दिसंबर 21, 2011

ठंढ की आगोश में सहरसा

 कड़ाके की ठंढ झेल रहे उत्तर भारतीय लोगों पर फिलवक्त ठंढ अभी और कहर बरपाने पर आमदा दिख रही है.घने कोहरे और सर्द हवाओं से ठिठुराते-कंपकपाते लोग ऐसे में बस अपने इष्टदेव को याद करने में जुटे हैं.जानलेवा इस ठंढ ने सहरसा के जनजीवन को भी पूरी तरह से चौपट कर डाला है.इसमें कोई शक-शुब्बा नहीं की यहाँ के लोगों के जीवन की रफ़्तार को ठंढ ने ब्रेक लगा दिया है.ठंढ का पारा गिरकर सात सेंटीग्रेट से नीचे जा पहुंचा है.मुश्किल का सामना तो विभिन्य अस्पतालों में पहुँचने वाले मरीज और उनके परिजन कर रहे हैं जिन्हें अस्पताल में कोई पूछने वाला तक नहीं है.अमूमन अस्पताल के बेड बिना मरीज के यूँ ही खाली पड़े हैं.हद की इन्तहा देखिये की बेहिसाब ठंढ के बाद भी सहरसा जिला मुख्यालय से लेकर सुदूर ग्रामीण इलाके में कहीं भी अलाव की व्यवस्था नहीं की गयी है.लेकिन प्रशासन के अधिकारी अपनी आदत के मुताबिक़ अलाव जलाने से लेकर तरह-तरह के दावे करने से बाज नहीं आ रहे हैं.जान की फ़िक्र है इसलिए लोग चाय पी-पीकर या फिर किसी तरह लकड़ी का इंतजाम कर आग सेंक कर अपनी जान की हिफाजत करने में जुटे हैं.
 दोपहर का वक्त है लेकिन कोहरे ने किस तरह से सहरसा को अपनी आगोश में ले रखा है.राह चलते लोग अपने सामर्थ्य के मुताबिक़ उनी कपड़ों में खुद को छुपाकर काम पर जा रहे हैं.जहांतक गरीब तबको से लेकर आमलोगों के लिए अलाव की व्यवस्था का सवाल है तो इस जिले में प्रशासन की तरफ से अभीतक किसी भी जगह पर अलाव की व्यवस्था नहीं की गयी है.लोग खुद से इंतजाम कर अलाव जला रखे हैं जिससे उनकी जान की रक्षा हो रही है.यूँ अपनी आदत से मजबूर जिला प्रशासन के अधिकारी जिला मुख्यालय से लेकर प्रखंड और पंचायत स्तर पर अलाव की व्यवस्था किये जाने के दावे कर रहे हैं.लेकिन यह दावे महज कागजी हैं.आप खुद ही देखिये किस तरह लोग खुद के जलाए अलाव से प्राण रक्षा में जुटे हैं.मछली बेचनेवाला ग्राहक का इन्तजार आग से खुद को सेंक-सेककर कर रहा है.यूँ लोग चाय पीकर भी खुद को गर्म करने में जुटे हैं.
ठंढ से चाय की बिक्री में तेजी
 -जाहिर तौर पर ठंढ ने जीवन के सारे भूगोल और गणित को बिगाड़ कर रख दिया है.जिन्दगी ना केवल थम सी गयी है बल्कि फंस गयी है.लोग कैसे अपनी और अपने परिवार की जान बचा पाएंगे,यह पहाड़ खोदकर दूध निकालने के समान हो गया है.इस साल इस जिले में हमारी जानकारी के मुताबिक़ अभीतक ठंढ से पाँच लोगों की जान जा चुकी है.पूर्वी और पश्चिमी तटबंध या सुदूर इलाके में ठंढ से कितने लोगों की जान अभीतक जा चुकी होंगी,इसकी जानकारी मिलनी भी मुश्किल है.लेकिन प्रशासन इससे भी नहीं जागा है.प्रशासन को दावे की जगह अब आम लोगों की हिफाजत की चिंता करनी चाहिए जो वह नहीं कर रहा है. 

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।