अक्टूबर 19, 2015

जब देश गुलाम था तो फरकिया आजाद था .....

देश गुलाम था तो फरकिया आजाद था, देश आजाद हुआ तो फरकिया गुलाम हो गया....गणेश मुखिया 

कृष्णा मोहन सोनी की रिपोर्ट:- सिमरी बख्तियारपुर  विधान सभा से चुनाव मैदान में उतरने के लिए अपना एन. आर. रसीद कटा चुके दो उम्मीदवारों ने अपना नामांकन न देकर सकलोपा के उम्मीदवार बने गणेश मुखिया निषाद को अपने सैकड़ों समर्थको के साथ समर्थन कर दिया है. गणेश मुखिया निषाद सर्वजन कल्याण लोकतांत्रिक पार्टी के उम्मीदवार है. इस बावत गणेश मुखिया निषाद ने बताया की निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान जाने वाले  कलर देवी व लोक संता पार्टी के शिवम चौधरी अपना एन.आर. रसीद कटाये थे, लेकिन वे नामांकन पत्र दाखिल नही किये वे अपना समर्थन मुझे अपना समझ कर कर दिया है. इनके समर्थन से क्षेत्र के लोगो में उत्साह है. जिससे हमारी जीत सुनिश्चित है. उन्होंने कहा कि दोनों सकलोपा के चुनाव चिन्ह नाव को समर्थन कर हमारे पक्ष् में आये है जिनका हम स्वागत करते है. शिवम चौधरी व कलर देवी ने बताया की हम सब क्षेत्र का विकास चाहते है इसलिए चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन हम लोगो ने फैसला लिया एक अच्छे प्रत्याशी को जिताकर भेजे ताकि विकास हो सके इसलिए गणेश मुखिया निषाद को अपना समर्थन किया है. हम सभी एक साथ जनता के बीच जा रहे है जनता में उत्साह भी है.
सकलोपा प्रत्याशी श्री निषाद ने कहा की पुरे क्षेत्र में चाहे होगी जिसकी सरकार उसमे होंगे हम हिस्सेदार, अबकी बार नैया पार नारों से क्षेत्र गूंज रहा है प्रत्याशी श्री निषाद ने कहा की वर्षो से  जनता विकास के लिए कई प्रतिनिधि को जीता कर भेजी है लेकिन किसी ने जनता की समस्याओ पर सोचा तक नही जिससे यह क्षेत्र पिछड़ा रहा है. कोसी तटबंध के अंदर अस्पताल की जरूरत है. 
जब देश गुलाम था तो फरकिया आजाद था और जब देश आजाद हुआ तो फरकिया गुलाम हो गया. इस क्षेत्र से नौजवान रोजगार के लिए पलायन कर रहे है, सड़क पूल व आवागमन की कोई साधन नही है, डेंगराही पुल तक नही बनी जिससे लोगो को सुविधा मिलता, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार समुचित व्यवस्था नही है. किसानो मजदूरो की हालत बत्तर है बीमार मरीजों के लिए अस्पताल हो इन सभी समस्याओ का निदान हम चाहते है. इन्ही मुद्दो पर  हमारी लड़ाई है.   

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।