मार्च 30, 2013

बनगांव की बेमिशाल घुमौर होली

सहरसा टाइम्स:  आपने ब्रज,वृन्दावन और बरसाने की मनोरंजक और यादगार होली तो जरुर देखी होगी लेकिन हम आपको सहरसा जिले के बनगांव में सत्रहवीं शताब्दी से मनाई जाने वाली सामूहिक हुडदंगी घुमौर होली का अदभुत नजारा दिखाने जा रहे हैं जहां हजारों की तायदाद में विभिन्य गाँवों के लोग एक जगह जमा होकर रंगों में डुबकियां लगाते हैं.हिन्दू--मुस्लिम और विभिन्य वर्ण--जातियों के लोगों का हुजूम किसी किवदंती की तरह एक जगह जमा होकर आपसी भाईचारे और मैत्री का ऐसा परचम लहराते हैं जिसे देखकर पूरे भारतवर्ष को गर्व होगा.इस होली की एक ख़ास बात यह है की यह होली से एक दिन पूर्व ही मनाई जाती है.बरसाने और नन्द गाँव जहां लठमार होली संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है वहीँ बनगांव की घुमौर होली की परम्परा आज भी कायम है.इस विशिष्ट होली में लोग एक दुसरे के काँधे पर सवार होकर,लिपट-चिपट और उठा--पटक करके रंग खेलते और होली मनाते हैं.बनगांव के विभिन्य टोलों से होली खेलने वालों की टोली सुबह ग्यारह बजे तक माँ भगवती के मंदिर में जमा होती है और फिर यहाँ पर होली का हुड्दंग शुरू होता है जो शाम करीब चार बजे तक चलता है. इस होली में यहाँ MLA,MP,मंत्री सहित देश के विभिन्य क्षेत्रों में ऊँचे पदों पर पदस्थापित क्षेत्रीय लोग भी आते हैं.
देश के स्वाभिमान और समरसता का ऐसा नजारा कहीं भी देखने को नहीं मिल सकता है जहां हिन्दू--मुस्लिम और सभी जातियों के लोग इस तरह मिलकर पर्व का आनंद एक साथ उठा रहे हों. प्रेम,भाईचारे और आपसी द्वेष को खत्म कर जिन्दगी की नयी शुरुआत करने का सन्देश देने वाले इस महान पर्व होली के सार्थक और आदर्श रूप सहरसा के बनगांव में निसंदेह आज भी सिद्दत से मौजूद हैं जिससे पुरे देश को सीख लेनी चाहिए.सहरसा टाईम्स की तरफ से पूरे देशवासियों को होली की ढेर सारी शुभकामनाएं.

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*अपनी बात*

अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।