
यहाँ गैर--सरकारी स्कूलों से लेकर सरकारी स्कूलों के बच्चों को घर से स्कूल और स्कूल से घर पहुचाने वाले वाहन डीजल और पेट्रोल की जगह धड़ल्ले से गैस से चलाये जा रहे हैं.मासूम बच्चों को पता नहीं है की वे कितनी खतरनाक यात्रा कर रहे हैं.बच्चों के लिए यह यात्रा महज खेल भर है.हद की इंतहा तो यह है की किसी बड़ी दुर्घटना की आशंका से बेखबर ये बच्चे गाड़ी में रखे गैस सिलिंडर प़र बैठकर यात्रा करने से भी परहेज नहीं कर रहे हैं.देखने में यह तस्वीर बच्चों को डरावनी नहीं लग रही हैं लेकिन यह किसी बड़ी अनहोनी को खुला न्योता है.सहरसा में गैर सरकारी स्कूल की बात करें तो इसकी संख्यां पूरे जिले में 120 है.इसी तर्ज का एक सरकारी विद्यालय केन्द्रीय विद्यालय के रूप में भी है.
ऐसा नहीं है की सहरसा टाइम्स सिर्फ तबाही और बर्बादी की ही तस्वीरें दिखाता है. सहरसा टाइम्स तबाही और बर्बादी से पहले की तस्वीरें भी दिखाकर ना केवल जिम्मेवार तंत्र को बल्कि सरकार को भी आगाह और खबरदार करता है की नींद से जागिये बड़ी घटना सिद्दत से दस्तक लगा रही है,उसे घटित होने से रोकिये.उम्मीद है की तंत्र के साथ--साथ सुशासन बाबू को भी सहरसा टाइम्स की यह पहल पसंद आएगी.
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