अप्रैल 23, 2015

खेतों में जला रहे हैं अरमानों की चिता .........

मुकेश कुमार सिंह की कलम से-----गेंहूँ की फसल में दाना नहीं आने की वजह से हलकान--परेशान किसान अपनी खेतों में लगी सैंकड़ों एकड़ फसल में आग लगाने को विवश हैं.एक तरफ बहुतरे ऐसे किसान हैं हैं जो दूसरे की जमीन बटाई करके किसानी कर रहे हैं लेकिन फसल मार खाने के बाद भी जमीन मालिक उनसे तय फसल मांग रहे हैं. जमीन मालिकों के फरमान से परेशान किसान खेतों में लगी फसल में इसलिए आग लगा रहे हैं की उनसे मालिक फसल की मांग ना करें.दूसरी तरफ थोक में ऐसे किसान भी हैं जिनकी फसल मारी गयी लेकिन अब उनकी कटाई के लिए उन्हें मजदूर नहीं मिल रहे हैं.जाहिर तौर पर इन किसानों के अरमानों की चिता खेतों में ही जल रही हैं.
सहरसा में दस प्रखंड हैं और कमो--बेस सभी प्रखंडों में गेंहूँ की फसल इस साल बहुतायत में मार खा चुकी है. जिले में पचपन हजार हेक्टेयर भूमि पर इस साल किसानों ने गेंहूँ की फसल लगाई थी लेकिन फसल ने दगा दे दिया और किसान अपनी फसल में आग लगाने को मजबूर हैं.आज हम सत्तर कटैया प्रखंड के पटौरी पचायत में लगी सैंकड़ों एकड़ गेंहूँ की दानाविहीन फसल की दुर्गति दिखा रहे हैं.देखिये खेतों में किस तरह से किसान फसल में आग लगा रहे हैं.खेत में लगी फसल में आग लगाने वाले दो तरह के किसान हैं.एक बटाईदारी से किसानी कर रहे किसान और दूसरे जमीन के स्वामी वाले किसान.बटाईदारी वाले किसानों का कहना है की वे अपनी फसल में आग इसलिए लगा रहे हैं चूँकि जमीन मालिक उनसे बटाई के बदले तय फसल मांग रहे हैं. इन बटाईदारों का यह भी कहना है की सरकार तो फसल क्षति का मुआवजा जमीन मालिक को दे रही है,ऐसे में उनका क्या होगा.जो मूल किसान हैं उन्हें एक तो फसल मार खाने का गम है दूजा अपनी जमीन पर से फसल हटाने के लिए उन्हें मजदूर नहीं मिल रहे हैं.आखिर में थक--हारकर वे फसल को खेतों में ही जला रहा हैं.
जिला कृषि अधिकारी मेश मंडल
जिला कृषि अधिकारी उमेश मंडल किसानों की इस विपत्ति को स्वीकार कर रहे हैं और कह रहे हैं की किसानों को धैर्य से काम लेना चाहिए.खेत में फसल जलाने से उनकी अगली फसल पर बुरा प्रभाव पडेगा.अधिकारी किसानों को उचित मुआवजा देने के साथ--साथ बटाईदारों की मुश्किल के लिए भी सरकार को अवगत कराकर कोई उचित समाधान निकालने का अलग से भरोसा दिला रहे हैं.
बहरहाल,किसानों की पीड़ा अथाह और स्थिति बेहद दयनीय है. आगे देखना दिलचस्प होगा की सरकार और उसके तंत्र इन लुटे किसानों के जख्मों पर किस तरह से मरहमपट्टी करते है. 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें


THANKS FOR YOURS COMMENTS.

*अपनी बात*

अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।