जुलाई 17, 2015

बंदी की मौत ........


सहरसा टाइम्स की रिपोर्ट : बीते चौदह जुलाई को मंडल कारा सहरसा से ईलाज के लिए सदर अस्पताल लाये गए बंदी मरीज बनारसी सदा की ईलाज के दौरान मौत हो गयी. मृतक बंदी जिले के फोरसाहा गाँव का रहने वाला था और एक नरसंहार मामले में आजीवन कारावास की सजा सहरसा मंडल कारा में काट रहा था.मृतक के परिजनों ने ईलाज में डॉक्टरों की लापरवाही को बंदी की मौत की वजह बताया है.
सदर अस्पताल के बंदी कक्ष में मृतक की लाश पड़ी हुयी है. 1985 में जिले के सौर बाजार प्रखंड के फोरसाहा गाँव में एक साथ 8 लोगों की ह्त्या की गयी थी.इस मामले में 1992 में हाई कोर्ट के द्वारा 25 लोगों को आजीवन कारावास की सजा हुयी थी.बनारसी सदा इन सजायाफ्ताओं में से एक था.मृतक के परिजन साफ़--साफ़ कह रहे हैं की बंदी का ईलाज सही तरीके से नहीं हुआ.डॉक्टरों ने बंदी मरीज को सिर्फ पानी चढ़ाया जबकि उसे गैस की शिकायत थी.बिना दवा के यह मरीज तड़प-तड़प कर मर गया.बताना लाजिमी है की इसी मामले में एक अन्य सजायाफ्ता बंदी रघुनन्दन यादव की मौत भी ईलाज के दौरान सदर अस्पताल में इसी साल हुयी थी.और तभी भी मृतक के परिजन ने इसी तरह से डॉक्टर की लापरवाही को उक्त बंदी की मौत की वजह बताया था.
मौके पर जेल जमादार कपिलदेव सिंह घटना के बाबत जानकारी देने के साथ---साथ मृतक के   परिजनों के द्वारा चिकित्सक पर लगाए जा रहे आरोपों के बारे में भी जानकारी दे रहे हैं.  बंदी के मामले में शख्त कानूनी दांव--पेंच और प्रशासनिक उदासीनता अक्सर बंदी की मौत की वजह बनती है.समय पर साधारण बंदियों को जेल से निकालकर बाहर किसी बेहतर मेडिकल संस्थान में ले जाकर ईलाज करवाने से पहले थोक में कागजी कार्रवाई होती है और तबतक बंदी इस दुनिया को अलविदा कह देता है.

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।