जनवरी 08, 2013

ठंढ की गिरफ्त में सहरसावासी

सहरसा टाइम्स रिपोर्ट: कड़ाके की ठंढ झेल रहे उत्तर भारतीय लोगों पर फिलवक्त ठंढ अभी और कहर बरपाने पर आमदा दिख रही है.घने कोहरे और सर्द हवाओं से ठिठुराते-कंपकपाते लोग ऐसे में बस अपने इष्टदेव को याद करने में जुटे हैं.जानलेवा इस ठंढ ने सहरसा के जनजीवन को भी पूरी तरह से चौपट कर डाला है.इसमें कोई शक-शुब्बा नहीं की यहाँ के लोगों के जीवन की रफ़्तार को ठंढ ने ब्रेक लगा दिया है.ठंढ का पारा गिरकर पाँच  सेंटीग्रेट से नीचे जा पहुंचा है.यूँ स्कूल और कॉलेज दोनों खुले हुए हैं.लेकिन छात्र और छात्राएं कॉलेज में क्लास करने की बजाय इस प्राणघाती ठंढ में आग सेंकने में ही अपनी भलाई समझ रहे है.सबसे मुश्किल का सामना तो विभिन्य अस्पतालों में पहुँचने वाले मरीज और उनके परिजन कर रहे हैं जिन्हें अस्पताल में कोई पूछने वाला तक नहीं है.अमूमन अस्पताल के बेड बिना मरीज के यूँ ही खाली पड़े हैं.हद की इन्तहा देखिये की बेहिसाब ठंढ के बाद भी सहरसा जिला मुख्यालय से लेकर सुदूर ग्रामीण इलाके में कहीं भी अलाव की व्यवस्था नहीं की गयी है.लेकिन प्रशासन के अधिकारी अपनी आदत के मुताबिक़ अलाव जलाने से लेकर तरह-तरह के दावे करने से बाज नहीं आ रहे हैं.जान की फ़िक्र है इसलिए लोग चाय पी-पीकर या फिर किसी तरह लकड़ी का इंतजाम कर आग सेंक कर अपनी जान की हिफाजत करने में जुटे हैं.  

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*अपनी बात*

अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।