अप्रैल 10, 2013

शिष्या को ले भागे गुरूजी

शिक्षा दान की जगह प्रेम के पाठ पढ़ाने वाले दिलफेंफ गुरूजी ले भागे नाबालिग शिष्या को......
मुकेश कुमार सिंह: अगर आप अपनी मासूम बच्ची को किसी प्राईवेट गुरूजी से ट्यूशन पढवा रहे हैं, तो सावधान हो जाईये।शिक्षा दान की जगह ऐसे गुरूजी पहले तो प्रेम के पाठ पढ़ाते हैं फिर मासूम बच्ची को बहला--फुसलाकर कहीं लेकर चम्पत हो जाते हैं।ऐसी ही दास्तान लेकर के आज हम हाजिर हुए हैं।मामला सहरसा सदर थाना के गौतम नगर मोहल्ले की है।बीते 2 अप्रैल को एक दिलफेंफ गुरूजी इस साल मैट्रिक की परीक्षा देने वाली अपनी  नाबालिग शिष्या को ले भागे।पिछले दो साल से लड़की के घर जाकर ट्यूशन पढ़ाने वाले गुरूजी की इस नापाक हरकत से जहां लड़की के परिजन सदमें में हैं वहीँ पुरे इलाके के लोग भी हतप्रभ और सकते में हैं।
इधर लड़की के परिजन के आवेदन पर सदर थाना में काण्ड दर्ज कर पुलिस लड़की की बरामदगी में जुटी हुयी है।तमाम गतिविधि के बीच कयासों बाजार गर्म है की अविवाहित गुरूजी ने शादी की नीयत से लड़की को अगवा किया है।जाहिर तौर पर यह वाकया गुरु--शिष्य की पौराणिक विशिष्ट रिश्ते की धज्जियां उड़ा रहा है।इस साल मैट्रिक की परीक्षा देने वाली महज 16 साल की लक्ष्मी अपने गुरूजी राजेंद्र साह के साथ बीते 2 अप्रैल से फरार है।सदर थाना के गौतम नगर में रहने वाली लक्ष्मी गौतम नगर में ही भाड़े के मकान में रहकर ट्यूशन पढ़ाने वाले राजेन्द्र साह से  पिछले दो साल से ट्यूशन पढ़ती थी।बताना लाजिमी है की राजेन्द्र साह लक्ष्मी को विभिन्य विषयों की शिक्षा देने की जगह उसे प्रेम का पाठ पढ़ाते थे।शिक्षा लेने और देने के नाम पर प्रेम की पींगें बढ़ रही थी।प्रेम अगन में गुरु और शिष्या दोनों जलने लगे और हालात इसकदर बेकाबू हुए की राजेन्द्र मर्यादा की सारी दीवारें गिराकर लक्ष्मी को लेकर फरार हो गया। लक्ष्मी के पिता उमेश दास लक्ष्मी की सकुशल बरामदगी के लिए पुलिस के अधिकारियों को ना केवल लिखित आवेदन दिया है बल्कि उनके सामने खूब गिरगिराया भी है।लक्ष्मी के पिता उमेश दास सहरसा टाईम्स को ना केवल पूरी घटना से अवगत करा रहे हैं बल्कि सहरसा टाइम्स उनकी मदद करे इसकी वे फ़रियाद भी कर रहे हैं।
राजेन्द्र ने अपनी शिष्या लक्ष्मी को भगाकर एक ऐसा गुनाह किया है जो एक विशिष्ट परम्परा की धज्जियां उड़ा रहा है।भविष्य के बड़े--बड़े सपने बुनना किसे अच्छा नहीं लगता है लेकिन इन सपनों को साकार करने में जिनके आशीर्वाद और संबल के साथ--साथ जिनके मार्गदर्शन की जरुरत होती हो अगर वही छीछालेदार घृणित कृत्य कर जाए तो आखिर भरोसा किसपर और कैसे हो।क्या लड़कियां और औरतें कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं?तमाम कवायद के बाद आज मानव मूल्यों का ह्रास आखिर क्यों हो रहा है।एक बड़ी बहस और विमर्श की जरुरत है,जहां क्रान्ति के स्पंदन मौजूं हों। 

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।