जनवरी 01, 2015

मत्स्यगंधा का दर्द

कृष्ण मोहन सोनी की रिपोर्ट:-  कोसी ही नहीं बल्कि पुरे राज्यों  के लिए कभी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र था सहरसा का मतस्यगंधा झील । जहाँ पड़ोशी  देश नेपाल से लेकर देश के अन्य कई राज्यों से आये पर्यटकों की चहल कदमी व सुन्दर सुसज्जित रंग बिरंगे प्राकृतिक फूलो की खुशबुओं से लोगो को अपनी ओर खींच लेने की क्षमता थी. पार्को ओर झीलों में बने परासर मुनि की बाँहों में सत्यवती ओर छोटे नन्हे बालक वेद व्यास की भव्य मूर्तियां चौसठयोगिनि रक्तकालि मंदिर में होते पूजा अर्चना  भजनों से गुंजायमान  इस परिसर में महाभारत काल की कथा और भारतीय संस्कृति व सभ्यताए  जहाँ नजर आती थी वंही कुछ देर ही  सही  आने वाले पर्यटकों के लिए हजारो वर्ष पुरानी कहानी को अक्षुण्ण बनाये रखने  लिए प्रेरणा देता था. यंहा आये सभी भारतीय सभ्य संस्कृती ओर लोक आस्था देव मुनि आदि की कथाओं को सहेजने और अपने जिगर में रखने के साथ मनोरंजन कर आनन्द का लुफ्त उठा कर जाते थे. 
सुन्दर सुन्दर आकृतिओं से सजा मत्स्यगंधा जिनकी कुछ वर्ष बितने के साथ ही पुरानी शमशान घाट जहाँ कभी इस स्थान पर मुर्दा घर और मरणोपरांत मानवों का कंकाल ही शेष रहा करता था की और समाहित हो भूल गया की हम कभी करोड़ो की लागत से सुसज्जित हो कोशी की इस सहरसा की धरती पर स्वर्ग सा स्थापित हुआ था आज यहाँ आये पर्यटकों की भीड़ मायुश चेहरे चिन्तित हो आपने घर की ओर जाते हैं।  एक प्रशन यहाँ की दुर्दशा उजड़े फूलो की बाग़ और जीर्णशीर्ण हो चुके कला कृतियों को देख कहीं न कहीं स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधिओं से लेकर सरकार की उदासीनता को सामने ला  खड़ा  करता है.
नव वर्ष २०१५ पर उमड़ी हजारों की भीड़ और परिसर में फैले गंदगियों से स्पष्ट होता है की कोसीवासियो का एकलौता पर्यटन स्थल का केंद्र  गंदगियों, दुर्गन्ध एवं कई बिमारिओं का  केन्द्र  बन गया है।  फूलों की खुशबू अब तो नहीं आती लेकिन मलमूत्र के गंध से वहाँ खड़ा रहना मुशकिल  हो गया है.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें


THANKS FOR YOURS COMMENTS.

*अपनी बात*

अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।