सुप्रीम कोर्ट का खास फैसला,लहू चाटने वाले की असली जगह है जेल
राज्य सरकार को को भी सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने शहाबुद्दीन की जमानत याचिका की खारिज
सीवान कोर्ट में शहाबुद्दीन ने किया आत्मसमर्पण
मुकेश कुमार सिंह की दो टूक-- सिवान के पूर्व सांसद,राजद नेता सह बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन को सुप्रीम कोर्ट ने ना केवल झटका दिया है बल्कि खुदा की तरह उनकी तक़दीर लिख दी है ।अदालत ने शहाबुद्दीन की जमानत रद्द करते हुए उसे कस्टडी में लेने का फरमान जारी किया है ।गौरतलब है कि बिहार सरकार व तेजाब हत्याकांड में अपने तीन बेटों को खोने वाले चंदा बाबू ने शहाबुद्दीन को पटना हाईकोर्ट द्वारा दी गई जमानत को रद्द करने के लिए सुप्रीमकोर्ट में अपील की थी ।शहाबुद्दीन के फैसले की तीन दिन से सुप्रीमकोर्ट में सुनवाई चल रही थी ।सुनवाई पूरी करते हुए फैसले को सुरक्षित रखा गया था ।जिसके बाद आज शहाबुद्दीन का फ़ैसला हुआ,जिसमें उन्हें बेल नहीं जेल की सजा मिली ।
बताना बेहद लाजिमी है की सुप्रीम कोर्ट ने मामले को गंभीरता से ना लेने के लिए बिहार सरकार को भी जमकर फटकार लगाई थी ।कोर्ट ने तंज भरे लहजे में सरकार से पूछा था की क्या शहाबुद्दीन को जमानत मिलने तक आप नींद में थे?हद तो इस बात की थी जब शहाबुद्द्दीन को यह अहसास हो गया की वह हलाल होकर रहेगा तो गुरुवार को ही शहाबुद्दीन ने कोर्ट से गुजारिश करते हुए कहा था की मेरी जमानत को रद्द नहीं किया जाए,मैं बिहार के बाहर कहीं भी रहने को तैयार हूं ।
यहां यह जानना भी बेहद जरुरी है की वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने शहाबुद्दीन के जमानत रद्द कराने के लिए तीन बेटों को गंवाने वाले चन्दा बाबू का साथ देने का निर्णय लिया था ।फिर जाकर बाद में बिहार सरकार भी कान्हा मामा की तरह से शहाबुद्दीन के जमानत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई थी ।चंदा बाबू ने कहा कि उन्हें बस न्याय चाहिए और इसके लिए वे अंतिम सांस तक लड़ेंगे ।
आगे जो भी ही लेकिन हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद शहाबुद्दीन फ़िल्मी स्टाईल में ना केवल दरबार लगाने लगा था बल्कि उसके हुक्म का सिक्का भी चलने लगा था ।फिलवक्त खून चटोरे और खून के इस सौदागर को सीवान जेल भेजा जा रहा है ।जेल से निकला दरिंदा एक बार फिर से जेल जा रहा है ।
सहरसा टाईम्स देश विदेश-- जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र से आतंकवादी घोषित कराने की भारत की कोशिशों में चीन द्वारा लगाए गए तकनीकी अड़ंगे की छह महीने की वैधता जल्द 'खत्म' हो जाएगी और यदि बीजिंग भारत की कोशिश में फिर से अड़ंगा नहीं लगाता है तो पठानकोट हमले के मास्टरमाइंड को प्रतिबंधित किया जा सकेगा. इस साल 31 मार्च को जैश-ए-मोहम्मद के सरगना पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति के अंतर्गत प्रतिबंध लगवाने के भारत की कोशिश को परिषद के वीटो अधिकार प्राप्त स्थाई सदस्य चीन ने बाधित कर दिया था. पंद्रह सदस्यीय सुरक्षा परिषद में चीन ही एकमात्र ऐसा देश था, जिसने भारत के आवेदन पर अड़ंगा लगाया था, जबकि सभी 14 अन्य सदस्यों ने अजहर का नाम 1267 प्रतिबंध सूची में डालने के लिए भारत के प्रयास का समर्थन किया था.
अजहर का नाम इस प्रतिबंध सूची में आ जाने पर उसकी संपत्तियों को जब्त किया जा सकेगा और उस पर यात्रा प्रतिबंध लग जाएगा. सूत्रों ने बताया कि तकनीकी अड़ंगे की छह महीने की वैधता लगभग एक सप्ताह..10 दिन में 'खत्म' होने वाली है और यदि चीन दोबारा से किसी बहाने प्रस्ताव पर रोक की मांग नहीं करता या वीटो का इस्तेमाल नहीं करता तो अजहर को आतंकवादी घोषित करने की मांग वाला भारत का प्रस्ताव स्वत: पारित हो सकता है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 14 अन्य सदस्य पहले ही भारत के प्रयास का समर्थन कर चुके हैं और तकनीकी अड़ंगे की अवधि खत्म होने तथा चीन की तरफ से दोबारा कोई आपत्ति नहीं किए जाने का आवश्यक रूप से यह मतलब होगा कि अजहर का नाम प्रतिबंध सूची में डालने की मांग का कोई विरोध नहीं है.
सहरसा टाईम्स की रिपोर्ट:- स्थापना काल से विवादों में रहने वाले इस यूनिवर्सिटी में आज भी छात्र छात्राओं का भविष्य राम भरोसे चल रहा है. आज तक कई VC महोदय आये गए लेकिन स्थिति आज भी यथावत है . कभी छात्र अपने हको की लड़ाई लड़ता है तो कभी कर्मचारी अपनी हालात का रोना रोता है. विगत कई महीनों से इस विश्वविधालय में छात्र आन्दोलन का दौर चल रहा है. जिसकी चर्चा बिहार में है.
आज हम आपको इस यूनिवर्सिटी के एक और कारनामे से रु ब रु करा रहे है. यदि आपको इस भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्व विद्यालय के वेब साईट पर कुछ खोजना हो तो आप GOOGEL पर डूबकी लगाते रहोगे लेकिन आपके समस्याओं का समाधान नहीं हो सकेगा. लेकिन फर्जी साईट खुल जायेगा. WWW.BNMUINFO.ORG
जाहिर तौर से इस वेब साईट से कमाने का गौरख धंधा चल रहा है. ALEXA वेब साईट रेंकिग से ये स्पष्ट होता है की इसे कमाने का एक जरिया बनाया गया है. यदि ऐसा नहीं भी है तो आज तक विश्व विद्यालय प्रशासन ने कोई पहल क्यों नहीं की.
गली--गली या शहर--शहर मातम में खो गया है,पूरा देश ।
हमलोगों को छोड़ कर क्यों चले गये,जहाँ रो पड़ा है,पूरा देश ।
------------------***-----------------------
हमें रक्षा देने वाला मौत को गले लगा गया ।
हमारी परवाह करने वाला खुद शहीद हो गया ।
वक़्त आ गया है,दुश्मनों से लोहा लेना का ।
कई अपने शहीदों का दर्जा लेकर धरती में शमा गया ।
------------------***----------------------
मो० अजहर उद्दीन
माँ सेबेटा.....
पत्नी से पति.....
बहन से भाई.....
बेटी से बाप.....
और ना जाने कितने रिश्ते असमय जमींदोज हो गये,देश की सुरक्षा के लिए हमारे वीर जवानों की कुर्बानी हमलोगों के जेहन में ताउम्र जज्ब रहेगी ।एक बार फिर नम आँखों से तमाम शहीदों को शत--शत नमन ।जय हिन्द... जय भारत...
गजल और गीतों के साथ जेल में बंद पूर्व सांसद आनंद मोहन की जिंदगी की एक नयी उड़ान...
वाकई कथाकार भी और गीतकार भी हैं मोहन....
एक शिल्पी को छल,प्रपंच,बेशर्मी और खुदगर्जी से जेल में रखने की हुयी थी साजिश....
मुकेश कुमार सिंह की दो टूक---एक जमाने में देश भर में अपनी रॉबिन हुड छवि से एक दमदार पहचान बनाने वाले और राजनीति में कभी घुटने ना टेकने वाले महारथीपूर्व सांसद आनंद मोहन आज तत्कालीन गोपलागंज डीएम जी कृष्णैया हत्या मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं ।वर्षों से जेल में बन्द आनंद मोहन का ताजा शौक भर इसे ना कहें बल्कि सलाखों के पीछे उनकी साहित्यिक ज्ञान--विधा कुलाचें भर रही हैं ।जेल भीतर उन्हाइनें कई कवताएं लिखी हैजिन्हें देश स्तर पर व्यापक सम्मान मिला है।कैद में आजाद कलम एवं स्वाधीन अभिव्यक्ति शीर्षक से दो काव्य संग्रह इनके प्रकाशित भी हो चुके है ।आनंद मोहन को भीतर की खोह से इस बात का एहसास हो गया है कि कलम हमेशा बंदूक से ज्यादा ताकतवर होती है । गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या के लिए लोगों को भड़काने और बढ़ावा देने के आरोप में पटना हाइकोर्ट ने बिहार के इस पूर्व सांसद को उम्रकैद की सजा सुनाई थी और सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को बरकरार रखा था ।पूर्व सांसद आनंद मोहन फिलवक्त सहरसा मंडल कारा में बंद है ।
12 गीतों और गजल संग्रह का ओडियो सेट जल्द ही आएगा बाजारों में
राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित कैद में आज़ाद कलम आयर स्वाधीन अभिव्यक्ति के चुनिंदा 12 गीतों और गजलों का ओडियो (गीत) सेट आगामी 19 जनवरी 2017 को वीर सिरोमणि महाराणा प्रताप की जयंती के अवसर पर पटना के मिरर हाई स्कूल में आहूत न्याय मार्च में रिलीज किया जायेगा ।12 गीतों और गजलों में से एक ""तन्हाई में संग जी लेता हूँ बाते कर लेता हूँ""……….को अपनी सुरीली आवाज दी है भागलपुर के उभरते हुए युवा गजल गायक सैयद तासीर हुसैन ने ।यहाँ बताना बेहद लाजमी है की अन्य गजलों में विभिन्य गायकों ने भी अपनी आवाज दी है ।
पुस्तक विमोचन सहित ओडियो रिलीज में जुटेंगे देश-प्रदेश के दिग्गज
जनवरी में आयोजित न्याय मार्च में पूर्व सांसद आनंद मोहन के करीब 1 लाख समर्थक उनकी सम्मानजनक रिहाई की मांग के साथ देश सहित प्रदेश के कोने--कोनेसे पटना में जुटेंगे ।ठीक उसी दिन पूर्व सांसद आनंद मोहन की दो पुस्तक गुमनाम नहीं मरूँगा (काव्य संग्रह)और काल कोठरी से का भी विमोचन किया जायेगा ।इस अवसर पर देश-प्रदेश के चर्चित जानेमाने कवि,साहित्यकार,शायर,गजल कार,राजनेता सहित बुद्धिजीवी और अन्य लोग भी जुटेंगे और उनके द्वारा ओडियो सेट एवं पुस्तकों का विमोचन किया जायेगा ।
शूरवीर पूर्व सांसद आनंद मोहन जो छल--प्रपंच और दोगलागिरी की वजह से सजायाफ्ता मुजरिम बनकर आज सहरसा जेल में बंद हैं,वे एक अच्छे कवि, गीतकार,शायर और साहित्यकार भी है ।दुनिया ने जीसस को नहीं बख्सा,महावीर को पत्थर मारे,गांधी गोली के शिकार हुए,कार्ल मार्क्स ने पूरी जिंदगी सलाखों के पीछे गुजार दी ।सुकरात ने जहर पीया ।तो व्यवस्था की मार आनंद मोहन जी को भी सौगात में मिल रही है ।आनंद मोहन जी की एक ताजा गजल है,जिसे एकबार अवश्य सुने ।रूह काँप और थर्रा उठेंगी ।
सहरसा टाईम्स की रिपोर्ट ----- सहरसा स्टेशन का गुरूवार को समस्तीपुर मंडल के डी आर एम सुधांशू शर्मा ने निरक्षण किया। इस दौरे में दर्जनों बेटिकट यात्रियो से जुर्माना वसूला गया। डी.आर.एम ने कहा इस साल सहरसा थरबीटीया के बीच मेगा ब्लॉक लेकर सहरसा स्टेशन पर बड़ी रेल लाइन की प्लेटफ़ॉर्म बनाई जाएगी। इससे ट्रेन समय से आएगी जाएगी और ट्रेन विस्तार का रास्ता साफ होगा.
उड़ी में 'आर्मी बेस कैम्प' पर हमले ने बरबस देश के तीन ------
प्रख्यात महाकवियों की चुनिंदा पंक्तियाँ याद दिला दी । राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने 'पुष्प की अभिलाषा' का मार्मिक चित्रण कुछ इस तरह किया है -
मुझे तोड़ लेना बनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक, मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाए वीर अनेक ।
गुप्त जी की उक्त पंक्तियाँ उड़ी के शहीदों के नाम ... आज के हालात पर हमारे दूसरे राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' जी का 'कुरुक्षेत्र' के प्रथम सर्ग में अत्यंत ही सटीक और सजीव व्यंग है -
वह कौन रोता है वहाँ- इतिहास के अध्याय पर, जिसमें लिखा है, नौजवानों के लहू का मोल है प्रत्यय किसी बूढ़े, कुटिल नीतिज्ञ के व्याहार का; जिसका हृदय उतना मलिन जितना कि शीर्ष वलक्ष है; जो आप तो लड़ता नहीं, कटवा किशोरों को मगर, आश्वस्त होकर सोचता, शोणित बहा, लेकिन, गयी बच लाज सारे देश की ?
पर यहाँ तो शोणित बहने के बाद भी हमीं लाज में डूबे जा रहे हैं ।
कायरतापूर्ण हमला, हाई लेवल मीटिंग, कठोर कारवाई, बख्से नहीं जाएंगे, उसी की भाषा में जवाब देंगे, एक के बदले दस सिर काटेंगे, छठी का दूध याद दिला देंगे । सुनते-सुनते कान पक गए ... बन्द करो अनर्गल प्रलाप-विधवा विलाप । उसके हाथ लम्बे हैं, तो क्या तुम्हारे लूले ? उसके पास आई.एस.आई. है, तो तुम्हारे पास भी 'राव' । उसके लिए कश्मीर है, तो तुम्हारे लिए भी बलूचिस्तान । वह परमाणु पावर है, तो तुम भी अणुशक्ति । बातवीरों ! बहाना छोड़ो, कुछ सोचो ... कुछ करो । म्यांमार में घुस कर मारो और यहाँ छुपकर बैठो,ऐसा तो नहीं चलेगा।कदुआ पर सितुआ चोख ... ? कहते हैं, जब व्यक्ति पहला धोखा खाता है तो गलती खाने वाले की नहीं, देने वाले की होती है । हमने तुम पर विश्वास किया और तुमने मुझे धोखा दिया । जब व्यक्ति दूसरा धोखा खाता है, तो गलती देने वाले की नहीं खाने वाले की होती है, आखिर धोखा खाकर भी विश्वास क्यों किया ? लेकिन जब आदमी धोखा पर धोखा खाए, फिर भी न सुधरे, न संभले, तो उसे परले दर्जे का मुर्ख और लतखोर कहते हैं ।
अब हम स्वंय तय करें कि हम किस श्रेणी में आते हैं । जनकवि गोपाल सिंह 'नेपाली' की इन पंक्तियों से इस आलेख का उपसंहार -
वो राही दिल्ली जाना तो कहना अपनी सरकार से चरखा चलता है हाथों से शासन चलता तलवार से ...
और अंत में आज की स्थितियों पर कुछ कहती, कुछ बोलती मेरी व्यंग्यात्मक कविता "बाँध" ।
बात खरी-खोटी और साफ ... गुस्ताखी माफ़ ...
खेल हो या जंग, पहला उसूल है - जो आक्रमक होता है- वह जीतता है, जो रक्षात्मक होता है- वह पिटता है ।
सहरसा टाईम्स की रिपोर्ट ----- उड़ी में रविवार को सैन्य ब्रिगेड पर आतंकी हमले में हुए शहीद जवानों को पुरे देश में श्रधांजलि दिया जा रहा है. इस आतंकी घटना से भारत का पूरा आवाम पाकिस्तान से बदला लेने को उतारू है.
गौरतलब है की सहरसा में इस आतंकी हमला का विरोध पुरजोर हो रहा है. सहरसा UNSI ने पाकिस्तान का झंडा जला कर इसका विरोध प्रकट किया है. NSUI के जिला अध्यक्ष सुदीप कुमार सुमन ने कहा कि पाकिस्तान द्वारा लगातार किये जा रहे भारतीय सेना पर हमला बर्दाश्त योग्य नहीं है. भारत के प्रधानमंत्री को अब आगे बढ़ना चाहिए. देश की जनता साथ है.
साथ ही कहा कि एक वर्ष के अन्दर पठानकोट और उड़ी की घटना में न सिर्फ हमारे सैनिक शहीद हुए बल्कि नापाक आतंकियों ने भारतीय परुषार्थ और अस्मिता को ललकारा है जिसे बर्दाश्त करना कायरता से कम नहीं और शहीदोँ का अपमान होगा. सबसे बड़ी बात उन्होंने ये कहा की अभी राजनीति करने का समय नहीं है बल्कि सभी को एक जुट होकर पाकिस्तान को सबक सिखाने का है और NSUI इसके लिए आपके साथ है. इस मौके पर NSUI के खगेश कुमार, राहुल राम, सूरज कुमार, विराम कश्यप, मो० युसूफ, विकाश पिंटू, शिवम सिंह,दिलखुश, नंदन, हरिप्रकाश, विभूति सहित अन्य छात्र मौजूद थे.
कहते हैं मुसलमानों का ईमान अल्लाह के बराबर होता है
हो सकता है मुट्ठी भर ऐसे मुसलमान हो जो पाक हों
पाकिस्तान के साथ--साथ भारत को आंतरिक युद्ध भी लड़ना होगा
हिन्दुस्तानियों जागो, अब हम अपने सैनिकों को मरने नहीं देंगे
यह देश शूरवीरों और वीरांगनाओं का है.............
मुकेश कुमार सिंह की दो टूक-----अब सूझ--बुझ,रणनीति,या फिर देरी दिलेरी नहीं,कायरता होगी ।पाकिस्तान एक जालिम देश है ।आप आंकड़े उठाकर देख लें इस देश ने डॉक्टर,इंजीनियर और बड़े ऑफिसर की तुलना में ज्यादे आतंकी बनाये हैं ।हद यह है की ऊँचे दर्जे की कुर्सी पाने वालों को वहाँ के हुक्मरान और सेना ने मिलकर बाद में आतंकी भी बनाया है ।विश्व में जितने भी आतंकी संगठन बने है,उसका सूत्रधार पाकिस्तान रहा है ।महात्मा गांधी की नादानी और पंडित नेहरू की बुजदिली के जिक्र भर से अब काम नहीं चलने वाला है ।हिन्दुस्तान में कश्मीर घाटी को आतंकियों ने अपना मजबूत ठिकाना बना लिया है ।सेना वहाँ ज्यादा कार्रवाई करेगी तो आम--अवाम के भी मारे जाने का खतरा है ।घाटी में ठीक से पुलिसिंग नहीं हो पा रही है ।एक बड़ी बात यह है की सेना और पुलिस से आतंकियों के सूचना तंत्र ज्यादा मजबूत हैं । जम्मू,कश्मीर और श्रीनगर इलाके में आतंकी लगातार बड़े हमले कर रहे हैं और हम अपने जवानों और अफसरों की लाशों को गिनभर रहे हैं और मातमी धुन के साथ उन्हें सेल्यूट कर रहे हैं ।
यह कहीं से भी जायज नहीं है ।कश्मीर के उरी में जो घटना घटी,उसके बाद गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने अपनी रूस की यात्रा रद्द कर दी ।रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और गृह मंत्री राजनाथ सिंह दोनों उरी गए ।लेकिन इससे क्या होगा ।टेबुल पर बैठकर जायकेदार शरबत और बिरयानी का अब वक्त नहीं रहा ।अब बारूद का धुंआ दिखना चाहिए ।हमें पता है की पाकिस्तान से युद्ध का आगाज होते ही गृह युद्ध की भी स्थिति बन सकती है ।लेकिन इस मुल्क के ज्यादातर मुसलमान देशभक्त हैं और वे ऐसे नापाक मंसूबों वालों को खुद खुनी सबक देंगे ।जाहिर तौर पर हम घाटी में कमजोर है वर्ना अस्त्र-शस्त्र और एक से एक मिसाइल में हम पाकिस्तान से आगे हैं ।अमेरिका ने हमें पाकिस्तान स्थित उसके एयर बेस के उपयोग करने की ईजाजत हमें दे दी है ।जिस तरह लादेन का शिकार किया गया था उसी तरह पाकिस्तान घुसकर हाफिज सईद और उसके जैसे कुछ खुनी आतंकियों का सफाया करना बेहद जरुरी है ।
हम जानते हैं की हमें पाकिस्तानी सेनाओं के साथ--साथ पाकिस्तानी आतंकी और भारत में आ बैठे आतंकियों से भी युद्ध करने हैं ।ऐसे में साधू--संतों से राय लेने की जगह रक्षा सलाहकार,विशेषज्ञ और पूर्व के बड़े सैन्य अधिकारियों से त्वरित वार्ता करके युद्ध का शंखनाद करना होगा ।देश माँगता है कुर्बानियां ।खद्दरधारियों अब तो देश हित की सोचो ।विभिन्य स्टेट में बैठे राजनीतिक सूरमाओं अपने चोंचले चलाना बंद करो ।कुछ जोकर किस्म के नेताओं ने आज इस देश को इस मुकाम पर पहुंचा दिया है ।
विश्व के किसी भी देश में अगर मुसलमान भाई ज्यादे सुरक्षित और खुशहाल हैं तो वे हिन्दुस्तान में है ।मुस्लिम भाईयों जागो ।चलों कंधा से कंधा मिलाकर ।लड़ाई बड़ी है ।विश्व को बताना है की भारत का सच्चा मुसलमान हिन्दुस्तानभक्त है ।चलो भाईयों चलो,पाकिस्तान का नामोनिशान मिटाना है ।
आखिर पाकिस्तान से अगर युद्ध की नौबत आई,तो,देश के प्रधानमन्त्री और रक्षा मंत्री सहित सेनाध्यक्ष से आग्रह है की ""मैं एक अदना सा पत्रकार हूँ""मुझे सेना का नेतृत्व करने का मौक़ा मिले ।क्षत्रिय होने का शौर्य और अंगार बरसाकर ज़िंदा लौटूंगा पाकिस्तान से ।अगर शहीद हुआ,तो बस इतनी कृपा करेंगे की मेरे परिजनों को किसी भी तरह के मुआवजे की गाली की जगह एक सम्मान पत्र दे देंगे ।
अनाथ और दिव्यांग बच्चों ने पाकिस्तान के झंडे के साथ फूंका नवाज शरीफ का पुतला
देश माँगता है कुर्बानी
पाकिस्तान से युद्ध ही बचा है एक रास्ता
हम वीर सपूतों के बलिदान को इसबार नहीं जाने देंगे जाया
युद्ध करो....युद्ध करो....
मुकेश कुमार सिंह की दो टूक---->>देश उबल रहा है ।देशक दहक रहा है ।देश ज्वालामुखी की तरह खौल रहा है ।21 जवानों की एक साथ बलि,अब हम कतई बर्दास्त नहीं करेंगे । हम अपने वीर सपूतों के बलिदान को अब बेजा नहीं होने देंगे ।कबतक बलि चढ़ने वाले सपूतों को शहीद का तमगा देकर कुछ रेवड़ी देते रहोगे हुक्मरान ।हमें अपने देश पर नाज है,सियासतदां तुम तो अब कुछ लाज करो ।
कश्मीर में शहीद होने वाले हमारे वीर सपूतों(सैनिकों)के नाम----
१-उदित नारायण पाण्डेय
२-सुखविंदर सिंह
३-बृजकिशोर राजपूत
४-हरमिंदर सिंह
५- राजेश्वर जाट
६-बलराम पाटिल
७-उमेश तिवारी
८-राजेश राणा
९-अरमान पटेल
१०-कृष्णा सिद्धू
११-बम बम सिंह
१२-पृथ्वीराज चौहान
१३-रमेश चौहान
१४-उमेश प्रताप
१५-अटल सिंह
१६-चरणजीत सिंह
१७-मनोज वाजपेयी
१८-रामवतार दुबे
१९-बृजेश पाठक
२०-सुनील पांडुरंग राव
२१-सत्यजित सिंह
मरने वाले दहशतगर्द आतंकी के नाम---
१- सैय्यद इस्माइल खान (पाकिस्तानी)
२-जाकिर सैफी (पाकिस्तानी)
३-अब्बास नकवी (पाकिस्तानी)
४-मुख़्तार बानी (कश्मीरी)
मरने वाले वीर सेनानियों में सत्रह शूरवीर बिहार के थे ।हमें इस बात से कोई मलाल नहीं के ये सत्रह बिहारी थे ।ये हमारे देश के ये किसी भी कोने के होते,दिल हमारा उतना ही जलता ।
आज सहरसा आकांक्षा अनाथ आश्रम के इक्कीस बच्चों ने जिसमें से आधे बच्चे दिव्यांग हैं,देश के सामने एक नजीर पेश की ।इन बच्चों ने जिला समाहरणालय के सामने ना केवल पाकिस्तानी झंडे को फूंका बल्कि पाकिस्तानी वजीरे आला नवाज शरीफ के पुतले भी फूंके ।यही नहीं बच्चों ने पाकिस्तान के खिलाफ जमकर नारेबाजी की और पाकिस्तान के साथ जल्द युद्ध हो इसके लिए नरेंद्र मोदी से मांग की ।
नजारा बेशक कुछ लोगों को हल्का और हो सकता है की सियासी भी लगता हो लेकिन यह बच्चों का शंखनाद था जिसकी धमक दूर तलक जायेगी ।संस्था में पल रही संगीता,नेहा,इन्द्राणी सहित सभी बच्चियों ने लगभग एक रट लगाते हुए कहा की हम भी युद्ध करने जाएंगे । पाकिस्तानियों ने हमारे अपनों को मारा है ।संस्था के संचालक डॉक्टर शिवेंद्र कहते हैं की उन्हें बस एक बार बस पाकिस्तान घुसने का मौक़ा मिल जाए ।अपनी जान गंवाकर भी वे कुछ हिसाब जरूर चुकता करेंगे ।समाजसेवी प्रवीण आनंद जिनके सौजन्य से ये कार्यक्रम हुआ,वे तो बिल्कुल आग--बाबुल थे और उनका तो साफ़ कहना था की युद्ध में देरी से शहीदों का अपमान हो रहा है ।भाषणबाजी और मीटिंग की जगह अब एलान ए जंग की जरुरत है ।
वाकई जिसतरह से आतंकियों के मनसूबे बढे हैं और वे कश्मीर में अपनी ताकत बढ़ा चुके है ।इससे तो साफ़ जाहिर होता है की सरकार बैकफुट पर खेलना पसंद कर रही है ।लेकिन देश अभी फ्रंटफुट पर खेल देखना चाहती है ।
कश्मीर के परिपेक्ष्य में इसे अब आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया जाने लगा है कि राज्य में भाजपा-पीडीपी गठबंधन सरकार बनने के बाद सुरक्षाबल कश्मीर में आतंकियों पर नियंत्रण नहीं रख पा रहे हैं ।वर्तमान आंदोलन को इसी का परिणाम बताया जा रहा है ।
नतीजतन कश्मीर के आतंकवादग्रस्त इलाकों, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में पुनः नियंत्रण पाने की खातिर सेना की तैनाती की कवायद तेज हो गई है ।हालांकि बताया यही जा रहा है कि केंद्र सरकार पूरे कश्मीर को एक बार फिर सेना के हवाले कर देना चाहती है पर वह इसे टुकड़ों में करेगी ताकि इंटरनेशल लेवल पर 'ईज्जत' भी बची रहे ।
आधिकरिक सूत्रों के मुताबिक, कश्मीर के सभी अशांत हिस्सों को सेना के हवाले किए जाने की जो कवायद आरंभ हुई है उसके लिए सर्वप्रथम दक्षिणी कश्मीर के ग्रामीण इलाकों को चुना गया है जिसमें सैकड़ों और सैनिकों को तैनात किया जाने वाला है, जिससे सेना की भूमिका बढ़ जाने के स्पष्ट संकेत मिलते हैं ।
अधिकारी कहते हैं कि गठबंधन सरकार के सत्ता में आने के बाद सेना और अन्य सुरक्षाबलों के बीच के समन्वय को भी तोड़ दिया गया था । उनके बीच गुप्तचर जानकारियों का आदान-प्रदान भी रोक दिया गया था ।यह जानबूझ कर किया गया था या फिर अनाजाने में, लेकिन इतना जरूर निश्चित है कि इसने सिर्फ और सिर्फ आतंकियों तथा पाकिस्तान को ही लाभ पहुंचाया और अब जब इस गलती का अहसास हुआ तो हालात बेकाबू हो चुके हैं, जिनसे निपटने की खातिर केंद्र सरकार अंतिम हथियार के तौर पर सेना का इस्तेमाल एक बार फिर कश्मीर पर 'कब्जा' बरकरार रखने की खातिर करने की कवायद में जुट गई है ।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, सेना की अतिरिक्त मौजूदगी का मकसद इलाकों पर काबिज रहने और पहले से ज्यादा गश्त के जरिये उन प्रदर्शनकारियों को संकेत देना है,जो हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी बुरहान वानी की दो महीने पहले हुई मौत के वक्त से ही हिंसक विरोध-प्रदर्शनों में जुटे हुए हैं और कश्मीर को अशांत बनाए हुए हैं ।इसके साथ ही इसका उद्देश्य उपद्रवियों के खिलाफ गश्त को बढ़ाना भी है ।
वैसे, सेना भी यह बात अच्छी तरह समझती है कि वे भीड़ और हिंसक प्रदर्शनों से निपटने के लिए तैयार नहीं है, क्योंकि उनके सैनिकों के पास सिर्फ आटोमैटिक हथियार होते हैं, तथा उन्हें प्रशिक्षण भी गोली मार देने का दिया जाता है,जो इन मामलों में नहीं किया जा सकता। ।इसीलिए,पुलिस की मूलभूत जिम्मेदारियां जम्मू-कश्मीर पुलिस तथा अर्द्धसैनिक बल केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (केरिपुब) के पास ही रहेंगी,जिनके पास हिंसक भीड़ पर काबू पाने के लिए नान लीथल वेपन मौजूद रहते हैं ।
सूत्रों ने बताया कि इस पूरी कवायद का मूल उद्देश्य ग्रामीण इलाकों में राज्य सरकार के नियंत्रण को वापस बहाल करना है,जो पिछले दिनों में कुछ कम हो गया है ।बताया जाता है की घाटी तथा नियंत्रण रेखा से सटे इलाकों में सुरक्षा स्थिति का जायजा लेने के लिए सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग का जम्मू कश्मीर का दौरा इसी कड़ी का एक हिस्सा है ।
जानकारी के लिए 8 जुलाई को बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से सुरक्षाकर्मियों तथा प्रदर्शनकारियों के बीच हुए संघर्षों में अब तक 76 से ज्यादा लोगों की जानें जा चुकी हैं और 11,000 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं, जिनमें ज्यादातर सुरक्षाकर्मी हैं ।हालात यह हैं कि हिंसक प्रदर्शनों के कारण आतंकवाद विरोधी अभियान ठप्प हो चुके हैं और खबरें कहती हैं कि आतंकी ग्रामीण क्षेत्रों में अपने आपको मजबूत कर चुके हैं ।
फिलवक्त हमने कुछ और रौशनी डाली लेकिन एक बार फिर मौजूं विषय पर आते हैं ।आखिर कबतक हम अपने जवानों की आहुति देते रहेंगे ? अब हमें पाकिस्तानी खून से रंगे तिरंगे और थोक में वहाँ के जवानों की लाशें चाहिए ।अब लड़ाई आर--पार की होगी ।एसी कमरे में बैठकर अब नेतागीरी का वक्त नहीं है ।उठाओ शस्त्र और करो पाकिस्तान पर हमला ।देश का हर नागरिक सैनिक की भूमिका निभाने को आतुर है ।
शहाबुद्दीन का तिलस्म और बिलखता बिहार ----------------------------------------------------
मुकेश कुमार सिंह की दो टूक-->>
हमने अपने इस आलेख में पत्रकार राजन मिश्रा के कई टिप्पस लिए हैं ।मो. शहाबुद्दीन औरबिलखते बिहार को हल्के ढंग से परोस देना कतई लाजिमी नहीं है ।फ़िल्म शोले में जिस तरह गब्बर और अंतर्राष्ट्रीय डॉन दाऊद इब्राहिम का किरदार है,ठीक उसी तरह का बिहार की कहानी में मोहम्मद शहाबुद्दीन का दहशत से भरा चमकदार किरदार रहा है ।90 के दशक के शुरूआती काल में सीवान की एक नई पहचान बनी ।इस नयी पहचान की एकमात्र वजह सुर्ख़ियों में आये बाहुबली नेता शहाबुद्दीन थे ।वे अपराध की दुनिया से बेहतर तालीम लेकर राजनीति में आये थे । 1987 में पहली बार विधायक बने और लगभग उसी समय जमशेदपुर में हुए एक तिहरे हत्याकांड से उनका नाम अपराध की दुनिया में मजबूती से उछला गया ।जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष रहे कॉमरेड चंद्रशेखर की हत्या,एसपी सिंघल पर गोली चलाने से लेकर तेजाब कांड जैसे चर्चित कांडों के सूत्रधार शहाबुद्दीन ही माने गए ।बताना बेहद लाजिमी है की उसी चर्चित तेजाब कांड पर जब माननीय न्यायालय का जमानत के रूप में फैसला आया तो सीवान और बिहार के दूसरे हिस्से में रहने वाले लोगों के जेहन में 12 साल पुराने इस खौफनाक घटना की याद बेहद संजीदगी से जिंदा हो उठी ।
शहाबुद्दीन के विधायक बनने के बाद लालू प्रसाद यादव से दोस्ती हुयी थी ।और उसी दौर के एक थप्पड़ ने शहाबुद्दीन को बनाया था नेता से बाहुबली ।मो. शहाबुद्दीन को लंबे समय तक राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद का राजनीतिक संरक्षण गुरु और एक गार्जियन के तौर पर मिलता रहा ।उस काल को तभी लोग खौफ़काल की नजर से देख रहे थे ।लेकिन राबड़ी सरकार में 2003 में डीपी ओझा के डीजीपी बनने के साथ ही शहाबुद्दीन पर शिकंजा कसना शुरू हो गया ।डीपी ओझा ने शहाबुद्दीन के खिलाफ सबूत इकट्ठे कर कई पुराने मामले तटस्थ होकर फिर से खोल दिए ।पहले जिन मामलों की जांच का जिम्मा सीआईडी को सौंपा गया था, उनकी भी समीक्षा शुरु हो गई ।फिर माले कार्यकर्ता मुन्ना चौधरी के अपहरण व हत्या के मामले में शहाबुद्दीन के खिलाफ वारंट जारी हुआ । इस मामले में शहाबुद्दीन को अदालत में आत्मसर्पण करना पड़ा ।शहाबुद्दीन के आत्मसमर्पण करते ही सूबे की सियासत गरमा गई और मामला आगे बढ़ता देख राज्य सरकार ने सियासी चाल चली और डीपी ओझा को डीजीपी पद से हटा कर चलता कर दिया ।
सत्ता के टकराव और बेहद राजनीतिक दबाब के कारण ओझा को वीआरएस भी लेना पड़ा ।2005 में जब रत्न संजय सीवान के एसपी बने, तो शहाबुद्दीन के खिलाफ एक बार फिर कार्रवाई की नवीन शुरुआत शुरू हुई ।यह समय राज्य में राष्ट्रपति शासन का था ।
24 अप्रैल 2005 को शहाबुद्दीन के पैतृक गांव प्रतापपुर में की गई छापेमारी में भारी संख्या में आग्नेयास्त्र, अवैध हथियार, चोरी की गाड़ियां व विदेशी मुद्रा आदि बरामद किए गए ।हालांकि छापेमारी से संबंधित मुकदमों में कई आरोपितों को हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई । वहीं लंबे समय तक फरार रहने के बाद तत्कालीन सांसद शहाबुद्दीन को दिल्ली स्थित उनके निवास से पुलिस ने छह नवंबर 2005 को गिरफ्तार कर लिया । तब से वे न्यायिक हिरासत में जेल में बंद हैं ।जेल में रहने के बाद भी शहाबुद्दीन को दर्जनों मामलों में साजिशकर्ता और मुख्य षड्यंत्रकारी के रूप में अभियुक्त बनाया गया, जिनमें तेजाब कांड में दो सगे भाइयों को तेजाब से नहलाकर मारने और इन दोनों के बड़े भाई को भी साल 2014 में डीएवी मोड़ के पास गोली मार कर हत्या कराने का आरोप भी इन्हीं पर लगा है, जो तेजाबकांड के असल और इकलौते चश्मदीद गवाह भी थे ।
इस घटना के समय शहाबुद्दीन भले ही जेल में था, लेकिन उसके नाम मात्र से पूरा सीवान कांप जाता था ।ऐसे में हरेक के जेहन में सवाल उठना लाजमी है कि भला इस बाहुबली नेता को किस अधिकारी ने काबू में लिया था और इस गंभीर वारदात में आरोपी बनाने की हिम्मत किसने जुटाई थी । जनता जनार्दन इस कोरे सच को जान ले की शहाबुद्दीन के भय के साम्राज्य को तहस-नहस करने का श्रेय आइएएस सी.के अनिल और आईपीएएस रत्न संजय को जाता है ।
तेजाब कांड की वारदात के समय सी.के अनिल सीवान के डीएम थे और रत्न संजय कटियार एसपी थे ।इन्हीं दो जांबाज अधिकारियों ने भारी पुलिस बल के साथ शहाबुद्दीन के प्रतापपुर स्थित घर पर छापेमारी की थी ।
*जब शहाबुद्दीन के सामने दो भाइयों को तेजाब से नहला कर मार दिया गया*
शहाबुद्दीन के घर से मिले थे पाकिस्तानी हथियार
एस.पी रत्न संजय और डीएम सी.के अनिल की संयुक्त छापेमारी में शहाबुद्दीन के घर से पाकिस्तान में बने हथियार बरामद हुए थे ।इतना ही नहीं उसके घर से बरामद एके-47 राइफल पर पाकिस्तानी ऑर्डिनेंस फैक्ट्री के छाप (मुहर) लगे थे ।ये हथियार केवल पाकिस्तानी सेना के इस्तेमाल के लिए होते हैं ।
इस बाहुबली नेता के घर से अकूत जेवरात और नकदी के अलावा जंगली जानवरों शेर और हिरण के खाल भी बरामद हुए थे ।
इस छापेमारी के बाद उस वक्त के डीजीपी डीपी ओझा ने शहाबुद्दीन के पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ से संबंध होने की बात स्वीकारी थी । साथ ही इसे साबित करने के लिए सौ पेज की रिपोर्ट पेश की थी ।शहाबुद्दीन के इस काले कारनामे पर से पर्दा हटाने वाले ओझा का तत्कालीन बिहार सरकार ने तुरंत से तबादला कर दिया था ।
जानकारी हो कि 2001 में भी बिहार पुलिस शहाबुद्दीन के गिरेबान तक पहुंचने की कोशिश में उसके प्रतापपुर वाले घर पर छापेमारी की थी, लेकिन अंजाम बेहद दुखद हुआ था ।शहाबुद्दीन के गुर्गों ने बेखौफ होकर पुलिस पर फायरिंग की थी । करीब तीन घंटे तक दोनों तरफ से हुई इस गोलीबारी में तीन पुलिस वाले सहित दस लोग मारे गए थे ।इसके बाद पुलिस को खाली हाथ बैरंग लौटना पड़ा था ।इस संगीन वारदात के बाद भी शहाबुद्दीन के खिलाफ कोई मजबूत केस नहीं बनाया गया था ।
पुलिस को जड़ दिया था थप्पड़
2001 में राज्यों में सिविल लिबर्टीज के लिए पीपुल्स यूनियन की एक रिपोर्ट ने खुलासा किया था कि राजद सरकार कानूनी कार्रवाई के दौरान शहाबुद्दीन को संरक्षण दे रही थी ।
2001 में ही पुलिस जब राजद के स्थानीय अध्यक्ष मनोज कुमार पप्पू के खिलाफ एक वारंट तामील करने पहुंची थी तो शहाबुद्दीन ने गिरफ्तारी करने आए अधिकारी संजीव कुमार को थप्पड़ मार दिया था ।शहाबुद्दीन के सहयोगियों ने पुलिस वालों की जमकर पिटाई कर दी थी ।
शहाबुद्दीन चार बार सांसद और दो बार रहे विधायक
एक बाहुबली से राजनेता बनने का मोहम्मद शहाबुद्दीन का सफर बड़ा ही दिलचस्प रहा है। बिहार में कभी अपराध का बड़ा नाम रहे शहाबुद्दीन का जन्म 10 मई 1967 को सीवान जिले के हुसैनगंज प्रखंड के प्रतापपुर गांव में हुआ था ।सीवान के चार बार सांसद और दो बार विधायक रहे शहाबुद्दीन ने कॉलेज के दौरान ही अपराध की दुनिया का दामन थाम लिया था ।
डीएवी कॉलेज से राजनीति में कदम रखने वाले इस नेता ने माकपा व भाकपा (मार्क्सवादी – लेनिनवादी) के खिलाफ जमकर लोहा लिया और इलाके में ताकतवर राजनेता के तौर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई ।भाकपा माले के साथ उनकाना केवक छत्तीस का आंकड़ा था बल्कि तीखा टकराव भी होता रहाता था ।
सीवान में दो ही राजनीतिक धुरियां थीं ।तब एक शहाबुद्दीन व दूसरा भाकपा माले ।1993 से 2001 के बीच सीवान में भाकपा माले के 18 समर्थक व कार्यकतार्ओं को अपनी जान गंवानी पड़ी ।जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर व वरिष्ठ नेता श्यामनारायण भी इसमें शामिल थे ।इनकी हत्या सीवान शहर में 31 मार्च 1997 को कर दी गई थी ।इस मामले की जांच सीबीआई ने की थी ।
कौन हैं शहाबुद्दीन ?
राजद के पूर्व सांसद व विधायक रहे मो. शहाबुद्दीन की तूती आज भी बोलती है ।कहा जाता है कि खासकर सीवान में कोई पत्ता भी उनके इशारे के बिना नहीं सरकता है ।बहरहाल तेजाब कांड में उम्रकैद की सजा पा चुके बाहुबली मो. शहाबुद्दीन को तेजाब कांड में षड्यंत्र रचने, अपहरण व हत्या करने के मामले में कोर्ट ने दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है ।
बहरहाल यह वही बाहुबली शहाबुद्दीन हैं जिनकी लालू यादव की सरकार के दौरान 1990 के दौर से ही खूब चलती रही है और तुती बोलती रही है ।समय बदल गया और बिहार की राजनीति में कई उतार-चढ़ाव आए ।यहां तक कि लालू प्रसाद बिहार की सत्ता से दूर हो गए थे फिर भी उनके शासनकाल को जंगलराज के उपनाम से छुटकारा नहीं मिल पाया था ।इस नाम में शहाबुद्दीन सिरमौर्य के तौर पर काबिज थे ।
मोहम्मद शाहब्बुद्दीन एमए और पीएचडी की डिग्री हासिल किये हुए सूरमा हैं शहाबुद्दीन ने हिना शहाब से शादी की थी ।उनका एक बेटा और दो बेटी हैं ।शहाबुद्दीन ने कॉलेज से ही अपराध और राजनीति की दुनिया में कदम रखा था ।किसी फिल्मी किरदार से दिखने वाले मोहम्मद शहाबुद्दीन की कहानी भी फिल्मी सी लगती है. उन्होंने कुछ ही वर्षों में अपराध और राजनीति में काफी नाम कमाया ।
अपराध की दुनिया में पहला कदम
अस्सी के दशक में शहाबुद्दीन का नाम पहली बार आपराधिक मामले में सामने आया था. 1986 में उनके खिलाफ पहला आपराधिक मुकदमा दर्ज हुआ था ।इसके बाद उनके नाम एक के बाद एक कई आपराधिक मुकदमे दर्ज होते चले गए । शहाबुद्दीन के बढ़ते हौंसले को देखकर पुलिस ने सीवान के हुसैनगंज थाने में शहाबुद्दीन की हिस्ट्रीशीट खोल दी ।इन्हें ए श्रेणी का हिस्ट्रीशीटर घोषित कर दिया गया ।छोटी उम्र में ही अपराध की दुनिया में शहाबुद्दीन जाना पहचाना नाम बन गया ।नाम बढे से गुर्गों की तायदाद बढ़ती गयी और उनकी ताकत में बेशुमार इजाफा हुआ ।
राजनीति में शहाबुद्दीन का उदय
राजनीतिक गलियारों में शहाबुद्दीन का नाम उस वक्त चर्चाओं में आया जब शहाबुद्दीन ने लालू प्रसाद यादव की छत्रछाया में जनता दल की युवा इकाई में कदम रखा ।राजनीति में जनाब के सितारे बुलंद थे ।पार्टी में आते ही शहाबुद्दीन को अपनी ताकत और दबंगई का फायदा मिला ।पार्टी ने 1990 में विधान सभा का टिकट दिया और वे बना किसी हाय--तौबा के जीत गए ।उसके बाद फिर से 1995 में चुनाव जीता ।इसे कौन नहीं समझ सकता की इस दौरान शाही नेता का कद और बढ़ गया ।ताकत को देखते हुए पार्टी ने 1996 में उन्हें लोकसभा का टिकट दिया और यहां भी शहाबुद्दीन की जीत हुई ।बेशक 1997 में राष्ट्रीय जनता दल के गठन और लालू प्रसाद यादव की सरकार बन जाने से शहाबुद्दीन की ताकत बहुत बढ़ गई थी ।
आतंक का दूसरा नाम बन गए थे शहाबुद्दीन
2001 में राज्यों में सिविल लिबर्टीज के लिए पीपुल्स यूनियन की एक रिपोर्ट ने खुलासा किया था कि राजद सरकार कानूनी कार्रवाई के दौरान शहाबुद्दीन को संरक्षण दे रही थी ।सरकार के संरक्षण में वह खुद ही कानून बन गए थे ।सरकार की ताकत ने उन्हें एक नई चमक दी थी ।पुलिस शहाबुद्दीन की आपराधिक गतिविधियों की तरफ से आंखे बंद किए रहती थी ।शहाबुद्दीन का आतंक इस कदर था कि किसी ने भी उस दौर में उनके खिलाफ किसी भी मामले में गवाही देने की हिम्मत नहीं की थी ।सीवान जिले को वह अपनी जागीर समझते थे ।जहां उनकी इजाजत के बिना पत्ता भी नहीं हिलता था ।
पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी रहे निशाने पर
ताकत के नशे में चूर मोहम्मद शहाबुद्दीन इतना अभिमानी हो गए थे कि वह पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को भी कुछ नहीं समझते थे ।आए दिन अधिकारियों से मारपीट करना उनका शगल बन गया था ।यहां तक कि वह पुलिस वालों पर गोली चला देते थे ।मार्च 2001 में जब पुलिस राजद के स्थानीय अध्यक्ष मनोज कुमार पप्पू के खिलाफ एक वारंट तामील करने पहुंची थी तो शहाबुद्दीन ने गिरफ्तारी करने आए अधिकारी संजीव कुमार को थप्पड़ मार दिया था । और उनके आदमियों ने पुलिस वालों की पिटाई भी की थी ।
पुलिस और शहाबुद्दीन समर्थकों के बीच गोलीबारी
मनोज कुमार पप्पू प्रकरण से पुलिस महकमा सकते में था ।पुलिस ने मनोज और शहाबुद्दीन की गिरफ्तारी करने के मकसद से शहाबुद्दीन के घर छापेमारी की थी ।इसके लिए बिहार पुलिस की टुकड़ियों के अलावा उत्तर प्रदेश पुलिस की मदद भी ली गई थी ।छापे की उस कार्रवाई के दौरान दो पुलिसकर्मियों समेत 10 लोग मारे गए थे ।पुलिस के वाहनों में आग लगा दी गई थी ।मौके से पुलिस को 3 एके-47 भी बरामद हुई थी ।शहाबुद्दीन और उसके साथी मौके से भाग निकले थे ।इस घटना के बाद शहाबुद्दीन पर कई मुकदमे दर्ज किए गए थे ।
सीवान में चलती थी शहाबुद्दीन की हुकूमत
2000 के दशक तक सीवान जिले में शहाबुद्दीन एक समानांतर सरकार चला रहे थे ।उनकी एक अपनी अदालत थी ।जहां लोगों के फैसले हुआ करते थे ।वह खुद सीवान की जनता के पारिवारिक विवादों और भूमि विवादों का निपटारा करते थे । यहां तक के जिले के डॉक्टरों की परामर्श फीस भी वही तय किया करते थे ।कई घरों के वैवाहिक विवाद भी वह अपने तरीके से निपटाते थे ।वर्ष 2004 में लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने कई जगह खास ऑपरेशन किए थे ।जनाब जो मीडिया की सुर्खियां बन गए थे ।
जेल से लड़ा चुनाव, अस्पताल में लगाया था दरबार
1999 में एक सीपीआई (एमएल) कार्यकर्ता के अपहरण और संदिग्ध हत्या के मामले में शहाबुद्दीन को लोकसभा 2004 के चुनाव से आठ माह पहले गिरफ्तार कर लिया गया था ।लेकिन चुनाव आते ही शहाबुद्दीन ने मेडिकल के आधार पर अस्पताल में शिफ्ट होने का इंतजाम कर लिया ।अस्पताल का एक पूरा फ्लोर उनके लिए रखा गया था ।जहां वह लोगों से मिलते थे और बैठकें करते थे ।चुनाव तैयारी की समीक्षा करते थे ।वहीं से फोन पर वह अधिकारियों, नेताओं को कहकर लोगों के काम कराते थे ।अस्पताल के उस फ्लोर पर उनकी सुरक्षा के भारी इंतजाम थे ।हालात ये थे कि पटना हाईकोर्ट ने ठीक चुनाव से कुछ दिन पहले सरकार को शहाबुद्दीन के मामले में सख्त निर्देश दिए ।कोर्ट ने शहाबुद्दीन को वापस जेल में भेजने के लिए कहा था ।सरकार ने मजबूरी में शहाबुद्दीन को जेल वापस भेज दिया लेकिन चुनाव में 500 से ज्यादा बूथ लूट लिए गए थे । आरोप था कि यह काम शहाबुद्दीन के इशारे पर किया गया था ।लेकिन दोबारा चुनाव होने पर भी शहाबुद्दीन सीवान से लोकसभा सांसद बन गए थे । लेकिन उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाले जेडी (यू) के ओम प्रकाश यादव ने उन्हें कड़ी टक्कर दी थी ।चुनाव के बाद कई जेडी (यू) कार्यकर्ताओं की हत्या हुई थी ।
हत्या और अपहरण के मामले में हुई उम्रकैद
साल 2004 के चुनाव के बाद से शहाबुद्दीन का बुरा वक्त शुरू हो गया था ।इस दौरान शहाबुद्दीन के खिलाफ कई मामले दर्ज किए गए ।राजनीतिक रंजिश भी बढ़ रही थी ।नवंबर 2005 में बिहार पुलिस की एक विशेष टीम ने दिल्ली में शहाबुद्दीन को उस वक्त दोबारा गिरफ्तार कर लिया था जब वह संसद सत्र में भागेदारी करने के लिए आए हुए थे ।दरअसल उससे पहले ही सीवान के प्रतापपुर में एक पुलिस छापे के दौरान उनके पैतृक घर से कई अवैध आधुनिक हथियार, सेना के नाइट विजन डिवाइस और पाकिस्तानी शस्त्र फैक्ट्रियों में बने हथियार बरामद हुए थे ।हत्या, अपहरण, बमबारी, अवैध हथियार रखने और जबरन वसूली करने के दर्जनों
मामले शहाबुद्दीन पर हैं ।अदालत ने शहाबुद्दीन को उम्रकैद की सजा सुनाई थी ।
चुनाव लड़ने पर रोक
अदालत ने 2009 में शहाबुद्दीन के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी ।उस वक्त लोकसभा चुनाव में शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब ने पर्चा भरा था । लेकिन वह चुनाव हार गई ।उसके बाद से ही राजद का यह बाहुबली नेता कारागार में बंद है । शहाबुद्दीन पर एक साथ कई मामले चल रहे हैं और कई मामलों में उन्हें सजा सुनाई जा चुकी है । लेकिन अब स्थिति अलग है, उन्हें जमानत मिल चुकी है ।कहा जाता है कि भले ही शहाबुद्दीन इतने दिन जेल में रहकर रिहा हुए हों लेकिन उनका रूतबा आज भी सीवान में कायम है ।
तेजाब कांड में अपने तीन बेटों को खो चुके चंदा बाबू ने तो अपना धैर्य भी खो दिया है ।6000 की मासिक आमदनी से कोई थक चुका आदमी कितना लड़ेगा, लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि अब सिवान और बिहार की जनता क्या करे?
एक शहाबुद्दीन और कहानी अनेकों ।पूरी कहानी जानने के बाद इस शहाबुद्दीन को महज अपराधी कहना कतई जायज नहीं है ।यह खून चटोरा और हिंसक भेड़िया है जो किसी को भी लील सकता है ।हम अदालत की कार्रवाई पर कोई ऊँगली नहीं उठा रहे लेकिन ऐसे खून के सौदागर को कभी भी सलाखों के बाहर नहीं आना चाहिए ।जमानत के बाद यह दरिंदा सफ़ेद क्रिजदार कपड़ों में चस्मा लगाकर यूँ निकलता है,गोया किसी फ़िल्म की शूटिंग में जा रहा हो ।जिस राज्य की सरकार ही जाति और धर्म पर चल रही हो,उस राज्य में कुछ भी सम्भव है ।ऊपर वाले इस बिलखते बिहार का आखिर क्या होगा ?
ये घटना सहरसा के सत्तर कटैया प्रखंड अन्तर्गत सत्तर गाँव के वार्ड संख्या 2(गौंठ टोला) एवं वार्ड संख्या 6(छिपा टोला) की हैं,जहाँ दस दिनों के अन्दर पीड़ीत गंगा राय, लालो राय ,विश्नाथ राय,विजय यादव, सुरेश यादव,बुचो यादव समेत दर्जनों पशुपालको की भैंस की मौत गाँव में फैली नई बीमारी के कारण हो चुकी हैं ।जबकि वर्तमान में बलराम यादव, विजय यादव,बोदो यादव समेत आधे दर्जन से अधिक पीड़ितों की भैंसों में यह जानलेवा बिमारी लगी हुयी है ।हजारों रुपए ईलाज के नाम पर ठग कर झोला छाप डॅाक्टर जा रहे हैं ।लेकिन मौत का सिलसिला थम नहीं रहा है ।जाहिर तौर पर सभी को मौके की ताक है और ये झोला छाप डॉक्टर पशुपालको की मजबूरी का फायदा उठाते हैं ।अभी तक किसी को इस नयी बीमारी के होने का कारण समझ में नहीं आया है ।हद की इंतहा तो यह है की थोक में भैंसों की मौत हो रही है लेकिन अभीतक गाँव में ना तो पशुपालन विभाग की कोई टीम पहुंची है और ना ही कोई पशु चिकित्सक ।पशुपालक पूरी तरह से बेबस,लाचार और हताश हो गए हैं । गाँव के लोग इस रोग से छुटकारा पाने के लिए ओझा--भगता की भी अब मदद मेने लगे हैं ।जहां तक बीमारी के लक्षण का सवाल है तो भैसो में बच्चा देने के बाद योनि का फूलकर लाल हो जाना बताया जा रहा है ।जैसा की तस्वीर में दिखाई भी देता है ।और तीन से चार दिनों के अंदर उस पशु की मौत हो जाती है । हमारी समझ से इस रोग को समझने और इसके उपचार में अगर सहरसा पशुपालन विभाग सक्षम नहीं है तो, फिर पटना से टीम बुलाई जानी चाहिए ।इस मामले में अब कोई कोताही नहीं बरतनी चाहिए ।अगर समय रहते सरकार और सम्बद्ध विभाग नहीं जागा तो कई इलाके पशुविहीन हो जाएंगे ।
यह थानेदार बहुत मायावी है ...... हमने अपने जीवन में इतना प्रभावशाली और ताकतवर थानेदार नहीं देखा ? डीजीपी से कम रूतबा नहीं है जनाब का ........ कयासों का बाजार गर्म बटोरन नाम से मशहूर यह थानेदार,जाते--जाते बटोरने में है जुटा हुआ....... एसपी साहेब की भी खूब बरसाती है इनपर कृपा..........
मुकेश कुमार सिंह की दो टूक---->>
सही मायने में हमारा दिमाग काम नहीं कर रहा है । जिस थानेदार का जोनल तबादला,बीते माह 16 तारीख को ही हो गया,आखिर वह अबतक अपने पद पर बना कैसे है ?भाई ! हम भी कोई जाहिल इंसान नहीं हैं ।अच्छी जगह से पढ़ाई की है और बड़ी निष्ठा और समर्पण से पत्रकारिता के पेशे में आये हैं ।एक महीने तबादले के हो गए और जनाब अभीतक हिसाब--किताब में लगे हैं ।
इस महामानव का नाम संजय कुमार सिंह है ।ये अधिकतर मामलों को सुनते ही फ़टाफ़ट निपटाने की काबीलियत रखते हैं ।कहीं कोई घटना की सुचना आई की,जनाब के मुंह से निकला की मामला बस यही होगा ।जमीन और मारपीट से लेकर राशन--किरासन की गाड़ी और बड़े वाहन को लेकर इनके पास अकूत ज्ञान है । लूट,छिनतई,चोरी और ह्त्या जैसे मामले में ये तो और विशाल पारखी हैं ।रेड लाईट इलाके के मामले हों,या फिर शराब का कोई मामला,हर मामले में साहेब की तगड़ी पकड़ है ।इनकी थानेदारी के काल का तटस्थ पड़ताल करें तो अपराधी सीना ताने और पुलिस भींगी बिल्लो बनी नजर आई है ।जाहिर तौर पर अपराधियों की समानांतर सरकार चल रही है यहां ।अपराधियों की बल्ले बल्ले है और अपराधी बिना किसी शक--शुब्बा के पुलिस पर भारी हैं ।
तबादले के बाद आखिर ये क्यों नहीं जा रहे ?
बड़ा दहकता,तल्ख और मौजूं सवाल है की तबादले के बाद ये आखिर सहरसा सदर थाने से हिल क्यों नहीं रहे हैं ? तो कुछ लोग कहते हैं की साहब लक्ष्मी के पुजारी और रसूख वाले हैं ।पैरवी--पहुँच भी तगड़ी है ।छः माह का इन्होने ऊपर से ही स्टे करवा लिया है ।वैसे हम सुनी--सुनाई बात कर रहे हैं ।हमें इस बाबत कोई पुख्ता जानकारी नहीं है ।कुछ लोग कह रहे हैं की एसपी अश्वनी कुमार का कुछ बकाया है,उसे चुकता करने के लिए वे पुराने देनदार से वसूली कर रहे हैं ।ये भी सुनी--सुनाई बात ही है ।लेकिन आखिरकार जनता जनार्दन को कोई तो समझाए की ये साहेब तबादले के महीने बाद भी कुर्सी से क्यों चिपके हैं ?
इस मसले पर बड़े साहब क्या कहते हैं ? इस मसले पर एसपी अश्वनी कुमार और सदर एसडीपीओ सुबोध विश्वास कहते हैं की अभी थाने में कोई योग्य थानेदार नहीं आया है ।साथ ही कुछ लंबित केश का मामला और कुछ टेक्निकल बातें हैं जिसकारण इन्हें रिलीव नहीं किया जा रहा है । सभी कुछ न्याय सम्मत हो रहा है ।इधर सदर थाने में एक नए इंस्पेकटर भाई भरत ने योगदान दिया है ।शहर में लोग चर्चा कर रहे हैं की सदर थाने के अगले थानेदार भाई भरत ही होंगे ।लोग तो यह भी कह रहे हैं की संजय कुमार सिंह अपने कार्यकाल में महाभारत काल की याद ताजा कर रहे थे ।क्या भाई भारत थाने की कमान संभालते रामायण युग में जनता को ले जाएंगे ? क्या जनता राम राज्य की उम्मीद करे ? आखिर में हम चलते--चलते यह जरूर कहेंगे की संजय कुमार सिंह ने सहरसा की अपनी थानेदारी में एक मिशाल बनाया है जिसे आने वाले किसी थानेदार को धराशायी करना पहाड़ खोदकर दूध निकालने के समान होगा ।
संघर्ष के सही मायने तलाशने की हम कर रहे एक अदद कोशिश.......
पूजा परासर--(आधी आवादी सोशल ग्रुप से लिया गया आलेख)-------
सभी स्तर के लोगों ने जीवन को अपने तरीके और अपनी सोच के अनुसार नाम दिया है । कोई इसे "आनंद" मानता है,तो कोई इसे "महोत्सव" समझता है ।कोई इसे "निर्झर "तो कोई इसे उन्नत कर्मो की प्रयोगशाला ।और कोई इसे अनवरत "संघर्ष "समझता है ।हमने पहले भी कहा है कि ये सारे नाम अलग-अलग सोच के परिणाम हैं ।वैसे कड़वा सच यह है की सभी के जीवन को मैंने खुद से नहीं जिया है ।लेकिन मैंने अपनी उम्र और परख के साथ--साथ संगृहीत अपने अनुभव के आधार पर अपने जीवन में ऐसा बहुत कुछ जानने, समझने और महसूसने का प्रयास किया है जिसमें अनेको के जीवन के फलसफे का समावेश है ।
हम भटकना नहीं चाहते इसलिए वापिस अपने विषय पर आते हुए हम बताना चाहेंगे की संघर्ष एक विशाल शब्द है जिसका अति विशाल अर्थ हैं । जब किसी के जीवन में मुश्किल का दौर आता है तो हम उसे संघर्ष मान लेते हैं ।लेकिन आज भी कई ऐसी जिंदगी है जो हर पल संघर्षरत है ।ऐसे लोग बामुश्किल ही मिलेंगे जिनके जीवन में संघर्ष ना हो ।नीचे से लेकर शीर्ष तक के जीवन में संघर्ष होता है लेकिन हर जगह संघर्ष का स्वरूप और उसका आकार भिन्न होता है ।जिनका जीवन हर पल जमीनी तौर से संघर्षरत है,उनकी समाज में भागीदारी परोक्ष और अपरोक्ष दोनों रूप में सबसे अधिक होती है ।ऐसे लोग आपको बामुश्किल मिलेंगे,जिनके जीवन में संघर्ष ना हो ।इनके जीवन में सिर्फ संघर्ष नहीं होता,बल्कि ये संघर्ष में ही कहीं जीवन की तलाश करते हैं और सिर्फ इसलिए जीते हैं,ताकि उनकी उपस्थिति से समाज में कुछ अच्छे परिवर्तन लाए जा सकें ।ऐसे लोग केवल आत्मविश्वास के बल पर अपने पथ पर निरंतर अग्रसर रहते हैं ।भले ही इन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है ।लेकिन अपार कष्ट सहकर भी ये अपना मार्ग नहीं छोड़ते और अंतत: इतिहास गढ़ते हैं ।
हमारा जिद्दी और हठी होना बहुत जरुरी है ।लेकिन यहां यह बेहद जरुरी है की हमें यह ध्यान में है की नहीं की ""हमारा जूनून औरों के लिए कल्याणकारी है या दमनकारी"" ।केवल आपके किए गए अच्छे कर्म से ही आपके अंदर की नैसर्गिक प्रतिभाओं में विराट निखार आता है । बात अभी संघर्ष की खत्म नहीं हुयी है ।आप जब ट्रेन पर बड़ी भीड़ के दौरान सवार होती या होते हैं तो, सबसे पहले कम्पार्टमेंट के अंदर प्रवेश करना सबसे बड़ी चुनौती होती है ।फिर आप कैसे खड़ा रहें ?फिर आप बैठने की जुगत करते हैं ।यहां भी आपके संघर्ष के मुताबिक़ परिणाम मिलते हैं । अब देखिये टाटा,बिड़ला,अम्बानी,खेतान या और भी बड़े उद्योगपति जिन्हें अकूत सम्पदा है,फिर भी उनका संघर्ष जारी है । वे रोजाना कुछ ना कुछ नया और बड़ा करने की सोच रखते हैं ।यही वजह है की वे संघर्ष के साथ चल रहे हैं ।
संघर्ष में सफलता और विफलता दोनों है ।अब आप एक रिक्शा चालक और ठेले चालक से लेकर दिहाड़ी के मजदूर के संघर्ष को देखें ।ये अपने संघर्ष का सीमित परिणाम चाहते हैं जिससे उनके परिवार के लोगों की साँसें चल सके ।बड़े और मनसुख सपने इनके नहीं होते ।सही मायने में इनकी जिंदगी कठोर संघर्ष के बुते जिंदगी से संघर्ष करती है ।
एक बात और जानने की जरुरत है की बहुत ऐसे परिवार हैं जहाँ अपार संपत्ति है लेकिन वहाँ कलह और क्लेश का साम्राज्य है ।ऐसा क्यों ?इसे भी समझिये ""जहां सुमति वहाँ संपत्ति नाना ,जहां कुमति वहाँ विपत्ति नाना""।आपस की समझ में कमी,हीन भावना से ग्रसित रहना,अपने को सबसे अधिक होशियार समझना,झूठ पर पर्दा डालना,गलतियों को स्वीकार नहीं करना,जैसे दुर्गुण रहने की वजह से संपत्ति का सही उपयोग नहीं होता और वहाँ अजीब किस्म का संघर्ष मेहमान की तरह बना रहता है ।इस संघर्ष से उस घर के व्यक्ति से लेकर किसी अन्य को स्वस्थ लाभ मिलने की कतई गुंजाईश नहीं होती है ।
आप इस सबसे बड़े सच को समझिये की जहां संतोष और पर्याप्त का आत्मबोध हुआ, वहाँ संघर्ष खत्म हो जाता है ।नीचे से लेकर ऊपर तक यह परिपाटी चलती है ।
लेकिन इसके बीच में एक ऐसा संघर्ष है जिसमें दुनिया को खुशियों से तर करने का जलजला और जीवन का फलसफा है ।औरों का जीवन उत्सव और महोत्सव में कैसे काबिज रहे इसके लिए उनके जीवन के हर क्षण क्रियाशील रहते हैं ।ऐसे लोग हैं इस जगत में जो पर हितार्थ संघर्ष को न्योता देते हैं । आत्म मंथन,आत्म चिंतन से अपने मूल यानि भीतर को पहले नैसर्गिक रूप से निर्मल करना पड़ता है फिर बाहर स्पंदन देकर इतिहास गढ़ने की बुनियाद डाली जाती है ।
इस आलेख का मकसद है जीवन में संघर्ष का सही औचित्य ?संघर्ष के बिना जीवन अधूरा है ।बिना संघर्ष के जीवन में महान चीजों का संग्रहण और फिर उसका निस्सरण मुश्किल है ।संघर्ष के दौरान व्यापक प्रतिफल वाले परिणाम को लक्ष्य बनाइये ।संघर्ष के बिना जीवन हो ही नहीं सकता है ।आखिर में हम यही कहेंगे की अपने संघर्ष के जरिये कोई जीवन को "आनंद" मानता है,तो कोई इसे "महोत्सव" समझता है ।कोई इसे "निर्झर "तो कोई इसे उन्नत कर्मो की प्रयोगशाला ।और कोई इसे अनवरत सिर्फ "संघर्ष "ही समझता रहता है ।