अगस्त 23, 2015

कोसी विस्थापितों का दर्द..........

*अभीतक एक हजार से ज्यादा घर कोसी में समाये 
*डेढ़ लाख से ज्यादा की आबादी बाढ़ से प्रभावित 

*सैकड़ों परिवार हुए बेघर 
*जान बचाने के लिए गाँव छोड़ लोग सुरक्षित ठिकाने की तलाश में भाग रहे 

*नाव पर झोपडी और कुल जमापूंजी लादकर लोग गाँव छोड़,कर रहे पलायन 
*सैंकड़ों परिवारों ने विभिन्य स्पर और रिंग बाँध पर बनाया ठिकाना 

*राहत और बचाव कार्य अभीतक शुरू नहीं हुआ 
*लोग पानी,पोलीथिन सीट और अन्न के लिए तरस रहे 

*माल--मवेशी को भी बचाना हुआ मुश्किल 

मुकेश कुमार सिंह की कलम से--------विनाशकारी कोसी का कहर अब पूरे परवान पर है. अभीतक कोसी ने अपने रौद्र रूप से हजारों परिवारों का ना केवल बेघर कर दिया है बल्कि उन्हें दाने--दाने के लिए मोहताज भी कर दिया है.लोग किसी तरह जान बचाने के लिए गाँव छोड़ तटबंध के भीतरी इलाके से निकलकर तटबंध के बाहर आ रहे हैं. माल--मवेशी से लेकर जो सामान ये नाव पर लाद सकते थे सबकुछ लादकर ये बाहर तो निकल रहे हैं लेकिन सर छुपाना और मुंह का निवाला इनके लिए मील का पत्थर साबित हो रहा है.ये पीड़ित परिवार थोक में विभिन्य स्पर या फिर रिंग बाँध पर शरण ले रहे हैं.सरकार और प्रशासन की तरफ से इनके खाने--पीने से लेकर किसी तरह की राहत और मदद अभीतक नहीं पहुंचाई गयी है.लोग त्राहिमाम कर रहे हैं.

सहरसा जिले के नवहट्टा, महिषी, सलखुआ, बनमा ईटहरी और सिमरी बख्तियारपुर कुल पाँच प्रखंडों में कोसी कहर बरपा रही है.कोसी की इस तबाही में एक हजार से ज्यादा परिवार पूरी तरह से बेघर हो चुके हैं.कमोबेस डेढ़ लाख से ज्यादा की आबादी इस बाढ़ की चपेट में है.लगातार कोसी विभिन्य गाँवों में ना केवल तेजी से कटाव कर रही है बल्कि घरों को भी लीलती जा रही है.बानगी भर को हम आपको नवहट्टा प्रखंड के सिसई, रामपुर, केदली, बरियाही, छतवन, हाटी, डरहार, नौला, बिरजाईन आदि गावों के साथ--साथ सलखुआ प्रखंड के पिपरा गाँव के पीड़ितों का नजारा दिखा रहे हैं. 

हम इन गाँवों में मची तबाही से बेघर हुए लोगों की दुखती कहानी से आपको दो-चार करा रहे हैं.देखिये अपना सबकुछ गंवाकर किसी तरह जान बचाकर भागने में सफल हुए लोगों का जत्था किस तरह यहाँ स्पर और रिंग बाँध पर शरण लेने की कवायद में जुटा है.नावों पर झोपडी, जमापूंजी और जो कुछ भी उसपर लादा जा सका सबकुछ लादकर ये यहाँ पर आये हैं.अभी ये सर छुपाने की जुगात कर रहे हैं. हद की इंतहा देखिये की सरकार और प्रशासन की तरफ से इन्हें अभीतक किसी भी तरह की  मदद नहीं मिली है.इनलोगों को पीने के पानी से लेकर खाने तक पर लाले पड़े हुए हैं.अभीतक प्रशासन के किसी हाकिम या मुलाजिम ने इनकी कोई खोज-खबर नहीं ली है.यहाँ हाहाकार मचा है, लोग त्राहिमाम कर रहे हैं.कोसी का कहर अपने परवान पर है.कोसी गाँव के गाँव लील रही है.
हम आपको सलखुआ प्रखंड के पिपरा गाँव के उन पीड़ितों का दर्द भी दिखा रहे हैं जिनके घरबार कोसी ने लील लिए.अब ये खानाबदोश और यायावर की तरह कहीं पर आसरा लेकर अपनी जिंदगी बचाने की कवायद कर रहे हैं.ये पीड़ित सलखुआ की एक सड़क के किनारे अपनी झोपड़ी खड़ी करने की जुगत कर रहे हैं जिससे उनके घर के लोग उसमें शरण ले सकें.जाहिर तौर पर इनके ऊपर आफत का पहाड़ टूटा है.इनके पास ना तो खाने का कोई इंतजाम है और ना ही पीने के पानी की कोई व्यवस्था.सरकार का कोई भी तंत्र, अभीतक यहां नहीं पहुंचा है.राहत और मदद के लिए ये तमाम पीड़ित त्राहिमाम कर रहे हैं.
इनकी पीड़ा--व्यथा को जानने के दौरान हमें कोसी की मार झेलने वाली एक दुखियारी माँ बिंदल देवी मिली,जिसका लाडला बेटा सत्रह वर्षीय राजो की मौत कोसी नदी में डूबकर हो गयी है.जीवन की कुल जमापूंजी,घरबार से साथ--साथ इसने अपना बेटा भी खो दिया.बेटा नदी में बह गया जिसकी लाश भी बरामद नहीं हो सकी.जख्म गहरा और सदमा आसमानी है.इन सबके बीच सरकारी लापरवाही और अनदेखी का परचम बेशर्मी से लहरा रहा है.
एस.डी.ओ, जहांगीर आलम,सदर सहरसा का कहना है कि पीड़ितों को ना केवल राहत पहुंचाई जा रही है बल्कि उनके रहने का इंतजाम भी किया जा रहा है.इनकी नजर में प्रशासन पूरी तरह से संजीदा और गंभीर है.
तथाकथित सुशासन की सरकार में अधिकारी अलमस्त होकर काम कर रहे हैं.इन बाढ़ पीड़ितों के आंसू ना तो कोई समय पर पोछने वाला है और ना ही कोई महती मदद करने वाला ही है.जाहिर तौर पर किसी भी तरह की मदद विभागीय फाईलों को मजबूत करने के बाद ही पहुंचाई जा सकेगी.आखिर में हम इतना जरुर कहेंगे की कोसी के इस सैलाब ने दर्द और आंसूओं का भी सैलाब लाया है.इस इलाके में सिर्फ दर्द और टीस ही शेष बच रहे हैं.

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