फ़रवरी 21, 2017

आलोचना और उपलब्धि को समझना है बेहद जरुरी


आलोचना और उपलब्धि को लेकर अक्सर संसय रहता है बरकरार 
आलोचना से घबराकर उपलब्धि के ग्राफ में आती है कमी,धार भी होती है कुंद
आलोचना उपलब्धि की जमापूंजी को तराशने का है सबसे मजबूत हथियार
अपनी हर तरह की कमी को आलोचना से हम कर सकते हैं दूर
आलोचना और निंदा का आपस में नहीं होता कोई तारतम्य
आलोचना और निंदा को एक समझना,है एक बड़ी भूल और गलती 
मुकेश कुमार सिंह की पड़ताल---
सबसे पहले आलोचना को जानना और समझना जरुरी है ।अक्सर और अमूमन लोग आलोचना और निंदा को एक ही अर्थ में लेते हैं ।आलोचना और निंदा दो चीजें हैं ।निंदा से एक इंसान दूसरे को बस नीचा दिखाने की हर जुगत करता है ।निंदा से लोगों को यह भरम होता है की वह अब दूसरे को पछाड़ कर अपने से कमतर साबित करने में सफल हो जाएगा ।निंदा इंसान की बेहद ओछी फितरत है ।इंसान अगर थोड़ा भी सही होगा तो वह निंदा जैसी घृणित सोच से बचना चाहेगा । 
इस आलेख में अब निंदा पर अधिक चर्चा करना जायज नहीं है । इससे विषयांतर की संभावना बढ़ेगी ।हम विषय पर लौटते हैं ।हमारा आज का विषय है "आलोचना और उपलब्धि" ।आलोचना और उपलब्धि एक दूसरे के अभिन्न मित्र हैं ।जहाँ उपलब्धि होगी वहाँ आलोचना भी निश्चित होगी ।हमारी समझ से बिना आलोचना के उपलब्धि का कोई सार्थक और कालजयी महत्व नहीं हो सकता है ।इसलिये जब भी कहीं आपकी आलोचना हो रही हो,तो इससे कभी हताश,निराश या फिर खिन्न नहीं होना चाहिए बल्कि ये सोचना चाहिए की आपका प्रयास कहीं ना कहीं तीव्रता से सफल हो रहा है और आप अपनी तयशुदा मंजिल के बेहद करीब हैं ।जो लोग हमारी आलोचना करते हैं,वह ये भूल जाते हैं कि कहीं ना कहीं वह हमारा फायदा ही कर रहे हैं ।
 आलोचना से वह,हमें और मजबूत बनने के लिये प्रेरित कर रहे हैं ।जाहिर सी और दीगर बात है की बिना आलोचना के हम अपनी कमियों को कभी भी आसानी से नही जान पाते ।विरोध होने पर ही हमें पता चलता है कि हमसे कहाँ चूक हुई है ।यदि विरोध यानि आलोचना सही है तो फिर गुंजाईश के मुताबिक खुद को बदलें ।यदि विरोध यानि आलोचना गलत हो रही है,तो अपनी पूरी ऊर्जा से अपने को सही साबित करने के लिये सदैव प्रयत्नशील रहें ।एक बात हमेशा याद रखना चाहिए की "ईश्वर ने हमको बहुत कुछ दिया है । ऐसा कोई भी सांसारिक कार्य नही है जो इंसान नहीं कर पाये"।जब भी मन में शंका पैदा हो,तो आत्ममंथन कीजिये और खुद को पहचानने की कोशिश कीजिये ।सिद्दत से सोचिये की "मैं कौन हूँ "और मैं क्या कर सकता या कर सकती हूँ ।यकीन मानिये आपको ना सिर्फ अपनी पहचान मिलेगी बल्कि ज़िन्दगी जीने का सही मकसद भी मिलेगा । इसलिये कभी भी आलोचना या विरोध से घबरायें नहीं ।विरोध तो युग--युगांतर से होता आ रहा है और होता ही रहेगा ।
इसलिये "सत्यम् परम धीमहि" के सिद्धान्त पर चलकर अपने संघर्ष को आगे बढ़ाएं ।आप बहुत अच्छे कार्य कर रहे हैं,इसका सफल मूल्यांकन आपसे हो पाना ना तो संभव है और ना ही उचित है ।आपके कृत्यों,व्यवहार, आचरण और समूल वृतियों पर आमलोगों की धारणा और फिर उसकी समीचीन आलोचना बेहद जरुरी है ।हम अपने व्यक्तित्व को बेहतर से बेहतर इसलिए बनाते हैं की उसका उपयोग सांसारिक जीवन में लोग करें ।इसके लिए बेहद जरुरी है की लोग परत दर परत हमें हर तरह से ठोंके--बजाएं और हमें खंगालें ।कोयले के बीच से हीरा निकलता है ।लोग जितनी हमारी आलोचना करेंगे,उससे हम अपनी इल्म की टकसाल में और खुलकर तपेंगे । आलोचना से हमारी उपलब्धि का दायरा निरंतर बढ़ेगा ।आलोचना को शगुन के रूप में लिया जाना चाहिए ।आखिर में हम ताल ठोंककर कहते हैं की बिना आलोचना के मजबूत पहचान मिलनी नामुमकिन है ।चर्चा और आलोचना मुर्दों की नहीं होती है बल्कि उनकी होती है,जिनमें जान होती है । सटीक,सार्थक,इल्मी,मौलिक,नैसर्गिक,तटस्थ, पारदर्शी और आसमानी वजूद के लिए आलोचना बेहद और निहायत जरुरी है ।

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।