जनवरी 07, 2017

खो गयी मानवता,मानव हुआ पशु

 खो गयी मानवता,मानव हुआ पशु
पुलिस--प्रशासन के अधिकारियों को वेतन और बाहरी आमदनी से सरोकार
एक अज्ञात बुजुर्ग की लाश कल शाम से सिस्टम की उड़ा रही थी खिल्ली
हमारी पहल और कुछ समाजसेवियों के बुते बुजुर्ग का हुआ अंतिम संस्कार
सहरसा से मुकेश कुमार सिंह की दो टूक----जीवन की आपाधापी और अंधदौड़ में लोग इतना आगे निकल चुके हैं की मानवता नाम की कोई चीज ही नहीं बची है ।मुर्दों की क्या कहें,यहां तो जरूरतमंद जिंदा इंसान की मदद के लिए कोई सामने नहीं आता ।हमने सहरसा में इस मिथक और बुरी रिवायत को तोड़ने की भरपूर कोशिश की है ।
बिहार के सहरसा जिले के सदर थाना के केंद्रीय विद्यालय के पीछे और भवन निर्माण विभाग के सामने बीते कल 6 जनवरी की शाम में एक अज्ञात बुजुर्ग ने दम तोड़ दिया लेकिन सहरसा प्रशासन और पुलिस की बेशर्मी की इंतहा देखिये की आज दिनभर किसी ने इस लाश को ठिकाने लगाने की पहल नहीं की ।नौकरशाहों की जिंदगी फाइलों में उलझी और पैसे कमाने में लगी रहती है ।उनके अंदर की इंसानियत किस तरह खत्म हो चुकी है,यह उसकी बानगी है ।सहरसा पुलिस अपनी बेशर्मी के लिए पहले से बदनाम है ।उसे वसूली के सिवा कोई समाजसेवा करने की कोई जरुरत नहीं है ।लाश की जेब से पैसे निकालने वाली पुलिस भी यहां,अभीतक नहीं पहुंची है ।जाहिर सी बात है की इस मृतक बुजुर्ग के पास कुछ भी हासिल नहीं होता ।

इस बुजुर्ग की मौत को हमने चुनौती के तौर पर लिया ।हमने खुद और समाजसेवी सुभाष गांधी, पत्रकार मनोज कुमार,राजीव झा,पप्पू चौधरी और मृत्युंजय सिंह ने बीड़ा उठाया ।सबसे पहले हमने कफ़न,अगरबत्ती और फूल मंगवाए ।फिर एक ठेले का इंतजाम किया ।हमने मल्लिक परिवार के कुछ भाईयों को भी बुलवा लिया ।यानि अंतिम संस्कार की तैयारी पूरी तरह से हमने मुकम्मिल कर ली ।फिर जरूरत की वजह से हमने डीएम और एसपी को फोन लगाया ।लेकिन दोनों अधिकारी कुनैन की गोली समझकर हमारे फोन को रिसीव नहीं किया ।इसके बाद हमने एसडीओ जहांगीर आलम को फोन किया ।जनाब ने हमें पुलिस का मामला है,यह कहकर हमें सस्ते में निपटा लिया ।लेकिन हम भी कहाँ मानने वाले थे ।आज इन अधिकारियों का पूरा रवैया देखने का हमने मन बना लिया था ।हमने एसडीपीओ सुबोध विश्वास को फोन किया ।फोन पर जैसे ही मैंने कहा की एक लाश पड़ी हुयी है,की वे बीच में ही हमें रोकते हुए बोल पड़े कहाँ कई लाख पड़े हुए हैं ।मैंने फिर उनसे कहा की एक दो लाख या कई लाख होते तो एसपी,डीएम और आपसभी यहां होते,फिर हम यहां क्या करते ?जनाब ठीक से सुनिए,कल शाम से एक बुजुर्ग की लाश पड़ी हुयी है ।लेकिन उनका अंतिम संस्कार नहीं हुआ है ।सदर थानाध्यक्ष भाई भरत डीएम के निर्देश से पहले से ही बटराहा में ड्यूटी पर डटे थे ।बाद में एसडीपीओ ने सारी बातें गंभीरता से सुनी फिर उनके फोन पर ए एसआई मुकेश कुमार कुछ पुलिस जवान के साथ आये ।
लेकिन हमने पुलिस की मौजूदगी में अपने साधन से बुजुर्ग की लाश का रिफ्यूजी कॉलोनी स्थित शमशान घाट पर अंतिम संस्कार किया ।

मानवता पूरी तरह से खत्म नहीं हुयी है बल्कि जीवन शैली में आये बदलाव की वजह से लोग अपने मूल दायित्व और कर्तव्य से चुकने लगे हैं । हमारे साथ हमारे चन्द भाईयों की दरियादिली की वजह से आज एक बुजुर्ग का अंतिम संस्कार सम्भव हो सका ।हम जबतक ज़िंदा रहेंगे,हमारी यह इंसानी कोशिश जारी रहेगी ।इस आलेख के माध्यम से हम पुरे देश भर में यह सन्देश पहुंचाना चाहते हैं की,समृद्ध लोग इस तरह के काम में आगे आएं ।जरूरतमंदों की सदैव मदद करें ।अच्छे कर्म का फल एक ना एक दिन अच्छा मिल कर रहेगा ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें


THANKS FOR YOURS COMMENTS.

*अपनी बात*

अपनी बात---थोड़ी भावनाओं की तासीर,थोड़ी दिल की रजामंदी और थोड़ी जिस्मानी धधक वाली मुहब्बत कई शाख पर बैठती है ।लेकिन रूहानी मुहब्बत ना केवल एक जगह काबिज और कायम रहती है बल्कि ताउम्र उसी इक शख्सियत के संग कुलाचें भरती है ।