सितंबर 20, 2016

"काम शेर करता है और अंजाम बुजदिल सोचता है" -- आनन्द मोहन --

आनन्द मोहन जी के टाईम लाइन से ली गई पोस्ट ---
उड़ी में 'आर्मी बेस कैम्प' पर हमले ने बरबस देश के तीन ------
प्रख्यात महाकवियों की चुनिंदा पंक्तियाँ याद दिला दी । राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने 'पुष्प की अभिलाषा' का मार्मिक चित्रण कुछ इस तरह किया है -
मुझे तोड़ लेना बनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जाए वीर अनेक ।
गुप्त जी की उक्त पंक्तियाँ उड़ी के शहीदों के नाम ... आज के हालात पर हमारे दूसरे राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' जी का 'कुरुक्षेत्र' के प्रथम सर्ग में अत्यंत ही सटीक और सजीव व्यंग है -
वह कौन रोता है वहाँ- इतिहास के अध्याय पर,
जिसमें लिखा है, नौजवानों के लहू का मोल है
प्रत्यय किसी बूढ़े, कुटिल नीतिज्ञ के व्याहार का;
जिसका हृदय उतना मलिन जितना कि शीर्ष वलक्ष है;
जो आप तो लड़ता नहीं, कटवा किशोरों को मगर,
आश्वस्त होकर सोचता, शोणित बहा, लेकिन, गयी बच लाज सारे देश की ?
पर यहाँ तो शोणित बहने के बाद भी हमीं लाज में डूबे जा रहे हैं ।
कायरतापूर्ण हमला, हाई लेवल मीटिंग, कठोर कारवाई, बख्से नहीं जाएंगे, उसी की भाषा में जवाब देंगे, एक के बदले दस सिर काटेंगे, छठी का दूध याद दिला देंगे । सुनते-सुनते कान पक गए ...
बन्द करो अनर्गल प्रलाप-विधवा विलाप । उसके हाथ लम्बे हैं, तो क्या तुम्हारे लूले ? उसके पास आई.एस.आई. है, तो तुम्हारे पास भी 'राव' । उसके लिए कश्मीर है, तो तुम्हारे लिए भी बलूचिस्तान । वह परमाणु पावर है, तो तुम भी अणुशक्ति ।
बातवीरों ! बहाना छोड़ो, कुछ सोचो ... कुछ करो । म्यांमार में घुस कर मारो और यहाँ छुपकर बैठो,ऐसा तो नहीं चलेगा।कदुआ पर सितुआ चोख ... ?
कहते हैं, जब व्यक्ति पहला धोखा खाता है तो गलती खाने वाले की नहीं, देने वाले की होती है । हमने तुम पर विश्वास किया और तुमने मुझे धोखा दिया । जब व्यक्ति दूसरा धोखा खाता है, तो गलती देने वाले की नहीं खाने वाले की होती है, आखिर धोखा खाकर भी विश्वास क्यों किया ? लेकिन जब आदमी धोखा पर धोखा खाए, फिर भी न सुधरे, न संभले, तो उसे परले दर्जे का मुर्ख और लतखोर कहते हैं ।
अब हम स्वंय तय करें कि हम किस श्रेणी में आते हैं । 
जनकवि गोपाल सिंह 'नेपाली' की इन पंक्तियों से इस आलेख का उपसंहार -
वो राही दिल्ली जाना तो
कहना अपनी सरकार से
चरखा चलता है हाथों से
शासन चलता तलवार से ...

और अंत में आज की स्थितियों पर कुछ कहती, कुछ बोलती मेरी व्यंग्यात्मक कविता "बाँध" ।

बात खरी-खोटी और साफ ... गुस्ताखी माफ़ ...
खेल हो या जंग, पहला उसूल है -
जो आक्रमक होता है- वह जीतता है,
जो रक्षात्मक होता है- वह पिटता है ।
-आनन्द मोहन-

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।