सितंबर 02, 2016

परिस्थितियों से लड़ना जरुरी

परिवार की मजबूती के लिए त्याग भी है जरुरी....
बीणा सिंह (आधी आवादी सोशल ग्रुप से लिया गया आलेख)----- पहले के परिवार और आज के परिवार में भारी बदलाव हुआ है ।दुल्हन के घूंघट गायब हो चुके हैं तो,श्वसुर और जेठ की मर्यादा भी ढ़ीली पड़ी है ।
हमने जब होश सम्भाला था ,तभी एक अनुशासित परिवार और कुछ हद तक समाज को देखा था लेकिन धीरे--धीरे जब बड़ी हुयी तो बहुत सारी भ्रांतियां टूटती गयीं  ।और आज का परिवार और समाज जो हमारे सामने है, उसे कतई आदर्श और मर्यादा के दायरे में नहीं कह सकते । जुबानी जंग तो अब फैसन बन गया है । खासकर महिलायें खुद को स्वावलम्बी बताने की गरज से अपनी मीठी मर्यादा की सीमा को गिरा रही हैं ।महिलाओं को उनकी खास छवि के रूप में जाना जाता रहा है और उनकी एक विशिष्ट पहचान रही है ।हालांकि कोई युग ऐसा नहीं रहा है जिसमें नारी को कुलटा,वेश्या,रखैल फिर नगर वधु की संज्ञा ना दी गयी है ।लेकिन वैसी नारियों का उस वक्त एक सीमित वर्ग था जिसका खात्मा विशष्ट नारी वर्ग चाहती थीं ।
वैसे बदलते वक्त में शिक्षा का स्वरूप बदला और बच्चियां अब दूसरे प्रांत में जाकर शिक्षा पा रही हैं ।लेकिन हमारा इशारा यह है की उन बच्चियों का घर के अंदर ना तो बेहतर परवरिश हुआ है और ना ही उसमें बेहतर संस्कार भरे गए ।बाहर की शिक्षा से सम्भव है की वह ऊँची नौकरी हासिल कर ले लेकिन एक ओजस्वी नारी में वह कतई परिवर्तित नहीं हो सकती है ।
बच्चों के निर्माण में माता--पिता दोनों का योगदान होता है ।घर का वातावरण निर्मल रखें और घर की सारी समस्याओं से बच्चों को अवगत ना होने दें ।बात--बात पर बच्चों के सामने ना उलझें ।अक्सर घर के झगड़े में जुबान बेहद फिसलती है ।और यह बदजुबानी बच्चों के दिल में जगह बना लेती है ।सादगी में भी कयामत की अदा होती है ।अक्सर दूसरों को दिखाने के चक्कर में हम अपने पैसों का भी दुरूपयोग करते हैं ।कम बोलना,मौन रहना और बातों को बर्दास्त करना नारी की अचूक औषधि है ।इससे सम्बल भी मिलता है और पुरुष के अफ़सोस करने की गुंजाईश भी बनती है ।एक दूसरे की आदत में सुधार के लिए मिठास का वातावरण जरुरी है ।विकट से विकट परिस्थितियों से लड़ना सीखिये और त्याग की परिभाषा समझिये और उसको गुनिये ।हमेशा दोषारोपण की प्रवृति से बचिए ।बच्चों को इंसान बनाना है,इसपर ज्यादा चर्चा कीजिए । छोटी--छोटी बातों पर मलाल ना कीजिये ।इस जिंदगी को खुलकर और हंसकर जीईए ।ना जाने कब ऊपर से बुलावा आ जाए ।किसी के लिए मन में दुराव और मैल ना रखिये ।आशावादी बनिए ।ख़ुशी किसी के घर चलकर नहीं आती  है ।ख़ुशी को घर लाना पड़ता है ।

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*अपनी बात*

अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।