सितंबर 18, 2016

शहाबुद्दीन का तिलस्म और बिलखता बिहार....

शहाबुद्दीन का तिलस्म और बिलखता बिहार
----------------------------------------------------
मुकेश कुमार सिंह की दो टूक-->>  
हमने अपने इस आलेख में पत्रकार राजन मिश्रा के कई टिप्पस लिए हैं ।मो. शहाबुद्दीन औरबिलखते बिहार को हल्के ढंग से परोस देना कतई लाजिमी नहीं है ।फ़िल्म शोले में जिस तरह गब्बर और अंतर्राष्ट्रीय डॉन दाऊद इब्राहिम का किरदार है,ठीक उसी तरह का बिहार की कहानी में मोहम्मद शहाबुद्दीन का दहशत से भरा चमकदार किरदार रहा है ।90 के दशक के शुरूआती काल में सीवान की एक नई पहचान बनी ।इस नयी पहचान की एकमात्र वजह सुर्ख़ियों में आये बाहुबली नेता शहाबुद्दीन थे ।वे अपराध की दुनिया से बेहतर तालीम लेकर राजनीति में आये थे । 1987 में पहली बार विधायक बने और लगभग उसी समय जमशेदपुर में हुए एक तिहरे हत्याकांड से उनका नाम अपराध की दुनिया में मजबूती से उछला गया ।जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष रहे कॉमरेड चंद्रशेखर की हत्या,एसपी सिंघल पर गोली चलाने से लेकर तेजाब कांड जैसे चर्चित कांडों के सूत्रधार शहाबुद्दीन ही माने गए ।बताना बेहद लाजिमी है की उसी चर्चित तेजाब कांड पर जब माननीय न्यायालय का जमानत के रूप में फैसला आया तो सीवान और बिहार के दूसरे हिस्से में रहने वाले लोगों के जेहन में 12 साल पुराने इस खौफनाक घटना की याद बेहद संजीदगी से जिंदा हो उठी ।
शहाबुद्दीन के विधायक बनने के बाद लालू प्रसाद यादव से दोस्ती हुयी थी ।और उसी दौर के एक थप्पड़ ने शहाबुद्दीन को बनाया था नेता से बाहुबली ।मो. शहाबुद्दीन को लंबे समय तक राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद का राजनीतिक संरक्षण गुरु और एक गार्जियन के तौर पर मिलता रहा ।उस काल को तभी लोग खौफ़काल की नजर से देख रहे थे ।लेकिन राबड़ी सरकार में 2003 में डीपी ओझा के डीजीपी बनने के साथ ही शहाबुद्दीन पर शिकंजा कसना शुरू हो गया ।डीपी ओझा ने शहाबुद्दीन के खिलाफ सबूत इकट्ठे कर कई पुराने मामले तटस्थ होकर फिर से खोल दिए ।पहले जिन मामलों की जांच का जिम्मा सीआईडी को सौंपा गया था, उनकी भी समीक्षा शुरु हो गई ।फिर माले कार्यकर्ता मुन्ना चौधरी के अपहरण व हत्या के मामले में शहाबुद्दीन के खिलाफ वारंट जारी हुआ । इस मामले में शहाबुद्दीन को अदालत में आत्मसर्पण करना पड़ा ।शहाबुद्दीन के आत्मसमर्पण करते ही सूबे की सियासत गरमा गई और मामला आगे बढ़ता देख राज्य सरकार ने सियासी चाल चली और डीपी ओझा को डीजीपी पद से हटा कर चलता कर दिया ।
सत्ता के टकराव और बेहद राजनीतिक दबाब के कारण ओझा को वीआरएस भी लेना पड़ा ।2005 में जब रत्न संजय सीवान के एसपी बने, तो शहाबुद्दीन के खिलाफ एक बार फिर कार्रवाई की नवीन शुरुआत शुरू हुई ।यह समय राज्य में राष्ट्रपति शासन का था ।
24 अप्रैल 2005 को शहाबुद्दीन के पैतृक गांव प्रतापपुर में की गई छापेमारी में भारी संख्या में आग्नेयास्त्र, अवैध हथियार, चोरी की गाड़ियां व विदेशी मुद्रा आदि बरामद किए गए ।हालांकि छापेमारी से संबंधित मुकदमों में कई आरोपितों को हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई । वहीं लंबे समय तक फरार रहने के बाद तत्कालीन सांसद शहाबुद्दीन को दिल्ली स्थित उनके निवास से पुलिस ने छह नवंबर 2005 को गिरफ्तार कर लिया । तब से वे न्यायिक हिरासत में जेल में बंद हैं ।जेल में रहने के बाद भी शहाबुद्दीन को दर्जनों मामलों में साजिशकर्ता और मुख्य षड्यंत्रकारी के रूप में अभियुक्त बनाया गया, जिनमें तेजाब कांड में दो सगे भाइयों को तेजाब से नहलाकर मारने और इन दोनों के बड़े भाई को भी साल 2014 में डीएवी मोड़ के पास गोली मार कर हत्या कराने का आरोप भी इन्हीं पर लगा है, जो तेजाबकांड के असल और इकलौते चश्मदीद गवाह भी थे ।
इस घटना के समय शहाबुद्दीन भले ही जेल में था, लेकिन उसके नाम मात्र से पूरा सीवान कांप जाता था ।ऐसे में हरेक के जेहन में सवाल उठना लाजमी है कि भला इस बाहुबली नेता को किस अधिकारी ने काबू में लिया था और इस गंभीर वारदात में आरोपी बनाने की हिम्‍मत किसने जुटाई थी । जनता जनार्दन इस कोरे सच को जान ले की शहाबुद्दीन के भय के साम्राज्‍य को तहस-नहस करने का श्रेय आइएएस सी.के अनिल और आईपीएएस रत्‍न संजय को जाता है ।
तेजाब कांड की वारदात के समय सी.के अनिल सीवान के डीएम थे और रत्‍न संजय कटियार एसपी थे ।इन्‍हीं दो जांबाज अधिकारियों ने भारी पुलिस बल के साथ शहाबुद्दीन के प्रतापपुर स्‍थित घर पर छापेमारी की थी ।
*जब शहाबुद्दीन के सामने दो भाइयों को तेजाब से नहला कर मार दिया गया*
               शहाबुद्दीन के घर से मिले थे पाकिस्‍तानी हथियार             
एस.पी रत्न संजय और डीएम सी.के अनिल की संयुक्‍त छापेमारी में शहाबुद्दीन के घर से पाकिस्‍तान में बने हथियार बरामद हुए थे ।इतना ही नहीं उसके घर से बरामद एके-47 राइफल पर पाकिस्‍तानी ऑर्डिनेंस फैक्‍ट्री के छाप (मुहर) लगे थे ।ये हथियार केवल पाकिस्‍तानी सेना के इस्तेमाल के लिए होते हैं ।
इस बाहुबली नेता के घर से अकूत जेवरात और नकदी के अलावा जंगली जानवरों शेर और हिरण के खाल भी बरामद हुए थे ।
इस छापेमारी के बाद उस वक्‍त के डीजीपी डीपी ओझा ने शहाबुद्दीन के पाकिस्‍तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ से संबंध होने की बात स्‍वीकारी थी । साथ ही इसे साबित करने के लिए सौ पेज की रिपोर्ट पेश की थी ।शहाबुद्दीन के इस काले कारनामे पर से पर्दा हटाने वाले ओझा का तत्‍कालीन बिहार सरकार ने तुरंत से तबादला कर दिया था ।
जानकारी हो कि 2001 में भी बिहार पुलिस शहाबुद्दीन के गिरेबान तक पहुंचने की कोशिश में उसके प्रतापपुर वाले घर पर छापेमारी की थी, लेकिन अंजाम बेहद दुखद हुआ था ।शहाबुद्दीन के गुर्गों ने बेखौफ होकर पुलिस पर फायरिंग की थी । करीब तीन घंटे तक दोनों तरफ से हुई इस गोलीबारी में तीन पुलिस वाले सहित दस लोग मारे गए थे ।इसके बाद पुलिस को खाली हाथ बैरंग लौटना पड़ा था ।इस संगीन वारदात के बाद भी शहाबुद्दीन के खिलाफ कोई मजबूत केस नहीं बनाया गया था ।
                             पुलिस को जड़ दिया था थप्‍पड़                         
2001 में राज्यों में सिविल लिबर्टीज के लिए पीपुल्स यूनियन की एक रिपोर्ट ने खुलासा किया था कि राजद सरकार कानूनी कार्रवाई के दौरान शहाबुद्दीन को संरक्षण दे रही थी ।
2001 में ही पुलिस जब राजद के स्थानीय अध्यक्ष मनोज कुमार पप्पू के खिलाफ एक वारंट तामील करने पहुंची थी तो शहाबुद्दीन ने गिरफ्तारी करने आए अधिकारी संजीव कुमार को थप्पड़ मार दिया था ।शहाबुद्दीन के सहयोगियों ने पुलिस वालों की जमकर पिटाई कर दी थी ।
          शहाबुद्दीन चार बार सांसद और दो बार रहे विधायक             
एक बाहुबली से राजनेता बनने का मोहम्मद शहाबुद्दीन का सफर बड़ा ही दिलचस्प रहा है। बिहार में कभी अपराध का बड़ा नाम रहे शहाबुद्दीन का जन्म 10 मई 1967 को सीवान जिले के हुसैनगंज प्रखंड के प्रतापपुर गांव में हुआ था ।सीवान के चार बार सांसद और दो बार विधायक रहे शहाबुद्दीन ने कॉलेज के दौरान ही अपराध की दुनिया का दामन थाम लिया था ।
डीएवी कॉलेज से राजनीति में कदम रखने वाले इस नेता ने माकपा व भाकपा (मार्क्सवादी – लेनिनवादी) के खिलाफ जमकर लोहा लिया और इलाके में ताकतवर राजनेता के तौर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई ।भाकपा माले के साथ उनकाना केवक छत्तीस का आंकड़ा था बल्कि  तीखा टकराव भी होता रहाता था ।
सीवान में दो ही राजनीतिक धुरियां थीं ।तब एक शहाबुद्दीन व दूसरा भाकपा माले ।1993 से 2001 के बीच सीवान में भाकपा माले के 18 समर्थक व कार्यकतार्ओं को अपनी जान गंवानी पड़ी ।जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर व वरिष्ठ नेता श्यामनारायण भी इसमें शामिल थे ।इनकी हत्या सीवान शहर में 31 मार्च 1997 को कर दी गई थी ।इस मामले की जांच सीबीआई ने की थी ।
                                 कौन हैं शहाबुद्दीन ?                                   
राजद के पूर्व सांसद व विधायक रहे मो. शहाबुद्दीन की तूती आज भी बोलती है ।कहा जाता है कि खासकर सीवान में कोई पत्ता भी उनके इशारे के बिना नहीं सरकता है ।बहरहाल तेजाब कांड में उम्रकैद की सजा पा चुके बाहुबली मो. शहाबुद्दीन को तेजाब कांड में षड्यंत्र रचने, अपहरण व हत्या करने के मामले में कोर्ट ने दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है ।
बहरहाल यह वही बाहुबली शहाबुद्दीन हैं जिनकी लालू यादव की सरकार के दौरान 1990 के दौर से ही खूब चलती रही है और तुती बोलती रही है ।समय बदल गया और बिहार की राजनीति में कई उतार-चढ़ाव आए ।यहां तक कि लालू प्रसाद बिहार की सत्ता से दूर हो गए थे फिर भी उनके शासनकाल को जंगलराज के उपनाम से छुटकारा नहीं मिल पाया था ।इस नाम में शहाबुद्दीन सिरमौर्य के तौर पर काबिज थे ।
मोहम्मद शाहब्बुद्दीन एमए और पीएचडी की डिग्री हासिल किये हुए सूरमा हैं  शहाबुद्दीन ने हिना शहाब से शादी की थी ।उनका एक बेटा और दो बेटी हैं ।शहाबुद्दीन ने कॉलेज से ही अपराध और राजनीति की दुनिया में कदम रखा था ।किसी फिल्मी किरदार से दिखने वाले मोहम्मद शहाबुद्दीन की कहानी भी फिल्मी सी लगती है. उन्होंने कुछ ही वर्षों में अपराध और राजनीति में काफी नाम कमाया ।
                       अपराध की दुनिया में पहला कदम                          
अस्सी के दशक में शहाबुद्दीन का नाम पहली बार आपराधिक मामले में सामने आया था. 1986 में उनके खिलाफ पहला आपराधिक मुकदमा दर्ज हुआ था ।इसके बाद उनके नाम एक के बाद एक कई आपराधिक मुकदमे दर्ज होते चले गए । शहाबुद्दीन के बढ़ते हौंसले को देखकर पुलिस ने सीवान के हुसैनगंज थाने में शहाबुद्दीन की हिस्ट्रीशीट खोल दी ।इन्हें ए श्रेणी का हिस्ट्रीशीटर घोषित कर दिया गया ।छोटी उम्र में ही अपराध की दुनिया में शहाबुद्दीन जाना पहचाना नाम बन गया ।नाम बढे से गुर्गों की तायदाद बढ़ती गयी और उनकी ताकत में बेशुमार इजाफा हुआ ।
                        राजनीति में शहाबुद्दीन का उदय                           
राजनीतिक गलियारों में शहाबुद्दीन का नाम उस वक्त चर्चाओं में आया जब शहाबुद्दीन ने लालू प्रसाद यादव की छत्रछाया में जनता दल की युवा इकाई में कदम रखा ।राजनीति में जनाब के सितारे बुलंद थे ।पार्टी में आते ही शहाबुद्दीन को अपनी ताकत और दबंगई का फायदा मिला ।पार्टी ने 1990 में विधान सभा का टिकट दिया और वे बना किसी हाय--तौबा के जीत गए ।उसके बाद फिर से 1995 में चुनाव जीता ।इसे कौन नहीं समझ सकता की इस दौरान शाही नेता का कद और बढ़ गया ।ताकत को देखते हुए पार्टी ने 1996 में उन्हें लोकसभा का टिकट दिया और यहां भी शहाबुद्दीन की जीत हुई ।बेशक 1997 में राष्ट्रीय जनता दल के गठन और लालू प्रसाद यादव की सरकार बन जाने से शहाबुद्दीन की ताकत बहुत बढ़ गई थी ।
                  आतंक का दूसरा नाम बन गए थे शहाबुद्दीन                 
2001 में राज्यों में सिविल लिबर्टीज के लिए पीपुल्स यूनियन की एक रिपोर्ट ने खुलासा किया था कि राजद सरकार कानूनी कार्रवाई के दौरान शहाबुद्दीन को संरक्षण दे रही थी ।सरकार के संरक्षण में वह खुद ही कानून बन गए थे ।सरकार की ताकत ने उन्हें एक नई चमक दी थी ।पुलिस शहाबुद्दीन की आपराधिक गतिविधियों की तरफ से आंखे बंद किए रहती थी ।शहाबुद्दीन का आतंक इस कदर था कि किसी ने भी उस दौर में उनके खिलाफ किसी भी मामले में गवाही देने की हिम्मत नहीं की थी ।सीवान जिले को वह अपनी जागीर समझते थे ।जहां उनकी इजाजत के बिना पत्ता भी नहीं हिलता था ।
             पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी रहे निशाने पर              
ताकत के नशे में चूर मोहम्मद शहाबुद्दीन इतना अभिमानी हो गए थे कि वह पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को भी कुछ नहीं समझते थे ।आए दिन अधिकारियों से मारपीट करना उनका शगल बन गया था ।यहां तक कि वह पुलिस वालों पर गोली चला देते थे ।मार्च 2001 में जब पुलिस राजद के स्थानीय अध्यक्ष मनोज कुमार पप्पू के खिलाफ एक वारंट तामील करने पहुंची थी तो शहाबुद्दीन ने गिरफ्तारी करने आए अधिकारी संजीव कुमार को थप्पड़ मार दिया था । और उनके आदमियों ने पुलिस वालों की पिटाई भी की थी ।

              पुलिस और शहाबुद्दीन समर्थकों के बीच गोलीबारी            
मनोज कुमार पप्पू प्रकरण से पुलिस महकमा सकते में था ।पुलिस ने मनोज और शहाबुद्दीन की गिरफ्तारी करने के मकसद से शहाबुद्दीन के घर छापेमारी की थी ।इसके लिए बिहार पुलिस की टुकड़ियों के अलावा उत्तर प्रदेश पुलिस की मदद भी ली गई थी ।छापे की उस कार्रवाई के दौरान दो पुलिसकर्मियों समेत 10 लोग मारे गए थे ।पुलिस के वाहनों में आग लगा दी गई थी ।मौके से पुलिस को 3 एके-47 भी बरामद हुई थी ।शहाबुद्दीन और उसके साथी मौके से भाग निकले थे ।इस घटना के बाद शहाबुद्दीन पर कई मुकदमे दर्ज किए गए थे ।

                सीवान में चलती थी शहाबुद्दीन की हुकूमत                     
2000 के दशक तक सीवान जिले में शहाबुद्दीन एक समानांतर सरकार चला रहे थे ।उनकी एक अपनी अदालत थी ।जहां लोगों के फैसले हुआ करते थे ।वह खुद सीवान की जनता के पारिवारिक विवादों और भूमि विवादों का निपटारा करते थे । यहां तक के जिले के डॉक्टरों की परामर्श फीस भी वही तय किया करते थे ।कई घरों के वैवाहिक विवाद भी वह अपने तरीके से निपटाते थे ।वर्ष 2004 में लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने कई जगह खास ऑपरेशन किए थे ।जनाब जो मीडिया की सुर्खियां बन गए थे ।

            जेल से लड़ा चुनाव, अस्पताल में लगाया था दरबार              
1999 में एक सीपीआई (एमएल) कार्यकर्ता के अपहरण और संदिग्ध हत्या के मामले में शहाबुद्दीन को लोकसभा 2004 के चुनाव से आठ माह पहले गिरफ्तार कर लिया गया था ।लेकिन चुनाव आते ही शहाबुद्दीन ने मेडिकल के आधार पर अस्पताल में शिफ्ट होने का इंतजाम कर लिया ।अस्पताल का एक पूरा फ्लोर उनके लिए रखा गया था ।जहां वह लोगों से मिलते थे और बैठकें करते थे ।चुनाव तैयारी की समीक्षा करते थे ।वहीं से फोन पर वह अधिकारियों, नेताओं को कहकर लोगों के काम कराते थे ।अस्पताल के उस फ्लोर पर उनकी सुरक्षा के भारी इंतजाम थे ।हालात ये थे कि पटना हाईकोर्ट ने ठीक चुनाव से कुछ दिन पहले सरकार को शहाबुद्दीन के मामले में सख्त निर्देश दिए ।कोर्ट ने शहाबुद्दीन को वापस जेल में भेजने के लिए कहा था ।सरकार ने मजबूरी में शहाबुद्दीन को जेल वापस भेज दिया लेकिन चुनाव में 500 से ज्यादा बूथ लूट लिए गए थे । आरोप था कि यह काम शहाबुद्दीन के इशारे पर किया गया था ।लेकिन दोबारा चुनाव होने पर भी शहाबुद्दीन सीवान से लोकसभा सांसद बन गए थे । लेकिन उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाले जेडी (यू) के ओम प्रकाश यादव ने उन्हें कड़ी टक्कर दी थी ।चुनाव के बाद कई जेडी (यू) कार्यकर्ताओं की हत्या हुई थी ।

                हत्या और अपहरण के मामले में हुई उम्रकैद                   
साल 2004 के चुनाव के बाद से शहाबुद्दीन का बुरा वक्त शुरू हो गया था ।इस दौरान शहाबुद्दीन के खिलाफ कई मामले दर्ज किए गए ।राजनीतिक रंजिश भी बढ़ रही थी ।नवंबर 2005 में बिहार पुलिस की एक विशेष टीम ने दिल्ली में शहाबुद्दीन को उस वक्त दोबारा गिरफ्तार कर लिया था जब वह संसद सत्र में भागेदारी करने के लिए आए हुए थे ।दरअसल उससे पहले ही सीवान के प्रतापपुर में एक पुलिस छापे के दौरान उनके पैतृक घर से कई अवैध आधुनिक हथियार, सेना के नाइट विजन डिवाइस और पाकिस्तानी शस्त्र फैक्ट्रियों में बने हथियार बरामद हुए थे ।हत्या, अपहरण, बमबारी, अवैध हथियार रखने और जबरन वसूली करने के दर्जनों 
मामले शहाबुद्दीन पर हैं ।अदालत ने शहाबुद्दीन को उम्रकैद की सजा सुनाई थी ।

                      चुनाव लड़ने पर रोक                        
अदालत ने 2009 में शहाबुद्दीन के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी ।उस वक्त लोकसभा चुनाव में शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब ने पर्चा भरा था । लेकिन वह चुनाव हार गई ।उसके बाद से ही राजद का यह बाहुबली नेता कारागार में बंद है । शहाबुद्दीन पर एक साथ कई मामले चल रहे हैं और कई मामलों में उन्हें सजा सुनाई जा चुकी है । लेकिन अब स्थिति अलग है, उन्हें जमानत मिल चुकी है ।कहा जाता है कि भले ही शहाबुद्दीन इतने दिन जेल में रहकर रिहा हुए हों लेकिन उनका रूतबा आज भी सीवान में कायम है ।
तेजाब कांड में अपने तीन बेटों को खो चुके चंदा बाबू ने तो अपना धैर्य भी खो दिया है ।6000 की मासिक आमदनी से कोई थक चुका आदमी कितना लड़ेगा, लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि अब सिवान और बिहार की जनता क्या करे?
एक शहाबुद्दीन और कहानी अनेकों ।पूरी कहानी जानने के बाद इस शहाबुद्दीन को महज अपराधी कहना कतई जायज नहीं है ।यह खून चटोरा और हिंसक भेड़िया है जो किसी को भी लील सकता है ।हम अदालत की कार्रवाई पर कोई ऊँगली नहीं उठा रहे लेकिन ऐसे खून के सौदागर को कभी भी सलाखों के बाहर नहीं आना चाहिए ।जमानत के बाद यह दरिंदा सफ़ेद क्रिजदार कपड़ों में चस्मा लगाकर यूँ निकलता है,गोया किसी फ़िल्म की शूटिंग में जा रहा हो ।जिस राज्य की सरकार ही  जाति और धर्म पर चल रही हो,उस राज्य में कुछ भी सम्भव है ।ऊपर वाले इस बिलखते बिहार का आखिर क्या होगा ?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें


THANKS FOR YOURS COMMENTS.

*अपनी बात*

अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।