नवंबर 06, 2015

चुनाव में 106 वर्ष की राधा व विकलांग अनिल की जज्बे को सलाम

कृष्ण मोहन सोनी की रिपोर्ट:- इस चुनाव में ऐसे मतदाताओं की तस्वीर को आपके सामने लाये है जिसे हम सहरसा टाइम्स की टीम इनके जज्बे को सलाम करते हैं. शायद आप भी इनके जज्बे को जानेंगे तो आप भी करेंगे इन्हे सलाम. 
हम ले चलते है आपको अंतिम चुनाव में लोकतंत्र की ताकत को मजबूत करने वाले ऐसे मतदाता के पास जिनके अंदर आज भी कायम है और रखते है लोकतंत्र को मजबूत करने की ताकत. 
इनके अंदर की दर्द व दस्ताओँ को सुन आप जरूर एक बार नही बार बार सलाम करने पर होंगे मजबूर.
ये तस्वीर है 106 वर्षीय मसोमात राधा देवी की जो सहरसा विधान सभा क्षेत्र के कहरा स्थित एक मतदान केंद्र पर अपना वोट गिरायी है। इनके इस उम्र में भी लोकतंत्र की ताकत को मजबूत करने की  क्ष्मता व उत्साह  है इनके बुलंद इरादे इतने है कि ये  इस चुनाव में अपना वोट दी है. कहना भी है कि आखिर लोकतंत्र हमसे है इस लोकतंत्र से हम और हमारा समाज राज्य ,व देश का भविष्य जुड़ा है। इनके इरादे मजबूत है मतदान को लेकर वह पूरी तरह सजग व संवेदनशील भी दिखाई दे रही है।इनको चलने फिरने व बोलने में शक्ति नही रही है। सही सही बोल नही पति है अपने घर में बैठी थी तभी इनके सहपाठी ने कहा वोट गिर रहा है आज चुनाव है इतना सुनते ही उत्साहित हो वोट गिराने के लिए तैयार हो गयी  अपने एक बेटे के सहारे बूथ पर आकर अपना मतदान किया. ये बहुत पूछने पर बताती हैं कि जब भी चुनाव आये अपना वोट जरूर देना ताकि हमारे इस वोट से ही लोक तंत्र मजबूत होते है जिसमे हम सबका भविष्य जुड़ा है.
इसी तरह अपने शरीर व पैर से लाचार कहरा निवासी स्वर्गीय लक्ष्मण साह के पुत्र 35 वर्षीय अनिल कुमार साह व उनकी धर्म पत्नी रिंकू देवी की है। अनिल का एक एक्सीडेंट में दोनों पैर ,कमर व हाथ क्ष्ति ग्रस्त हो गया वैसे तो खुद जिंदगी कि नैया खीच पाने में बेवस व लाचार है लेकिन मतदान करने अपनी पत्नी रिंकू के दिए सहारे से अपना मताधिकार का प्रयोग किया।
 हमे भी इनके जज्बे व बुलंद इरादो से एक सीखलेनी है और करनी है हमे भी एक वोट ताकि हम अपने लोकतंत्र को मजबूत बनाने में कामयाब हो सके ऐसे जज्बे को हम सहरसा टाइम्स की टीम सलाम करते हैं।            

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।