दिसंबर 18, 2015

उग्रतारा महोत्सव में मशहूर सिने गायक विनोद राठौर और चांदनी रॉय..........



मुकेश कुमार सिंह की रिपोर्ट ---- सहरसा के महिषी स्थित राजकमल मैदान में आयोजित तीन दिवसीय उग्रतारा सांस्कृतिक महोत्सव में अपनी मदमस्त आवाज का जादू बिखेड़ने आये मशहूर सिने गायक विनोद राठौर और जादुई आवाज की मल्लिका कोलकाता की चांदनी से सहरसा टाईम्स के मुख्य संपादक ने ख़ास बातचीत की । यूँ महोत्सव के आखिरी दिन शाम से लेकर देर तक बॉलीबुड के जाने--माने गायक विनोद राठौर चांदनी और उनके म्यूजिकल ग्रुप ने सुरों की ऐसी दरिया बहाई जिसमें लोग बस जमकर डुबकियां लगाते रहे ।
विनोद राठौर और चांदनी के साथ मुकेश सिंह
विनोद राठौर के साथ कई फिल्मों में अपनी जादुई आवाज से लोगों को अपना कायल बनाने वाली चांदनी रॉय ने भी अपनी दिलकश आवाज से लोगों का मन मोह लिया ।
चांदनी रॉय ने भी सहरसा के दर्शकों की तारीफ़ में कसीदे कढ़े और कहा की उन्हें यहां गाना गाने में खूब मजा आया । विनोद राठौर ने कहा की वे बचपन से ही संगीत में डूबे रहे हैं । अपने ओजस्वी पिता पंडित चतर्भुज राठौर से उन्होनें संगीत की बारीकियों को ना केवल सीखा बल्कि उसी को आज भी आत्मसात किये हुए हैं ।उन्होनें कहा की वे देश की कई भाषाओं में गाने गा चुके हैं जिसमें मैथिली और भोजपुरी भी है ।अपने बड़े भाई रूप कुमार राठौर और श्रवण राठौर से भी बहुत कुछ सीखने की बात बताते हुए उन्होनें कहा की वे किशोर दा के दीवाने रहे हैं ।उनके गाये हिंदी गानों में उन्हें प्रेमग्रंथ फ़िल्म का गाना *दिल देने की रुत आई*और बाजीगर का *बताना भी नहीं आता और छुपाना भी नहीं आता*गाना उन्हें बेहद पसंद है ।
जानकारी देते हुए विनोद ने आगे कहा की उनका नया एल्बम *मेरा प्यार*जनवरी महीने में आ रहा है जो खूब धमाल मचायेगा ।12 सितम्बर 1962 को मुम्बई में पैदा हुए विनोद आज भी कार्यक्रम से पूर्व कम से कम दो घंटे रियाज करते हैं ।वर्ष 1987--88 में*मेरे दिल में अंधेरा है कोई शमा तो जला दे* गाना से अपना सफ़र शुरू करने वाले विनोद हिंदी,मराठी,अंग्रेजी,उड़िया,फ्रेंच,मैथिली,भोजपुरी सहित कई और भाषाओं में भी 3500 से ज्यादा गाने गा चुके हैं ।चांदनी कई बंगाली फिल्मों में अपनी मदमस्त आवाज दे चुकी हैं और कई हिंदी फिल्मों में एक साथ गा रही हैं ।

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।