फ़रवरी 17, 2017

क्या है संयम ?

कैसे सम्भव होगा संयम ?

संयम से जहां जीवन शास्वत होता है,
वहीं जीवन की कई अनचाही समस्याओं का निदान भी है संभव 
मुकेश कुमार सिंह की खास आध्यात्मिक पड़ताल----
संयम जीवन की एक बड़ी औषधि है, जो जीवन पथ को सरल,सुगम और जीवन को ओजस्वी बनाता है ।जीवन की आपाधापी और अंधदौड़ में लोग संयम को ना तो समझ पा रहे हैं और ना ही उसके दायरे में खुद को रख पा रहे हैं ।कोलतार और पक्की सड़कों से लेकर गावों की पगडंडियों पर जिंदगी भाग रही है लेकिन संयम कहीं भी नहीं दिख रहा है ।आप कई ऐसे उदाहरण देखेंगे की बड़ी जगह पाकर और धन की समृद्धि से आच्छादित लोग,खुद को दूसरों के भाग्य नियंता समझने लगते हैं ।संयम के बिना अर्जित नाम--शोहरत अधिक शक्तिशाली और दीर्घायु नहीं होते हैं ।
संयम की योजना रात को सोते समय बनानी चाहिए ।जाहिर सी बात है की चारपाई पर पड़ते ही तुरंत नींद किसी को नहीं आ जाती ।कुछ समय सोने में जरूर लगता है ।यह समय सर्वोत्तम होता होता है जिसे संयम की योजना बनाने में लगाना चाहिए ।अपनी शारीरिक,मानसिक,आर्थिक,नैतिक, सामाजिक,पारिवारिक और अन्य शक्तियों और संपदाओं का अनावश्यक रूप से जहाँ अपव्यय हो रहा हो,वहाँ से उसे रोक कर आत्मिक प्रयोजनों में लगाना संयम का उद्देश्य है ।
इंसान को सोते समय दिनभर के कार्यक्रमों पर विचार करना चाहिए कि आज हमारा कितना शरीरबल,कितना बुद्धिबल, कितना नैतिक बल,कितना धन बल जीवन निर्वाह के लौकिक कार्यों में लगा ?क्या इसमें से कुछ समय,श्रम,अवांछित आचरण,कुंठित व्यवहार और धन बचाया जा सकते थे ? यदि बचत हो सकती थी और कुछ अधिक व्यय कर डाला गया तो उसे असंयम का एक चिह्न मानना चाहिए और अगले दिन के लिए ऐसा उपाय सोचना चाहिए कि यह अपव्यय कम होता चले ।पूर्ण रूप से विविध असंयमों को तुरंत छोड़ सकना संभव ना हो तो उन्हें घटाते रहने की कोशिश अवश्य करनी चाहिए ।यह संकल्प जरुरी है की आज की अपेक्षा कल वह असंयम हर सूरत में घटे ही और किसी भी सूरत में बढ़े नहीं ।
दीगर और बेहद अहम् बात है की आहार में अनेक प्रकार के स्वाद वाले व्यंजन ना हों ।नियत समय के अतिरिक्त अन्य समय दृढ़ निश्चय से नहीं खाया जाय ।यह बेहद जरुरी है की विवाहित जीवन में काम सेवन की अवधि और मर्यादा रहे । और उस मर्यादा का ग्राफ निरन्तर लम्बा होता चले, छोटा ना हो ।भोग,तृष्णा,अभिलाषा,दिखावा और विलासिता की चीजें अनवरत घटे,जिससे सादगी बढ़ने की संभावना प्रबल हो सके ।सिनेमा, टीवी,कंप्यूटर,मोबाइल,ताश,शराब,अन्य नशा, सिगरेट--बीड़ी,गुटखा आदि का शौक लग गया हो और यदि वह तुरंत नहीं छूटता हो तो उनकी संख्या एवं अवधि को निरंतर घटाने की महती कोशिश होनी चाहिए । 
अपने घर--परिवार और खुद अपने ऊपर होने वाले खर्च को क्रमश: कम करना चाहिए ।अपनी जागृत ऊर्जा से उपयोग की वस्तुएँ जितनी कम की जा सके उतनी कम करते जाना चाहिए ।धन,संतान,उच्च आकांक्षा और कृत्रिम वाहवाही की तृष्णा को कम करना चाहिए । दाम्पत्य जीवन में अपनी नियत सामाजिक मर्यादा में पूर्ण संतुष्ट होना नितांत जरुरी है ।पर नारी पर ललचाते हुए मन को निग्रहपूर्वक रोकना चाहिए । आवेश,उत्तेजना,शोक,चिंता,भय,क्रोध,लोभ राग-द्वेष,अनुराग--विरह जैसे पतन के गर्त में धकेलने वाले असंयमों को रात्रिकाल के आत्मनिरीक्षण में भली--भाँति परखना चाहिए ।आज किस-किस शत्रु का कितना बाहुल्य रहा और कल उनको नियन्त्रण में रखने के लिए क्या-क्या सावधानी बरती जाए ? इसके लिए भी आत्ममंथन और आत्मचिंतन जरुरी है ।
संयम का सही अर्थ यह है कि आपकी बची हुई शक्तियों को शारीरिक कार्यों और तमाम अभिव्यक्ति से समेटकर आध्यात्मिक कार्यों में लगाया जाए ।जो समय,जो धन,जो बुद्धि और विवेक,जो नैतिकता,जो निर्मलता,जो सरलता और सहजता संयम के द्वारा बचाई गई है उसे सत्कार्य में,परमार्थ में लगाया जाए,तो ही उससे अभीष्ट उद्देश्य की पूर्ति हो सकती है ।निश्चित रूप से संयम बेपटरी हुए आदमजात को ना केवल पटरी पर लाने में समर्थ है बल्कि जीवन की मूल सार्थकता को को भी स्थापित करने का दम--खम उसमें है ।संयम से जीवन का रंग ना कभी फीका पड़ता और ना कभी उतरता है ।संयम जीवन की सबसे सार्थक और सटीक कुंजी है ।

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।