मई 05, 2013

बिना किताब के कैसे पढ़ें बच्चे

अभीतक बच्चों को नहीं मिली है किताबें
सहरसा टाईम्स: सुशासन के ढोल--नगाड़े के बीच इस जिले में शिक्षा व्यवस्था ना केवल मखौल बना हुआ है बल्कि बच्चों के भविष्य के साथ जमकर और खुलकर खिलवाड़ भी कर रहा है.आप यह जानकार हैरान हो जायेंगे की पढाई के नए सत्र का एक महीना से ज्यादा हो चुका है लेकिन सरकारी स्कूलों में कक्षा एक से लेकर आठ वर्गों के बीच के बच्चों को अभीतक किताबें मयस्सर नहीं हुई हैं.मासूम नौनिहाल बेकिताब स्कूल पहुंचकर बेजा के भविष्य के सतरंगी सपने बुन रहे हैं.बच्चे कहते हैं की किताब के बिना स्कूल में शिक्षक जो भी पढ़ाते हैं वह पढ़कर वे घर लौट जाते हैं.पढाई में उन्हें काफी दिक्कत हो रही है.स्कूल के प्रधानाध्यापक से लेकर अन्य शिक्षक असहाय होकर हाथ खड़े किये हुए बोलते हैं की सरकार और विभाग उन्हें किताबें नहीं दे रहा है तो ऐसे में वे करें तो क्या करें.
सहरसा जिले में 741 प्राथमिक विद्यालय और 509 मध्य विद्यालय हैं. आप यह जानकार हैरान हो जायेंगे की इस जिले के सभी विद्यालयों में अभीतक बच्चों के हाथों में किताबें नहीं पहुंची है.बच्चे स्कूल तो आते हैं लेकिन बिना किताब के.गुरूजी उन्हें जो पढ़ाते हैंवे वही पढ़कर अपने घर लौट जाते हैं.आप समझ सकते हैं की एक तो इन विद्यालयों में कितने दक्ष गुरूजी पढ़ाने के लिए मौजूद होते हैं. अब अगर किताब ना हो तो वे क्या पढ़ा रहे होंगे,समझा जा सकता है.इन स्कूलों के प्रधानाध्यापक और प्रधानाधियापिका भी काफी दुखी हैं और कहती हैं की बच्चे बिना किताब के पढने को मजबूर हैं.उनके बार--बार कहने प़र भी स्कूल को किताबें नहीं मिल रही है. अब उनको जो समझ में आता है वे बच्चों को आकर पढ़ा रहे  हैं.गुरूजी और शिक्षिकाएं दोनों समवेत स्वर में कह रहे हैं की बिना किताब के पढाई मजाक बनकर रह गया है.कक्षा सात और आठ की पढाई में तो उन्हें खासी दिक्कतें आ रही है.
यहाँ शिक्षा मजाक बना हुआ है लेकिन सरकार फिर भी बेशर्मी से बेहतर शिक्षा इंतजामात के दावे कर रही है.खासकर राज्य के मुखिया को अपनी आँखों प़र लगे बेशर्मी भरे सरकारी चश्मे को उतारना होगा,तभी उन्हें शिक्षा इंतजामात की बदरंग और सही तस्वीर दिख सकेगी.पूर्ववर्ती सरकारों से महज तुलना करके अपने चोखा कामों का बखान करना कहीं से भी जायज नहीं है.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें


THANKS FOR YOURS COMMENTS.

*अपनी बात*

अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।