मार्च 15, 2013

बेशर्म पुलिस की बेहया हरकत

 सहरसा पुलिस की बेदर्दी की ज़िंदा मिशाल को आज करेंगे हम बेपर्दा///मुकेश कुमार सिंह///
सहरसा पुलिस की बेशर्मी,बेदर्दी और उसकी बेहयाई की एक से बढ़कर एक छीछालेदार कहानी को लेकर हम लगातार आपके सामने आते रहे हैं। आज हम जिस बेशर्मी की कहानी आपको बताने जा रहे हैं,उसे देखकर आप यह जरुर समझ जायेंगे की सरकार या फिर राज्य मुख्यालय में बैठे बड़े पुलिस अफसरानों के फरमान से सहरसा पुलिस को एक तो कोई लेना--देना नहीं है दूजा इनको किसी का डर--भय भी नहीं है। यहाँ की अलमस्त पुलिस अपनी बिगडैल कार्यशैली को किसी भी सूरत में छोड़ने को तैयार नहीं है।एटीएम कार्ड बदल कर फर्जीवाड़ा करके 77 हजार रूपये किसी ने निकाल लिए हों तो सोचिये आपकी क्या दशा होगी।एक शख्स के साथ यह घटना घटी और वह फ़रियाद लेकर सदर थाना गया लेकिन उसकी फ़रियाद सुनने की जगह थाने  के हाकिमों ने इस पीड़ित को यह कहकर चलता कर दिया या यूँ कहें भगा दिया की आखिर आप किस पर मुकदमा करेंगे।थक--हारकर पीड़ित सहरसा टाईम्स के पास पहुंचा फिर हमारी दखल के बाद थाने में घटना के मुतल्लिक पीड़ित से आवेदन लिया गया लेकिन आगे उसपर कारवाई क्या और कैसी होगी इसपर संसय बरकरार है। 
इनसे मिलिए यह है सदर थाना क्षेत्र के रिहायशी शिवपुरी मोहल्ले के रहने वाले लक्ष्मण यादव।जनाब लुट चुके हैं।बीते 23 फरवरी को ये पंजाब नॅशनल बैक के एटीएम में अपना एटीएम कार्ड लेकर गए थे।इन्हें दस हजार रूपये की जरुरत थी।दस हजार के लिए इन्होने एटीएम में बटन दबाया लेकिन शायद एक शून्य कम दबा जिस वजह से उन्हें महज एक हजार रूपये ही मिल पाए।इन्होनें इसके बाद कई बार फिर से रूपये निकालने की कोशिश की लेकिन रूपये नहीं निकले।तभी पीछे से एक शख्स उनकी मदद के लिए आगे आया और उनका एटीएम कार्ड लेकर रूपये निकालने की कोशिश करने लगा लेकिन रूपये फिर भी नहीं निकले।थक--हारकर ये अपने घर लौट आये।आज ये अपने पासबुक को अप टू डेट कराने बैंक गए थे।इन्होने जब अपने पासबुक को अप टू डेट कराया तो इनके के पाँव के नीचे की जमीन ही खिसक गयी।इनके खाते से 77 हजार रूपये किसी ने निकाल लिए थे।ये तो पागल हो उठे। इन्होनें एटीएम कार्ड भी निकाला और उसकी तहकीकात शुरू की।आप यह जानकार हैरान हो जायेंगे की इनके पास पंजाब नेशनल बैंक का ही एटीएम कार्ड मौजूद था लेकिन वह भी उनका नहीं था बल्कि वह किसी और का था।यानि 23 फरवरी को जब ये एटीएम से रूपये निकाल रहे थे उसी वक्त उनका एटीएम कार्ड भी बदल लिया गया था।पूरा माजरा समझकर इन्होने अपने कुछ रिश्तेदारों को साथ लिया और सदर थाना पहुंचे।लेकिन यहाँ उनकी फ़रियाद सुनने और इनकी मदद करने की जगह पुलिसवालों ने इनको यहाँ से यह कहकर भगा दिया की आखिर आप किसपर मुकदमा करेंगे।यानि थाने में उनकी समस्या का कोई समाधान नहीं है।परेशान--हाल यह पीड़ित फिर ढूंढते --ढूंढते अपनी फ़रियाद लेकर सहरसा टाईम्स के पास आया और पूरी घटना को तफसील से बताया।हमने इस मामले में पुरजोर दखल दी और पीड़ित को लेकर सदर थाना पहुंचे।हमारी दखल के बाद पीड़ित को थाने में बैठने के लिए ना केवल कुर्सी मिली बल्कि उनके साथ घटी घटना को लेकर आवेदन देने की इजाजत भी मिली। 
हमारी दखल के बाद थाने में पुलिसवालों ने ना केवल पीड़ित बल्कि उनके रिश्तेदारों को पहले तो इज्जत से कुर्सी पर बिठाया फिर क्या घटना घटी है उसको लेकर आवेदन देने को कहा।देखिये किस तरह से पीड़ित के रिश्तेदार थाने में बैठकर आवेदन लिख रहे हैं।आवेदन लिख रहे पीड़ित के रिश्तेदार अनिल कुमार यादव साफ़--साफ़ लहजे में कह रहे हैं की सहरसा टाईम्स की वजह से उन्हें थाने में आवेदन देने की इजाजत मिली है लेकिन आगे इसपर क्या और कैसी कारवाई होगी,इसपर अभी कुछ भी कहना नामुमकिन है।
पुलिस की बेजा हरकत से उसे कठघरे में खडा करने वाली इस घटना को लेकर हमने पुलिस अधिकारियों से जबाब--तलब करना चाहा लेकिन इस बाबत निचले स्तर के पुलिस वालों ने हाथ जोड़कर हमसे कुछ भी ना बोलवाने की हमसे मिन्नतें की।हमने इन बेबस पुलिस वालों पर तरस खाते हुए बड़े अधिकारियों का रुख किया।
लेकिन देखिये सदर थानाध्यक्ष सह सदर इन्स्पेक्टर सूर्यकांत चौबे का कक्ष किस तरह से खाली पड़ा हुआ है।हमने बहुत कोशिश की उनका कम से कम दीदार हो जाए लेकिन वे हमारे दो घंटे तक इन्तजार करने के बाद भी वे थाना नहीं आये।सूत्रों की माने तो हमारी मौजूदगी की वजह से वे यहाँ नहीं आये।यूँ बताते चलें की बीते पांच दिनों से सहरसा के पुलिस अधीक्षक अजीत सत्यार्थी अवकाश पर है और जिले से फिलवक्त बाहर हैं।
पुलिस सदैव आपकी सेवा के लिए तत्पर है।पुलिस आपके सहयोग के लिए है।किसी भी तरह की गड़बड़ी की सुचना फ़ौरन पुलिस को दें। पुलिस और पब्लिक मैत्री और आपस के मधुर सम्बन्ध से ही अपराध नियंत्रण संभव है।यह सारे स्लोगन सहरसा में बेमानी साबित हो रहे हैं।सहरसा में अगर आप के साथ कोई घटना घट गयी है तो आप या तो उसे किसी तरह से भूलने की कोशिश कीजिये या फिर उसके समाधान के लिए खुद से कोई पहल और प्रयास कीजिये। सहरसा पुलिस के लिए पीड़ित के दर्द,उनकी मुसीबत और उनकी तकलीफों का कोई मोल नहीं है। सच मानिए,यहाँ के पुलिसवालों को पीड़ितों से कोई लेना--देना नहीं है। वैसे भी जिस घटना में अपराधियों के नाम जाहिर हैं उसपर तो पुलिस कारवाई कर पाने में सक्षम साबित हो ही नहीं पा रही है तो जिस घटना में किसी का नाम बेपर्दा करने की बात हो उसमें पुलिस के हाथ--पाँव फूलने लाजिमी है।जाहिर सी बात है की यही वजह रही होगी जिस कारण से लक्ष्मण यादव को पुलिस ने थाने से टरकाने--भगाने का प्रयास किया।

1 टिप्पणी:

  1. Saharsa's citizen have educational illiteracy therefore all the government and public body enjoys every time despite of any harassment and fearing of people.so need to deactive all the wrong way and should be proactive to do all great way such as vox-populi and public gaze,hook up in this ground.

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