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सहरसा का बदहाल बाढ़ आश्रय स्थल |
दर्द एक जगह हो तो बताऊँ की दर्द यहाँ होता है.इधर तो जहां और जिधर दबाओ उधर मवाद ही मवाद हैं.अपनी सेवा यात्रा के दौरान नीतीश कुमार 13 दिसंबर को उड़न खटोला पर बैठकर सोनवर्षा राज प्रखंड के मलौधा गाँव गए जहां 80 लाख से अधिक की राशि खर्च करके बन रहे बाढ़ आश्रय स्थल का निरीक्षण किया.इस तरह के बाढ़ आश्रय स्थल का निर्माण करोड़ों खर्च करके जिले के कुल दस प्रखंडों में से आठ प्रखंडों के कई जगहों पर किये जा रहे हैं.बाढ़ आश्रय स्थल में पशु शरण स्थल को भी जोड़कर बनाया जा रहा है.जाहिर तौर पर बाढ़ आपदा के समय इंसानी जानों के साथ--साथ जानवरों की जिन्दगी को भी यहाँ रखकर बचाने की कोशिश की जायेगी.हमें इन निर्माणों को लेकर काफी ख़ुशी है और हम इसपर कोई सवाल खड़ा करना नहीं चाहते लेकिन हम सहरसा में बने उन तीन आश्रय स्थलों को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं जो कुसहा त्रासदी के बाद लाखों खर्च करके बनाए गए थे और बिना इस्तेमाल किये ही वे आज बर्बाद होकर हुक्मरानों को मुंह चिढ़ा रहे हैं.हम यहाँ जानना चाहते हैं की नए निर्माण को नीतीश ने देखने की जरुरत समझी लेकिन लाखों की इस बर्बादी को देखना आखिर उन्होनें क्यों मुनासिब नहीं समझा.

सहरसा के कुल दस प्रखंडों में से आठ प्रखंडों में कई स्थानों पर बाढ़ आश्रय स्थल के निर्माण कराये जा रहे हैं.एक बाढ़ आश्रय स्थल पर कम से कम 65 लाख और अधिकतम करीब डेढ़ करोड़ रूपये खर्च किये जा रहे हैं.नवहट्टा प्रखंड में सबसे अधिक 10 जगहों पर,बनमा इटहरी में 2,सलखुआ में 4,महिषी में 5,सिमरी बख्तियारपुर में 4,सोनवर्षा राज में 3,पतरघट में 1 और सौर बाजार प्रखंड में 4 बाढ़ आश्रय स्थल के निर्माण कराये जा रहे हैं.अब हम आपको कुछ और जानकारी देना चाहते हैं.महिषी प्रखंड के तेलवा गाँव में 1 करोड़ 40 लाख 85 हजार और झाड़ा गाँव में 1 करोड़ 34 लाख 72 हजार खर्च करके बाढ़ आश्रय स्थल बनाए जा रहे हैं.नवहट्टा प्रखंड के बरियाही गाँव में 1 करोड़ 09 लाख 82 हजार और रायपुर गाँव में 1 करोड़ 2 लाख 48 हजार खर्च करके बाढ़ आश्रय स्थल बना रहे हैं.सलखुआ प्रखंड के अलानी गाँव में 1 करोड़ 35 लाख 12 हजार खर्च करके बाढ़ आश्रय स्थल का निर्माण कराया जा रहा है.अब एक बड़ी बात की आपको जानकारी आपको दूँ.सलखुआ प्रखंड के चानन गाँव में बाढ़ आश्रय स्थल के निर्माण के लिए सम्बंधित विभाग के इंजीनियर ने 42 लाख 91 हजार रूपये की प्राक्कलित राशि दी लेकिन जिला प्रशासन की दिलेरी देखिये की उन्होनें इस राशि को बढ़ाकर 89 लाख 44 हजार करके स्वीकृति दी.
अब सहरसा की उन तीन जगहों के बारे में बताऊँ जहां करीब डेढ़ करोड़ की सरकारी राशि का बेजा दुरूपयोग हुआ है.कुसहा त्रासदी के बाद बाढ़ पीड़ितों को शरण देने के लिए सहरसा के बैजनाथपुर और जिला मुख्यालय की दो जगह कोसी प्रोजेक्ट और पटेल मैदान में डेढ़ करोड़ से ज्यादा खर्च करके एक साथ तीनों जगहों पर बाढ़ आश्रय स्थल के निर्माण कराये गए थे.लेकिन विडम्बना देखिये की उस आश्रय स्थल में आजतक एक भी पीड़ित आकर शरण नहीं ले सके और ये तीनों आश्रय स्थल पूरी तरह से बर्बाद हो गए.क्षेत्र के लोग या फिर विभागीय लोग यहाँ के चदरे और खम्भे तक नोंच के ले जा चुके हैं.अब इस जगह को स्थानीय लोग मवेशी बाँधने के काम में लाते हैं.यह जगह अपनी बदहाली के लिए आखिर किसे कोसे.
जाहिर तौर पर यह बाढ़ आश्रय स्थल के दो चेहरे हैं जो व्यवस्था से एक साथ कई सवाल कर रहे हैं.क्या नीतीश कुमार को अपनी सेवा यात्रा के दौरान इन जगहों पर नहीं जाना चाहिए था.आखिर इसकी ऐसी दुर्दशा क्यों,इसकी जबाबदेही कौन लेगा.सरकारी धन के बेजा दुरूपयोग की आखिर किसने इजाजत दी.सरकारी ज़मीन को कब तक ये बर्बाद शेड घेर कर रखेंगे.क्या आगे इन जमीनों का कोई सदुपयोग होग....
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