कृष्ण मोहन सोनी की रिपोर्ट:- कोसी ही नहीं बल्कि पुरे राज्यों के लिए कभी पर्यटकों के लिए आकर्षण
का केंद्र था सहरसा का मतस्यगंधा झील । जहाँ पड़ोशी देश नेपाल से लेकर देश
के अन्य कई राज्यों से आये पर्यटकों की चहल कदमी व सुन्दर सुसज्जित रंग
बिरंगे प्राकृतिक फूलो की खुशबुओं से लोगो को अपनी ओर खींच लेने की क्षमता
थी. पार्को ओर झीलों में बने परासर मुनि की बाँहों में सत्यवती ओर छोटे नन्हे बालक वेद व्यास की भव्य मूर्तियां चौसठयोगिनि रक्तकालि मंदिर में होते पूजा अर्चना भजनों से गुंजायमान
इस परिसर में महाभारत काल की कथा और भारतीय संस्कृति व सभ्यताए जहाँ नजर
आती थी वंही कुछ देर ही सही आने वाले पर्यटकों के लिए हजारो वर्ष पुरानी
कहानी को अक्षुण्ण बनाये रखने लिए प्रेरणा देता था. यंहा आये सभी भारतीय
सभ्य संस्कृती ओर लोक आस्था देव मुनि आदि की कथाओं को सहेजने और अपने जिगर
में रखने के साथ मनोरंजन कर आनन्द का लुफ्त उठा कर जाते थे.
नव वर्ष २०१५
पर उमड़ी हजारों की भीड़ और परिसर में फैले गंदगियों से स्पष्ट होता है की
कोसीवासियो का एकलौता पर्यटन स्थल का केंद्र गंदगियों, दुर्गन्ध एवं कई
बिमारिओं का केन्द्र बन गया है। फूलों की खुशबू अब तो नहीं आती लेकिन
मलमूत्र के गंध से वहाँ खड़ा रहना मुशकिल हो गया है.
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