लाखों के ICU भवन और रोगी परिजन
शेड में लटके हैं ताले, लोगों को इससे नहीं मिल रहा है कोई लाभ //// सहरसा टाईम्स के लिए मुकेश कुमार सिंह की खास रिपोर्ट/////


सहरसा टाईम्स ने इस गंभीर मसले को लेकर सहरसा के सिविल सर्जन सह चीफ
मेडिकल ऑफिसर भोला नाथ झा से जबाब-तलब किया।हाकिम बेशर्मी से अपनी लापरवाही
पर पर्दा डालते हुए कह रहे हैं की एक मशीन इन्सटॉल नहीं हुआ है। सम्बंधित
कंपनी को उन्होनें पत्र लिखा है,जल्द ही उसे इन्सटॉल करा लिया जाएगा। उसके
बाद मरीजों को यहाँ पर अनवरत सेवा मिलेगी। लोग चीख---चीखकर कह रहे हैं की शेड का कभी भी ताला नहीं खुलता है
लेकिन स्वास्थ्य विभाग के हाकिम सिविल सर्जन सह चीफ मेडिकल ऑफिसर भोला नाथ झा की निर्लजता पराकाष्ठा पर है।उनकी मानें तो
शेड के ताले न केवल रोज खुलते हैं बल्कि मरीज के परिजन उसका जमकर उपयोग भी
करते हैं।सहरसा टाईम्स ने जब अपने सवाल में तल्खी भरी तो साहब
छुपाते--छुपाते भी आखिर थोड़ा सच बोल ही गए।उन्होनें कहा की दो--तीन दिनों
से वे पटना में थे,हो सकता है की इस दौरान शेड में ताले लगे हुए हों।वे
दिखवा लेते हैं।
अब बेशर्मी की दूसरी तस्वीर देखिये।यह है रोगी परिजन शेड।इस शेड
में भी ताले जड़े हुए हैं।देखिये मरीज के जिन परिजनों को इस शेड के भीतर
होना चाहिए वे अपनी सवारी ठेले पर या फिर इस शेड के बरामदे पर अपना समय काट
रहे हैं।नवम्बर 2011 में 13.48 लाख की लागत से बनकर तैयार हुए इस शेड का
उपयोग भी आमलोग आजतक नहीं कर पाए हैं।कई मरीज के परिजन यहाँ हैं जो बता रहे
हैं की वे बीते दस दिनों से अपने मरीज को लेकर इस अस्पताल में हैं लेकिन
उन्होनें इस शेड का ताला कभी भी खुलते हुए नहीं देखा है।मज़बूरी में वे लोग
कहीं भी किसी तरह से बैठ और लेटकर यहाँ अपना समय बिता रहे हैं।
सदर
अस्पताल की बेशर्मी किस हद की है इस पर हमारे पास शब्द नहीं है जो हम बयां
करें।आखिर में हम इतना जरुर कहेंगे की "एक जगह हो तो बताएं की दर्द यहाँ
होता है,यहाँ तो जिधर दबाईये उधर मवाद ही मवाद है"।
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