फ़रवरी 01, 2017

क्या माँ सरस्वती केवल मूर्तियों में हो गयी हैं गुम?

माँ सरस्वती की आराधना पर पूजा परासर की खास रिपोर्ट---
*  क्या माँ सरस्वती केवल मूर्तियों में हो गयी हैं गुम?....
*  इसकी महत्ता से दूर हो रही है नयी पीढियां .......
*  पूजा के नाम पर होती है अश्लीलता ........
*  आज पूजा-अर्चना से ज्यादा आत्म मंथन की है  जरुरत.........
*  आत्म शुद्दिकरण का प्रयास है असली पूजा .........
*  वसंत पंचमी (श्री पंचमी) पर ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है ....
"'प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु""।
अर्थात् माँ परम चेतना हैं ।सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि,प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं ।हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं ।इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है ।
प्राचीन काल से ही नारी की पूजा अनेक रूपों में की जाती रही है ।आज बसंत पंचमी के दिन ज्ञान की देवी सरस्वती के रूप में पूजी जाती है ।महान आचारशास्त्री 'मनू' ने भी लिखा है:-" यत्र नार्यस्तू पूज्यते,रमनते तत्र देवता ।"
यानि जहाँ नारी की पूजा की जाती है वहीं देवता निवास करते हैं ।लेकिन इससे कहीं विपरित बातें आज हमें देखने को मिल रही है ।माँ सरस्वती की पूजा पुरातन काल से लेकर आज घर-घर में बड़े उमंग और उत्साह से की जा रही है ।लेकिन विडम्बना देखिये की,इसके विपरीत नारियों को समाज में जो महत्व दिया जा रहा है,उससे हम अनभिज्ञ नहीं हैं ।महलाओं पर देश भर में जुल्म और अत्याचार,अब आम बात हो गयी है ।दामिनी जैसी घटना मानवीय मूल्यों के हुए ह्रास का जीता जागता नमूना है ।यही नहीं नारी का बचपन भी सुरक्षित नहीं है ।कई घटनाएं इस बात की गवाही देती हैं ।आज की परिस्थिति और ताजा हालात से यह साफ तौर पर जाहिर करता है की माँ सरस्वती केवल मूर्तियों में सिमटकर ही रह गयी है ।बारीकी से देखें तो,ज्ञान के अभाव में कई जगह प्रतिमा बनाकर मनोरंजन के उद्धेश्य को पूरा किया जा रहा है ।जो नयी पीढ़ी आज के दौर में सामने आ रही है,उन्हें तो यह भी नहीं मालूम की हमारे निजी जीवन में इस पूजा का कितना महत्व है ...?ऐसे लोग पूजा--अर्चना में लगे होते हैं,जिन्हें ज्ञान अथवा शिक्षा से कोई लेना--देना नहीं होता ।यह पूरी तरह से साफ है की चहुँदिश,पूजा -अर्चना तो की जा रही है लेकिन हम आध्यात्म से उतने ही दूर होते जा रहे हैं ।जहाँ एक ओर समाज में महिलाओं को पूरा सम्मान अब तक नहीं मिल पाया है ,वहीं दूसरी ओर पूजा का माहौल बनाकर नारियों पर गलत निगाह डाली जा रही है ।पूजा के भव्य पांडालों में अश्लील गीत बजते रहते हैं,जहां बच्चे,युवा से लेकर प्रौढ़ पुरुष तक थिरकते रहते हैं ।पूजा पांडालों तक पहुँचने वाली युवतियों और बच्चियों को घूरने से लेकर छेड़ने तक की घटना घटती है । आखिर यह कौन सी पूजा है ?आखिर नारियों को वस्तु समझकर क्यों देखा जाता है ?क्यों हमारे समृद्ध संस्कारों को घुन्न लग गए हैं ?पहले तो माँ की इस पूजा में शराब का भी खूब सेवन होता था ।लेकिन शराबबंदी के खूब फायदे हुए हैं ।बाबजूद इसके इस मौके पर विभिन्य मादक पदार्थों का सेवन,एक तरह से पूजा की एक विधि बन गयी है ।बदले हुए समाज का यह चेहरा हृदय को सालता है ।आखिर कहाँ आ लुढ़के हैं हम ।
         आज के समाज की जरुरत यह नहीं की बाह्य आडम्बरों में घिरकर हम अपने ही अस्तित्व को धुमिल,या फिर खत्म कर दें ।आज जरुरत है की हम आत्म मंथन करें और बहुतेरे ऐसे कार्य करें ताकि माँ सरस्वती को भी अपने नारी रूप में होने पर गर्व हो ...माँ सरस्वती को भी लगे की भक्त सही में उनकी पूजा कर रहे हैं ।माँ सरस्वती की लाज बचाने के लिए नारियों की ना केवल लाज बचानी होगी बल्कि अन्तरतम से नारियों को आसमानी सम्मान देना होगा ।

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।