जनवरी 31, 2013

सहरसा टाईम्स ने जगाई संवेदना

IMPACT OF SAHARSA TIMES

मुकेश कुमार सिंह: आज एक बार फिर सहरसा टाईम्स ने मर रही इंसानियत और कुंद पर रही संवेदना को ना केवल जगाने का काम किया है बल्कि एक इंसानी जिन्दगी बेजा खत्म होने से बच सके,इसका पुख्ता इंतजाम भी किया है।कोसी प्रमंडल के PMCH कहे जाने वाले सदर असपता सहरसा के आपातकालीन कक्ष में एक लावारिश महिला फर्श पर पड़ी धरती के भगवान का बाट जोह रही थी की वो आये और उसका इलाज करे लेकिन किसी ने इसकी सुध नहीं ली।एन वक्त पर सहरसा टाईम्स अस्पताल पहुंचा और उसकी पहल के बाद सोये अस्पताल में हलचल हुयी।आनन--फानन में अस्पतालकर्मी ना केवल हमारे कैमरे के सामने बीमार महिला को बेड पर पहुंचाया बल्कि तुरंत उसका इलाज भी शुरू हुआ।रात दस बजे सहरसा टाईम्स की पहल पर यह सारा संभव हुआ।इसे पुरे एपिसोड में करीब एक घंटा का वक्त गुजर गया लेकिन इस दौरान आपातकालीन कक्ष में डॉक्टर की कुर्सी खाली रही।यानी हमारी तमाम कोशिशों के बाबजूद डॉक्टर साहब आपातकालीन कक्ष से गायब रहे।हांलांकि इसको लेकर मौके पर मौजूद स्वास्थ्यकर्मी ने हमें बहलाने की खूब कोशिश की। 
आपातकालीन कक्ष के फर्श पर पड़ी यह महिला लावारिश है।मुफलिसी और फटेहाली ने इसे अपने आगोश में ले रखा है।जाहिर तौर पर यह ना तो किसी की ख्वाहिश है और ना ही इसकी किसी को कोई जरुरत है।अकेली है,इसलिए इसका कोई तीमारदार भी नहीं है।आपातकालीन कक्ष के फर्श पर पड़ी यह बेबस महिला धरती के भगवान की मेहरबानी चाह रही है लेकिन ठूंठ और निष्प्राण हो चुकी इंसानियत के सामने इसकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है। इसको शख्त इलाज की जरुरत है लेकिन इसे क्या बिमारी है और इसका उपचार कैसे हो इसको लेकर किसी को कोई चिंता नहीं है।पूछने पर यह बताती है की इसको यहाँ पर बेड नहीं दिया जा रहा है।कहती है की वह पिछले 24 घंटे से भूखी है लेकिन उसे निवाला देने वाला कोई नहीं है।यह शब्जी--भात खाने की अपनी इच्छा से सहरसा टाईम्स को दो--चार करा रही है।हमारी पहल के बाद सबसे पहले अस्पतालकर्मियों में खलबली मच गयी और आनन--फानन में ना केवल उसे बेड पर ले जाया गया बल्कि तुरंत उसका इलाज भी शुरू हुआ।बेड मिलने के बाद बीमार महिला काफी खुश हो गयी और सहरसा टाईम्स को इसके लिए धन्यवाद देने लागी।
आपातकालीन कक्ष में तैनात स्वास्थ्यकर्मी ने साफ़--साफ़ स्वीकार किया की हमारे उस कक्ष में पहुँचने के बाद वे इस बीमार महिला को बेड मुहैया कराने के लिए बाध्य हुए।ये सहरसा टाईम्स की पहल को स्वीकार रहे हैं।हमारी इस पहल को एक घंटा से ज्यादा का वक्त लगा जब उसका पूरा असर हमारे सामने हुआ।लेकिन हद की इंतहा देखिये की इस दौरान आपातकालीन कक्ष से डॉक्टर साहब गायब रहे।हमने इस बड़ी लापरवाही को लेकर भी मौके पर मौजूद स्वास्थ्यकर्मियों से सवाल किये लेकिन इस मुद्दे पर स्वास्थ्यकर्मी हमें बहलाने की भरपूर कोशिश करते रहे।अनिल मालाकार नाम के स्वास्थ्यकर्मी का कभी कहना था की डॉक्टर साहब यहीं थे,अभी---अभी बाहर गए हैं।कभी वे कह रहे थे की डॉक्टर साहब वार्ड गए हैं।यह सही है की हमारी पहल के बाद बीमार लावारिश महिला को ना केवल एक अदद बेड मयस्सर हुआ बल्कि उसका इलाज भी शुरू हुआ। लेकिन बड़ा सवाल यह है की सहरसा टाईम्स कबतक इस बीमार महिला के पास तीमारदारी के लिए खडा रहेगा।आखिर कबतक हम लोगों को उनके कर्तव्य का अहसास कराते रहेंगे।यूँ बताना लाजिमी है जगाया उसे जाता है जो गहरी नींद में हों।लेकिन जो जागकर अपने कर्तव्य के प्रति लापरवाह हों उसे किस बूते जगाएं और उनका जागना आगे कबतक सच की शक्ल में काबिज रह पायेगा।

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