पुरुषों की नजर और सोच अक्सर नारी को करती हैं घायल......
नारी भी कम गुनहगार नहीं ........
जीवन उसूलों से भरा हो,तो मर्द रहेंगे दायरे में.......
पूजा परासर का यह आलेख आधी आवादी सोशल ग्रुप से लिया गया है ---
हमारा विषय है आधुनिक काल में नारियों की वाजिब दशा । कुछ दशक पहले तक बलात्कार जैसी घटना पर आवाज ना के बराबर उठती थी लेकिन अब तो अखबार और टीवी चैनल ऐसी घटनाओं से भरे पड़े हैं ।
मुझे याद है की वंदना प्रेयसि जो एक आईएएस अधिकारी हैं,अपने एक आलेख में लिखा था की ऊँची जगह पर पहुचनें के बाद भी निम्न स्तर के पुरुष उनके अंग--प्रतिअंग को निहारने और घूरने से बाज नहीं आते थे । उनके आलेख में एक दर्द छुपा था ।हमने यह समझा की हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति की शिक्षा अब के परिवेश में नहीं दी जा रही है। यह उसी का नतीजा है । स्कूल और कॉलेज का ड्रेस कोड अति आवश्यक है और श्रृंगार खुद को कितना भा रहा है इसका आकलन बेहद जरुरी है । नारी अगर पुरुषों को मौक़ा ना दे तो पुरुष उनकी तरफ एक कदम भी नहीं बढ़ा सकते हैं ।।शालीन परिधान और शालीन मेकअप आपके वजूद में चार चाँद तो लगाते ही है,साथ ही आपकी सुरक्षा के वे मजबूत हथियार भी साबित होते हैं ।हमारी समझ से पढ़ाई के साथ--साथ जीवन में कुछ बड़ा करने की सोच जब हृदय में जगह बना ले,तो,बहुत सारी चीजें यूँ ही पीछे छूटने लगती हैं ।
नारी भी कम गुनहगार नहीं ........
जीवन उसूलों से भरा हो,तो मर्द रहेंगे दायरे में.......
पूजा परासर का यह आलेख आधी आवादी सोशल ग्रुप से लिया गया है ---
सृष्टिकाल से नारी सम्मानित और पूज्या कम और भोग्या ज्यादा रहीं हैं । रामायण में सीता का हरण(अपहरण), बाली का अपने छोटे भाई सुग्रीव् की पत्नी से प्रेम....महाभारतकाल में द्रोपदी की कथा, इसके अलावे शिव और कृष्ण लीला, नारी को एक वस्तु स्थापित करती रही है ।हम पुरातन बातों को घसीटने की मंसा नहीं रखते हैं ।

खासकर कम उम्र की लडकियां, जो वयस्क हो रही हैं, वे अपने परिधानों का सटीक चयन नहीं कर पा रही हैं ।घर का परिवेश उन्हें मर्यादा का पाठ कतई नहीं पढ़ाता है । यह कहना की बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं है, यह पल्ला झाड़ गुनाह है। दोनों में बेहद असमानताएं हैं। हाँ ! आप उनकी शिक्षा और आजादी को समान समझिये ।दोनों को जीवन जीने का समान अधिकार है ।अपने बेहतर तरीकों से वह दोनों समाज में एक नया इतिहास बना सकते हैं ।
लेकिन खासकर लडकियां या वयस्क नारी उत्तेजक परिधान पहनकर स्कूल जाती हैं। खासकर सार्वजनिक मेले और मंदिर में भी सज--संवरकर जाती हैं । इसे क्या समझें ? आप पुरुषों को घूरने और छींटाकशी का खुद अवसर दे रही हैं। स्वच्छंदता और आजादी एक सीमा तक ही सही है ।

हम नारी हैं, हमें नारी के हर आचरण पर समय--समय पर गहन बहस और विमर्श करते रहना चाहिए । जिस देश में नारी की पूजा होती हो । वहाँ नारी को सदैव जागृत होकर अपने आचरण का अनवरत मूल्यांकन करते रहना चाहिए ।
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