फ़रवरी 12, 2017

इतिहास को तोड़--मरोड़ कर पेश किये जाते रहने का अब हो रहा खुलासा

एक्सक्लूसिव रिपोर्ट--
इतिहास में कई जानकारियों को गलत तरह से संजोने की हुयी थी साजिश 
कई फिलकारों ने भी किया है इतिहास के साथ छेड़छाड़ 
अब इतिहास को फिर से पटरी पर लाने की हुयी है कवायद तेज 
दिल्ली से मुकेश कुमार सिंह की दो टूक----
बीते कुछ माह पूर्व नामी--गिरामी हस्तियों ने साम्प्रदायिक बातें और अभिव्यक्ति के मसले को लेकर खुद को मिले अवार्ड को लौटाने का बड़ा व्यापक खेल खेला था ।एक तरह से कहे तो पूरा देश उबलने और सुलगने की राह पर चल पड़ा था । हांलांकि किसी तरह मामला शांत हुआ और देश में अमन बदस्तूर कायम रहा ।इसी बीच संजय लीला भंसाली ने रानी पद्मावती को लेकर एक फिल्म की शुरुआत की जिसमें उन्होनें अलाउद्दीन खिलजी के साथ पद्मावती के प्रेम को फ़िल्म में दर्शाने की कोशिश की ।विश्व जानता है की अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मावती को हासिल करने की हर सम्भव कोशिश की लेकिन वह सफल नहीं हो सका । 
महाराजा रतन सिंह की हत्या के बाद उनकी पत्नी पद्मावती ने सैकड़ों नारियों के साथ एक साथ आग के कुंड में कूदकर अपनी ईहलीला खत्म कर ली थी ।जब क्षत्रिय समाज और क्षत्रिय सेना ने भंसाली की पिटाई की तो,उनकी पूरी फ़िल्म की स्क्रिप्ट ही बदल गयी और वे मुम्बई से बयान देने लगे की इतिहास के साथ वे फिल्म में कोई छेड़छाड़ नहीं कर रहे हैं । 
सच यह है की विरोध की वजह से भंसाली ने अपने घुटने टेंके ।भंसाली की बदनीयत पर हम एक बड़ा सवाल और खड़े कर रहे हैं । उनकी फ़िल्म बाजीराव मस्तानी में जिस तरह से बाजीराव के आशिक मिजाज चरित्र को हवा दी गयी है,वह इतिहास का सर कलम करना है ।बाजीराव कितने बड़े योद्धा और बेहतरीन शासक थे,फ़िल्म इस सच्चाई से दर्शकों को रूबरू नहीं करा सकी । भंसाली अपनी सोच से बाजीराव को फ़िल्म में एक आशिक के तौर पर नचाते रहे ।हमारी समझ से इस तरह की फिल्मों का सिर्फ क्षत्रिय समाज को नहीं बल्कि पुरे देश की जनता को विरोध करना चाहिए ।देश के रणबांकुरे,शूरवीर और महापुरुषों को किसी जाति विशेष के दायरे में रखना बिल्कुल गलत है ।ऐसे मसले को लेकर देश भर की जनता को आंदोलित होने की जरुरत है ।
अभी एक इतिहासकार ने अपनी शोध में महाराणा प्रताप को लेकर एक बड़े सच का खुलासा किया है ।इस शोध के सामने आने से कयास यह लगाया जा रहा है कि फ़र्ज़ी सेक्युलरों और वामपंथियों के पेट में तेज दर्द शुरू जाएगा और अवार्ड वापसी गैंग एक बार फिर से अपने अवार्ड वापस करने की होड़ शुरू कर सकते हैं ।
मीडिया और संचार तन्त्र सहित तमाम श्रोतों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक साल 1576 में हुआ राजस्थान के मध्यकालीन इतिहास का सबसे चर्चित हल्दीघाटी युद्ध मुगल सम्राट अकबर ने नहीं बल्कि हिन्दू सम्राट महाराणा प्रताप ने जीता था ।लेकिन तुष्टिकरण के चलते वामपंथियों और कांग्रेसियों ने इतिहास से छेड़छाड़ करके इस युद्ध को अनिर्णायक बताया था ।लेकिन अब मशहूर इतिहासकार डॉ. चन्द्रशेखर शर्मा की ताजा शोध ने इस रहस्य पर से पर्दा हटाते हुए कई तथ्यों को आधार बनाकर,यह साबित कर दिया है की हल्दीघाटी का वह युद्ध महाराणा प्रताप ने जीता था ।
मिली जानकारी के मुताबिक इस शोध को प्रमाण मानकर अब राजस्थान की बीजेपी सरकार इतिहास की किताबों में इस ऐतिहासिक घटना को करीने से ठीक करने जा रही है ।

महाराणा प्रताप ने जीता था ‘हल्दीघाटी’ युद्ध,अब सरकार बदलेगी राजस्थान का इतिहास !
डॉ. शर्मा ने इस गम्भीर विषय पर सिद्दत से शोध किया है और उन्हें इस बात के पुख्ता सबूत मिले हैं कि इस युद्ध में अकबर बुरी तरह से हार गया था और महाराणा प्रताप युद्ध में विजेता बने थे ।बताना लाजिमी है की हाल ही में हुई राजस्थान विश्वविद्यालय सिंडिकेट की बैठक में बीजेपी विधायक और राजस्थान सरकार के प्रतिनिधि मोहनलाल गुप्ता ने हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की विजय का मुद्दा उठाते हुए कॉलेज शिक्षा पाठ्यक्रम में इसका उल्लेख किए जाने की मांग रखी है ।
विश्वविद्यालय के कुलपति पद का अतिरिक्त कार्यभार संभालने वाले संभागीय आयुक्त राजेश्वर सिंह ने बीजेपी विधायक के इन सुझावों को गंभीरता से लेते हुए कहा है कि वो इस युद्ध से जुड़ी सिफारिशों को “हिस्ट्री बोर्ड ऑफ स्टडीज” के पास जांच के लिए भेज रहे हैं ।यानि अब माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रम की तरह जल्द ही कॉलेज पाठ्यक्रम में भी बदलाव किये जाने की संभावना बढ़ी है ।जाहिर तौर पर आने वाले दिनों में अकबर महान की जगह,अब महाराणा प्रताप महान कहलायेंगे ।
हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की जीत के मिले सबूत !
राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय में उदयपुर के मीरा कन्या महाविद्यालय के प्रोफेसर और इतिहासकार डॉक्टर चन्द्रशेखर शर्मा ने अपनी  शोध में महाराणा प्रताप के समकालीन ताम्र पत्रों को आधार बनाकर उन्होंने हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के विजेता होने का दावा किया है । डॉ. शर्मा के अनुसार हल्दीघाटी का ये युद्ध मेवाड़ तथा मुगलों के बीच 18 जून 1576 को हुआ था । तुष्टिकरण के चलते अभी तक इस युद्ध को इतिहास में अनिर्णायक ही बताया जाता रहा । लेकिन वास्तव में महाराणा प्रताप ने इस युद्ध में अकबर के छक्के छुड़ा दिए थे ।डॉ. शर्मा ने अपने शोध से जुड़े सबूत राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय में जमा करा दिए हैं ।
डॉ. शर्मा के मुताबिक़ इस युद्ध के बाद अगले एक साल तक महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के निकट के गांवों की जमीनों के पट्टे ताम्र पत्र के रूप में जारी किए थे ।इन ताम्र पत्रों पर एकलिंगनाथ के दीवान प्रताप के हस्ताक्षर थे ।उस वक़्त केवल एक राजा ही जमीनों के पट्टे जारी कर सकता था ।यानि वह राजा कोई और नहीं बल्कि महाराणा प्रताप ही थे ।
अकबर महान की जगह अब,महराणा प्रताप कहलायेंगे महान !

डॉ. शर्मा के मुताबिक उनकी शोध में सामने आया है कि हल्दीघाटी युद्ध के करारी हार के बाद मुग़ल सम्राट अकबर अपने सेनापति मान सिंह व आसिफ खां से बेहद खफा हुए थे ।उन्होंने दोनों को छह महीने तक दरबार में ना आने की सजा भी दी थी ।यदि मुगल सेना इस युद्ध को अगर जीतती,तो अकबर अपने सबसे बड़े विरोधी महाराणा प्रताप को हराने वालों को दंड देने की जगह पुरस्कृत करते ।बेहद अहम् बात यह है की मेवाड़ के कई अन्य इतिहासकार भी इस शोध को सही बता रहे हैं ।हमारी जानकारी के मुताबिक अब जल्द ही बीजेपी सरकार इतिहास की पुस्तकों को सही करने जा रही है ।जाहिर तौर पर इतिहास को तोड़-मरोड़ कर दिखाई गयी ऐसी कई घटनाओं को अब तथ्यों के आधार पर सही करके,लोगों को उनके गौरवपूर्ण इतिहास से अवगत कराया जाएगा ।
आखिर में हम यह ताल ठोंककर कहते हैं की इतिहास के बहुतेरे सच अभी भी संसय,दुविधा और झूठ के लिहाफ से ढंके हुए हैं ।पूर्ववर्ती केंद्र की सरकारों ने अपने बेशकीमती इतिहास को कभी खंगालने और उसे दुरुस्त करने का तटस्थ प्रयास नहीं किया ।अब सामाजिक जानकारों,चिंतकों और इतिहासकारों को ही यह जिम्मा लेना होगा ।देश की जनता सारे सच को जानना चाहती है ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें


THANKS FOR YOURS COMMENTS.

*अपनी बात*

अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।