जून 03, 2012

महिला थाना है या मजाक

खाली पड़ा महिला थाना
बड़े तामझाम और नाजो--नखरे से इसी साल 26 जनवरी को सहरसा में खोला गया महिला थाना अपने शुरूआती वर्ष में ही दम तोड़ता और अपने उद्देश्यों के चिथड़े उड़ाता प्रतीत हो रहा है.पूरे जिले की पीड़ित महिलाओं को कहीं भटकना नहीं पड़ेगा और उन्हें त्वरित गति से न्याय मिलेगा का शब्जबाग दिखाकर इस महिला थाने का उद्दघाटन और शुरुआत तो कर दिया गया लेकिन यह थाना शुरू में ही पटरी से उतरकर ढाक के तीन पात साबित हो रहा है.इस थाने में फरियादी पीड़ित महिलायें रोजाना आ रही हैं लेकिन उनकी फ़रियाद सुनने वाला यहाँ कोई नहीं है.थाने की कुर्सियां और बेंच पूरी तरह से खाली रहते हैं जो फरियादी महिलाओं को बस मुंह चिढाते रहता हैं.दिनभर पीड़ित महिलायें इस थाने का चक्कर लगाती हैं और शाम होते बिना अपनी फ़रियाद सुनाये अपने घर वापिस लौट जाती हैं.थानाध्यक्षा से लेकर संतरी तक अगर कोई इस थाने में भूले--भटके मिल गए तो समझिए आपकी किस्मत अच्छी है.
 
 तामझाम से इस थाने का उद्दघाटन
खबर में और दम भर सके इसके लिए हम आपको 26 जनवरी 2012 का वह नजारा भी दिखा रहे हैं जब बड़े तामझाम से इस थाने का उद्दघाटन हुआ था.उस समय थानाध्यक्षा की कुर्सी संभालने वाली महिला थानाध्यक्षा प्रमिला ने इस थाने के मकसद को लेकर काफी ऊँची--ऊँची बातें की थी लेकिन थोड़े वक्त में ही सबकुछ टाँय--टाँय फिस्स हो गया.
जाहिर तौर पर महिला थाना का काऊंसेप्ट बेहद बढ़िया और मकसद से भरा है.लेकिन सहरसा का महिला थाना बेमकसद और बेमानी साबित हो रहा है.पुलिस के बड़े अधिकारियों को इस मामले को गंभीरता से देखना चाहिए.थाने में फूल टायमर अधिकारी को बिठाया जाना चाहिए.ऐसे अधिकारी को यहाँ पर बिठाना कहीं से भी जायज नहीं हैं जिन्हें बार--बार ट्रेनिंग अथवा किसी और काम से अन्यत्र जाना पड़े.

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*अपनी बात*

अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।