अगस्त 27, 2016

सामाजिक संवेदनाये हुई शून्य........

ओडिशा के कालाहांडी से मानवता को शर्मसार कर देने वाली खबर सुनकर हतप्रभ रह गया, जहां एक आदिवासी को अपनी बीवी की लाश कंधे पर रखकर 12 किलोमीटर इसलिए पैदल चलना पड़ा क्‍योंकि उसके पास गाड़ी करने को रुपए नहीं थे।
धिक्कार है इस सिस्टम पर जहां संवेदनाएं शून्य हो गयी है और मुनाफाखोर प्रवृति हावी। लिखते लिखते अपनी गजल की चंद पंक्तियाँ याद आ गयी अचानक-----
रो रही पूरी आबादी मुल्क के अपमान पर 
आप कहते हो मिंयाँ सब छोड़ दो भगवन पर.
बेचकर सरेआम अबला की यहाँ अस्मत प्रभु -
दे रहे हो मंच से भाषण दलित उत्थान पर.
साभार --- यह पोस्ट सोशल मीडिया व ब्लागिंग जगत के चर्चित शख़्सियत डॉ० रवीन्द्र प्रभात सर के टाइम लाईन से ली गई है....  
  


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें


THANKS FOR YOURS COMMENTS.

*अपनी बात*

अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।