मार्च 09, 2015

महिला दिवस का काला सच----


मुकेश कुमार सिंह की रिपोर्ट------ केंद्र और राज्य सरकारें महिलाओं को लेकर चाहे जितनी भी घुषणाएं कर ले,लाख दावे कर लें लेकिन जमीनी हकीकत यही है की महिलायें आज भी अपने वजूद और पेट के लिए जंग लड़ रही है. सहरसा टाईम्स आज ऐसी एक्सक्लूसिव तस्वीर लेकर आपके सामने हाजिर हो रहा है जिसे देखकर ना केवल आपकी रूह थर्रा उठेंगी बल्कि आपका सीना भी चाक हो जाएगा.
सदर थाना का बेहद व्यस्त बाजार डी.बी.रोड. 
देखिये महिला दिवस के मौके पर एक मासूम बच्ची पापी पेट के लिए किस तरह से जान जोखिम में डालकर रस्सी पर करतब दिखा रही है.भीड़ की शक्ल में लोग जमा हैं और इस जोखिम भरे करतब का भरपूर लुत्फ़ भी उठा रहे हैं.खेलने और पढ़ने की उंम्र में एक त्रासदी झेलती यह बच्ची अपने करतब के सहारे पुरे सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर रही है.बेटी ऊपर रस्सी पर करतब दिखा रही है और नीचे माँ लक्ष्मीं इस करतब की फ़ीस वसूल रही है.
हमारी समझ से यह नजारा बेहद दुखदायी और महिला दिवस के काले सच को बेनकाब करने वाला है.पूछने पर बच्ची माधुरी कह रही है की वह पेट की खातिर यह करतब दिखा रही है.वह पढ़ना चाहती है लेकिन पापी पेट उसे पढ़ने की इजाजत नहीं देता.सरकार उस जैसे गरीबों के लिए नहीं बल्कि अमीरों के लिए है.बच्ची की माँ नाम से लक्ष्मी है लेकिन उसके जीवन में महज फकीरी है.पूछने पर कहती है की पापी पेट की खातिर वह ऐसा करने को मजबूर है.सरकार उन गरीब--मजबूरों के लिए नहीं है.उसे अपनी बेबसी और इस हालात को लेकर बेहद दुःख है.
तमाशा देखने वाले लोग तमाशे पर तालियां भी बजा रहे हैं और इस करतब शो के एवज कुछ रूपये भी दे रहे हैं.लेकिन महिला दिवस पर ऐसे दृश्य को देखकर इन्हें भी काफी दुःख है और ये शासन---प्रशासन दोनों को सिद्दत से कोसने में जुटे हैं.सुनिए इनको.
जाहिर तौर पर महिला दिवस पर आज महिलाओं के उत्थान,उनकी समृद्धि और उनकी बेहतरी को लेकर जमकर कसीदे कढ़े जाएंगे लेकिन बड़ा सच यह है की महिलायें और बच्चियां आज भी अपने हक और वजूद लिए संघर्ष कर रही हैं.

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।