जुलाई 25, 2012

2008 की कुसहा त्रासदी में हुए अनाथ मासूमों की भूख हड़ताल

आकांक्षा अनाथालय के बच्चे 
रिपोर्ट चन्दन सिंह: जिला समाहरणालय के ठीक सामने एक जर्जर भवन में अवस्थित आकांक्षा अनाथ आश्रम के दिन अब लद से गए हैं.एक संतान विहीन दम्पति द्वारा बिना किसी सरकारी और प्रशासनिक मदद के संचालित इस आश्रम में कुल तेईस अनाथ बच्चे पल रहे हैं जिसमें कुसहा त्रासदी के तेरह अनाथ बच्चे हैं. बिना किसी सरकारी--प्रशासनिक मदद के चलने वाले इस अनाथ आश्रम में बीते चार वर्षों से इन मासूम नौनिहालों में किसी तरह जान फूंकने की कवायद चलती रही.लेकिन अब इस आश्रम के संचालक आर्थिक रूप से पूरी तरह से टूट गए हैं और इन बच्चों के लालन--पालन में पूरी तरह से असमर्थ हैं.बीते चार वर्षों में आश्रम के संचालक ने मंत्री,सांसद--विधायक से लेकर जिले के तमाम बड़े अधिकारियों से इन बच्चों के लिए जीभर के गुहार लगाई लेकिन किसी ने इन बच्चों के लिए मजबूत पहल नहीं की.आज नतीजा सामने है की यहाँ पल रहे बच्चे दीन--हीन बने दाने--दाने को मोहताज हैं.आलम यह है की आज अहले सुबह से ये टूटे नौनिहाल जिन्दगी बचाने के लिए जिला समाहरणालय के सामने भूख हड़ताल प़र बैठे हैं.ये टूगर बच्चे भोजन,वस्त्र,इलाज और भविष्य के लिए तरस रहे हैं और डी.एम साहब से फ़रियाद कर रहे हैं की मुझे खाना दो नहीं तो मरने की इजाजत दो.
यह बिल्कुल साफ़ हो चुका है की सत्तासीनों और उसके तंत्रों की आँखें और उनके कान अलहदा होते हैं.सुशासन का दावा करने वाले एसी नेताओं को ये तस्वीरें दोजख और तबाही के नहीं लगेंगी.यह तस्वीरें उन्हें सिर्फ और सिर्फ तमाशे की लगेंगी.गोया हमने बाहर से कलाकार मंगवाकर तस्वीरें उतारी हों.नीतीश बाबू अपनी आँखों पर आपने ना जाने कौन सा चस्मा चढ़ा रखा है जिससे सिर्फ चाँद--तारे और सूरज के साथ--साथ विकास ही दिखते हैं.राजा साहब,कोशिश करके ऐसा चस्मा पहनिए जिससे सच और वाजिबियत की जमीनी तस्वीरें दिखें.

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अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।