघा स्थित मिथिला कॉलोनी में इनका तीन मंजिला आलिशान मकान है जो इनके तीनों बेटों ने मिलकर बनाया है ।हांलांकि इस मकान में कमलापति सिंह का भी महती योगदान है ।
नीचे के भूतल पर बने कई कमरे आलमारी और ट्रंक से भरे हैं जिसमें लाखों की बहुमूल्य किताबें,सिक्के, ताम पत्र और विश्वभर के हिंदुत्व डाक टिकट धरोहर की तरह रखे हुए हैं ।हमने कमलापति सिंह से करीब दो घण्टे बातचीत की जिसमें हमने उनके अदम्य साहस और शौर्य को जाना ।वाकई यह शख्स कभी बुजुर्ग नहीं हो सकते ।यह सदैव जवान रहेंगे और इनकी गौरवगाथा भी सदैव जवान ही रहेगी ।हमने कमलापति सिंह के यहां खाना भी खाया और कुछ घंटे उनके परिवार के सदस्यों के बीच भी गुजारा ।वाकई जहां शीर्ष से संस्कार टपकते हों,वहाँ की आवोहवा भी बोलती है ।
देश के लिए यह शख्सियत एक धरोहर हैं ।बिहार के महामहिम राज्यपाल रामनाथ कोविन्द और देश के राष्ट्रपति महामहिम प्रणव मुखर्जी तक हम यह संवाद पहुंचाना चाहते है की इस युग पुरोधा को,खास तरीके से सम्मानित किया जाना और नवाजा जाना चाहिए ।हमारे इस आलेख का यह मकसद है की देश के युवा पीढ़ी यह जानें की,देश के अंदर ऐसे महारथी हैं,जो,देश को पुरातन हवा दे रहे हैं ।वाकई आज के विषम समय में कमलापति सिंह,एक अनूठे और अजूबे इंसान हैं ।इस शख्सियत को हमारा सलाम ।कमलापति सिंह से इस खास मुलाक़ात में,हमारे साथ हमारी लेखिका बहन पूजा परासर भी हमारे साथ थीं ।देशवासियों आगे बढ़ो और इस शख्सियत को सही सम्मान दिलाने में अपनी भगीरथ कोशिश का आगाज करो ।यह महान पुरुष गुमनामी के अँधेरे में कहीं खो ना जाए ।इन्हें और इनके कृत्यों को सहेज कर रखने की जरुरत है ।इस ओजस्वी व्यक्तित्व के स्वामी और इस महानव के कृत्यों के विश्लेषण में हमने यह पाया की यह देश की अमिट पूंजी हैं जिन्हें व्यापकता का परिदृश्य देना लाजिमी है ।

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*अपनी बात*

अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।