अगस्त 01, 2015

मेरी विरासत संघर्षवाद की है, वंशवाद की नहीं ---- चेतन आनंद

पटना में "हम" नेत्री सह पूर्व सांसद लवली आनंद और जेल में बंद पूर्व सांसद आनंद मोहन के ज्येष्ठ पुत्र चेतन आनंद से सहरसा टाईम्स के ग्रुप एडिटर मुकेश कुमार सिंह की खास बातचीत-------
* मेरी विरासत संघर्षवाद की है,वंशवाद की नहीं ...
* मेरे पिता आनंद मोहन जी जे.पी.आंदोलन की उपज..... 
* कलही और बेईमान राजनीति ने लाठी--गोली--जेल--फांसी के अलावा हमारे परिवार को कुछ नहीं दिया.... 
* आनंद मोहन जी की राजनीति शर्तों की रही .....
* हम ना भागने वाले, ना हारने वाले,ना झुकने वाले और ना ही टूटने वाले हैं..... 
* शोषण,विषमता और जुल्म के खिलाफ और अपनी आन---वान और शान की खातिर हमारी लड़ाई अनवरत    जारी रहेगी 
           
 एक कार्यक्रम में शामिल होने पटना आये "हम" नेत्री सह पूर्व सांसद लवली आनंद और जेल में बंद पूर्व सांसद आनंद मोहन के ज्येष्ठ पुत्र चेतन आनंद ने सहरसा टाईम्स से बेहद खास और एक्सक्लूसिव बातचीत की. चेतन आनंद ने बातचीत की शुरुआत करते हुआ कहा की "मेरी विरासत संघर्षवाद की है, वंशवाद की नहीं". जिस तरह महाराणा प्रताप के दादा राणा सांगा, पिता उदय सिंह और खुद राणा प्रताप ने आजादी और स्वाभिमान के लिए मुगलों से पीढ़ी दर पीढ़ी संघर्ष किया, उसी तरह मेरे पिता आनंद मोहन जी के दादा स्वर्गीय रामबहादुर बाबू, जिन्हें लोग प्यार से कोसी का गांधी कहकर पुकारते थे, मेरे बड़े दादा जी पद्मानंद बाबू, दादा स्वर्गीय सच्चिदानंद बाबू देश की आजादी के वास्ते लगातार अंग्रेजों से लड़ते रहे. मेरे पिता आनंद मोहन जी स्वयं जे.पी.आंदलन की उपज हैं. जो अपने जीवन के अठारहवें वसंत में पढ़ाई छोड़कर लड़ाई में कूदे तथा 1974--1977 के छात्र आंदोलन से आपातकाल,जिसे लोग "दूसरी आजादी की लड़ाई" ,कहते हैं,में अनेकों बार लाठी--गोली और जेल की यातनाओं के शिकार हुए.अपने संघर्षों, सिद्धांतों और बेबाकी के कारण ही वे आज असीम कष्टों को वरण कर कारागार में कैद हैं.
चेतन आनंद ने बातचीत को आगे बढ़ाते हुए कहा की आनंद मोहन जी की लड़ाई कभी व्यक्तिगत नहीं रही.अविभाजित बिहार के चप्पे--चप्पे पर उनके संघर्षों की अमिट कहानी आज भी चस्पां है.वे सदैव राज्य,समाज और साथियों के हक़ के लिए लड़ते रहे.हाँ,यह बात दीगर है की उन्होनें राजनीति अपनी शर्तों पर की.कभी स्वाभिमान और सिद्धांत से समझौता नहीं किया.यही कारण है की कार्यकर्ताओं के सवाल पर मम्मी ने जहां बाढ़ की जीती हुयी सीट छोड़ दी,वहीँ पापा ने राजयसभा का "ऑफर" ठुकरा दिया.लेकिन खेद की जिन अपनों के लिए मम्मी--पापा ने इतनी बड़ी कुर्बानी दी,उन्हीं लोगों ने वक्त आने पर सत्ता के लालच में पाला बदल लिया.इस कलही और बेईमान राजनीति ने पुरे एक सदी के संघर्ष में लाठी--गोली--जेल--फांसी के अलावा हमारे परिवार को कुछ नहीं दिया है.मेरे परदादाओं स्वर्गीय रामबहादुर बाबू,राम नारायण बाबू और जंगबहादुर बाबू ब्रितानियाँ हुकूमत के खिलाफ लड़ते हुए लाठियां खायी और जेल गए.दादाओं को जेल में तरह---तरह की यंत्रणा झेलनी पड़ी और अब पापा सच बोलने की सजा भुगत रहे हैं.बड़ा सवाल यह है की जब सौ वर्षों के अनवरत संघर्ष में हमारे बड़े--बुजुर्गों को कुछ भी नहीं मिला,तो हमें क्या हासिल होना है.
चेतन काफी गंभीर थे और उनका लहजा बिल्कुल दार्शनिक जैसा प्रतीत हो रहा था.उन्होंने आगे कहा की 'वंशवाद" और "संघर्षवाद" में बड़ा ही बुनियादी फर्क है.सत्ता या पार्टी के शीर्ष पर विराजमान रहकर जो अपने लायक--नालायक पुत्रों--परिजनों को बतौर उत्तराधिकारी जनता पर थोपता है,तो इसे वंशवाद कहते हैं.लेकिन जब कोई अंजाम जानते हुए सच की खातिर और हर तरह के अन्याय के विरुद्ध सीना तानकर बगावत का परचम थामता है,तो यह संघर्षवाद है.
चेतन के भीतर खलबली सी मची लग रही थी और आँखों  में कई जज्बाती सवाल  ख़ामोशी से तैरते प्रतीत हो रहे थे.चेतन ने बातचीत को और अधिक खींचने की जगह उसे विराम देना मुनासिब समझा और आखिर में कहा की मैं "वंशवाद" नहीं "संघर्षवाद" का प्रतीक हूँ और आपके माध्यम से यह बताना चाहता हूँ की हर प्रकार के शोषण, विषमता और जुल्म के खिलाफ,साथ ही अपनी आन--वान और शान की खातिर हम पीढ़ी दर पीढ़ी लड़ने वाले लोग हैं.ना भागने वाले,ना हारने वाले,ना झुकने वाले और ना टूटने वाले.अगर जरुरत पड़ी तो हम अपनी जान देकर भी "पापा की लड़ाई" को जारी रखेंगे.

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