अक्तूबर 15, 2016

संविधान और देश के कानून का कतई नहीं हो रहा सम्मान

इस देश और विभिन्य प्रांतों के नेता हैं देश के सम्मान और विकास के बाधक.....
यह देश चल रहा है भगवान् भरोसे......
देश के आचार्य,स्वामियों सहित मुल्ला और मौलवियों पर नकेल कसना जरुरी .......
बड़बोले नेताओं के मुंह पर जड़ने होंगे ताले.......
खबरिया चैनल,अखबार,सोसल साईट और अन्य संचार माध्यमों को बदलना होगा अपना रवैया .....
देश के नुकसान में संचार माध्यमों का भी हाथ......

मुकेश कुमार सिंह का पूर्वाग्रह से मुक्त होकर सपाट विश्लेषण------ आजादी के इतने दशकों बाद जहां हम खड़े हैं,लग रहा है पांच के नीचे बेईमानी की दलदल है  हमारे पुरखों की तमाम कोशिशों और बलिदानों को मुट्ठीभर लोग पलीता लगा रहे हैं । आजादी के बाद इस देश में सबसे ज्यादा विकास हुआ झूठ, बेईमानी,विश्वासघात,चुगलई,निंदा,नोंचा--नोची,दुराचार, व्याभिचार,पैरवी,पाप,कुकर्म और हर तरह की चरित्रहीनता का ।यह अपसंस्कृति आज पुरे देश में विकसित होकर आज अपनी पुरातन संस्कृति की तर्ज पर लहलहा रही है । 
 देश यूँ तो सदैव कठिन दौर से गुजरा है लेकिन अभी के दौर को हम अपनी नजर से बेहद कठिन और मुसीबतों से सराबोर देख रहे हैं । देश के सर्वोच्च शिक्षण संस्थान जेएनयू और दिल्ली विश्वविद्यालय में पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगते हैं और देश के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के पुतले फूंके जाते हैं ।

हमारे इस आलेख का सीधा और तल्ख़ मकसद है की खबरिया चैनल,अखबार,सोसल साईट और अन्य संचार माध्यमों को अपने रंग--ढंग और तेवर के साथ--साथ अपनी बुरी मानसिकता से सने रवैये को भी बदलना होगा ।देश के नुकसान में संचार माध्यमों का भी बड़ा हाथ है ।मसूद अजहर और हाफिज सईद जैसे आतंकी आकाओं को संचार सेवाओं मसलन टीवी,अख़बार और सोसल साईट में जगह नहीं मिलनी चाहिए ।खबरिया चैनलों पर 

देश के आचार्य,स्वामियों सहित मुल्ला और मौलवियों को बैठाकर डिवेट नहीं कराना चाहिए । इनकी जुबां से आग बरसती है और ये शान्ति के नाम पर बलबे का सन्देश देते दीखते हैं । हम बड़े साफ़ लहजे से विषय की गंभीरता के दायरे में अपने विचार परोस रहे हैं । हमें टीवी,अखबार, पत्रिका,सोसल साईट और अन्य संचार माध्यमों से केवल उन चीजों को सामने लाना चाहिए जिससे हमारे मनोबल को चार चाँद लगे और देश का कैसे भला होगा और इसका रास्ता कैसे तैयार हो ? देश के नेताओं के मामले में यह देश बड़ा अभागा है ।अभी केजरीवाल,संजय निरुपम,आजम खान या फिर दिग्विजय सिंह सरीखे नेताओं के बयान को तवज्जो देने की क्या जरुरत है ।देश के कई नेता कुछ से कुछ बक रहे हैं और उनके बयानों का ना केवल प्रसारण हो रहा है बल्कि वे बयान अखबारों की सुर्खियां भी बन रहे हैं ।
आखिर ये सब क्यों हो रहा है ?इसपर कैसे लगाम लगेगा ?बहुत सारे खबरिया चैनल और अखबारों को विदेशों से भी धन मिलते हैं,जिसकी अपर्याप्त जानकारी हमारे पास है ।पूरी जानकारी इकट्ठी करने में हम जुटे हैं और संचार के काले कारोबार को हम बेपर्दा करेंगे । माननीय सर्वोच्च न्यायालय को अब ऐसे गंभीर मसलों पर स्वतः संज्ञान लेना होगा,वर्ना ये देश डूबता चला जाएगा ।

कुछ वर्ष पूर्व का एक वाकया मुझे याद आ रहा है ।पुणे में शिक्षा पर एक सेमीनार का आयोजन हो रहा था । विभिन्य देशों के शिक्षाविदों के साथ--साथ कुछ चुनिंदा पत्रकार उसमें शिरकत कर रहे थे ।मुझे भी उस सेमीनार में बतौर वक्ता मौक़ा मिला था ।सभी ने अपनी--अपनी बेबाक राय रखी, मैंने भी रखी ।मेरे भाषण पर तालियां भी खूब बजी जिसकी गूंज आजतक मैं महसूसता हूँ ।कार्यक्रम समाप्ति के बाद मैंने तत्काल मित्र बने अमेरिकन शिक्षाविद् से पूछा की अमेरिका इतना छोटा देश है लेकिन विश्व में सबसे ताकतवर देश है ।भारत में सभी कुछ है लेकिन हमलोग इतने पिछड़े क्यों हैं ।
नका जबाब कम में इतना ताकतवर था की लगा ""मेरे पाँव के नीचे की सारी जमीन यक ब यक खिसक गयी""उन्होनें कहा की अमेरिका "डिजर्वेशन" से चलता है और भारत "रिजर्वेशन" से ।उन्होनें इतना तक कहा के भारत के क्रीम तो अमेरिका सहित दूसरे देशों में हैं ।
सच में आजादी के इतने वर्षों बाद भी हम आरक्षण को लेकर चीर--फार और वोट के लिए खूब तिकड़म करते हैं लेकिन आरक्षण का सही लाभ सही समय पर वांछितों तक पहुंचे,आजतक कभी भी इसकी ईमानदार कोशिश नहीं की गयी है ।
मुकेश कुमार सिंह 
खैर,  हमारा विषय संचार तंत्र से जुड़ा हुआ था और एक बार फिर हम उधर रुख कर रहे हैं । दलाल पत्रकारिता की नहीं आज देशभक्ति और देश के उत्थान से जुड़ी पत्रकारिता की जरुरत है । पत्रकारिता की आड़ में बहुतो धन कुबेर हो गए हैं । देश और राज्य हित से बड़ा कोई पूण्य का काम नहीं है ।अब कुछ पूण्य भी कमाओ मेरे अजीजों । एक तो इस देश सहित विभिन्य राज्यों का दुर्भाग्य है की सरकार में भी गिने--चुने लोग ही पढ़े--लिखे हैं ।अब समय आ गया है ।छल--प्रपंच की पत्रकारिता पर लगाम लगाना ही होगा ।पत्रकार मित्रों और मीडिया हॉउस वालों,देश से ऊपर कुछ नहीं होता है ।आप खुद इस बात को समझ जाइए तो बेहतर है,वर्ना जनता और सुप्रीम कोर्ट खुद आपको समझा देगी ।

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।