जुलाई 25, 2012

हड़ताली मासूमों की जान प़र बनी

रिपोर्ट चन्दन सिंह: कहते हैं जिसका कोई नहीं उसका तो खुदा है यारों.लेकिन यहाँ तो लग रहा है ऊपर वाले ने भी मुंह फेर लिया है.किस्मत के मारे इन अनाथ बच्चों प़र भगवान को भी तरस नहीं आ रहा है.चित्कार और दर्द में सनी यहाँ की तस्वीर यमराज को रुलाने का माद्दा रखता है लेकिन भगवान को भी ना जाने क्या हो गया है.लगता है की भगवान ने भी जात--जमात और पैसे--रसूख वालों प़र ही मेहरबान होने का मन बना लिया है.पहले तो इन मासूमों के सर से माँ--बाप का साया छीना अब इनको तिल--तिल कर मरने को छोड़ दिया है.कुल 23 की संख्यां में इस अनाथ आश्रम में अनाथ बच्चे पल रहे हैं.पल क्या रहे हैं बस जिन्दगी के दिन काट रहे हैं.13 बच्चे कुसहा त्रासदी के हैं और 10 बच्चे इधर--उधर से भूले--भटके लावारिश हैं जिन्हें लाकर जमा कर दिया गया है. कुछ बच्चे कुपोषण के शिकार हैं लेकिन इनका इलाज नहीं हो पा रहा है.अब यहाँ अनशन प़र पड़े पाँच बच्चों की हालत बिगड़ चुकी है.बच्चे बीमार पड़ते जा रहे हैं. ये खुद के बीमार होने की भी बात कर रहे हैं
इन मासूम नौनिहालों को किसी तारणहार की जरूरत है.सरकार को बेजा कामों में खर्च करने के लिए या यूँ कहें पानी में बहाने के लिए पैसे हैं लेकिन इन बच्चों की जिन्दगी बचाने के लिए पैसे या कोई बड़ी योजना नहीं है.आखिर सरकार किस खुशफहमी में है.क्यों नहीं इन बच्चों के लिए सरकार आगे आ रही है.एसी कमरे में चिकेन--बिरयानी और लजीज व्यंजनों के जायके लेने में इन बच्चों की सुधि लेना निश्चित रूप से नामुमकिन है.काश ! ये ओहदेदार इन मासूमों में अपनी संतान की सूरत देखते.सच मानिए तब पाँव के नीचे की ज़मीन ही फट जाती.ऊपर वाले तुने देने में कोई कमी नहीं की लेकिन किसे क्या मिला यह तो मुकद्दर की बात है.

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*अपनी बात*

अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।