फ़रवरी 17, 2013

पेट की आग में दफ़न हो रहे मासूमों के सपने


सहरसा टाईम्स: कोसी के इस इलाके में जहां भुख,बेकारी,बिमारी,अभाव और मज़बूरी कुलाचें भर रही है वहाँ पेट की आग में मासूमों के सपने भी एक--एक  करके दफ़न हो रहे हैं।जाहिर सी बात है की फटेहाली और मुफलिसी जब ओढ़ना और बिछौना हो तो सपने देखने की इजाजत नहीं होती। सहरसा जिले के पतरघट प्रखंड के जेम्हरा गाँव में गरीब घर के स्कूली बच्चे भी मज़बूरी में पढाई की जगह दुसरे की खेतों में बैल बनकर हल जोतने को विवश हैं। वे अगर काम नहीं करेंगे तो घर के खामोश चूल्हे में हरकत नहीं होगी। विकाशील देश में ऐसी आदिम तस्वीरों से इंसानियत शर्मसार हो रही है। काश ! हुक्मरानों और तंत्र को ये नज़ारे आईना बनकर बड़ी योजनाओं के सरजमीन पर बुरे हस्र यानि उसके जरुरतमंदों तक नहीं पहुँचने की सच्चाई को समझा पाते।
जेम्हरा गाँव की यह वह खेत है जहां मासूमों के सपने जमीनदोज हो रहे हैं। सुभाष और विकास अपने दादा पलटू महतो के साथ बैल बनकर खेत की जुताई में जुटे हुए हैं। ये बच्चे जेम्हरा मध्य विद्यालय के छात्र भी हैं यानी पढ़कर कुछ बड़ा बनने की इन्हें ख्वाहिश है।लेकिन जब घर में डायन गरीबी मज़बूरी  और बेबसी के शक्ल में फन काढ़े हो तो इन मासूमों को कलम--किताब की जगह कुछ और जतन तो करने ही होंगे। सुभाष कुमार और विकास कुमार नाम के ये दोनों बच्चे और उसके दादा पलटू महतो बताते हैं की सरकारी योजनाओं का लाभ उनके परिवार तक नहीं पहुंचा है। नतीजतन घर के लोगों की सांस चल सके इसके लिए काम करना उनकी मज़बूरी है।
उप विकास आयुक्त योगेंद्र राम
सहरसा टाईम्स ने रूह तक को छलनी और इंसानियत को जद से शर्मसार करने वाले इस दुखते नज़ारे को लेकर सहरसा के उप विकास आयुक्त योगेंद्र राम से जबाब--तलब किया। इनकी मानें तो बिहार में जमकर विकास हो रहे हैं। देश से लेकर विदेश तक में बिहार में लगातार हो रहे विकास की आज चर्चा है। वैसे कुछेक घटनाएं कभी--कभार प्रकाश में आते हैं। वे शिक्षा विभाग और श्रम विभाग से इस वाकये को लेकर जांच करवाते हैं।इस मामले में जरुर कारवाई होगी।
ऊपर वाले तूने देने में कोई कमी नहीं की लेकिन किसे क्या मिला यह मुकद्दर की बात है। यहाँ सिसकन,चुभन और टीस के बीच मासूमों के तमाम सपने कुचले जा रहे हैं। सही मायने में शीशे के घरों में रहनेवालों को ही सपने देखने की भी इजाजत हैं। इन मजबूरों के पेट की आग के आगे सारे सपने मलिन और दफ़न हैं। काश ! हुक्मरानों और तंत्र को ये नज़ारे आईना बनकर बड़ी योजनाओं के सरजमीन पर बुरे हस्र यानि उसके उनतक नहीं पहुँचने की सच्चाई को समझा पाते। 

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।