दिसंबर 26, 2012

एक बुजुर्ग का दर्द देखो सरकार

खास रिपोर्ट 
सरकार के तमाम दावों के बाबजूद गरीब--मजलूमों से लेकर जरुरतमंदों का कहीं से भी भला होता नहीं दिख रहा है। आज हम आपको एक बुजुर्ग की ऐसी दुखती तस्वीर दिखाने जा रहे हैं जो सरकार से लेकर उसके पुरे तंत्र को ना केवल तमाचे लगा रहा है बल्कि उसे सिद्दत से कटघरे में भी खड़े कर रहा है। जिले के सिमरी बख्तियारपुर अनुमंडल के सिमरी उत्तरी पंचायत के रानीबाग के रहने वाले एक 92 वर्षीय बुजुर्ग पिछले सात महीने से वृद्धा पेंशन नहीं मिलने की वजह से जिले के आलाधिकारी से फ़रियाद करने आज जिला समाहरणालय पहुंचे हैं। ये सिर्फ फ़रियाद करने पहुँचते तो बात कोई खास नहीं होती। आप यह जानकार हैरान हो जायेंगे की महीने के हर बृहस्पतिवार को डी.एम साहब का जनता दरबार लगता है। पिछले सप्ताह यह बुजुर्ग डी.एम साहब को अपनी फ़रियाद सुनाने आये थे लेकिन अधिक भीड़ की वजह से ये साहब को अपनी फ़रियाद नहीं सूना पाए। यही वजह है की ये आज बुधवार को ही जिला समाहरणालय पहुँच गए क्योंकि कल बृहस्पतिवार को ये जिले के हाकिम को अपना दुखड़ा सूना सकें।
 जिला समाहरणालय के चक्कर लगाते--लगाते जब ये थक गए तो इन्होनें डी.एम कार्यालय के बरामदे पर फिक्स कुर्सी को ही अपना बिछौना बना डाला। सहरसा टाईम्स ने इस बुजुर्ग की पीड़ा देखी तो इस बुजुर्ग के हक़ के लिए बिना वक्त गंवाए तुरंत आवाज उठायी। यह हमारी पहल का ही नतीजा था की जिले के कई अधिकारी आनन्--फानन में एक साथ ना केवल संजीदा हुए बल्कि बुजुर्ग को पेंशन दिए जाने की फ़ौरन पहल भी शुरू हुयी। हम इतने पर ही बस नहीं करने वाले,इस बुजुर्ग को एक बानगी बनाकर आज सहरसा टाईम्स कई सवाल उठा रहा है।
जिसकी हकमारी होती है और जिसे इन्साफ नहीं मिल रहा होता है,सहरसा टाईम्स सदैव उसके लिए मजबूती से ना केवल आवाज बुलंद करता है बल्कि उसे उसकी वाजिब मंजिल तक भी पहुंचाता है। डी.एम साहब किसी कार्य से मुख्यालय से बाहर थे। सहरसा टाईम्स ने जिले के अन्य आलाधिकारी से लेकर सम्बंधित विभाग के अधिकारी से इस बुजुर्ग के बाबत तल्खी से जबाब---तलब किया। सहरसा टाईम्स के पुरजोर दखल के बाद जिले के कई अधिकारी  ना केवल एक साथ गंभीर हुए बल्कि इस बुजुर्ग को पेंशन मिल सके इसकी ठोस पहल भी शुरू कर दी। पेंशन देने वाले विभाग सामाजिक सुरक्षा विभाग के अधिकारी मोहम्मद मंजूर आलम से हमने जमकर सवाल किये। इस अधिकारी ने तुरंत इन्हें पेंशन मिल सके इसके लिए सिमरी उत्तरी पंचायत के पंचायत सचिव को विभागीय पत्र भेजा। उम्मीद है की तीन दिनों के भीतर इन्हें पेंशन की राशि मिल जायेगी।
मुकेश कुमार सिंह
सहरसा टाईम्स


अब हम एक बड़े सवाल से आपको रूबरू कराने जा रहे हैं। सरकार के निर्देश के मुताबिक़ 80 वर्ष से अधिक उम्र वाले बुजुर्ग को 500 रूपये बतौर पेंशन दिए जाने का प्रावधान है। हमने सम्बंधित अधिकारी से यह सवाल किया की आखिर किस वजह से 92 वर्ष के इस बुजुर्ग को महज 3 सौ रूपये दिए जाते रहे हैं। साथ ही इन्हें आजतक जो पेंशन के रूप में कम राशि मिली है तो क्या जो वाजिब में पेंशन की राशि है वह सारा जोड़कर विभाग इन्हें आगे देगा। इसके जबाब में अधिकारी ने स्वीकार किया की इन्हें 500 रूपये मिलने चाहिए। वे इसको लेकर ऊपर से निर्देश प्राप्त करेंगे जिससे इनको पूरी की पूरी वाजिब पेंशन की राशि मिल सके।यह सबकुछ सहरसा टाईम्स की पहल का नतीजा है।
एक बुजुर्ग की इस कहानी ने यह साफ़ कर दिया है की इस जिले में वृद्धा पेंशन योजना कतई सही तरीके से जमीन पर आजतक नहीं उतर पायी है। इस जिले में युवाओं को वृद्धा पेंशन और सधवा को विधवा पेंशन पहले से ही बाहेआम मिल रहे हैं जिसे देखने--सुनने वाला कोई नहीं है। अधिकारी,जनप्रतिनिधि से लेकर बिचौलियों की बस बल्ले--बल्ले और जय--जय है। सहरसा टाईम्स की पहल से एक बुजुर्ग का तो भला होता दिख रहा है लेकिन ऐसे हजारों सीताराम हैं जिनतक सहरसा टाईम्स का पहुँच पाना मुमकिन नहीं है। ऐसे में उनका क्या होगा,यह अल्लाह पर निर्भर करता है।
इस बुजुर्ग को बानगी बनाकर सहरसा टाईम्स सरकार और उसके तंत्र से कर रहा है कुछ सवाल------------
सवाल नंबर एक--------80 वर्ष से ऊपर के बुजुर्गों को 500 रूपये दिए जाने का प्रावधान है तो आखिर 92 वर्ष के बुजुर्ग को 300 रूपये किस आधार पर अभीतक दिए जा रहे थे।क्या ऐसे बुजुर्गों को चिन्हित करके इन्हें बांकी राशि आगे दी जायेगी?
सवाल नंबर दो-------पेंशन आयु स्पष्ट रूप से तय रहने के बाद भी कम उम्र के लोगों को आखिर कैसे वृद्धा पेंशन मिल रहे हैं।इसे रोकने के लिए सरकार क्या कदम उठाना चाहेगी?
सवाल नंबर तीन-------सधवा (सुहागन) को विधवा पेंशन कैसे मिल रहा है।इसमें सुधार और इसे रोकने के लिए सरकार के पास कौन सी योजना है?
सवाल नंबर चार--------नयी योजनाओं के सृजन की जगह पुरानी योजनाओं को सही तरीके से धरातल पर लाने के लिए सरकार आखिर क्यों नहीं गंभीर होती है?

सवाल नंबर पांच----------बड़ी योजनायें जाहिर तौर पर गरीबों के कल्याणार्थ ही बनायी जाती है।आजादी के दशकों बाद भी गरीबों के जीवन स्तर में आशातीत बदलाव नहीं हो सका है।क्या यह मानकर चलें की गरीब महज सियासी वस्तु भर हैं? 

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