मई 05, 2013

सदर अस्पताल में बेशर्मी का लहरा रहा परचम

लाखों के ICU भवन और रोगी परिजन शेड में लटके हैं ताले, लोगों को इससे नहीं मिल रहा है कोई लाभ //// सहरसा टाईम्स के लिए मुकेश कुमार सिंह की  खास रिपोर्ट/////
हमने सदर अस्पताल सहरसा की एक से बढ़कर एक बदरंग और बेशर्मी भरी तस्वीर से लगातार आपको रूबरू कराया है। आज हम इसी सदर अस्पताल की बेशर्मी की दो--अलग--अलग तस्वीर लेकर हाजिर हैं जिसे देखकर आप यह कहने को मजबूर हो जायेंगे की इस अस्पताल में बेशर्मी का परचम लहरा रहा है।दो साल पहले लाखों की लागत से बनकर तैयार हुए ICU भवन में लाखों के कीमती उपस्कर भी रखे हुए हैं लेकिन इस भवन में ताला जड़ा हुआ है।यही नहीं करीब ढाई वर्ष पूर्व बने रोगी परिजन शेड में भी ताला लटका हुआ है जिससे लोगों को इससे कोई लाभ नहीं मिल रहा है।यानि इस अस्पताल के दो महत्वपूर्ण भवन ना केवल सफ़ेद हाथी साबित हो रहे हैं बल्कि इलाके के गरीब-गुरबों सहित आमलोगों को मुंह भी चिढा रहे हैं।
सबसे पहले हम आपको वर्ष 2011 में 34.11 लाख रूपये खर्च करके बनाए गए ICU भवन का नजारा करा रहे हैं।देखिये इस आलिशान भवन को।ना केवल इसके मुख्य द्वार बल्कि इसके तमाम कक्षों में ताले जड़े हुए हैं।आप यह जानकार हैरान हो जायेंगे की इस भवन के अन्दर लाखों मूल्य के कीमती स्वास्थ्य उपस्कर भी रखे हुए हैं। इसमें से जहांतक हमारा कैमरा पहुँच सका वहाँ के कुछ सामान को भी हम आपको दिखा रहे हैं।अब इस बदइन्तजामी को कौन सा नाम दें। यह महज लापरवाही भर नहीं बल्कि आम जनता के साथ क्रूर मजाक और अपराध है।आमलोग इस भवन को लेकर बड़े साफ़ लहजे में कह रहे हैं की लाखों खर्च करके इस भवन का निर्माण तो करा लिया गया लेकिन यह आमलोगों के लिए पूरी तरह से बेजा साबित हो रहा है।इस भवन में बंद ताले को किसी ने कभी खुलते नहीं देखा है।
सहरसा टाईम्स ने इस गंभीर मसले को लेकर सहरसा के सिविल सर्जन सह चीफ मेडिकल ऑफिसर भोला नाथ झा से जबाब-तलब किया।हाकिम बेशर्मी से अपनी लापरवाही पर पर्दा डालते हुए कह रहे हैं की एक मशीन इन्सटॉल नहीं हुआ है। सम्बंधित कंपनी को उन्होनें पत्र लिखा है,जल्द ही उसे इन्सटॉल करा लिया जाएगा। उसके बाद मरीजों को यहाँ पर अनवरत सेवा मिलेगी। लोग चीख---चीखकर कह रहे हैं की शेड का कभी भी ताला नहीं खुलता है लेकिन स्वास्थ्य विभाग के हाकिम सिविल सर्जन सह चीफ मेडिकल ऑफिसर भोला नाथ झा की निर्लजता पराकाष्ठा पर है।उनकी मानें तो शेड के ताले न केवल  रोज खुलते हैं बल्कि मरीज के परिजन उसका जमकर उपयोग भी करते हैं।सहरसा टाईम्स ने जब अपने सवाल में तल्खी भरी तो साहब छुपाते--छुपाते भी आखिर थोड़ा सच बोल ही गए।उन्होनें कहा की दो--तीन दिनों से वे पटना में थे,हो सकता है की इस दौरान शेड में ताले लगे हुए हों।वे दिखवा लेते हैं।
अब बेशर्मी की दूसरी तस्वीर देखिये।यह है रोगी परिजन शेड।इस शेड में भी ताले जड़े हुए हैं।देखिये मरीज के जिन परिजनों को इस शेड के भीतर होना चाहिए वे अपनी सवारी ठेले पर या फिर इस शेड के बरामदे पर अपना समय काट रहे हैं।नवम्बर 2011 में 13.48 लाख की लागत से बनकर तैयार हुए इस शेड का उपयोग भी आमलोग आजतक नहीं कर पाए हैं।कई मरीज के परिजन यहाँ हैं जो बता रहे हैं की वे बीते दस दिनों से अपने मरीज को लेकर इस अस्पताल में हैं लेकिन उन्होनें इस शेड का ताला कभी भी खुलते हुए नहीं देखा है।मज़बूरी में वे लोग कहीं भी किसी तरह से बैठ और लेटकर यहाँ अपना समय बिता रहे हैं।
सदर अस्पताल की बेशर्मी किस हद की है इस पर हमारे पास शब्द नहीं है जो हम बयां करें।आखिर में हम इतना जरुर कहेंगे की "एक जगह हो तो बताएं की दर्द यहाँ होता है,यहाँ तो जिधर दबाईये उधर मवाद ही मवाद है"।

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