अगस्त 06, 2016

सच उकेरने की फितरत है हमारी

सच उकेरने की फितरत है हमारी........

हम टारगेट नहीं करते किसी को ........
गलत करने वाले,पायजामें में रहें,......
नहीं तो नाड़े के खुलने तक हमारी जंग जारी रहेगी........
मौत से डर नहीं,बेशर्म सिस्टम से दिल जलता है ........

मुकेश कुमार सिंह की दो टूक-----
पुलिसिया सिस्टम की जरूरत इसलिए पड़ी की सामाजिक नियम--कायदे,रीति--रिवाज और रिवायत को जंग ना लगे और मानव अपने स्वभाव से किसी नियम को ना तोड़े ।मानव की स्वच्छंदता से किसी को आहत ना होना पड़े ।जब किसी के सम्मान और अधिकार का हनन हो रहा हो तो कानून उसके लिए कवच का काम करे ।पुलिस की असल भूमिका महज अपराध नियंत्रण भर नहीं है ।सामाजिक संतुलन कैसे काबिज रह सके,इसमें भी पुलिस की अहम् भूमिका है ।पहले की पुलिस शपथ को लक्ष्य मानते थी लेकिन अबकी पुलिस के लिए शपथ एक रश्म भर है ।पहले फरियादी और आरोपी दोनों को अलग--अलग सुना जाता था और न्याय का तराजू कांपता नहीं था ।अभी के समय में पुलिस अधिकारी का अनुसंधान से लेकर ज्यादातर काम रसूखदार,नेता,पैसे वाले,दबंग और पैरवी--पहुँच वाले लोग अपने कहे से करवाते हैं । पहले की पुलिस फर्ज निभाती थी और आज की पुलिस नौकरी कर रही है ।
तीन अगस्त को सहरसा सदर थाना में जो हुआ,वह कहीं से भी जायज नहीं है ।एक पीड़ित के साथ फजीहत के साथ दुर्व्यवहार,पुरे पुलिस सिस्टम को कटघरे में खड़ा करता है ।इस मामले के नायक थानेदार संजय सिंह का निलंबन या फिर उन्हें थानेदारी से हटा देना पर्याप्त कार्रवाई नहीं है । बड़ा सवाल यह है की क्या जब दूसरा थानेदार आएगा,तो,वह ऐसी घटना की पुनरावृति नहीं करेगा,इसकी गारंटी कौन लेगा ?सरकार की मंसा साफ़ है की थाना आने में किसी को हिचक ना हो और पीड़ित की पीड़ा को पुलिस अधिकारी ससम्मान सुनें ।दोस्ताना व्यवहार का माहौल थाने में हो ।लेकिन अमूमन ऐसा नहीं होता है ।एक थानेदार का वीडियो कैद हुआ और वह सोसल मीडिया में वायरल हो गया ।लेकिन सच यह है की संजय सिंह से भी ज्यादा सनकी और बिगड़ैल कई पुलिस अधिकारी ऐसे हैं जिनकी आमलोगों के बीच दहशत कायम है लेकिन उनके कुकर्म कैमरे में कैद नहीं हो पा रहे हैं ।जो पकड़ा गया चोर,वर्ना साधू ।संजय सिंह के मामले में यही हुआ है ।
थानेदार की काली करतूत को हमने जायज तरीके से खूब हवा दी,ताकि थानेदार को अपनी गलती का अहसास और अपने कृत्य पर उन्हें अफ़सोस हो । लेकिन अहंकार और दम्भ इंसान को कभी अच्छा सोचने नहीं देता है ।सच स्वीकारना सबके बस की बात भी नहीं है ।इस मामले में भी सच बिल्कुल आईने की तरह साफ़ है लेकिन जांच और सफाई देने का खेल परवान पर है ।
इस काले और बदसूरत खेल का जो भी फलाफल आये लेकिन मुझे डराने और धमकाने की कोशिश हुयी,जो कायरता को मुखर स्पंदन दे रहा है ।मुझे जान से मारने की धमकी दी गयी लेकिन मैंने अभीतक शासन--प्रशसन कहीं भी इसकी शिकायत नहीं की है ।ऐसी धमकी मुझे जिंदगी में कई बार मिल चुकी है और मैं जस का तस मौजूं हूँ ।जिन्हें गिर--गिर कर दिन में सौ बार मरने की आदत है,उन्हें मौत से डर लगता होगा ।मुझे तो एक बार मरना है और हम जमाने से मौत का सिद्दत से इन्तजार कर रहे हैं ।
""थानेदार के खिलाफ मैं कुछ ना लिखूं,नहीं तो मुझे जान से हाथ धोना पड़ सकता है""।यही धमकी मुझे दी गयी थी ।लेकिन मैं कल दिनभर इस मसले पर गंभीर मंथन करता रहा की,मेरे सम्बन्ध किसी भी अधिकारी से महज एक सीमा तक और सिर्फ मधुर रहे हैं ।इस थानेदार से कभी--कभार ही सही लेकिन अच्छी और शालीनता से ही बात हुयी है ।आखिर इस थानेदार के नाम पर धमकी दी गयी है ।""कहीं यह गहरी साजिश तो नहीं""कहीं कुछ और बड़े अधिकारियों ने मिलकर तो यह कारनामा नहीं किया है ?कई सवाल मेरे मन में उमड़--घुमड़ रहे हैं ।आखिर किराए के वे किसके गुर्गे थे,जिसे मैंने पहले कभी नहीं देखा था ।
खैर,ना मैं डरा हुआ हूँ और ना ही सहमा हुआ हूँ ।मैं अपनी मर्जी की करता रहूंगा,चाहे अंजाम जो भी हो ।
इस मामले में,मेरी समझ से थानेदार को सामने आकर अपनी गलती स्वीकार करते हुए अपने विराट व्यक्तित्व का सखनन करना चाहिए ।भूल और गलती किसी से भी हो सकती है लेकिन उसका सुधार अचूक औषधि है ।वैसे इस मामले में बड़े अधिकारी की कार्रवाई जैसी भी हो लेकिन थानेदार का व्यवहार पूरी तरह से गलत था,इसको हम लगातार कहते रहेंगे ।
रही बात हमें जान से मारने की धमकी मिलने की,तो हमें ना तो कोई सरकारी अनुसंधान की दरकार है और ना ही सरकारी सुरक्षा की ।हम आम  जनता के हक़--हकूक के लिए आवाज उठाते थे और आगे भी बेहद मजबूती से उठाते रहेंगे ।अगर जनता के दिल में हम रहते हैं,तो,जनता खुद हमारी हिफाजत करेगी ।वैसे ""जिंदगी तो बेवफा है,एक दिन ठुकराएगी,मौत महबूबा है,अपने साथ लेकर जायेगी '"।

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।