
पुलिस कहती है--- पुलिस के अधिकारी इस पुरे मामले को साजिश बता रहे हैं। इनकी माने तो जिनलोगों ने उक्त जमीन पर झोपड़ी बनाए हैं वह बिलकुल गलत है। इस जमीन पर महादलितों का मालिकाना हक़ नहीं है। जिनलोगों पर इस घटना को अंजाम देने का आरोप लग रहा है उन्हें इस जमीन का मालिकाना हक़ प्राप्त है। 1953 में ही उनलोगों को यह जमीन भूदान से मिली हुयी है। यानी ये साफ़--साफ़ लहजे में कह रहे हैं की खुद इनलोगों ने अपने घर में आग लगाकर इस घटना की पूरी पटकथा लिखी है। वैसे इस घटना की तह से जांच होगी फिर आगे जो उचित होगा,वैसी कारवाई होगी।
अब इस मामले का असल सच क्या है यह तो बड़े अधिकारियों की हस्तक्षेप और उनकी जांच से ही स्पष्ट हो पायेगा। लेकिन अभी ये महादलित डरे--सहमे दिख रहे हैं। आप यह जानकार हैरान हो जायेंगे की इन महादलितों के पास भी भूदान से जमीन हासिल के कागजात हैं। अब ये कागजात इनके पास कैसे आये और इन महादलितों को पीछे से कौन उकसा रहा है इसे खंगालना भी पुलिस के लिए चुनौती होगी।
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