जनवरी 26, 2013

अस्पताल का एक और बेशर्म सच

मुकेश कुमार सिंह :  कोसी के PMCH कहे जाने वाले सदर अस्पताल सहरसा में गरीब मरीजों के साथ इनदिनों खुलकर खिलवाड़ हो रहा है.दूर--दराज इलाके से अपनी गाढ़ी कमाई खर्च करके मुफ्त चिकित्सा के प्रलोभन में गरीब मरीज इस अस्पताल में आते तो हैं लेकिन उनका इलाज नहीं हो पाता है.सुबह आठ बजे से ही अपना रजिस्ट्रेशन करवाकर घंटों चिकित्सक के आने की बाट जोहना और फिर बिना इलाज कराये ही लौट जाना इनकी नियति बन गयी है.
इस अस्पताल का OPD आठ बजे से दोपहर के बारह बजे तक और शाम चार बजे से छह बजे तक चलता है.लेकिन सहरसा टाइम्स  आज खुलासा करने जा रहा है की ग्यारह बजे तक मरीज यत्र--तत्र पड़े हैं लेकिन डॉक्टर साहब नहीं आये हैं.यानि यहाँ प़र मरीजों के रजिस्ट्रेशन में जितनी तेजी दिखाई जाती है उतना गंभीर इन मरीजों के इलाज के लिए यहाँ प़र कोई नहीं है.हद की इंतहा है की रोजाना पांच--छह सौ से ज्यादा मरीजों के यहाँ रजिस्ट्रेशन होते हैं लेकिन मरीजों का इलाज पूरी तरह से नदारद है अगर किसी मरीज का इलाज हुआ तो उसे यहाँ पर दवा मिलनी मुश्किल है.आलम यह है की गरीब मरीज बाहर से दवा खरीदने को मजबूर हैं.सबसे खास बात तो यह है की अस्पताल परिसर में ही एक प्राईवेट दवा दूकान भी वर्षों से अवस्थित है जहां से मरीज दवा खरीद रहे हैं.
देखिये यह है सदर अस्पताल का OPD.दूर--दराज इलाके से आये गरीब मरीजों का यहाँ प़र तांता लगा हुआ है.सुबह आठ बजे से दिन के बारह बजे तक मरीजों को विभिन्य विभागों के डॉक्टर के द्वारा यहाँ प़र देखने का प्रावधान है.दिन के दस बजे सहरसा टाइम्स  यहाँ पहुँचता है तो यहाँ का आलम ही कुछ और है.यहाँ के ज्यादातर विभाग या तो बन्द पड़े हैं,या जो खुले हुए हैं तो उस विभाग में डॉक्टर ही नहीं हैं.
डॉक्टर साहब की खाली कुर्सी बस मरीजों को मुंह चिढा रही है.लेकिन इससे इतर यहाँ प़र मरीजों का धड़ाधड़ रजिस्ट्रेशन हो रहा है.सुबह आठ बजे से ही यहाँ प़र मरीजों की भीड़ जमा है लेकिन किसी भी मरीज का यहाँ प़र इलाज नहीं हो रहा है.सहरसा टाइम्स  यहाँ प़र ग्यारह बजे तक मौजूद रहा लेकिन इस दौरान एक भी डॉक्टर यहाँ नहीं आये और जाहिर सी बात है की किसी भी मरीज का इलाज नहीं हुआ.मरीज और उनके परिजन यहाँ बस त्राहिमाम कर रहे हैं.हद बात तो यह है की कई मरीज पिछले कई दिनों से यहाँ आ रहे हैं।उन्होनें पुर्जा भी कटा रखा है लेकिन उनका यहाँ पर इलाज नहीं हो रहा है।दिलीप कुमार,कमल किशोर पोद्दार,भूषण साह,कंचनदेवी,रेखा देवी जैसे कई मरीज के परिजन हैं जो अपनी व्यथा सूना रहे हैं. 
 ग्यारह बजे तक डॉक्टर साहब का कोई अता--पता नहीं है लेकिन मरीजों का रजिस्ट्रेशन यहाँ प़र धड़ाधड़ हो रहे हैं.दो स्वास्थ्यकर्मी बड़ी तन्मयता से दो रूपये लेकर रजिस्ट्रेशन करने में जुटे हुए हैं.पूछने प़र ये कहते हैं की इनका काम बस रजिस्ट्रेशन करना है.बहुत बातें अस्पताल के उपाधीक्षक ही बता पायेंगे.हमने इनको बहुत कुरेदा तो इनका कहना हुआ की डॉक्टर साहब जरुर आयेंगे और मरीजों को जरुर देखेंगे भी.अब डॉक्टर साहब पर निर्भर है की वे कब आयेंगे और कितने मरीजों को देख पायेंगे.
अब ज़रा इस तस्वीर को देखिये.अस्पताल परिसर में वर्षों से चलने वाला यह प्राईवेट दवाखाना है.इस अस्पताल में आने वाले मरीजों को अक्सर इसी दूकान से दवा खरीदनी पड़ती है.एक तरफ सरकार कहती है की अस्पताल में दवा का अकूत भण्डार है जहां गरीब मरीजों को मुफ्त में दवा मिलेगी लेकिन यहाँ आकर गरीब मरीज ठगे जा रहे हैं.मरीज के परिजन खुलकर बता रहे हैं की वे प्राईवेट से दवा खरीदने को विवश हैं.मरीज के परिजन तो यह भी कह रहे हैं की यहाँ के डॉक्टर खुद उन्हें अपने क्लिनिक पर यह कहकर बुलाते हैं की यहाँ बेहतर इंतजाम नहीं है,आप मरीज को लेकर हमारी क्लिनिक पर चलिए.जहांतक दवा दुकानदार का सवाल है तो उसका कहना है की जो आवश्यक दवा अस्पताल में नहीं होती है उसी को लेने के लिए मरीज के परिजन यहाँ आते हैं.
इस अस्पताल में कोसी प्रमंडल के सहरसा,मधेपुरा और सुपौल जिले की अलावे कोसी तटबंध के भीतर सीमावर्ती दरभंगा जिले के लोगों के साथ-साथ नेपाल इलाके से भी मरीज इलाज के लिए आते हैं.
सामजिक कार्यकर्ता प्रवीण  आनंद
इस अस्पताल की दुर्दशा को लेकर हमने समाजसेवी को भी टटोलना चाहा.सामजिक कार्यकर्ता प्रवीण  आनंद कहना है की इस अस्पताल में मरीजों के पुर्जे खूब कटते हैं लेकिन उनका इलाज यहाँ पर नहीं हो पाता है.पुर्जे लेकर लोग इधर--उधर भटकते हुए वापिस लौट जाते हैं.इस अस्पताल से मरीज भाग भी जाते हैं.यहाँ पर डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी की घोर किल्लत है.सरकार विज्ञापन से खुद को न चमकाए बल्कि जमीनी सच से रूबरू होकर समस्या का निदान करे.समाजसेवी इस अस्पताल के साथ--साथ इस विभाग के मंत्री को भी बीमार बता रहे हैं.बाहरी दवा लिखे जाने को लेकर इनका कहना है की कोसी इलाके को ध्यान में रखकर सरकार दवा की खरीददारी ही नहीं करती है.ऐसी दवाएं यहाँ ट्रकों पर लादकर भेजी जाती हैं जिसका यहाँ अधिक जरुरत ही नहीं है.नतीजा यह होता है की एक तरफ जहां ऐसी दवाएं एक्सपायर हो जाती है वहीँ दूसरी तरफ मरीजों को बाहर की दवा खरीदनी पड़ती है.इनके दो अलग--अलग बयान हैं.दोनों को ध्यान से सुन लें.
सिविल सर्जन भोला नाथ झा
हमने इस पुरे मसले को लेकर सहरसा के सिविल सर्जन सह चीफ मेडिकल ऑफिसर भोला नाथ झा से जबाब--तलब किया.इनकी मानें तो मरीजों को देखने में किसी तरह की कोताही नहीं बरती जा रही है.ये बिल्कुल सफ़ेद झूठ बोलकर यह जता रहे हैं की इतने भारी मात्रा में मरीजों के पुर्जे कट रहे हैं जो उनके इलाज किये जाने का प्रमाणपत्र है.अस्पताल परिसर में प्राईवेट दवाखाना को लेकर इनका कहना है पिछले सिविल सर्जन आजाद हिन्द प्रसाद और जिला प्रशासन के संयुक्त प्रयास से वह दवाखाना खोला गया था.वे इसपर कोई टिपण्णी करना चाहते.
सरकार बेहतर स्वास्थ्य इंतजामात की चाहे जितनी डींगें हांक ले लेकिन सरजमीनी सच्चाई कुछ और ही बयां करती है.बड़ा सच है की गरीब सदियों से खेलने और इस्तेमाल की वस्तु बनकर रह गए हैं.हर जगह यही गरीब ठगे और छले जा रहे हैं.सियासत भी इन्हीं गरीबों प़र और हकमारी भी इन्ही गरीबों की.

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