अगस्त 12, 2016

आखिर अपराधी कैसे हो रहे पायजामे से बाहर ?

आखिर पुलिस का खौफ क्यों हो रहा बेअसर ?
अपराधियों के सॉफ्ट टारगेट हैं डॉक्टर 

डॉक्टर से रंगदारी मांगने से बौखलाए जिले के सभी डॉक्टर्स आईएमए के बैनर तले,गए हड़ताल पर 
एक बार फिर मरीजों की आई शामत
पुलिस के लिए बड़ी चुनौती 
मुकेश कुमार सिंह का विश्लेषण---- यह सच है की आदिम काल से ही अपराध किसी ना किसी रूप में चस्पां है ।वैसे आप महाभारत काल,रामायण काल,या फिर जीसस क्राईस्ट,गौतम बुद्ध,महावीर,सुकरात सहित किसी भी काल को खंगाले,तो, निसंदेह आपको अपराध की मौजूदगी नजर आएगी ।
लेकिन सभ्य समाज में संविधान बनने और समाज को संयमित और अनुशासित रखने के लिए नियम--कानून बनने के बाद यह बड़ी उम्मीद जगी थी की अपराध कम से कम होंगे और लोग अमन की जिंदगी जिएंगे ।पुलिस व्यवस्था का निर्माण भी इसी अमन और शान्ति बहाली की गरज से किया गया था ।लेकिन इतिहास गवाह है की अपराध समय--समय अपना स्वरूप बदलता गया और आज अपराध का क्षेत्र सभी से व्यापक और त्वरित असरदार है । 
आखिर बढ़ते हुए अपराध के लिए कौन--कौन से हालात और कौन--कौन से लोग जिम्मेवार हैं ? हमारी समझ से सियासतदां के तौर--तरीके,कानून के काम करने का तरीका और पुलिस की कार्यशैली अपराध को बेलगाम बनाने और उसे हवा देने में सबसे अधिक जिम्मेवार हैं ।  अभी का मसला है की डॉक्टरों से अपराधी लगातार रंगदारी की मांग कर रहे हैं और नहीं देने की स्थिति में उन्हें जान से मारने की धमकी दे रहे हैं ।वाजिब सी बात है की डॉक्टर समाज बेहद डरा--सहमा हुआ है और सभी किंकर्तव्यविमूढ़ हैं की आखिर वे करें,तो क्या करें ?डॉक्टर ब्रजेश कुमार सिंह को अपराधियों ने एसएमएस के जरिये पच्चीस लाख की रंगदारी मांगी है ।नहीं देने की स्थिति में अपराधी डॉक्टर साहेब के भेजे में बुलेट उतार देंगे ।डॉक्टर समाज इस बाबत सदर थाने में मामला दर्ज करवा चुका है ।और कहने को पुलिस ने तफ्तीश भी शुरू कर दी है ।लेकिन डॉक्टर समाज को सहरसा पुलिस पर तनिक भी भरोसा नहीं रहा और सभी डॉक्टर आईएमए के बैनर तले बीती रात 12 बजे से ही सामूहिक हड़ताल पर चले गए हैं ।
मरता क्या नहीं करता ।डॉक्टर और उनसे जुड़े पेशे के लीग बेहद बेबस और लाचार दिख रहे हैं ।ऐसा नहीं है की पूर्व में डॉक्टरों के अलावे इसी पेशे से सम्बद्ध लोगों से रंगदारी मांगने मामले में पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की हो ।पुलिस ने कई युवकों को अपराधी बताकर जेल भी भेजा है ।लेकिन जेल भेजे गए अपराधी अगर सच में रंगदारी मांगने वाले अपराधी थे,तो,अब वे कौन से लोग हैं जो रंगदारी की मांग कर रहे हैं ?
हम अपने अनुभव और उपलब्ध कई साक्ष्यों के आधार पर यह डंके की चोट पर कह रहे हैं की पुलिस अधिकारी मोटी हो चुकी अपराध की फाईल को हल्का करने की गरज से कई मामलों का पटाक्षेप बेहद गलत तरीके से करती है ।बड़े और संगीन अपराध में जो अपराधी शामिल नहीं हैं,उन्हें भी घसीटकर जेल भेज दिया जाता है और फाइनल चार्जसीट माननीय न्यायालय में समर्पित कर दिया जाता है ।हमारे पाठक यह समझने की कोशिश करें की अगर सही अपराधी सलाखों के पीछे धकेले जा रहे होते,तो,अपराध कम होते और अपराध पर लगाम लगता लेकिन ठीक इसके उलट हो रहा है ।यानि सही अपराधी ना तो दबोचे जा रहे हैं और ना ही जेल भेजे जा रहे हैं ।पुलिस का सूचना तंत्र अपराधियों के सामने बेहद बौना साबित हो रहा है ।अमूमन पुलिस अधिकारी,अपराधियों को ही अपना मुखबिर बनाते हैं जो अक्सर सही सूचना देने की जगह गच्चा दे जाते हैं ।पुलिस अधिकारियों को मानवाधिकार,महिला आयोग सहित कई अन्य आयोग का डर बेहद सताता है जिससे वे परहेज के दायरे में रहकर काम करते हैं ।सही मायने में आज की पुलिस सेवा भाव सिक्त ड्यूटी निभाने की जगह महज नौकरी करती और नौकरी बचाती दिखती है ।
बेलगाम अपराध पर लगाम लगाने के लिए कोरे भाषण और कुछ कठोर कानून बनाने से कुछ नहीं होगा । पुलिस को आज कुछ बंधन से मुक्त करने की जरुरत है ।अपराधियों पर बरबतापूर्ण कार्रवाई के हम पक्षकार नहीं हैं लेकिन दामाद की तरह हो रहे उसके सम्मान को रोकना बेहद जरुरी है ।सभ्य समाज को सुरक्षित रखने और उसके मौलिक संवर्धन के लिए पुलिस सिस्टम को कुछ स्वतंत्रता और कानून में कुछ कठोरता लाने की जरूरत है ।फिरौती के लिए अपहरण और रंगदारी मांगने की कुप्रथा बिहार में एक तरह खत्म हो गयी थी लेकिन इसकी फसल फिर से लहलहा उठी है ।राजनीति के शीर्ष पर बैठे वैसे नेता जो जाति और धर्म का उन्माद फैला कर समाज को नष्ट करने पर तुले हैं,जीवन के अंतिम सच को समझें । एक दिन मौत सभी की आनी है ।छल--प्रपंच,अनीति,कुसोच और दिशाहीन आचरण से शीर्ष पर बैठे लोगों को बचना होगा
अपराध एक सामाजिक समस्या है जिससे निपटने के लिए समाज की राय बेहद जरुरी है ।सिस्टम में सुधार से ही डरे लोगों का ना केवल भरोसा जीता जा सकता है बल्कि अपराध जैसे रोग का सटीक उपचार भी किया जा सकता है ।

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।